Wednesday, August 11, 2010

अब पुलिस प्रशासन गुण्डे-मवाली के बदले कलम के सिपाही को करेगा जिला बदर

बैतूल से खास खबर

बैतूल। पत्रकार समाज का आइना होता है लेकिन अकसर देखने को मिलता है कि जब भी समाज का या किसी भी वर्ग या सरकारी मोहकमे का चेहरा अपने आइने में दिखाने का प्रयास करता है तो उसके साथ वह सब कुछ घटता है जिसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती। प्रेस को लोकतंत्र का चौथा प्रहरी कहा गया है लेकिन प्रेस और पुलिस दोनों ही अकसर एक दुसरे के विरूद्ध संघर्ष पर उतर जाते है। प्रेस की कलम को अकसर पुलिस के डण्डे के बल पर तोडऩे का प्रयास होता है. देश के इतिहास में ऐसे बिरले ही उदाहरण देखने को मिलेगें जिसमें समाज का आइना कहे जाने वाले पत्रकार को ही समाज से बहिष्कृत करने का प्रयास किया जाता है. बैतूल जिले की पुलिस ने लोकतंत्र के इतिहास में उस चौथे प्रहरी को समाज के लिए नासूर बता कर उसे समाज और उसके प्रभाव क्षेत्र से बाहर करने के लिए उसे तडीपार करने का एक ताना - बाना बुना है. जिले की पुलिस ने जिले के सबसे वरिष्ठ पत्रकार एवं बीते 28 वर्षो से पत्रकारिता के क्षेत्र में अपनी लेखनी से समाज में जागृति लाने का प्रयास किया है ऐसे ही पत्रकार को जिला बदर करने के लिए ऐसे मामलो की सूचि बनाई है जिनमें से अधिकांश मामलो का न्यायालय से निपटारा तथा बरी तक किया जा चुका है. जिस समाज में पुलिस पत्रकार का भय और आंतक बता रही है उसी समाज के एक अंग सिक्ख समुदाय ने अभी कुछ दिन पूर्व ही बैतूल जिला मुख्यालय पर स्थित गुरूद्वारा में पत्रकार को सम्मानित किया है. जिले के वरिष्ठ पत्रकार एवं राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक समाचार पत्र पंजाब केसरी दिल्ली के बैतूल ब्यूरो चीफ रामकिशोर पंवार को बैतूल जिला पुलिस प्रशासन ने मध्यप्रदेश राज्य सुरक्षा एवं लोक स्वास्थ अधिनियम की धारा 5 क के अन्तगर्त बैतूल जिले की सीमा से बाहर करने की अनुशंसा बैतूल जिला दण्डाधिकारी कलैक्टर से की है. सबसे शर्मसार तथ्य यह है कि जिला दण्डाधिकारी बैतूल को जिला पुलिस अधिक्षक अपने शासकीस प्रतिवेदन पत्र में जिले के वरिष्ठ पत्रकार को जिले की महिलाओं छेडछाड़ करने का आरोप लगा रही है उसी पुलिस ने वह पत्र भी जिला दण्डाधिकारी को सौपा है सिमेंछेडछाड का एक मात्र प्रकरण का उल्लेख है जिसमें भी आपसी समझौता होने की बात लिख रही है. मात्र एक छेडछाड़ के प्रकरण पर पूरी जिले की महिलाओं की अस्मत को खतरा बताने वाली जिले की पुलिस न तब और भी हद कर दी जब वह दोनो पक्षो की रिर्पोट दर्ज मामलो के न्यायालय में समझौता हो जाने तथा न्यायालय द्वारा निर्दोष सिद्ध किये जाने के बाद भी उन मामलो को आधार बना कर लोकतंत्र के चौथे प्रहरी को बैतूल जिले से तड़ीपार करने का पूरा मन बना लिया