26 जून 2012 ताप्ती जन्मोत्सव पर विशेषजीवन दायनी पुण्य सलिला मां सूर्यपुत्री ताप्ती की महिमा सचित्र आलेख :- रामकिशोर पंवार
संस्थापक / प्रदेश अध्यक्ष मां सूर्य पुत्री ताप्ती जागृति समिति मध्यप्रदेश एवं मां ताप्ती जागृति मंच मध्यप्रदेश
गंगा में स्नान का नर्मदा के दर्शन का तथा ताप्ती के स्मरण का समान पुण्य
मिलता है। ताप्ती के बारे में पुराणो एवं वेदो में अनेक कहानियां लिखी हुई
है। स्कंद पुराण , वराह पुराण , ताप्ती पुराण , महाभारत के आदि पर्व ,
सूर्य पुराण , शनि पुराण , ताप्ती पुराण में मां सूर्य पुत्री ताप्ती को
लेकर कई अध्याय है। ताप्ती भारत की पश्चिम दिशा में बहने वाली प्रमुख दो
नदियो में से एक है। यह नाम ताप अर्थात उष्ण गर्मी से उत्पन्न हुआ है। वैसे
भी ताप्ती ताप - पाप - श्राप और त्रास को हरने वाली आदीगंगा कही जाती है।
स्वंय भगवान सूर्यनारायण ने स्वंय के ताप को कम करने के लिए ताप्ती को धरती
पर भेजा था। यह सतपुड़ा पठार पर स्थित मुलताई के तालाब से उत्पन्न हुई है
लेकिन इसका मुख्य जलस्त्रोत मुलताई के उत्तर में 21 अंक्षाश 48 अक्षंाश
पूर्व में 78 अंक्षाश एवं 48 अंक्षाश में स्थित 790 मीटर ऊँची पहाड़ी है
जिसे प्राचिनकाल में ऋषिगिरी पर्वत कहा जाता था जो बाद में नारद टेकड़ी कहा
जाने लगा । इस स्थान पर स्वंय ऋषि नारद ने घोर तपस्या की थी तभी तो उन्हे
ताप्ती पुराण चोरी करने के बाद उत्पन्न कोढ़ से मुक्ति का मार्ग मिला था।
देवऋषि नारद ने ही ताप्ती नदी नदी में स्नान का महत्व बताया। मुलताई का
नारद कुण्ड वही स्थान है जहाँ पर नारद को स्नान के बाद कोढ़ से मुक्ति मिली
थी। ताप्ती नदी सतपुड़ा की पहाडिय़ो एवं चिखलदरा की घाटियो को चीरती हुई
महाखडड् में बहती है। 250 किलोमीटर अपने मुख्य जलस्त्रोत से बहने के बाद
ताप्ती पूर्वी निमाड़ में पहँुचती है। पूर्वी निमाड़ में भी 48 किलोमीटर
सकरी घाटियो का सीना चीरती ताप्ती 242 किलोमीटर का सकरा रास्ता खानदेश का
तय करने के बाद 129 किलोमीटर पहाड़ी जंगली रास्तो से कच्छ क्षेत्र में
प्रवेश करती है। लगभग 701 किलोमीटर लम्बी ताप्ती नदी में सैकड़ो कुण्ड एवं
जल प्रताप के साथ डोह है जिसकी लम्बी खाट में बुनी जाने वाली रस्सी को
डालने के बाद भी नापी नही जा सकी है। इस नदी पर यूँ तो आज तक कोई भी बांध
स्थाई रूप से टिक नही सका है मुलताई के पास बना चन्दोरा बांध इस बात का
पर्याप्त आधार है कि कम जलधारा के बाद भी मां ताप्ती उसे दो बार तहस नहस कर
चुकी है। सूरत को कई बार बदसूरत करने वाली ताप्ती सूरत की विकास एवं
प्रगति का एक ऐसा प्रमाण है कि आज भी सूरतवासी स्वंय को धन्य धान्य होने के
पीछे मां ताप्ती का प्रताप ही बताते है। वैसे तो ताप्ती मां अपने नाम
मात्र स्मरण से अपने भक्त पर मेहरबान हो जाती है लेकिन किसी ने उसके
अस्तित्व को नकारने की कुचेष्टïा की तो वह फिर शनिदेव की बहन है कब किसकी
साढ़े साती कर दे कहा नही जा सकता। ताप्ती नदी के किनारे अनेक सभ्यताओं ने
जन्म लिया और वे विलुप्त हो गई । भले ही आज ताप्ती घाटी की सभ्यता के
पर्याप्त सबूत न मिल पाये हो लेकिन ताप्ती के तपबल को आज भी कोई नकारने की
हिम्मत नही कर सका है। पुराणो में लिखा है कि भगवान जटाशंकर भोलेनाथ की जटा
से निकली भागीरथी गंगा मैया में स्नान का , देवाधिदेव महादेव के नेत्रो से
निकली एक बुन्द से जन्मी शिव पुत्री कही जाने वाली माँ नर्मदा के दर्शन का
तथा माँ ताप्ती के नाम का एक समान पूण्य एवं लाभ है । वैसे तो जबसे से इस
सृष्टिï का निमार्ण हुआ है तबसे मूर्ति पूजक हिन्दू समाज नदियों को देवियों
के रूप में सदियों से पूजता चला आ रहा है। हमारे धार्मिक गंथो एवं वेद तथा
पुराणो में भारत की पवित्र नदियों में ताप्ती एवं पूर्णा का भी उल्लेख
मिलता है। सूर्य पुत्री ताप्ती अखंड भारत के केन्द्र बिन्दु कहे जाने वाले
मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के प्राचीन मुलतापी जो कि वर्तमान में मुलताई कहा
जाता है। इस मुलताई नगर स्थित तालाब से निकल कर समीप के गौ मुख से एक
सुक्ष्म धार के रूप में बहती हुई गुजरात राज्य के सूरत के पास अरब सागर में
