अवधेश पुरोहित // TOC NEWS
भोपाल। मध्यप्रदेश में यूँ तो शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल के दौरान विकास की गंगा बही है मगर प्रदेश की जनता का इस भाजपा शासनकाल के दौरान विकास के नाम पर सड़कों के बिछाए गए जाल के बावजूद भी प्रदेश की सड़कों पर चलने के बाद उन्हें सत्ता पर काबिज होने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के वह वाक्य याद आ जाते हैं जिसमें वह नागपुर से छिंदवाड़ा की सड़क यात्रा का एक वृतांत बड़े ही रोचक तरीके से राज्य की जनता को सुनाते हुए कांग्रेस शासनक ाल की सड़कों पर तन डोले और मन डोले... की बात कहते थे वह स्थिति आज भी शिवराज सरकार के १२ वर्षों बाद भी बनी हुई है स्थिति यह है कि लोक निर्माण विभाग और अन्य निर्माण एजेंसियों द्वारा बनाई गई स्थिति का तो भगवान ही मालिक है
क्योंकि इस तरह की अधिकांश बनने वाली सड़कों के निर्माण में कमीशन का जमकर खेल चला जिसके चलते गुणवत्ता की कोई गारंटी नहीं लेकिन राज्यभर में अधिकांश टोल की सड़कों का निर्माण उस सड़क विकास निगम के माध्यम से कराया गया जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उपाध्यक्ष राज्य के लोक निर्माण मंत्री हुआ करते हैं, राज्य की इन सड़कों की टोल की स्थिति लगभग लोनिवि और अन्य एजेंसियों की सड़कों की तुलना में कुछ ठीक है मगर इन सड़कों पर चलने वाले वाहन चालकों को टोल नियमों को दरकिनार कर उनपर ४५ किलोमीटर की बजाए २३ किलोमीटर दूरी पर बनाये गये दो-दो टोलों पर जेब खाली करनी पड़ती है। ऐसी स्थिति सीहोर से कोसमी के बीच चार साल पहले बने पचास किलोमीटर के हाईवे की यह स्थिति है इस सड़क का निर्माण २०१२ में राज्य सड़क विकास निगम के माध्यम से कराया गया यहाँ कोसमी और कोनाझीर टोल के बीच २३ किलोमीटर की दूरी पर दो टोल बने हुए हैं यहां वाहनों से टोल वसूला जा रहा है लेकिन शासन के नियमानुसार इस सड़क पर दो टोल नाके के बीच की दूरी कम से कम ४५ किलोमीटर होनी चाहिए थी लेकिन निर्माण एजेंसी और निगम के अधिकारियों की सांठगांठ के चलते यहाँ टोल सड़कों के नियमों को ताक में रखकर ४५ की बजाए २३ किलोमीटर की दूरी में दो टोल नाके स्थापित किये गये इसके अलावा सड़क निर्माण एजेंसी को इसका मेंटनेंस कराने की जिम्मेदारी बनती है लेकिन निगम के अधिकारियों की सांठगांठ और संरक्षण के चलते इसका ठीक से रखरखाव भी नहीं किया जा रहा है और वहीं पचास किलोमीटर की दूरी पर दो टोल वसूले जा रहे हैं।
यह स्थिति मुख्यमंत्री के गृह जिले की है तो इससे अंदाजा लगाया जा सकता है और वह उस सड़क विकास निगम के अध्यक्ष हैं जिसकी जिम्मेदारी इस तरह की टोल की सड़कें बनाने और उसकी देखरेख की है मगर अधिकारियों और टोल संचालकों की मिलीभगत के चलते राज्य में जहां सागर से जबलपुर और दमोह से कटनी के बीच बनी दोनों सड़कों पर चलने वाले वाहन चालकों की जेबों से टोल तो वसूला जा रहा है लेकिन इन सड़कों की स्थिति क्या है यह तो वहाँ से गुजरने वाला ही बता सकता है, प्रदेश की यही सड़कें नहीं बल्कि अधिकांश टोल सड़कों की स्थिति एक जैसी है और इन सड़कों पर चलने वाले वाह न चालकों का तन और मन दोनों डोलने लगता है लेकिन निगम के अधिकारियों के संरक्षण में यह तन डोले और मन डोले... का खेल जमकर चल रहा है।
टोल की सड़कों की इस हालतों को देखते हुए ऐसा लगता है कि जिस निगम के वह मुख्यमंत्री अध्यक्ष हैं या तो उस निगम के अधिकारी मुख्यमंत्री की छवि खराब करने के प्रयास में लगे हुए हैं तभी तो टोल संचालकों से सड़कों के रखरखाव न कराने की एवज में यह लक्ष्मी दर्शन का खेल कर मुख्यमंत्री की छवि खराब करने की साजिश रचने में लगे हुए हैं, टोल की महू से लेकर नीमच तक और मानपुर से लेकर लेबड़ तक तो होशंगाबाद से लेकर जबलपुर तक की अधिकांश सड़कों के साथ-साथ अधिकांश सड़कों की भी यही स्थिति है मगर राज्य के अधिकारी इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाले निगम ने लक्ष्मी दर्शन के खेल के चलते टोल संचालकों को सहयोग देने का काम धड़ल्ले से चल रहा है।
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