है. इन सारे घटनाक्रम के पीछे की कहानी कुछ इस प्रकार है कि पत्रकार रामकिशोर पंवार द्वारा जिले के जिला एवं सत्र न्यायालय में अपर सत्र न्यायाधीश प्रथम श्रेणी न्यायमूर्ति सुनील शौक की अदालत में आरोपी मयंक भार्गव एवं मयूर भार्गव तथा अन्य के विरूद्ध तीन धोखाधड़ी के मामले दर्ज करवाने के लिए एक परिवाद प्रस्तुत किया था जिस पर विद्धवान न्यायाधीश के एक आदेश पर बैतूल पुलिस थाना में अपराध क्रंमाक 499-6, 500-6, 501-6 के तहत धोखाधड़ी एवं अन्य धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज किया गया था. मामले में पुलिस की टालामटोली एवं आरोपियो को कथित संरक्षण से कई बार न्यायालय ने पुलिस को फटकार भी लगाई. स्थिति तो यह तक आ गई थी कि पुलिस द्वारा साक्ष्य अभाव में तीनो मामलो को लेकर एक खात्मा प्रतिवेदन न्यायालय में पेश किया गया था जिसे न्यायालय ने अमान्य करते हुये स्वंय जिला पुलिस अधिक्षक बैतूल को बीते वर्ष 2009 में स्वंय जांच कर प्रतिवेदन पेश करने को कहा लेकिन पुलिस ने सारे मामले में परिवादी द्वारा न्यायालय में प्रस्तुत मामलो को लेकर आरोपियो के साथ समझौता न किये जाने पर क्षुब्ध होकर परिवादी के खिलाफ जिला बदर की कार्यवाही हेतू जिला दण्डाधिकारी को एक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया. न्यायालय ने इस बार फिर बैतूल जिला पुलिस अधिक्षक को फटकार लगाते हुये डी जी पी को भी उक्त तीनो जालसाजी के मामलो में पुलिस की टालामटोली पर नाराजगी दर्ज करते हुये एक कड़ा पत्र लिखा लेकिन पुलिस उक्त न्यायालीन पत्र के जवाब के पूर्व ही परिवादी को ही जिला बदर करने के लिए अपने छदम तरीको को अपनाने से नहीं चुक रही. जिले की पुलिस एवं प्रशासन से प्रताडि़त इस पत्रकार ने प्रेस कौसिंल आफ इंडिया में भी वर्ष 2006 में आवेदन प्रस्तुत किया गया जिस पर प्रेस कौसिंल ने भी पुलिस प्रताडऩा एवं प्रशासनिक कार्यवाही से प्रताडि़त पत्रकार को न्याय दिलवाने एवं उसकी जन माल की सुरक्षा के संदर्भ में प्रदेश के मुख्य एवं गृह सचिव को पत्र भी लिखा लेकिन जिले के सक्रिय सबसे वरिष्ठ पत्रकार को पुलिस और प्रशासन द्वारा प्रताडि़त किये जाने की घटनाओं पर विराम नहीं लगा. बीते वर्ष मार्च 2009 से लेकर इन पंक्तियो के लिखे जाने तक एक भी प्रकरण दर्ज न होने की स्थिति तथा 26 अप्रेल में हुई एक सड़क दुर्घटना में घायल पत्रकार जो कि अभी तक अपाहिज होने के बाद जिसे डाक्टरो की सलाह पर दो वर्षो तक आराम एवं उपचार की सलाह दी गई है. अभी भी उस पत्रकार के कुल्हे के जोड़ का आपरेशन होने के बाद भी बिस्तर पर पड़े पत्रकार के खिलाफ पुलिस का दमनात्मक कार्यवाही का दौर जारी है. एक तरफ प्रदेश की भगवा रंग में रंगी भाजपा सरकार के मुखिया शिवराज सिंह पत्रकारो की महापंचायत बुलाने की बाते कहती है उसी भाजपा