समाहित हो जाती है। सूर्य देव की लाड़ली बेटी एवं शनिदेव की प्यारी बहना
ताप्ती जो कि आदिगंगा के नाम से भी प्रख्यात है वह आदिकाल से लेकर अनंत काल
तक मध्यप्रदेश ही नहीं बल्कि महाराष्टï्र एवं गुजरात के विभिन्न जिलों की
पूज्य नदियों की तरह पूजी जाती रहेगी। जिसका एक कारण यह भी है कि
सूर्यपुत्री ताप्ती मुक्ति का सबसे अच्छा माध्यम है। सबसे आश्चर्य जनक तथ्य
यह है कि सूर्य पुत्री ताप्ती की सखी सहेली कोई और न होकर चन्द्रदेव की
पुत्री पूर्णा है जो की उसकी सहायक नदी के रूप में जानी - पहचानी जाती है।
पूर्णा नदी भैंसदेही नगर के पश्चिम दिशा में स्थित काशी तालाब से निकलती
हैं। प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में श्रद्घालु लोग अमावस्या और पूर्णिमा के
समय इन नदियों में नहा कर पूर्ण लाभ कमाते हैं। एक किवदंती कथाओं के
अनुसार सूर्य और चन्द्र दोनों ही आपस में एक दूसरे के विरोधी रहे हैं , तथा
दोनों एक दूसरे को फूटी आँख नहीं सुहाते हैं। ऐसे में दोनों की पुत्रियों
का अनोखा मिलन बैतूल जिले में आज भी लोगों की श्रद्घा का केन्द्र बना हुआ
हैं।
धरती पर ताप्ती के अवतरण की कथा
पौराणिक कथाओं में उल्लेखित वर्णन के अनुसार एक समय वह था जब कपिल मुनि से
शापित जलकर नष्टï हो पाषाण बने अपने पूर्वजों का उद्धार करने इस पृथ्वी लोक
पर, गंगा जी को लाने भागीरथ ने हजारों वर्ष घोर तपस्या की थी। उसके
फलस्वरूप गंगा ने ब्रम्ह कमण्डल (ब्रम्हलोक से) धरती पर, भागीरथ के
पूर्वजों का उद्धार करने आने का प्रयत्न तो किया परंतु वसुन्धरा पर उस सदी
में मात्र ताप्ती नदी की ही सर्वत्र महिमा फैली हुई थी। ताप्ती नदी का
महत्व समझकर श्री गंगा पृथ्वी लोक पर आने में संकुचित होने लगी, तदोउपरांत
प्रजापिता ब्रम्हा विष्णु तथा कैलाश पति शंकर भगवान की सूझ से देवर्षिक
नारद ने ताप्ती महिमा के सारे ग्रंथ लुप्त करवा दिये, तब ही गंगा धारा पर
सूक्ष्म धारा में हिमालय से प्रगट हुई, ठीक उस समय से सूर्य पुत्री कहलाने
वाली ताप्ती नदी का महत्व कुछ कम हो गया। कुछ ऐसी ही गाथाये मुनि ऋषियों से
अक्सर सुनी जाती रही है। आज भी ताप्ती जल में एक विशेष प्रकार का
वैज्ञानिक असर पड़ा है। जिसे प्रत्यक्ष रूप से स्वयं भी आजमाईश कर सकते है।
ताप्ती जल में मनुष्य की अस्थियां एक सप्ताह के भीतर घुल जाती है। इस नदी
में प्रतिदिन ब्रम्हामुहुर्त में स्नान करने में समस्त रोग एवं पापो का नाश
होता है। तभी तो राजा रघु ने इस जल के प्रताप से कोढ़ जैसे चर्म रोग से
मुक्ति पाई थी।
ताप्ती का पूर्णा से मिलनपश्चिम दिशा की
ओर तेज प्रभाव से बहने वाली ताप्ती नदी मध्यप्रदेश महाराष्टï्र व गुजरात
में करीब 470 मील (सात सौ बावन किलोमीटर) बहती हुई अरब सागर में मिलती हैं।
ताप्ती नदी बैतूल जिले में सतपुड़ा की पहाडिय़ों के बीच से निकलती हुई
महाराष्टï्र के खान देश में 96 मील समतल तथा उपजाऊ भूमि के क्षेत्र से
गुजरती हैं। खान देश में ताप्ती की चौड़ाई 250 से 400 गज तथा ऊंचाई 60 फीट
है। इसी तरह गुजरात में 90 मील के बहाव में यह नदी अरब सागर में मिलती हैं।
ताप्ती की सहायक नदी कहलाने वाली पूर्णा नदी भैंसदेही के काशी तालाब से
निकलती हुई आगे चलकर महाराष्टï्र के भुसावल नगर के पास ताप्ती में मिल जाती
हैं।
पुराणों में ताप्ती जी की जन्मकथा इतिहास के पन्नों पर छपी
कहानियों को पढऩे से पता चलता है कि बैतूल जिले की मुलताई तहसील मुख्यालय
के पास स्थित ताप्ती तालाब से निकलने वाली सूर्य पुत्री ताप्ती की जन्मकथा
महाभारत में आदि पर्व पर उल्लेखित है। पुराणों में सूर्य भगवान की पुत्री
तापी जो ताप्ती कहलाई सूर्य भगवान के द्वारा उत्पन्न की गई। ऐसा कहा जाता
है कि भगवान सूर्य ने स्वयं की गर्मी या ताप से अपनी रक्षा करने के लिए
ताप्ती को धरती पर अवतरित किया था। भविष्य पुराणों में ताप्ती महिमा के
बारे में लिखा है कि सूर्य ने विश्वकर्मा की पुत्री संजना से विवाह किया
था। संजना से उनकी दो संताने हुई- कालिन्दनी और यम. उस समय सूर्य अपने
वर्तमान रूप में नहीं वरन अण्डाकार रूप में थे। संजना को सूर्य का ताप सहन
