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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या कोई व्यक्ति सीमा पर मौतों का मुद्दा उठाकर एक विशेष दल के लिए वोट मांग सकता है। यह सवाल उन कई सवालों में शामिल था जो दो दशक पुराने ‘हिन्दुत्व’ संबंधी फैसले पर फिर से गौर करने के लिए सुनवाई के दौरान उठाया गया। शीर्ष कोर्ट ने यह भी साफ किया कि धर्म और राजनीति को मिक्स नहीं किया जा सकता है। धर्म के नाम पर वोट नहीं मांगा जा सकता है और चुनावी लड़ाई के लिए धर्म का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
जनप्रतिनिधि कानून की धारा 123 (3) में ‘राष्ट्रीय प्रतीक’ और ‘राष्ट्रीय चिन्ह’ शब्दों का जिक्र करते हुए प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि किसी को चुनावों में वोट हासिल करने के लिए उनके प्रयोग की अनुमति नहीं हो सकती। साथ ही पीठ ने सवाल किया कि कोई भी व्यक्ति राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय चिन्ह के आधार पर वोट मांग सकता है और कह सकता है कि लोग सीमा पर मर रहे हैं और इसलिए किसी खास पार्टी के लिए वोट कीजिए। क्या इसे अनुमति दी जा सकती है?
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि यह इस प्रावधान में विशेष रूप से वर्जित है। सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि संसद ‘अलगाववादी और सांप्रदायिक’ प्रवृत्तियों पर काबू पाने के लिए चुनाव संबंधी कानून में ‘भ्रष्ट क्रियाकलाप’ शब्द के दायरे को जानबूझकर ‘बढ़ाया’ है। पीठ ने कहा कि (जन प्रतिनिधित्व कानून) के वर्तमान उपबंध में सबसे महत्वपूर्ण यह है कि संसद ने चुनावों के दौरान अलगाववादी और सांप्रदायिक प्रवृत्तियों को काबू पाने के लिए ‘भ्रष्ट क्रियाकलाप’ शब्द के दायरे को बढाने के बारे में सोचा।
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