सरकार का सरकारी महकमा भाजपा शासन काल के बीते छै सालो में इस पत्रकार को प्रताडि़त करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है. सरकार की प्रताडऩा के तौर तरीको ने तुगलकी फरमानो को भी पीछे छोड़ दिया है. जिले के अनुविभागीय दण्डाधिकारी ने इस पत्रकार को प्रताडि़त करने के लिए आंख मुंद कर भारत की राजधानी दिल्ली से निकलने वाले सर्वाधिक हिन्दी दैनिक पंजाब केसरी के पंजीयन को तक निरस्त करने का तुगलकी आदेश तक जारी कर दिया था. इस मामले में प्रेस कौसिंल आफ इंडिया से बुरी तरह फटकार पा चुके जिला प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन के गठजोड़ ने अब उस अपाहिज पत्रकार को जिलाबदर करने का मन बना लिया है जो तीन माह तक बैसाखियो के सहारे भी ढंग से चल फिर नहीं सकता. सीधे पैर के घुटने एवं कुल्हे के आपरेशन के बाद आर्थिक रूप से कमजोर इस कलम के धनी को निर्धन बनाने के लिए उसके खिलाफ तड़ीपार की पुलिस और प्रशासन ऐसे तैयारी कर रहा हो जैसे पत्रकार ने हत्या - बलात्कार - डकैती - चोरी - राजद्रोह - जासूसी - बलवा - अपहरण जैसे संगीन मामलो को अंजाम देकर समाज और जिले में आतंक और भय का साम्राज्य स्थापित कर रखा हो. अपने दामन में लगे दागो को छुपाने के लिए पुलिस ने न्यायालय को भी गुमराह करने में कोई कसर नही छोड़ी. पुलिस न्यायालय से बरी और आपसी समझौता हो जाने के बाद भी उन्ही मामलो को आधार बना कर प्रेस की आजादी का गला अपने मतलब के लिए घोटना चाहती है. पुलिस ने जिन मामलो को जिला बदर की कार्यवाही का आधार बनाया है उनमें से एक भी मामला जिले की शांती को भंग करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है. जिन 107 एवं 116 के मामलो का पुलिस जिक्र कर रही है उन मामलो में दोनो पक्षो पर उक्त कार्यवाही होती है लेकिन हर वर्ष सैकड़ो 107 एवं 116 के मामलो को यदि पुलिस आधार बनाती है तो जिले से जिला बदर होने वालो की तो लम्बी - चौड़ी सूचि बनाई जा सकती है. अपने मतलब एवं स्वार्थ के लिए पुलिस और प्रशासन का गठजोड़ केवल प्रेस को अपना आइना दिखाने से रोक कर उसकी आजादी को ही खतरे में डाल रही है. इस समय बैतूल जिले में अपराधो की बाढ़ सी आ गई है. बलात्कार से लेकर लूट हत्या जैसे संगीन मामलो में अव्वल नम्बर पर आने वाले इस जिले में प्रेस की इस तरह गला घोटा जाता रहेगा तो फिर लोकतंत्र का चौथा पाया जिसे प्रहरी भी कहा जाता है वह चरमरा कर गिर जायेगा. बैतूल जिले में जबसे आर एल प्रजापति जिला पुलिस अधिक्षक आये है जिले में अपराधो का ग्राफ बढ़ा है. रायसेन में विवादास्प रहे जिले के पुलिस अधिक्षक का तथाकथित धर्म और कर्म लोगो के परे की बात है. जिले में अभी तक इस पुलिस अधिक्षक के कार्यकाल में पुलिस की जो छबि जो खराब हुई है उसे धोने में पुलिस को सालो लग जायेगें.

