भोपाल // आलोक सिंघई (टाइम्स ऑफ क्राइम)
प्रदेश के चर्चित उद्योगपति और भारत भवन न्यास के ट्रस्टी सन्नी गौड़ पर लगे हत्या के आरोप को रीवा पुलिस ने मजिस्ट्रेटी जांच के नाम पर कुछ इस तरह से झमेले में डाल दिया है जिससे वे बेदाग बरी नहीं हो पा रहे हैं. पुलिस ने उन पर लगे हत्या के आरोप को बगैर अदालत भेजे खात्मा लगाने की मुहिम भी चला रखी है. इस सबंध में संवैधानिक अधिकार न होने से यह मामला अटक गया है. इससे न तो जेपी सीमेंट फैक्टरी के विंध्य द्वार पर हुए गोलीकांड में मारे गए मृतक और घायलों को न्याय मिल पा रहा है और न ही इस कांड के लिए जिम्मेदार लोगों को दंडित किया जा सका है. रीवा के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक और वर्तमान में बालाघाट रेंज के डीआईजी रवि कुमार गुप्ता का कहना है कि इस मामले में चूंकि अभी खात्मा नहीं लगा है इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि पुलिस आरोपियों को बचाने का प्रयास कर रही है. जबकि रीवा के पुलिस अधीक्षक उमेश जोगा कहते हैं कि मजिस्ट्रेटी जांच के चलते पुलिस इस प्रकरण में चालान प्रस्तुत नहीं कर पा रही है. रीवा के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक रवि कुमार गुप्ता ने 10 नवंबर 2007 को रेंज के पुलिस उप महानिरीक्षक को भेजे पत्र क्रमांक 1711 ए में लगभग फैसला देते हुए कहा था कि सन्नी गौड़ उनके भाई रजनीश गौड़ और उनके सहयोगियों को इस हत्याकांड में दोषी नहीं पाया गया है लिहाजा उनके नाम अभियोग पत्र से हटाए जाएं. भारतीय दंड संहिता और दंड प्रक्रिया संहिता समेत किसी भी कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि फरियादी की तथ्यपूर्ण शिकायत पर पुलिस खात्मा लगा दे यह अधिकार सिर्फ अदालत के पास सुरक्षित होता है. यदि पुलिस ऐसे किसी मामले पर खात्मा लगा देती है तो फरियादी अदालत में परिवाद भी दायर कर सकता है. लेकिन परिवाद लगाने के लिए पर्याप्त आधार जरूरी होते हैं. भारतीय पुलिस सेवा की शपथ लेने वाले तत्कालीन पुलिस अधीक्षक रवि कुमार गुप्ता ने रीवा रेंज के डीआईजी को जो पत्र लिखा है उसमें मार्गदर्शन चाहा गया है. जबकि यह माना जाता है कि भापुसे का कोई भी अधिकारी अपराधों से जुड़े कानूनों का जानकार होता है और उसे संविधान सम्मत कार्रवाई करनी ही चाहिए. अपने पत्र के विषय में ही माननीय पुलिस अधीक्षक महोदय ने लिख दिया कि अपराध क्रमांक 245। 07 धारा 147, 148, 302, 307 भारतीय दंड विधान के प्रकरण में प्रथम सूचना पत्र में गलत दर्ज कराए गए आरोपियों के नाम निकालने और गिरफ्तार शुदा अभियुक्तों के विरुद्ध चालानी कार्रवाई किए जाने के संबंध में मार्गदर्शन दें. विद्वान तत्कालीन एसपी महोदय अपने अनुरोध पत्र में कहते हैं कि चोरहटा थाना क्षेत्र के अपराध क्रमांक 245। 