नहीं हुआ। अत: अपने पति की परिचर्चा अपनी दासी छाया को सौंपकर वह एक घोड़ी
का रूप धारण कर मंदिर में तपस्या करने चली गई । छाया ने संजना का रूप धारण
कर काफी समय तक सूर्य की सेवा की। सूर्य से छाया को शनिचर और ताप्ती नामक
दो संतान हुई। इसके अलावा सूर्य की एक और पुत्री सावित्री भी थी। सूर्य ने
अपनी पुत्री को यह आशीर्वाद दिया था कि वह विनय पर्वत से पश्चिम दिशा की ओर
बहेगी।
यम चतुर्थी के दिन ताप्ती भाई-बहन के स्नान का महत्वपुराणों में ताप्ती
के विवाह की जानकारी पढऩे को मिलती है। वायु पुराण में लिखा है कि कृत युग
में चन्द्रवंश में ऋष्य नामक एक प्रताप राजा राज्य करते थे। उनके एक सवरण
को गुरू वशिष्ठï ने वेदों की शिक्षा दी। एक समय की बात है सवरण राजपाट का
दायित्व गुरू वशिष्ठï के हाथों सौंपकर जंगल में तपस्या करने के लिए निकल
गये। वैभराज जंगल में सवरण ने एक सरोवर में कुछ अप्सराओं को स्नाने करते
हुए देखा जिनमें से एक ताप्ती भी थी। ताप्ती को देखकर सवरण मोहित हो गया और
सवरण ने आगे चलकर ताप्ती से विवाह कर लिया। सूर्य पुत्री ताप्ती को उसके
भाई शनिचर (शनिदेव) ने यह आशीर्वाद दिया कि जो भी भाई-बहन यम चतुर्थी के
दिन ताप्ती और यमुना जी में स्नान करेगा उन्हें कभी भी अकाल मौत नहीं होगी।
प्रतिवर्ष कार्तिक माह में सूर्य पुत्री ताप्ती के किनारे बसे धार्मिक
स्थलों पर मेला लगता है जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्घालु नर नारी
कार्तिक अमावस्या पर स्नान करने के लिये आते हैं।
भगवान श्री राम द्वारा निर्मित बारह शिवलिंगऐसी
पुरानी मान्यता है कि भगवान श्री राम, लखन, सीता समेत वन गमन के उपरांत इस
स्थान पर ठहरे हुए थे। ठीक उसी समय स्वयं श्री राम के हाथों द्घारा
निर्मित यह बारह शिवलिंग तथा सीता स्नानागार शुशुप्त रूप से आज भी विद्यमान
है, जो पाषाण शिला पर अंकित पुराना इतिहास के गवाह है। ग्राम खेड़ी
सांवलीगढ़ से ग्यारह किलोमीटर दूर त्रिवेणी भारती बाबा की तपोभूमि ताप्ती
घाट जो इस क्षेत्र में तो क्या संपूर्ण बैतूल जिले में बहुधा जानी पहचानी
जगह है। बारहलिंग नामक स्थान पर जो ताप्ती नदी के तट पर स्थित है, यहां कि
प्राकृतिक छठा सुन्दर मनमोहक दृश्य आने-जाने वाले यात्रियों का मन मोह लेते
है। घने हरियाले जंगलो से आच्छादित प्रकृति की अनुपम छटा बिखरेती हुई
ताप्ती नदी शांत स्वरों में पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर बहती है। यहां पर
नदी के दूसरे तट पर ताप्ती माई का एक विशाल मंदिर दत्तात्रेय, रामलखन सीता
तथा गैबीदास महाराज की समाधी स्थल मुख्य आकर्षण का केंद्र है। प्रतिवर्ष
यहां कार्तिक पूर्णिमा को तीन दित तक चलने वाला मेला लगता है। यहां समूचे
क्षेत्र की जनता अटूट श्रद्धा भक्ति के साथ मेले में तीन दिवस के विधिविधान
के साथ भगवान सूर्य को अर्ध देकर स्नान कर पूजा अर्चना करते है और फिर
मेले में खरीद फरोख्त करते है। रात्रि में आदिवासियों द्वारा डंडार, नौटंकी
आदि कई प्रकार के आयोजन किए जाते है। किंतु विड़म्बना है कि प्रशासन की
नाक के नीचे ऐसे प्राकृतिक स्थल कि ओर उनका जरा भी ध्यान नहीं है और आज यह
स्थल दुव्र्यवस्थाओं का शिकार हो रहा है।
नदियों के आसपास सर्वाधिक शिवलिंगबैतूल
जिलेे मे सूर्य पुत्री और चन्द्रपुत्री में आज भी दर्जनों की संख्या में
मिलने वाले पुराने मंदिरों के अवशेषों में शिवलिंगों की संख्या अधिक है।
कहा तो यहां तक जाता है कि ताप्ती नदी के किनारे बसे बारह लिंग नामक स्थान
पर नदी में आज भी प्रकृति द्वारा बनाये गये बारह लिंग लोगों की श्रद्घा का
केन्द्र बने हुये हैं। बैतूल जिले की ये दोनों नदियां अपने अंचल में अनेकों
शिवलिंगों को समाये हुये हैं। लाखों की संख्या में पहुंचाने वाले शिव
भक्तों की श्रद्घा का केन्द्र बनी हुई सूर्य पुत्री ताप्ती और चन्द्रपुत्री
पूर्णा बैतूल जैसे पिछड़े जिले का इतिहास के अनेक अनसुलझे रहस्यों को
छुपाये हुई है।
सदियो से बनता चला आ रहा है पत्थरो से बना रामसेतू भगवान
मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम द्वारा बनाये गये रामसेतू को लेकर भले ही