निशक्त एवं मानसिक रोगियों का जिला बदर कैसे....?

जिला बदर की कार्यवाही किसके खिलाफ की जाना चाहिये यह विचारण प्रश्र है। जो व्यक्ति निशक्त या अपाहिज होने के साथ-साथ दुसरो के सहारे बैसाखियो से पिछले एक साल से चल रहा हो तथा उसे रात्री में गहरी निंद्रा में बेहोशी के छटके आते हो ऐसे व्यक्ति को जब उसका पूरा परिवार अकेले नहीं छोड़ता है। उसके साथ परिवार का कोई न कोई सदस्य हमेशा रात्री समय एवं आते-जाते समय मौजूद रहता है क्या ऐसे व्यक्ति को जिला बदर उन अपराधो को आधार बना कर किया जाना जो न्यायालय द्वारा दोष मुक्त या फिर समझौता के तहत सुलझ गये है क्या उचित है...? सवाल यह उठता है कि ऐसे पत्रकार को उसकी कलम के वार से आहत पुलिस एवं प्रशासन द्वारा जालसाज व्यक्तियो को बचाने के लिए राजनैतिक दबाव के चलते तड़ीपार करना क्या उसके मानवीय अधिकारो के हनन की श्रेणी में नहीं आता है। बैतूल जिला प्रशासन उस व्यक्ति को जिला बदर करना चाहता है जिसके कुल्हे के जोड़ का एक पखवाड़ा पूर्व ही आपरेशन हुआ है जिसे जमीन पर बैठने की सख्त मनाही है तथा जो अब केवल दुसरो के सहारे से चल फिर सकता है उसके खिलाफ पुलिस एवं प्रशासन की यह कारवाही दमणात्मक नहीं है। क्या पुलिस और प्रशासन दोनो मिल कर प्रेस की आजादी का सरे आम गला नही घोट रहे है. जिस ढंग से देश में न्यायपालिका अपनी ताकत का प्रशासन एवं पुलिस को अहसास करा रही है. में ऐसे कई सवालो का पुलिस और प्रशासन को जवाब देना होगा क्योकि इस देश में अभी न्यायापालिका के प्रति लोगो का विश्वास पूरी तरह से टूटा नहीं है.

- हनुमान भक्त चले रावण के साथ -

बैतूल जिले के बहुचर्चित हनुमान भक्त जिला पुलिस अधिक्षक आर एल प्रजापति के घर पर हर मंगलवार एवं शनिवार के दिन होने वाली राम भक्त हनुमान की चालिसा एवं सुदंर कांड में उपस्थित रहने वाले भार्गव बंधुओ के हनुमान प्रेम से प्रसन्न होकर हनुमान भक्त प्रजापति ने उन्हे हर प्रकार के संरक्षण देने की कसम खा रखी थी. बार - बार न्यायालय के आदेशो को दर किनार करके हनुमान भक्त ने इन दोनो जालसाज भार्गव बंधुओ को हर प्रकार का संरक्षण दिया बदले में इन लोगो ने पुलिस अधिक्षक को अपनी सेवा का भाव भी जो कि कई प्रकार से कहा जाता रहा है. न्यायालय की फटकार एवं हिदायतो को दरकिनार कर इन लोगो को बचाने के चक्कर में जिला पुलिस अधिक्षक न्यायालय की अवमानना से भी नहीं चुके पाये. जब न्यायालय ने पुलिस अधिक्षक को अपनी ताकत से अवगत करवाया तो आनन - फानन में उस पत्रकार के खिलाफ षंडय़ंत्रो का ऐसा ताना - बाना बुने जाने लगा कि पिछले एक साल से बिस्तर पर पड़े दुसरो के सहारे चलने वाले इस जिले ही नहीं प्रदेश एवं देश के विभिन्न समाचार पत्रो के कलमकार को जिला बदर करवाने के लिए पूरी ताकत झोक दी.

