भोपाल//आलोक सिंघई (टाइम्स ऑफ क्राइम)
राज्य सरकार के निर्देशों के बाद प्रदेश भर में भू माफिया के खिलाफ की जा रही कार्रवाई अब चोर सिपाही के खेल में बदल गई है. जगह जगह पर भू माफिया सरगनाओं ने स्थानीय समाचार पत्रों के माध्यम से सरकार और प्रशासन पर दबाब बनाना शुरु कर दिया है. राजधानी में भू माफिया के खिलाफ की जा रही कार्रवाई को कुचलने के लिए कतिपय समाचार पत्र समूहों ने मुहिम को ठप करने की सुपारी ले ली है. ये अखबार भू माफिया को बचाने के लिए माहौल बना रहे हैं.कहा जा रहा है कि भू-माफिया ने अपने हितों की पैरवी करने के लिए इन अखबारों को मोटा चंदा मुहैया कराया है.
राजधानी के एक बड़े अखबार समूह ने ऐसी गृह निर्माण सहकारी समितियों को लामबंद करना शुरु कर दिया है जिनके खिलाफ प्रशासन सख्त कानूनी कार्रवाई कर रहा है. अपना घर बनाने का सपना संजोने वाले आम नागरिकों को मंहगी जमीनें और मकान बेचने वाले बिल्डरों को पहले से यही माफिया सरगना बढ़ावा देते रहे हैं. दिग्विजय सिंह के शासनकाल में पंजीयन विभाग ने जमीनों के जो दाम बढ़ाए थे वे आज आम नागरिकों के लिए हत्यारे साबित हो रहे हैं. जमीनों के बढ़े हुए दाम अब इतने अधिक हो गए हैं कि आम नागरिक के लिए मकान बनाना असंभव होता जा रहा है.इसी की आड़ में भू माफिया जरूरत मंदों को ठगता रहा है.यही भू माफिया सरकारी जमीनों को गृह निर्माण सहकारी समितियों के नाम पर आबंटित कराता रहा है.सहकारिता विभाग के अधिकारियों की मिली भगत से सस्ते दामों पर खरीदी गई ये जमीनें मंहगे दामों पर कालाबाजार में बेची जा रहीं हैं. सरकार की कोई ठोस आवासनीति न होने के कारण घर बनाना आम लोगों के लिए दूर की कौड़ी साबित हो रहा है.
जमीन का यह दर्द जब लोगों के लिए असहनीय हो गया तब जाकर मौजूदा भाजपा सरकार ने भू माफिया पर अंकुश लगाने की कार्रवाई शुरु की है. इस बीच काला धन जुटाकर करोड़ों रुपए जुटा चुका भू माफिया अब सरकार और प्रशासन के लिए कड़ी चुनौती बन गया है. हालात ये हैं कि भू माफिया ने अपने बचाव के लिए जिस लावण्य गुरुकुल समिति में कुछ पत्रकारों को भी अपनी काली कमाई का हिस्सेदार बना लिया था उसके आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने में अब प्रशासन खुद को असहाय पा रहा है.समिति के सदस्यों का कहना है कि प्रशासन न तो उन्हें आज तक भूखंड दिला सका है और न ही दोषियों पर कोई कार्रवाई कर सका है.
भोपाल जिला प्रशासन ने 21 मई 2010 को गैर सदस्यों से भूखंड खाली कराए जाने की कार्रवाई शुरु की थी. इस जन सुनवाई में समिति के पूर्व अध्यक्ष शरद द्विेदी के माध्यम से समिति की जमीन का लगभग एक एकड़ टुकड़ा कथित तौर पर 28 लाख रुपए में खुले बाजार में बेच दिए जाने का मामला उठाया गया था. समिति के तत्कालीन प्रभारी अधिकारी और सहकारिता विभाग के सेवानिवृत्त सहकारिता निरीक्षक जे.एस.गुजरावत पर भी 75 भूखंडों की नियम विरुद्ध रजिस्ट्री कराकर बेच देने की शिकायत की गई थी. लगभग पांच सौ भूखंडों वाली इस समिति के करीबन 355 भूखंड इन्हीं कालाबाजारियों ने खुले बाजार में बेच दिए थे. जिसके खिलाफ जिला प्रशासन ने जांच चालू की थी. लावण्य गुरुकुल के डेवलपर रमाकांत विजयवर्गीय इस जमीन के नाम पर करीब 475 लोगों से 30 करोड़ 34 लाख रुपए ऐंठे और शहर छोड़कर भाग गया था. इस बात को लेकर प्रशासन ने कार्रवाई शुरु की थी. इस अभियान में समिति के वास्तविक हितग्राहियों की सूची जुटाई गई थी. भूखंडों की रजिस्ट्री कराने वालों की पहचान भी इसी सूची के आधार पर की गई थी. प्रशासन को इन भूखंडधारियों से मकान या प्लाट खाली कराने थे और वास्तविक हितग्राहियों को उनका अधिकार दिलाना था.लेकिन अब तक प्रशासन की कार्रवाई गीदड़ भभकियों से आगे नहीं पहुंच पाई है.
प्रशासन के निर्देशों के बाद सहकारिता विभाग ने लावण्य गुरुकुल समिति के भूखंडों की कालाबाजारी करने वाले अध्यक्ष शरद द्विेदी और मैनेजर जितेन्द्र श्रीवास्तव के खिलाफ दस्तावेज न देने और धोखाघड़ी करने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज कराई थी. सरकार में बैठे भू माफिया के संरक्षकों ने जनसुनवाई के दौरान आरोपियों से फर्जी दस्तावेज जमा करवा लिए हैं और अब इस कार्रवाई को ठंडे बस्ते में डालने के प्रयास किए जा रहे हैं. हालांकि हितग्राहियों की जागरूकता के चलते यह सब संभव नहीं होगा लेकिन तमाम मामलों में प्रशासन और सहकारिता विभाग मामलों को ठंडा करने में जुटा है यह उसका एक उदाहरण जरूर है.
यह भी कहा जा रहा है कि भू माफिया की धमकियों के बाद प्रशासन और सरकार बचाव की मुद्रा में आ गए हैं. बड़े बड़े दावे करने वाले शासकों पर अब मीडिया का एक तबका भी दबाव बना रहा है. ऐसे में लगता है कि शिवराज सरकार की लोगों को अपना घर दिलाने की मुहिम ज्यादा देर जारी नहीं रह सकेगी.
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