विवाद छीड़ा हो लेकिन मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में तो सदियो से भगवान श्री
राम द्वारा स्थापित बारह शिवलिंगो की पूजा करने के लिए आसपास की जनजाति
के लोग ताप्ती नदी के इस छोर से उस छोर पर जाने के लिए पत्थरो का पूल ठीक
उसी तरह बनाते चले आ रहे है जैसा कि रामसेतू बना था। पूर्व से पश्चिम की ओर
तेज प्रवाह से बहने वाली सूर्यपुत्री आदि गंगा कही जाने वाली ताप्ती नदी
के एक छोर से दुसरे छोर कार्तिक माह की पूर्णिमा को लगने वाले बारहलिंग के
मेले के लिए आने वाली हजारो श्रद्घालु जनता को आने - जाने के लिए इसी
पत्थरो से बने अस्थायी पूल से आना - जाना करना पड़ता हैै। अपने पिता राजा
दशरथ एवं माता कैकेई के आदेश का पालन करते हुये अपनी पत्नि सीता और अनुज
लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष का वनवास काटते हुये चित्रकुट से दण्डकारण क्षेत्र
में प्रवेश करते समय भगवान मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम जिस पथ से रावण की
लंका की ओर चले गये थे उस पथ में शामिल बैतूल जिले का पौराणिक इतिहास कई
अनसुलझे रहस्यो को अपने आँचल में छुपाये हुये है। ऐसी पौराणिक कथाओ से
जुड़ी एक कथा अनुसार राम से जुड़ी दंत एवं प्रचलित तथा पौराणिक कथाओं के
अनुसार कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन भगवान श्रीराम ने ताप्ती नदी के
किनारे बारह शिव लिंगो की स्थापना कर उनका पूजन किया था तथा इसी स्थान पर
रात्री विश्राम करने की व$जह से आसपास की जनजाति के लोगा यहाँ पर तीन दिन
की तीरथ यात्रा क लिए आकर रात्री मुकाम करते हैै। कथाओ एवं पुराणो के
अनुसार श्री राम ने वनो में उगने वाले फलो में से एक को जब माता सीता को
दिया तो उन्होने इसका नाम जानना चाहा तब भगवान श्री राम ने कहा कि हे सीते
अगर तुम्हे यह फल यदि अति प्रिय है तो आज से यह सीताफल कहलायेगा। आज बैतूल
जिले के जंगलो एवं आसपास की आबादी वाले क्षेत्रो में सर्वाधिक संख्या में
सीताफल पाया जाता है। बारहलिंग नामक स्थान पर आज भी सीता स्नानागार एवं
विलुप्त अवस्था में भगवान श्री राम द्वारा पत्थरो पर ऊकेरे गये बारह
शिवलिंग स्पष्टï दिखाई पड़ते हैै।
सूरजमुखी - सूर्यमुखी ताप्ती यँू तो भारत
की पवित्र नदियो में उल्लेखीत माँ नर्मदा एवं माँ ताप्ती ही पश्चिम मुखी
नदियाँ है। ताप्ती और नर्मदा ही एक स्थान पर पूर्व की ओर बही है। गंगा सागर
को पवित्र स्थान इसलिए कहा जाता है कि उस स्थान पर गंगा जी पूर्व की ओर
बहती है। ताप्ती जिस स्थान पर पूर्व की ओर बही है उस स्थान को सूर्यमुखी ,
सूरज मुखी , गंगा सागर जैसे कई नामो से पुकारा जाता है। अग्रितोड़ा नामक
गांव के पास सूर्यपुत्री ताप्ती ने पश्चिम से पूर्व की ओर अपनी जलधारा को
बदल दिया है इसलिए प्रतिवर्ष मकर संक्राति के दिन हजारो की संख्या में दूर -
दराज और अन्य जिलो एवं प्रदेशो से श्रद्घालु भक्त माँ ताप्ती के जल में
स्नान कर उस जल से उसके पिता सूर्यनारायण एवं भाई शनिदेव को जल अपर्ण कर
उनकी पूजा अराधना करते है। मकर संक्राति के अवसर पर ताप्ती में स्नान और
ध्यान को ज्योतिषी शास्त्र एवं पंडित तथा जानकार लोग सबसे शुभ अवसर मानते
है क्योकि इस दिन आपस में एक दुसरे के घोर विरोधी पिता एवं पुत्र दोनो मां
ताप्ती के जल में स्नान और ध्यान से प्रसन्नचित होकर इच्छानुसार मनोकामना
पूर्ण करते है। इस स्थान पर रामकुण्ड है जिसके बारे में कहा जाता है कि इस
कुण्ड में भगवान श्री राम ने स्नान ध्यान किया था।
जब मेघनाथ ने ताप्ती और नर्मदा की धारा उल्टी बहा दी
यूं तो यह आम धारणा है कि बैतूल जिला सदियों पहले रावण के अधीन
राज्य का एक अंग था. इस क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी इसी कारण सदियों से
होलिका दहन के दूसरे दिन रावण के बलशाली पुत्र मेघनाथ की पूजा करते चले आ
रहे है। जिले के हर गांव में जहां पर आदिवासी परिवार रहता है उस गांव में
एक स्थान पर जैरी का खंबा गाड़ा होता है और इसी जैरी के खंबे पर चढ़कर पूजा