- प्रेस कौसिंल आफ इंडिया को भी धता दे गये पुलिस के अफसर -

बैतूल जिले के वरिष्ठ पत्रकार ने अपनी पत्रकारिता की शुरूआत 1980 से की पुलिस का रिकार्ड बताता है कि वह 1988 से अपराधिक प्रवृति में लिप्त है. पुलिस के अत्याचारो को छापने वाले इस पत्रकार को पुलिस 88 के दशक से प्रताडि़त कर रही है. उसने इस मामले को लेकर कई बार प्रेस कौसिंल आफ इंडिया में शरण ली. बीते वर्ष 2006 में एक बार फिर वह पुलिस अत्याचारो एवं जिला प्रशासन द्वारा की जा रही प्रताडऩा के खिलाफ प्रेस कौंसिल की शरण में गया . उसके द्वारा प्रस्तुत आवेदन पर जिला कलैक्टर एवं जिला पुलिस अधिक्षक को नोटिस जारी किये गये थे. प्रेस कौंसिल आफ इंडिया में प्रस्तुत प्रकरण में जिला कलैक्टर की अनुउपस्थिति में अपर कलैक्टर डां मसूर अख्तर एवं जिला पुलिस अधिक्षक की अनुउपस्थिति में जिला अतिरिक्त पुलिस अधिक्षक डी एस भदौरिया पहुँचे. जहां पर प्रेस कांैसिल को दोनो अधिकारियो ने आश्वत किया कि पत्रकार को किसी भी प्रकार की प्रताडऩा नहीं दी जायेगी तथा उसे संरक्षण दिया जायेगा. न्यायालीन मामलो को छोड़ कर उसके खिलाफ पुलिस किसी भी प्रकार की झुठे मामलो में फंसा कर उसे प्रताडि़त किये जाने की कार्यवाही भविष्य में नहीं करेगी. पुलिस ने प्रेस कौसिंल की हिदायतो को गंभीरता से नहीं लिया.

- पुलिस का इंडेक्स क्या कहता है...? -

बैतूल जिले की पुलिस ने जिला मजिस्टे्रज बैतूल को भेजे प्रतिवेदन मे लिखा है कि 1988 से बैतूल निवासी रामकिशोर पंवार का पूरा अपराधिक रिकार्ड कुछ इस प्रकार है कि उसके खिलाफ मारपीट के तीन छेड़छाड़ के एक तथा अवैध पैसा वसूली के चार प्रकरण दर्ज है। पुलिस की रिर्पोट में रामकिशोर पंवार के खिलाफ 1986 से प्रकरण दर्ज करती चली आ रही है. पुलिस ने जिस अपराध क्रंमाक 82/ 86 का जिक्र कर रही है उसकी रोजनामचा डायरी ही नहीं है. इस प्रकरण में पाथाखेड़ा कोयलाचंल क्षेत्र केे तत्कालिक पुलिस चौकी प्रभारी आर . के शर्मा के खिलाफ दैनिक भास्कर भोपाल में छपी एक खबर एक थानेदार जो आदमखोर हो गया रिर्पोट से क्षुब्ध होकर पुलिस चौकी पर कथित हमलवार करने वाली भीड़ में उसे भी आरोपी बनाया गया जिसमें वह दोष मुक्त हो चुका है. पुलिस द्वारा दर्ज अपराध क्रंमाक 296 / 96, अपराध क्रंमाक 697 / 2004 में आपसी समझौता तथा 355 / 2005 , एवं अपराध क्रंमाक 427 / 2006 में उसे न्यायालय ने दोषमुक्त कर दिया. जिसमें स्वंय फरियादी का ब्यान विद्धवान न्यायाधीश के समक्ष बिना किसी दबाव के दिया गया जो कि अहम स्थान रखता है इस बात के लिए कि रामकिशोर पंवार के आंतक के चलते लोग गवाही नहीं देते है. अपराध क्रंमाक 87 / 88 , अपराध क्रंमाक 45 / 90 अपराध क्रंमाक 201 / 96 अपराध क्रंमाक 355 / 96 के 107 एवं 116 के प्रकरणो का छै माह की अवधि में निराकरण हो चुका है. वर्तमान में उसके खिलाफ मात्र चार प्रकरण चल रहे है जिसमें पक्षकार की पेशी तारीख पर मौजूद नही हो पा रहे है जिसके चलते न्यायालय से उनके खिलाफ जमानती वारंट भी जारी हो चुके है. रामकिशोर पंवार के खिलाफ एक भी ऐसा संगीन मामला जो कि पूरे जिले की या बैतूल नगर की शांती को खतरा हो वह न तो दर्ज हुआ है और न न्यायालय में चल रहा है. जिले की पुलिस थानो में उसके खिलाफ बलात्कार , हत्या , लूट , डकैती , हत्या का प्रयास , चोरी , धारा 109 एवं 110 के तहत कोई कार्यवाही नहीं हुई है. न तो उसकी निगरानी खुली है और न वह निगरानी शुदा बदमाश की श्रेणी में है. उसके खिलाफ राष्ट्रद्रोह जैसे भी कोई मामले दर्ज नहीं है. पत्रकारिता के क्षेत्र में आने के पूर्व भी उसकेखिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं हो सका है. पत्रकारिता से जुडऩे के बाद पुलिस एवं प्रशासन को बेनकाब करने के अपराध में पुलिस एवं प्रशासन ने उसके खिलाफ जिला बदर की कार्यवाही बदले की भावना एवं उसके द्वारा दर्ज तीन अलग - अलग जालसाजी के मामले में आरोपियो को बचाने के लिए की जा रही है. श्री पंवार को उसकी 27 साल की निष्पक्ष एवं नीडर पत्रकारिता का तोहफा मिला है. वैसे भी बैतूलवी पत्रकारिता के सबसे वरिष्ठ इस पत्रकार ने पूरे पत्रकारिता के कार्यकाल के दौरान पुलिस एवं प्रशासन की नाक में दम कर रखा था. पुलिस भयाक्रांत हो चुकी थी उसके द्वारा उजागर किये जाने वाले मामलो से चाहे वह दलित महिला उर्मिला के ज़हर खाने का मामला हो या फिर बहुचर्चित पारधी कांड हर मामलें पर पुलिस को बेनकाब करने का दण्ड उसे दिया जा रहा है. पुलिस की अब तकी सभी कार्यवाही में मात्र पुलिस ने केवल अपने छदम तरीको को ही अपनाया है.