07 के संबंध में संबंधित थाना प्रभारी ने केस डायरी के साथ साथ दो अभियुक्तों के खिलाफ चालान प्रस्तुत करने का प्रतिवेदन प्राप्त हुआ है. जिसकी संक्षेपिका में थाना प्रभारी ने लिखा है कि इस गोलीकांड में मारे गए बिहरा गांव के राघवेन्द्र सिंह पुत्र कृष्णदीन सिंह के भाई राजबहादुर सिंह ने रीवा के एस.जी.एम.एच.स्थित पुलिस सहायता केन्द्र में लिखित आवेदन देकर प्राथमिकी दर्ज करने का आवेदन दिया है. जिसमें उन्होंने प्रभारी उप निरीक्षक आर.आर.पांडेय को दिए आवेदन में कहा है कि जेपी सीमेंट फैक्ट्री के विंध्य द्वार पर प्रदर्शन के दौरान फैक्ट्री प्रबंधन के सर्वश्री सन्नी गौड़, रजनीश गौड़, के.पी.शर्मा, अजय सिंह राणा रमेश गुप्ता, रावत और शिवशंकर ने फैक्ट्री में तैनात सुरक्षा कर्मियों की बंदूके लेकर फायर किए थे. जिसमें उसके भाई राघवेन्द्र सिंह को गोली लगी और वे वहीं गिर पड़े. इस दौरान अन्य प्रदर्शनकारी कौशल सिंह, तेजभान सिंह, अनूपसिंह, मनमोहन द्विेदी, शिवनाथ पटेल, पीताम्बर सिंह, वगैरह घायल हो गए थे. इस लिखित सूचना पर पुलिस सहायता केन्द्र एस.जी.एम.एच. रीवा ने देहाती नालिसी का अपराध क्रमांक 0। 07 दर्ज किया था.इस प्रकरण में फौरी तौर पर धारा 147, 148, 302, 307, लगाई गईं थीं. मृतक राघवेन्द्र सिंह पुत्र कृष्णदीन सिंह उम्र 30 वर्ष की एम.एल.सी. मृत्यु सूचना रीवा एस.जी.एम.एच.रीवा के सीएमओ डॉक्टर एस.के.पाठक से मिलने पर पुलिस ने मर्ग क्रमांक 0446 । 07 के अंतर्गत जाफ्ता फौजदारी की धारा 174 के अंतर्गत प्रकरण कायम कर पंचनामे की कार्रवाई की थी. मृतक के शव का पोस्टमार्टम कराया गया था और मृतक की देह उसके परिजनों को अंतिम संस्कार के लिए सुपुर्द कर दी थी. बाद में घटना स्थल चोरहटा थाना क्षेत्र में होने के कारण अपराध क्रमांक 245। 07 और मर्ग की सूचना क्रमांक 72। 07 कायम की गई. प्रकरण की विवेचना तत्कालीन थाना प्रभारी निरीक्षक बी.डी.त्रिपाठी ने प्रारंभ की थी. उन्होंने 23.09.2007 को घटना स्थल का निरीक्षण करके नजरी नक्शा तैयार किया था.इस दौरान साक्षी के तौर पर तत्कालीन एसडीएम शिवपाल सिंह, नायब तहसीलदार श्रीमती शिवानी पांडेय, तत्कालीन नगर पुलिस अधीक्षक निश्चल झारिया, निरीक्षक यू.सी.तिवारी, निरीक्षक, जी.के.तिवारी, और सहायक उप निरीक्षक एसपी चतुर्वेदी समेत अन्य पुलिस कर्मियों के कथन लिखे गए थे.
पुलिस अधीक्षक महोदय अपनी रिपोर्ट में कहते हैं कि यह मामला अपराध क्रमांक 243। 07 भारतीय दंड विधान की धारा 147, 148, 149, 353, 332, 294, 506 बी,341, 336, 436, 427 से जुड़ा है. इसी प्रकार प्रकरण क्रमांक 244। 07 भादवि की धारा 147 ,148,149,353, 294, 506 बी, 341, 336, 436,और 427 से संबंधित है. घटना भी इसी अनुक्रम में हुई है. पोस्ट मार्टम के दौरान पुलिस ने मृतक राघवेन्द्र सिंह के खून से सने कपड़े और उसके शरीर से प्राप्त धातु के टुकड़े भी जब्त किए थे.