अर्चना की जाती है। रावण संहिता में उल्लेखित कहानी के अनुसार नर्मदा और
ताप्ती नदी के किनारे जब रावण और उसके पुत्र मेघनाथ ने अपने तप बल के बल पर
नर्मदा और ताप्ती की धाराओं को उल्टी बहा दिया तो उसे देखकर आदिवासी लोग
डर गए . उस समय से लेकर आज तक उक्त सभी डरे सहमे आदिवासियों के वंशज पीढ़ी
दर पीढ़ी से रावण और उसके बलशाली पुत्र मेघनाथ को ही अपना राजा मानकर उसकी
पूजा अर्चना करते चले आ रहे है। रावण संहिता में मेघनाथ को लेकर कई किवदंत
कहानियां लिखी हुई है जिसके अनुसार भवगान शिव को प्रसन्न करने के लिए उनकी
पुत्री कही जाने वाली माँ नर्मदा एवं सूर्य पुत्री माँ ताप्ती नदी के
किनारे रावण और उसके पुत्र मेघनाथ ने काफी समय तक जटिल एवं कठिन तपस्याएं
करके अपने तपबल के बल पर बहुत सारी सिद्घियां प्राप्त की थी।
बैतूल से गुजरे थे श्री राम ..?बहुचर्चित
रामसेतु परियोजना को लेकर उपजे विवाद की कड़ी में मध्यप्रदेश की भाजपा
सरकार ने भी उस रामपथ को खोजने की शुरूआत की है जो अयोध्या से चित्रकुट
होता हुआ दण्डकारण क्षेत्र से पंचवटी होते हुआ रामेश्वरम जाता है । भगवान
श्री राम जिस दण्डकारण क्षेत्र से होते हुये श्री लंका तक पहँुचे थे उस पथ
में आने वाले क्षेत्रो में सूर्य पुत्री ताप्ती नदी का बारह लिंग क्षेत्र
भी आता है ..? इसी तथ्य को दावे के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास किया है
बैतूल जिले के उन चंद ताप्ती भक्तो ने जिनका दावा है कि भगवान श्री राम
बैतूल जिले के जंगलो से होते हुये माँ ताप्ती को पार कर ही पंचवटी पहँुचे
थे । अब यह प्रश्र उठता है कि क्या भगवान श्री राम बैतूल से गुजरे थे..?
बैतूल के इतिहास से भली भांती परिचित कुछ जानकारो का दावा है कि पंचवटी से
लंका तक पहँुचने वाले उस रामपथ का बैतूल जिले से भी नाता है क्योकि
सतपुड़ा पर्वत की हरी-भरी सुरम्य वादियों में ऊंची-ऊंची शिखर श्रेणियों के
मध्य से कल - कल कर बहती सूर्य पुत्री माँ ताप्ती नदी की बीच धारा में बने
बारह लिंगो की स्थापना के पीछे जो आम प्रचलित कथाये एवं किवदंतियाँ तथा
उससे मेल खाती एतिहासिक पुरात्तवीक अवशेषो के अनुसार भगवान श्री राम ने इस
रावण के पुत्र मेघनाथ के द्रविड़ राज्य में राक्षसो से रक्षार्थ हेतू अपने
अराध्य देवाधिदेव भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए आकाश गंगा सूर्यपुत्री
ताप्ती नदी के किनारे रात्री विश्राम कर दुसरे दिन प्रात: सुर्योदय के पहले
ताप्ती नदी में के बीचो - बीच बहती जल धारा में डूबे पत्थरो पर बारह लिंगो
की आकृति को जन्म देकर उनका विधिवत पूजन एवं स्थापना की थी । भगवान श्री
राम के साथ इस पूजन कार्य के पूर्व माता सीता ने जिस स्थान पर ताप्ती नदी
के पवित्र जल से स्नान किया था वह आज भी सुरक्षित है तथा लोग उसे सीता
स्नानागार के रूप में पूजन करते है . महाभारत की एक कथा के अनुसार
मृत्युपरांत कर्ण से भगवान श्री कृष्ण ने कुछ मांगने को कहा लेकिन दानवीर
कर्ण का कहना था कि भलां मैं आपसे क्यूँ कुछ मांगू मैने तो अभी तक लोगो को
दिया ही है तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपना पूर्णस्वरूप दानवीर कर्ण को दिखा कर
कहा अब तो कुछ मांग लो। कर्ण ने कहा कि यदि प्रभु आप मुझे कुछ देना ही
चाहते हो तो मेरी अंतिम इच्छा को पूर्ण कर दो जो यह है कि मेरा अंतिम
संस्कार उस पवित्र नदी के किनारे हो जहाँ पर आज तक को शव न जला हो .. तब
भगवान श्री कृष्ण ने अपनी दिव्य दृष्टिï से ताप्ती जी के किनारे अपने
अंगुठे के बराबर ऐसी जगह देख जहाँ पर भगवान श्री कृष्ण ने पैरो के एक
अंगुठे पर खड़े रह कर अपनी हथेली पर दानवीर कर्ण का अंतिम संस्कार किया।
रामयुग में जटायु तथा कृष्ण युग में कर्ण दो ही ऐसे जीव रहे जिन्होने भगवान
राम और श्याम की बाँहो में दम तोड़ा। प्रस्तुत कथा से इस बात का पता चलता
है कि ताप्ती कितनी पवित्र नदी थी। दुसरी दृष्टिï से देखा जाये तो पता चलता
है कि महाभारत की इस घटना के अनुसार सूर्यपुत्र दानवीर कर्ण का अंतिम
संस्कार भी उसकी अपनी बहन ताप्ती के किनारे सम्पन्न हुआ। जनश्रुत्रि एवं
जानकारो तथा इतिहास के विशेषज्ञो के अनुसार इस द्रविड़ राज्य में असुरी