जालसाजों के लिए मोहरा बने जिला मजिस्टे्रज

-अपने न्यायालय में जिला पुलिस अधिक्षक द्वारा प्रस्तुत पत्र क्रंमाक कार्यालय पुलिस अधिक्षक बैतूल , राज्य सुरक्षा अधिनियम - 11 - 2009 दिनांक 30 जुलाई 2009 के संदर्भ में न्यायालय जिला जिला मजिस्ट्रेज बैतूल द्वारा दावा प्रकरण क्रंमाक 8 दिनांक 12 अप्रेल 2010 का इतने दिनो बाद भेजा जाना कम आश्चर्य जनक बात नहीं है. जिला पुलिस अधिक्षक एवं न्यायालय जिला मजिस्ट्रेज बैतूल कार्यालय के बीच की दूरी महज आधा किलोमीटर भी नहीं है. अभी तक पूरे प्रकरण को स्वंय जिला मजिस्टे्रज के कार्यालय में उनके निज सहायक द्वारा दबाये रखा गया था ताकि दोनो पक्षो के बीच समझौता हो जाये और सारे मामले का पटाक्षेप हो जाये. मयंक - मयूर द्वारा जिला मजिस्टे्रज के निज सहायक अरूण सोहाने से मित्रता का भरपूर फायदा उठा कर पत्रकार रामकिशोर पंवार को डराने - धमकाने तथा समझौता करने के लिए भार्गव समाज के जिलाध्यक्ष बाबू भार्गव एवं पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष आंनद प्रजापति , अधिवक्ता प्रशांत गर्ग, जिले के वरिष्ठ पत्रकार इंदर चंद जैन सहित एक दर्जन से अधिक लोगो के पास जाकर उनसे दबवा बनाने का प्रयास किया गया था. जब इन दोनो भार्गव बंधुओ के खिलाफ न्यायालय में प्रस्तुत परिवाद को परिवादी पत्रकार रामकिशोर पंवार द्वारा वापस न लिये जाने पर उसे प्रताडि़त करने की मंशा से जिला कलैक्टर - जिला मजिस्टे्रज के कार्यालय में पेडिंग पड़ी जिला बदर की कार्यवाही को मूर्त रूप प्रदान किया गया ताकि प्रताडि़त व्यक्ति अपने जिला बदर होने की कार्यवाही से डर कर समझौता कर सके. अपने खिलाफ जिला बदर की कार्यवाही से जरा भी नहीं डरे पत्रकार रामकिशोर पंवार इस मामले को लेकर हाईकोर्ट की शरण लेने जा रहे है