पुलिस अधीक्षक महोदय ने मृतक के भाई राज बहादुर सिंह के बारे में लिखा है कि वह प्रथम सूचना पत्र में लिखे गए बयान से सहमत नही है और उसका कहना है कि कुछ लोगों के कहने पर उसने राजनैतिक तौर पर बयान दिया था.जबकि पुलिस के पास सिर्फ जांच करने का अधिकार है.उसकी जवाबदारी है कि वह तथ्यों को जुटाए और उन्हें सिलसिलेबार अदालत के सामने प्रस्तुत करे.मृतक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उसकी मौत गोली लगने से होना पाया गया था. पुलिस ने मृतक के खूनसने कपड़े पोस्ट मार्टम में मृतक के शरीर से प्राप्त गोली और धातु के सफेद टुकड़े जांच के लिए फोरेंसिक साईंस लैब सागर भेजे थे.
रीवा के तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक के निर्देश पर इंस्पेक्टर कमलेश शर्मा से मामले की छानबीन कराई गई. घटना स्थल के निरीक्षण में उन्होंने पाया कि 28.09.2007 को सतना जिले के रामपुर बघेलान के रहने वाले राजेश तिवारी पुत्र केशव प्रसाद तिवारी उम्र 45 वर्ष के बयान और चोरहटा के मद्देपुर में रहने वाले रामकुमार सिंह पुत्र रामायण सिंह पटेल उम्र 43 साल और चोरहटा के ही छिजवार गांव में रह रहे लालमणि पांडेय पुत्र कौशल प्रसाद पांडेय उम्र 40 साल ने अपने बयानों में कहा कि 22.09.2007 को जब यह घटना घटित हुई तब सुरक्षा गार्ड के रूप में तैनात संजय कुमार सिंह,और रघुनंदन सिंह ने अपनी बारह बोर की बंदूक से फायर किए थे जिससे बिहरा गांव के राघवेन्द्र सिंह घायल हो गए और उपचार के दौरान उनकी मौत हो गई. इसी फायर से अन्य लोगों को भी चोट आई थी.
इस पुलिसिया छानबीन में पाया गया कि जेपी सीमेंट फैक्ट्री जे.पी.नगर में तैनात सुरक्षा गार्ड संजय कुमार सिंह और रघुनंदन सिंह ने हिंसक भीड़ पर गोलियां चलाईं थीं.पुलिस ने उनकी लाईसेंसी बंदूकें भी जब्त कर लीं और उन्हें सागर की फोरेंसिक प्रयोगशाला में बैलिस्टिक विशेषज्ञ को भेजा. विवेचना में जब दोनों आरोपियों के विरुद्ध अपराध प्रमाणित पाया गया तो उन्हें गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया.
प्रकरण में पुलिस ने प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों समेेत घायलों और सुरक्षाकर्मियों के भी कथन लिए और कुल 75 गवाहों के बयान जुटाए. इनमें से 54 गवाहों ने कहा कि प्राथमिकी में सन्नी गौड़, रजनीश गौड़, के.पी.शर्मा, अजय सिंह राणा, रमेश गुप्ता,रावत और शिवशंकर तो घटना स्थल पर उपस्थित ही नहीं थे. जबकि 24 अन्य गवाह राजनैतिक आधार पर बयान दे रहे हैं और उनका कहना है कि उपरोक्त सभी सात आरोपियों ने ही इस गोलीकांड को अंजाम दिया था. पुलिस रिपोर्ट में इस राजनीतिक आधार का कोई खुलासा नहीं किया गया है और न ही इसके संबंध में कोई प्रमाण प्रस्तुत किए गए हैं.