शक्ति का जबरदस्त आंतक रहता था वे किसी भी ऋषि - मुनियो के पूजा पाठ यहाँ
तक की उनके द्वारा करवाये जाने वाले यज्ञो तक में व्यवधान पैदा कर देते थे।
असुरो के अराध्य देवाधिदेव महादेव को भगवान श्री राम ने अपने द्वारा चौदह
वर्ष के वनवास के दौरान वनगमण के दौरान स्वंय तथा अनुज लक्ष्मण एवं जीवन
संगनी सीता की रक्षा के लिए देवाधिदेव महादेव की जहाँ - तहाँ पूजा अर्चना
की। असुर केवल भोलनाथ भगवान जटाशंकर महादेव के पूजन कार्य में व्यवधान नहीं
डालते थे इसी मंशा के तहत मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम ने राम पथ के दौरान
शिव लिंगो का पूजन किया। ताप्ती नदी की बीच धारा में पाषण शीला पर बारह
शिव लिंगो की मां विश्वकर्मा की मदद से स्थापना की। वैसे आमतौर पर रामायण
में श्री राम युग में श्रीराम द्घारा मात्र रामेश्वरम में ही शिवलिंग की
स्थापना का जिक्र सुनने एवं पढऩे को मिलता है लेकिन पूरे विश्व के बारह
ज्योर्तिलिंगो को एक ही स्थान पर वह भी सूर्यपुत्री माँ ताप्ती नदी की बीच
तेज बहती धार में मौजूद पाषण शीलाओं पर ऊकेरा जाना तथा उनका आज भी मूल
स्वरूप में बने रहना किसी चमत्कार से कम नहीं है। वैसे आम तौर पर कहा जाता
है कि भगवान श्री राम ने शिवलिंगो की स्थापना करके यह संदेश दिया कि
देवाधिदेव शिव ही राम के ईश्वर है जबकि शिव भगवान ने ही कहा कि राम ही
ईश्वर है। बरहाल बात रामेश्वरम के ज्योर्तिलिंग की हो या ताप्ती नदी बीच
तेज बहती धारा के मध्य पाषणशीलाओं पर स्थापित बारह लिंगो की भगवान श्री राम
ने अपने अराध्य देवाधिदेव जटाशंकर उमापति महादेव के प्रति अपने अगाह प्रेम
को जग जाहिर कर डाला।
धरातल के गर्त में छुपी हुई कहानियाँ
यँू तो भारत की पवित्र नदियो में उल्लेखीत माँ नर्मदा एवं माँ
ताप्ती ही पश्चिम मुखी नदियाँ है . गंगा जी इलाहबाद में जिस दिशा से आती
है वापस उसी दिशा में लौटती है. ठीक इसी प्रकार बैतूल जिला मुख्यालाय से
मात्र छै किलो मीटर की दूरी पर स्थित बैतूल बाजार नामक शहर के किनारे से
बहती सापना नदी जिस दिशा में आती है उसी दिशा में वापस बहती है। ऐसा उन्हीं
स्थानों पर होता है जो धार्मिक दृष्टिï से लोगों की श्रद्घा का केन्द्र
बने हुये है। नदियों और इंसानों का रिश्ता शायद सबसे पुराना रिश्ता है तभी
तो नदियों के किनारे अनेक सभ्यताओं ने समय-समय पर जन्म लिया है। आज
आवश्यकता है पुरातत्व विभाग की जो इन नदियों के आगोश में छुपे रहस्यों को
खोज निकाले ताकि यह पता चल सके कि आज के बैतूल और भूतकाल के इस धार्मिक
क्षेत्र का इतिहास क्या था? यहां यह उल्लेखनीय है कि बैतूल जिले में ही
जैनियों की पवित्र मुक्तागिरी नामक तीर्थ स्थली हैं जहां पर आज भी केसर की
वर्षा होती है। जिला मुख्यालय से लगे एक प्राचीन गांव बैतूल बाजार नामक
पूरे देश दुनिया में एक मात्र मंदिरों का गाँव है, जहां पर बहुसंख्या में
शिवमंदिर देखने को मिलते हैं। हिन्दू वेद एवं पुराणों तथा ग्रंथों में अनेक
नामों से उल्लेखित इस गांव का इतिहास आज तक पता नही चल सका है। आज इस जिले
की धरातल के गर्त में अनकोनेक छुपी हुई कहानियों और किस्सो को ढूंढ
निकालने की आवश्यकता है। बैतूल जिले के इतिहास के बारे में जिले की आधी से
ज्यादा आबादी को पता नहीं है कि जिले का सबंध किस युग- काल - समय से कब -
कब रहा है। जिले में घटित मान्यताओं को लेकर कुछ जानकार एवं इतिहासकार तथा
पुरात्तव विभाग के विशेषज्ञ अब इस बात पर भी चिंतन मनन करने में जुट गये है
कि मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले का प्राचिन एवं पुरात्तव तथा
पौराणिक इतिहास क्या है। बैतूल जिले के काफी प्राचिन इतिहास से सूर्यवंश
का रिश्ता भी किस तरह जुडा हुआ है। बैतूल जिले में बहने वाली ताप्ती नदी
जिसे आदिगंगा - भद्रा - तापी - तपती - तापती सहित दर्जनो नामो से पुकारा
जाता है उसका जन्म स्थान मुलतापी - मुलताई बैतूल जिले में ही स्थित है।
जिले का प्राचिन इतिहास बताने के लिए हम कुछ प्रमाण प्रस्तुत कर रहे है।
जिले में रहने वाली जनजातियों का सबंध किसी न किसी युग एवं काल से मिलता