- नमक का हक अदा कर रहे है प्रभात झा -

बैतूल जिले में प्रदेश भाजपा के पूर्व कोषाध्यक्ष विजय कुमार खण्डेलवाल के निधन के बाद हुये लोकसभा उप चुनाव में बैतूल में डेरा डाले भाजपा के सचेतक , भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं राज्यसभा सदस्य प्रभात झा बैतूल में धोखाधड़ी के इन दो आरोपी भाईयो मयंक एवं मयूर भार्गव के घर में ही डेरा डाले रहे। उनकी आवाभगत से प्रभावित झा ने बैतूल में उन्हे अपना सच्चा हितैषी मान कर अपना राजनैतिक प्रतिनिधि नियुक्त कर दिया. फर्श से अर्श पर आये प्रभात झा के नाम पर ही दोनो जालसाजी के आरोपी बंधुओ ने प्रभात झा के नाम का और नमक का भरपूर फायदा उठाया. इन लोगो ने लोकसभा उप चुनाव के बाद बैतूल जिले की भाजपाई राजनीति में लोकसभा, विधानसभा चुनाव, नगरीय निकाय, नगर पंचायत, जिला पंचायत, जनपद पंचायत, ग्राम पंचायत तक टिकट देने की दुकान खोल रखी है. हाल ही में जब जिला न्यायालय के अपर सत्र न्यायाधीश प्रथम श्रेणी द्वारा इनके विरूद्ध दर्ज जालसाजी के मामले में पुलिस अधिक्षक को भेजे फरमान के बाद से प्रभात झा से जिला पुलिस एवं प्रशासन पर दबाव बनवाया गया कि उनके विरूद्ध न्यायालय में धोखाधड़ी का परिवाद दर्ज करने वाले फरियादी को उसके विरूद्ध दर्ज न्यायालय से बरी एवं समझौता हो चुके मामलो की एक सूचि बना कर उसे जिला बदर किया जाये. पुलिस ने अपने द्वारा न्यायालय में इन जालसाज बंधुओ के खिलाफ दर्ज धोखाधड़ी के मामलो में प्रस्तुत खात्मा को अस्वीकार करने एवं मामले की जांच स्वंय पुलिस अधिक्षक से करवाये जाने के 23 जनवरी 2009 के फैसले के बाद पुलिस अधिक्षक बैतूल ने 30 जुलाई 2009 को जिला दण्डाधिकारी बैतूल को एक पत्र 14 प्रकरणो की सूचि के साथ प्रस्तुत करते हुये पत्रकार रामकिशोर पंवार को मध्यप्रदेश राज्य सुरक्षा एवं लोक स्वास्थ अधिनियम की धारा 5 क के अन्तगर्त बैतूल जिले की सीमा से बाहर करने की अनुशंसा करते हुये जिला पुलिस अधिक्षक बैतूल ने इस पत्रकार को समाज की तथा कथित गतिशिलता को अवरूद्ध करने एवं शांती व्यवस्था भंग होने की आशंका व्यक्त की है. पुलिस ने पत्रकार का समाज में भय एवं आतंत बताया जिसके चलते लोग स्वच्छंद होकर विचरण नहीं कर सकते . जिला पुलिस अधिक्षक की अनुशंसा जुलाई से अप्रेल तक ठंडे बस्ते में रही लेकिन अचानक जब न्यायालय ने पुन: इस मामले को लेकर पुलिस की नीयत एवं मंशा पर ऊंगली उठा कर शंका जाहिर करते हुये फरमान जारी कर दिया कि पुलिस अधिक्षक धोखाधड़ी के मामले में अपनी जांच प्रतिवेदन रिर्पोट प्रस्तुत करने में क्यों टालामटोली कर रहे है. पुलिस को न्यायालय ने जमकर फटकार भी लगाई और नीयत तारीख भी याद दिलवाई कि उक्त तारीख तक अनिवार्य रूप से वह जांच प्रतिवेदन एवं अन्य कार्यवाही से हर हाल में न्यायालय को अवगत करवाये.