मामले की विवेचना करने वाले अधिकारी ने पाया कि घटना के करीब ढाई घंटे पहले शिक्षित बेरोजगार युवा संगठन के बैनर तले गांव के लड़के विंध्य द्वार पर सुनियोजित तरीके से प्रदर्शन कर रहे थे. यहां जिला प्रशासन के तत्कालीन एसडीएम शिवपाल सिंह, कार्यपालिक दंडाधिकारी श्रीमती शिवानी पांडेय, तत्कालीन नगर पुलिस अधीक्षक निश्चल झारिया, थाना प्रभारी बीडी त्रिपाठी, निरीक्षक यूसी तिवारी, निरीक्षक जीके तिवारी, और अन्य पुलिस अधिकारी,कर्मचारी सभी मौजूद थे. प्रदर्शनकारी अपनी मांगे मनवाने के लिए फैक्ट्री प्रबंधन पर दबाव बना रहे थे कि वे बाहर आकर ज्ञापन लें और उनकी मांगे पूरी करें. भीड़ की नाराजगी और प्रबंधन विरोधी भाषणबाजी को देखते हुए फैक्ट्री प्रबंधन के अधिकारी बाहर नहीं निकले उन्होंने पुलिस अफसरों के कहा कि भीड़ के 10-12 लोगों का प्रतिनिधि मंडल भीतर आकर ज्ञापन दे.यह प्रस्ताव प्रदर्शनकारियों ने अस्वीकार कर दिया. चर्चा करने के बजाए प्रदर्शनकारी पथराव और तोडफ़ोड़ करने लगे.जिसे रोकने के लिए पुलिस अधिकारियों ने काफी प्रयास किया इस दौरान पुलिस कर्मियों को चोटें भी आईं. तभी विंध्य गेट पर तैनात सुरक्षा गार्ड संजय कुमार सिंह और रघुनंदन सिंह ने अपनी लाईसेंसी बंदूकों से फायर किए जिससे प्रदर्शनकारियों को चोटें आईं. चूंकि यह घटनाक्रम पुलिस और प्रशासनिक अफसरों की उपस्थिति में ही हुआ था और इस दौरान फैक्ट्री प्रबंधन का कोई अधिकारी घटना स्थल पर मौजूद नहीं था. इसलिए नामजद आरोपियों के अपराध के लिए उकसाने और गोलियां चलाने जैसी कोई घटना में शामिल होने का सवाल ही नहीं उठता. रीवा के तत्कालीन एसपी रवि कुमार गुप्ता अपने पत्र में लगभग फैसला देने वाले अंदाज में कहते हैं कि प्रकरण की विवेचना में उपलब्ध सबूतों के आधार पर प्रथम सूचना रिपोर्ट में अंकित आरोपियों सन्नी गौड़,रजनीश गौड़, के.पी.शर्मा, अजयसिंह राणा, रमेश गुप्ता, रावत और शिवशंकर के बारे में नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने कोई अपराध किया है. जबकि सुरक्षा गार्ड संजय कुमार सिंह और रघुनंदन सिंह के विरुद्ध अपराध प्रमाणित पाया गया है. इसलिए प्रथम सूचना रिपोर्ट से इन सातों लोगों के नाम निकालकर दोनों सुरक्षा गार्डों के खिलाफ न्यायालय में अभियोग पत्र प्रस्तुत करने के संबंध में मार्गदर्शन देने का कष्ट करें. लार्ड एक्टन ने कहा है कि शक्ति मनुष्य को भ्रष्ट बना देती है और अकूत शक्ति उसे अत्यंत भ्रष्ट कर देती है.यही कारण है कि आज तीन साल बीत जाने के बावजूद इस गोलीकांड के वास्तविक आरोपियों को पुलिस अदालत तक नहीं पहुंचा सकी है. पुलिस ने इस कहानी को अपने जाल में कुछ इस तरह उलझा दिया है कि सारा मामला भ्रमपूर्ण बन गया है. भारतीय दंड विधान में माना जाता है कि प्राथमिकी ही घटना का वास्तविक विवरण है. पुलिस को फरियादी की सहायता करने वाला अंग माना जाता है.इस घटना में सबसे ज्यादा पीडि़त तो मृतक राघवेन्द्र सिंह है जिसे न्याय दिलाने के लिए पुलिस को आवश्यक प्रमाण जुटाने थे. लेकिन पुलिस इस मामले का कोई समाधान निकालने के मूड में नहीं दिखती. हॉरेन लास्की का कहना है कि रिच मैन मेक्स द लॉ,एंड लॉ ग्राईंड्स द पुअर. यनि कि अमीर आदमी कानून बनाते हैं और गरीब आदमी उसमें पीसे जाते हैं. पुलिस की भूमिका इस मामले में कुछ ऐसी ही नजर आती है. पुलिस की कसरतों से नजर आ रहा है कि सन्नी गौड़ और उनके साथी वास्तविक आरोपी हैं और पुलिस उन्हें बचाने में जुटी है. यदि ऐसा नहीं है तो पुलिस मामले को अदालत में भेजने के बजाए उसे मजिस्ट्रेटी जांच में क्यों उलझाए हुए है. यदि सन्नी गौड़ और उनके प्रबंधकीय सहयोगी घटना स्थल पर मौजूद ही नहीं थे तो अदालत उन्हें बाई"ात बरी कर ही देगी. ऐसे में पुलिस और प्रशासन मामले को जबरिया क्यों उलझाए हुए हैं. दरअसल गोली चालन की यह घटना पुलिस और प्रशासन के जिम्मेदार अफसरों की मौजूदगी में ही हुई है जिसके लिए किसी न्यायिक अधिकारी ने आदेश नहीं दिए थे जाहिर है कि ऐसे में वे अधिकारी अपनी जवाबदारी से नहीं बच सकते.
