अवधेश पुरोहित // TOC NEWS
भोपाल । राज्य मेंं यूँ तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल के दौरान प्रदेश को विकासशील बनाने की दिशा में तमाम प्रयास किये गये और इसी प्रयास को लेकर मुख्यमंत्री और उनकी मण्डली द्वारा समय-समय पर देश ही नहीं बल्कि दुनिया के देशों में भरपूर सैर सपाटे कर इस कर्जदार प्रदेश के खाली खजाने पर बोझ डालने का काम किया।
यदि पुरानी सम्पन्न हुई इन्वेस्टर्स मीट के परिणामों पर यदि निगाह दौड़ाई जाए तो प्रदेश में निवेश बढ़ाने के लिये मध्यप्रदेश में अब तक तीन बड़ी ग्लोबल इनवेस्टर्स समिटों का आयोजन हुआ, २०१० में खजुराहो में २०१२ व २०१४ में इन्दौर में, २०१० और २०१२ की ग्लोबल इन्वेटर्स समिट में कई एमओयू हुए लेकिन इसमें से दस फीसदी एमओयू ही जमीन पर नहीं उतर सके, हर साल होने वाली समिट से प्रदेश में निवेश का माहौल तो जरूर बना है यही नहीं सरकार की पहल और उनके लिये बिछाये जाने वाले कालीन से प्रभावित होकर बड़े निवेशकों ने भी रुचि दिखाने की दिशा मेें कदम बढ़ाये, लेकिन जिस तरह से मध्यप्रदेश सरकार के स्वागत और सत्कार से प्रभावित होकर उनमें उत्साह तो पैदा हुआ लेकिन उसका प्रतिफल जमीन पर दिखाई नहीं दे रहा है यही नहीं सरकार की प्रदेश में उद्योग एवं विकास की दिशा में चलाई जा रही मुहिम की पहल के चलते जहाँ विदेशों के निवेशकों में भी इसका प्रभाव पड़ा तो वहीं देश के औद्योगिक घरानों जिनमें अंबानी, अडानी, जेपी ग्रुप, टाटा समूह, सहारा और अब पतंजलि ने भी प्रदेश में निवेश की इच्छा जताई टीसीएस और विप्रो के अनेकों इसी समिट की सफलाता से जोड़ा जा रहा है
जबकि कई संस्थान तो अपनी प्राथमिकताओं के कारण देश में आये तो जरूर लेकिन सरकार के बुलावे या समिट से उनका कोई सरोकार नहीं रहा, आगामी दिनों में इन्दौर में होनेवाली ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के लिये मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लेकर उनके मंत्रीमण्डल के सदस्यों और अफसरों ने दुनियाभर की यात्राएं कीं और निवेशकों को लुभाने में सफलता हासिल की लेकिन अभी तक सम्पन्न हुई तीन समिटों में निवेशकों ने जिस तरह से इस प्रदेश में निवेश करने के जो वायदे किये उनके परिणाम कुछ अच्छे नजर नहीं आये इस बार की होने वाली समिट के बाद क्या होगा इसको लेकर तरह-तरह की चर्चाएं व्याप्त हैं,
ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का मुख्यमंत्री की तमाम कोशिशों के बाद न मिलना इस बात का द्योतक है कि इस प्रदेश की नौकरशाही निवेशकों के साथ मुख्यमंत्री की तरह तवज्जो नहीं देती और इसको लेकर जहां टाटा ने मुख्यमंत्री से शिकायत तो की ही थी तो पिछले दिनों निवेशकों के साथ मुख्यमंत्री के चहेते नवरत्नों की श्रेणी में शुमार सुलेमान को लेकर भी कुछ निवेशकों ने पिछले दिनों सवाल खड़े किए थे, पता नहीं मुख्यमंत्री ने निवेशकों के साथ सुलेमान के बर्ताव को किस गंभीरता से लिया यह वही जानें लेकिन मुख्यमंत्री की अपनी एक कार्यशैली है कि जब भी इस प्रदेश में कोई बढ़ा काम या आयोजन होता है तो वह उन सभी की जिम्मेदारी अपने चहेते नवरत्नों की सूची में आने वाले अधिकारियों को ही सौंपते हैं
फिर चाहे वह कुपोषण का मामला हो या फिर धार्मिक आस्था से जुड़ा सिंहस्थ का मामला हो या फिर बिजली सुधार और उसकी खरीदी का काम हो या प्रदेश के अन्नदाताओं की फसल को लाभ का धंधा बनाने का मामला हो या फिर राज्य में सड़कों के जाल बिछाने का ऐसे सभी मामलों का प्रभार की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री अपने चहेते नवरत्नों की श्रेणी में आने वाले अधिकारियों को ही सौंपते हैं, फिर चाहे भले ही इन अधिकारियों की कार्यप्रणाली के चलते मुख्यमंत्री के द्वारा सौंपे गये कार्यों में यह उनके नवरत्नी अपनी कारगुजारी दिखाते हुए आंकड़ेबाजी की बाजीगरी कर उसे रंगोली तरह सजाकर मुख्यमंत्री को गुमराह कर भजकलदारम् का खेल खेलकर भ्रष्टाचार को अंजाम दें।
इन सबके बावजूद भी मुख्यमंत्री के द्वारा ऐसे अपने नरवरत्नों के खिलाफ कार्यवाही न करने को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं भी व्याप्त हैं अपनी कार्यप्रणाली के अनुरूप मुख्यमंत्री ने इस इन्वेस्टर मीट की जिम्मेदारी अपने चहेते नवरत्न की श्रेणी में आने वाले सुलमान को सौंपी है, यह वही सुलेमान हैं जिनके बारे में प्रदेश के मंत्रालय में यह चर्चा आम है कि पिछले दिनों देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिनका यह उद्देश्य है कि ना खाएंगे और ना खाने देेने की नीति के चलते प्रदेश में सुलेमान के प्रभार के दौरान बिजली खरीदी और बिजली सुधार में हुए घोटाले के मामले की जांच में इन्हें दोषी करार दे दिया गया।
यही नही यह भी चर्चा मंत्रालय में आम है कि प्रधानमंत्री के द्वारा भेजे गए जांच दल ने यह भी पाया कि सुलेमान ने प्रदेश की बिजली खरीदी और बिजली सुधार के नाम पर भजकलदारम् की नीति अपनाकर अपनी स्थिति में सुधार किया है और यही नहीं उनके द्वारा अपने रिश्तेदारों के नाम पर विदेशों में जमा की गई बेनामी सम्पत्ति का खुलासा प्रधानमंत्री की टीम ने किया है, ऐसी प्रदेश के मंत्रालय में चर्चाएं गर्म हैं
लेकिन इसके बावजूद भी प्रदेश के कुपोषित नौनिहालों के मुंह के निवाले पर डाका डालने वाले एक अपने एक अन्य चहेते नवरत्नों में शुमार अधिकारी को बक्श देने की नीति अपनाकर सुलेमान को भी बक्श दिया गया। देखना अब यह है कि जिस होने वाली इन्वेस्टर समिट को सम्पन्न कराने की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री ने सुलेमान के कंधों पर सौंपी है इस वह इस समिट के नाम पर क्या खेल खेलते हैं या फिर इस प्रदेश को पिछली समिट की तरह निराशा हाथ लगती है या कोई सफलता प्राप्त होती है इसको लेकर राज्य के उद्योगपतियों और अधिकारियों में चर्चा जोरों पर है और सभी की निगाहें इन्दौर में आयोजित होने वाली समिट के सुपरिणाम आने की ओर आस लगाए बैठे हैं।
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