खतरा किसको किससे है....? -

बैतूल जिले की पुलिस ने जिला दण्डाधिकारी बैतूल को भेजे प्रतिवेदन में जानकारी दी है कि रामकिशोर पंवार का समाज में भय एवं आतंंक है जिसके चलते उसके खिलाफ कोई गवाही नहीं देता है. पुलिस द्वारा दर्ज मामलो में आरोपी को न्यायालय ने अपनी कथित शिकायत को ही झुठला दिया. सारनी की श्रीमति राखी गुलबाके ने अपराध क्रंमाक 427 -06 धारा 384 बैतूल न्यायालय में प्रस्तुत किया जिस पर न्यायालीन प्रकरण क्रमांक 3732 -06 धारा 384 के मामले में सारनी थाने में किसी भी प्रकार की शिकायत करने से ही इंकार कर दिया. इस प्रकरण में शिकायतकत्र्ता के ही मुकर जाने के बाद श्री पंवार को दिनांक 26 दिसम्बर 2008 को दोषमुक्त कर दिया गया. इसी तरह सारनी थाने में दर्ज बैतूल न्यायालीन प्रकरण 1089 - 96 धारा 354 के मामले में फरियादी ने स्वंय न्यायालय के समक्ष उपस्थित होकर बिना किसी दबाव के आपसी राजीनाम प्रस्तुत किया. इसी तरह सारनी थाने के अपराध क्रंमाक 82- 86 जो बैतूल न्यायालीन में प्रस्तुत किया गया. इस न्यायालीन प्रकरण 2531-86 में दिनांक 21 अप्रेल 1998 को दोषमुक्त कर दिया है.आमला थाना में दर्ज प्रकरण में मुलताई न्यायालय में फरियादी की बेटी एवं एक मात्र प्रकरण की प्रत्यक्ष दर्शी गवाह ही अपने पूर्व के कथित ब्यान से मुकर गई. बैतूल जिले की पुलिस के किसी भी थाने या पुलिस चौकी या किसी अधिकारी के समक्ष पुलिस द्वारा दर्ज अपराधो के किसी भी गवाह-फरियादी ने पुलिस को लिखित या मौखिक रूप से यह शिकायत दर्ज नहीं करवाई कि उसे रामकिशोर पंवार या उसके नाम से कोई डरा या धमका रहा है.सबसे अधिक मजेदार बात तो यह है कि जिले की पुलिस जिस पत्रकार का समाज में भय एवं आतंक बता रही है उसके पास से उसने कोई धारधार हथियार - चाकू - छूरा - तलवार - गुप्ती - बंदुक - पस्तोल - रिवाल्वर - बम - गोले - विस्फोटक सामग्री जप्त या बरामद नहीं की ऐसे में उसका आतंक कलम का है या तलवार का यह पुलिस ही बता सकती है साथ ही वह इस बात का खुलासा भी कर सकती है कि आखिर रामकिशोर पंवार से किसको खतरा है समाज को या पुलिस को....? एक बात और चौकान्ने वाली यह भी है कि विगत 27 वर्षो से पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्यरत इस पत्रकार के खिलाफ किसी धर्म - समुदाय - समाज- वर्ग- विशेष सहित जिले के सामाजिक- राजनैतिक संगठनो के द्वारा उससे समाज को किसी प्रकार का खतरा है इस बारे में कोई मौखिक- लिखित शिकायत दर्ज नहीं की है. ऐसे में पत्रकार रामकिशोर पंवार के खिलाफ बैतूल जिले की पुलिस प्रस्तुत जिला बदर का प्रकरण पुलिस की ओछी मानसिकता का परिचय देता है.

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