विंध्य अंचल के राजनीतिक जानकारों का कहना है कि पुलिस इस मामले को उलझाकर अपना उल्लू सीधा करने का प्रयास कर रही है. राज्य सरकार ने उन्हें भारत भवन का ट्रस्टी बनाकर उन्हें राजनीतिक कवच देने का प्रयास किया है. हत्या जैसे संगीन आरोपों के बावजूद सन्नी गौड़ राज्य शासन से अनुबंध कर रहे हैं.आखिर प्रशासन और सरकार उन्हें इस कलंक से मुक्ति दिलाने की राह में रोड़ा क्यों बन रहे हैं यह जांच का विषय है.
पुलिस अधीक्षक महोदय अपनी रिपोर्ट में कहते हैं कि यह मामला अपराध क्रमांक 243। 07 भारतीय दंड विधान की धारा 147, 148, 149, 353, 332, 294, 506 बी,341, 336, 436, 427 से जुड़ा है. इसी प्रकार प्रकरण क्रमांक 244। 07 भादवि की धारा 147 ,148,149,353, 294, 506 बी, 341, 336, 436,और 427 से संबंधित है. घटना भी इसी अनुक्रम में हुई है. पोस्ट मार्टम के दौरान पुलिस ने मृतक राघवेन्द्र सिंह के खून से सने कपड़े और उसके शरीर से प्राप्त धातु के टुकड़े भी जब्त किए थे.
पुलिस अधीक्षक महोदय ने मृतक के भाई राज बहादुर सिंह के बारे में लिखा है कि वह प्रथम सूचना पत्र में लिखे गए बयान से सहमत नही है और उसका कहना है कि कुछ लोगों के कहने पर उसने राजनैतिक तौर पर बयान दिया था.जबकि पुलिस के पास सिर्फ जांच करने का अधिकार है.उसकी जवाबदारी है कि वह तथ्यों को जुटाए और उन्हें सिलसिलेबार अदालत के सामने प्रस्तुत करे.मृतक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उसकी मौत गोली लगने से होना पाया गया था. पुलिस ने मृतक के खूनसने कपड़े पोस्ट मार्टम में मृतक के शरीर से प्राप्त गोली और धातु के सफेद टुकड़े जांच के लिए फोरेंसिक साईंस लैब सागर भेजे थे.
रीवा के तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक के निर्देश पर इंस्पेक्टर कमलेश शर्मा से मामले की छानबीन कराई गई. घटना स्थल के निरीक्षण में उन्होंने पाया कि 28.09.2007 को सतना जिले के रामपुर बघेलान के रहने वाले राजेश तिवारी पुत्र केशव प्रसाद तिवारी उम्र 45 वर्ष के बयान और चोरहटा के मद्देपुर में रहने वाले रामकुमार सिंह पुत्र रामायण सिंह पटेल उम्र 43 साल और चोरहटा के ही छिजवार गांव में रह रहे लालमणि पांडेय पुत्र कौशल प्रसाद पांडेय उम्र 40 साल ने अपने बयानों में कहा कि 22.09.2007 को जब यह घटना घटित हुई तब सुरक्षा गार्ड के रूप में तैनात संजय कुमार सिंह,और रघुनंदन सिंह ने अपनी बारह बोर की बंदूक से फायर किए थे जिससे बिहरा गांव के राघवेन्द्र सिंह घायल हो गए और उपचार के दौरान उनकी मौत हो गई. इसी फायर से अन्य लोगों को भी चोट आई थी.
इस पुलिसिया छानबीन में पाया गया कि जेपी सीमेंट फैक्ट्री जे.पी.नगर में तैनात सुरक्षा गार्ड संजय कुमार सिंह और रघुनंदन सिंह ने हिंसक भीड़ पर गोलियां चलाईं थीं.पुलिस ने उनकी लाईसेंसी बंदूकें भी जब्त कर लीं और उन्हें सागर की फोरेंसिक प्रयोगशाला में बैलिस्टिक विशेषज्ञ को भेजा. विवेचना में जब दोनों आरोपियों के विरुद्ध अपराध प्रमाणित पाया गया तो उन्हें गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया.
प्रकरण में पुलिस ने प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों समेेत घायलों और सुरक्षाकर्मियों के भी कथन लिए और कुल 75 गवाहों के बयान जुटाए. इनमें से 54 गवाहों ने कहा कि प्राथमिकी में सन्नी गौड़, रजनीश गौड़, के.पी.शर्मा, अजय सिंह राणा, रमेश गुप्ता,रावत और शिवशंकर तो घटना स्थल पर उपस्थित ही नहीं थे. जबकि 24 अन्य गवाह राजनैतिक आधार पर बयान दे रहे हैं और उनका कहना है कि उपरोक्त सभी सात आरोपियों ने ही इस गोलीकांड को अंजाम दिया था. पुलिस रिपोर्ट में इस राजनीतिक आधार का कोई खुलासा नहीं किया गया है और न ही इसके संबंध में कोई प्रमाण प्रस्तुत किए गए हैं.
मामले की विवेचना करने वाले अधिकारी ने पाया कि घटना के करीब ढाई घंटे पहले शिक्षित बेरोजगार युवा संगठन के बैनर तले गांव के लड़के विंध्य द्वार पर सुनियोजित तरीके से प्रदर्शन कर रहे थे. यहां जिला प्रशासन के तत्कालीन एसडीएम शिवपाल सिंह, कार्यपालिक दंडाधिकारी श्रीमती शिवानी पांडेय, तत्कालीन नगर पुलिस अधीक्षक निश्चल झारिया, थाना प्रभारी बीडी त्रिपाठी, निरीक्षक यूसी तिवारी, निरीक्षक जीके तिवारी, और अन्य पुलिस अधिकारी,कर्मचारी सभी मौजूद थे. प्रदर्शनकारी अपनी मांगे मनवाने के लिए फैक्ट्री प्रबंधन पर दबाव बना रहे थे कि वे बाहर आकर ज्ञापन लें और उनकी मांगे पूरी करें. भीड़ की नाराजगी और प्रबंधन विरोधी भाषणबाजी को देखते हुए फैक्ट्री प्रबंधन के अधिकारी बाहर नहीं निकले उन्होंने पुलिस अफसरों के कहा कि भीड़ के 10-12 लोगों का प्रतिनिधि मंडल भीतर आकर ज्ञापन दे.यह प्रस्ताव प्रदर्शनकारियों ने अस्वीकार कर दिया. चर्चा करने के बजाए प्रदर्शनकारी पथराव और तोडफ़ोड़ करने लगे.जिसे रोकने के लिए पुलिस अधिकारियों ने काफी प्रयास किया इस दौरान पुलिस कर्मियों को चोटें भी आईं. तभी विंध्य गेट पर तैनात सुरक्षा गार्ड संजय कुमार सिंह और रघुनंदन सिंह ने अपनी लाईसेंसी बंदूकों से फायर किए जिससे प्रदर्शनकारियों को चोटें आईं. चूंकि यह घटनाक्रम पुलिस और प्रशासनिक अफसरों की उपस्थिति में ही हुआ था और इस दौरान फैक्ट्री प्रबंधन का कोई अधिकारी घटना स्थल पर मौजूद नहीं था. इसलिए नामजद आरोपियों के अपराध के लिए उकसाने और गोलियां चलाने जैसी कोई घटना में शामिल होने का सवाल ही नहीं उठता. रीवा के तत्कालीन एसपी रवि कुमार गुप्ता अपने पत्र में लगभग फैसला देने वाले अंदाज में कहते हैं कि प्रकरण की विवेचना में उपलब्ध सबूतों के आधार पर प्रथम सूचना रिपोर्ट में अंकित आरोपियों सन्नी गौड़,रजनीश गौड़, के.पी.शर्मा, अजयसिंह राणा, रमेश गुप्ता, रावत और शिवशंकर के बारे में नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने कोई अपराध किया है. जबकि सुरक्षा गार्ड संजय कुमार सिंह और रघुनंदन सिंह के विरुद्ध अपराध प्रमाणित पाया गया है. इसलिए प्रथम सूचना रिपोर्ट से इन सातों लोगों के नाम निकालकर दोनों सुरक्षा गार्डों के खिलाफ न्यायालय में अभियोग पत्र प्रस्तुत करने के संबंध में मार्गदर्शन देने का कष्ट करें. लार्ड एक्टन ने कहा है कि शक्ति मनुष्य को भ्रष्ट बना देती है और अकूत शक्ति उसे अत्यंत भ्रष्ट कर देती है.यही कारण है कि आज तीन साल बीत जाने के बावजूद इस गोलीकांड के वास्तविक आरोपियों को पुलिस अदालत तक नहीं पहुंचा सकी है. पुलिस ने इस कहानी को अपने जाल में कुछ इस तरह उलझा दिया है कि सारा मामला भ्रमपूर्ण बन गया है. भारतीय दंड विधान में माना जाता है कि प्राथमिकी ही घटना का वास्तविक विवरण है. पुलिस को फरियादी की सहायता करने वाला अंग माना जाता है.इस घटना में सबसे ज्यादा पीडि़त तो मृतक राघवेन्द्र सिंह है जिसे न्याय दिलाने के लिए पुलिस को आवश्यक प्रमाण जुटाने थे. लेकिन पुलिस इस मामले का कोई समाधान निकालने के मूड में नहीं दिखती. हॉरेन लास्की का कहना है कि रिच मैन मेक्स द लॉ,एंड लॉ ग्राईंड्स द पुअर. यनि कि अमीर आदमी कानून बनाते हैं और गरीब आदमी उसमें पीसे जाते हैं. पुलिस की भूमिका इस मामले में कुछ ऐसी ही नजर आती है. पुलिस की कसरतों से नजर आ रहा है कि सन्नी गौड़ और उनके साथी वास्तविक आरोपी हैं और पुलिस उन्हें बचाने में जुटी है. यदि ऐसा नहीं है तो पुलिस मामले को अदालत में भेजने के बजाए उसे मजिस्ट्रेटी जांच में क्यों उलझाए हुए है. यदि सन्नी गौड़ और उनके प्रबंधकीय सहयोगी घटना स्थल पर मौजूद ही नहीं थे तो अदालत उन्हें बाई"ात बरी कर ही देगी. ऐसे में पुलिस और प्रशासन मामले को जबरिया क्यों उलझाए हुए हैं. दरअसल गोली चालन की यह घटना पुलिस और प्रशासन के जिम्मेदार अफसरों की मौजूदगी में ही हुई है जिसके लिए किसी न्यायिक अधिकारी ने आदेश नहीं दिए थे जाहिर है कि ऐसे में वे अधिकारी अपनी जवाबदारी से नहीं बच सकते.
विंध्य अंचल के राजनीतिक जानकारों का कहना है कि पुलिस इस मामले को उलझाकर अपना उल्लू सीधा करने का प्रयास कर रही है. राज्य सरकार ने उन्हें भारत भवन का ट्रस्टी बनाकर उन्हें राजनीतिक कवच देने का प्रयास किया है. हत्या जैसे संगीन आरोपों के बावजूद सन्नी गौड़ राज्य शासन से अनुबंध कर रहे हैं.आखिर प्रशासन और सरकार उन्हें इस कलंक से मुक्ति दिलाने की राह में रोड़ा क्यों बन रहे हैं यह जांच का विषय है.
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