-जुलता है। सतयुग के समय विदर्भ की राजकुमारी दमयंती के साथ विवाह के बाद
उसके त्याग के बाद जंगलो में भटकने वाले राजा नल ने जिले के मासोद ग्राम के
पास स्थित तालाब की मछली को भूनने का प्रयास किया था लेकिन मछली उछल कर
तालाब में जा गिरी। इस क्षेत्र में प्रचलित कथाओं में नल - दमयंती के
संदर्भ में यह कहा जाता है कि ऊंचा खेडा पर पटटन गांव , मंगलराजा मोती -
दमोती रानी बरूवा बामन कहे कहानी , हमसे कहती उनसे सुनती सोलह बोल की एक
कहानी , सुनो महालक्ष्मी रानी , विदर्भ का यह क्षेत्र जिसे महाभारत में
चीचकदरा जो वर्तमान में खिचलदरा कहलाता है इस क्षेत्र का राजा कीचक था जो
कि विराट के राजा का साला था । कीचक अखडा का नाम कीचकधरा जो वर्तमान में
बैतूल एवं पडोसी राज्य महाराष्ट्र के अमरावती जिले के परतवाडा क्षेत्र से
लगा हुआ चीखलदरा कहलाता है। राजा कीचक की कुल देवी वेराट देवी का स्थान
बैतूल जिले के प्रभात पटट्न गांव में था जो प्राचिन में परपटटन गांव के रूप
में जाना जाता था। महाभारत के पूर्व अज्ञातवास के दौरान में पांचो पाडंव
राजा कीचक के राज्य में स्थित सालबर्डी की गुफाओं में भी रहे जो कि अभी भी
मौजूद है। पांडव पुत्र जीवन संगनी पर बुरी नज़र रखने के कारण ही पांडव
पुत्र भीम ने कीचक को मारा था। बैतूल जिले में त्रेतायुग में भगवान श्री
राम ने ही मां सूर्य पुत्री ताप्ती नदी के किनारे शिवधाम बारहलिंग में बारह
शिवलिंगो की स्थापना ताप्ती के तट पर पत्थरो पर भगवान विश्वकर्मा की मदद
से की थी जो अभी भी मौजूद है। इस स्थान पर सीता स्न्नानागार भी मौजूद है
जहां पर माता सीता ताप्ती के तट पर स्नान करती थी। इस क्षेत्र में वनो में
सीताफल पाये जाते है जिनका उल्लेख रामायण में भी है। रामायण की चौपाई में
कहा गया है कि माता सीता पुछती है कि प्रभु अति प्रिय फल मोरा तब भगवान ने
इसका नाम सीता जी के नाम पर सीताफल दिया था। कुरूवंश के संस्थापक राजा
कुरू की माता ताप्ती का बैतूल जिले में जन्मस्थान के कई प्रमाण है जैसे
नारद टेकडी , नारद कुण्ड , सूर्य कुण्ड , धर्मकुण्ड , पाप कुण्ड , शनिकुण्ड
, सात कुण्ड बैतूल जिले में ताप्ती जन्मस्थली में मौजूद है। बैतूल जिले
में आज भी सबसे अधिक शिवलिंग तापती नदी के किनारे है जो कि इस बात के
प्रमाण है कि रावण पुत्र मेघनाथ ने तापती के किनारे कठीन तपस्या की थी। यह
क्षेत्र रावण के बलाशाली पुत्र मेघनाथ का राज्य का हिस्सा रहा है इसलिए
यहां के मूल निवासी आज भी गांवो में मेघनाथ - रावण - कुंभकरण की पूजा करते
है। ताप्ती नदी के किनारे देवलघाट नामक स्थान भी है जहां से देवता बीच नदी
में स्थित सुरंग से स्वर्ग को प्रस्थान किये थे। इस जिले में चन्द्र पुत्री
पूर्णा का भी जन्मस्थान पुष्पकरणी है जो कि भैसदेही के पास है। बैतूल
जिले का प्राचिन इतिहास इस बात को प्रमाणित करता है कि सूर्य एवं चन्द्रवंश
की दो देव कन्याओं का इस जिले में उदगम स्थान है तथा इस जिले से ही वे
निकल कर भुसावल के पास मिलती है। बैतूल जिले में कई प्राचिन अवशेष भी है
जिन्हे आज जरूरत है समझने एवं परखने की । जब भी कोई नदियों के बारे में बात
करता है तो गांव - नदी - नाले - खेत - खलिहान- कुयें - बावली - झरनो और
पोखरो की बरबस याद आ जाती है. देश ही नहीं बल्कि विदेशो की कई प्राचिन
सभ्यतायें और उसका इतिहास भी इन्ही नदियों से जुड़ा होता है. बैतूल जिले का
मूल नाम क्या था यह तो कोई भी दावे के साथ इसलिए नहीं कह सकता है क्योकि
हिन्दु - सनातनी - आर्य जिन चार युगो की बाते करते है उनका बैतूल जिले से
कोई न कोई प्रमाणिक रिश्ता - नाता रहा है. बैतूल जिले के मुलताई के पास जिस
ऋक्षि पर्वत का उल्लेख पढऩे को मिलता है.वह प्राचिन काल में मुलताई नगर
के सर्किट हाऊस के पास स्थित टेकडी को कहा जा सकता है जहां से ताप्ती एवं
वर्धा नदी का उदगम हुआ था. वैस तो लोग वर्धा का उदगम ग्राम खैरवानी के
तालाब को मानते है. इस स्थान पर स्थित पेड़ो का पानी आज भी दो अलग - अलग
दिशाओं में बहता हुआ अलग - अलग नदियों एवं महासागरो में मिलता है. मूलत:
मां ताप्ती का जन्म स्थान ताप्ती के तालाब को ही माना गया है लेकिन भगौलिक
परिवर्तन के चलते स्थान के मूल रूप में परिवर्तन होना स्वभाविक है. बैतूल
जिले में मुलताई जिसे मुलतापी भी कहा गया है इस पावन भूमि के रेल्वे स्टेशन
के पास ठीक नारद टेकडी के सामने छोटे से तालाब से मां ताप्ती की मूल
उत्पति मानी गई है. मां ताप्ती का जन्म स्थान को लेकर थोड़े बहुंत मतभेद
एवं मनभेद स्वभाविक है क्योकि प्रकृति में आने वाले परिवर्तनो से दशा और
दिशा बदलती रहती है. देश के पश्चिमी मुखी नदियों में नर्मदा एवं ताप्ती
दोनो ही अरब सागर की खंभात की खाड़ी में मिलती है. सूर्य पुत्री मां ताप्ती
का यूं तो मेरा बचपन से नाता है क्योकि मैं पहली कक्षा मुलताई नगर की
टेकड़ी वाली प्रायमरी शाला में पढ़ा हँू. प्रायमरी स्कूल से पुलिस लाइन में
चाचा के घर तक आते समय ताप्ती के तालाब में सोने की नथ पहनी मछली को
पकडऩे के चक्कर में घंटो तालाब के पानी में दाना डाल कर मछली को पकडऩे की
चाहत में रहते थे. मुझे ठीक से तो नहीं पर यह याद जरूर है कि उस दौर में
काली जी के मंदिर का निमार्ण कार्य शुरू हो रहा था. गौ मुख से निकली ताप्ती
जी एक जलधारा को अपनी अंजुली में लेकर उसका पान करना भी बचपन की भूली -
बिसरी यादो का एक हिस्सा है. मां सूर्य पुत्री ताप्ती के उस तालाब से नाता
टूटा तो बारहलिंग से जुड़ गया. आज भी बारहलिंग को शिवधाम के रूप में
स्थापित करवाने की दिशा में एक मुहिम की शुरूआत मां सूर्य पुत्री ताप्ती का
नीर को जन - जन तक पहुंचाने के लिए उनकी महिमा का बखन भी जरूरी है. लोग
गंगा को याद करते है लेकिन आदि गंगा मां ताप्ती को इसलिए भूल गये क्योकि
अकसर श्राद्ध से लेकर हर पूजन के कार्यो में तथाकथित मंत्रो के उच्चारणों
मे गंगा प्रेमी पंडितो एवं पण्डो ने गंगा को इस कदर महिमा मंडित किया कि
उसके सामने यमुना - गोदावरी - नर्मदा - कावेरी - ताप्ती - क्षिप्रा तक का
पौराणिक महत्व बौना साबित हो गया. यदि हम पुराणो के ही पन्नो को ही पलटने
का काम करे तो पता चलता है कि जब भगवान विश्वकर्मा की मदद से जगतपिता
ब्रहमा जी ने सूर्य पुत्र मानव को धरती पर भेजा ताकि वह मानव समाज की
स्थापना करे. इसी तरह अपने पुत्र अश्विनी कुमार को वैद्य , शनि को न्याय ,
यम को यमलोक का स्वामी बनाया. दोनो पुत्री यम एवं ताप्ती में सबसे पहले
अपने तप को जल जीव - प्राणी - पशु - पक्षी को तप से बचाने एवं उनके प्यासे
कंठो को तृप्त करने के लिए तापी - तपती - ताप्ती के नामो से प्रसिद्ध
बिटिया को जलधारा के रूप में ऋक्षि पर्वत से बहने का आदेश दिया. आज बैतूल
जिले में लगभग 250 किलो मीटर का सफर तय करने वाली कुल 750 किलो मीटर लम्बा
सफर तय करके खंभात की खाड़ी में मिल जाती है. देव कन्या के रूप धरती पर
अवतरीत नदियों में शिव कन्या नर्मदा , सूर्य पुत्री यमुना - ताप्ती का
उल्लेख पुराणो में पढऩे को मिलता है. देश की प्रमुख सभी पवित्र नदियों में
केवल ताप्ती में ही तीन दिनो में मोक्ष की प्राप्ति होती है. अस्थियां के
इस नदी में तीन दिनो के अंदर घुल जाने के बाद मृत आत्मा का सीधे मोक्ष की
प्राप्ति होती है. जीवन दायनी मोक्ष दायनी मां ताप्ती के जल का प्रभाव यह
है कि वह सतपुड़ा एवं मेकल की पहाडिय़ो में सबसे तेज धारा के रूप में बहती
हुई अपने जल में जंगली जड़ - बुटियो के अलावा अपने पावन जल में ऐसे कई
अदृश्य बीमारी मुक्त करने वाली औषधियों को लेकर बहती है. दुसरी नदियों का
मटमैला - प्रदुषित पानी को स्वच्छ होने में घंटो लग जाते लेकिन बहती एवं
एकत्र ताप्ती जल को शुद्ध होने में मात्र कुल ही मिनट लगते है. ताप्ती जल
की एक सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसका पानी सालो तक रहने के बाद भी किसी
भी प्रकार का गंध नहीं मारता है. ताप्ती नदी में पोखर - डोह - जल प्रताप -
झरनो के मिलने के कई नज़ारे बरसात के दिनो मे देखने को मिलते है. ताप्ती
नदी के बहते जल में भंवरे बनते है इस कारण कोई तैराक चैलेंज के साथ ताप्ती
नदी के इस छोर से उस छोर जाने की हिमाकत नहीं कर सकता यदि वह ऐसा करता है
तो उसे अपनी जान को गवाना पड़ सकता है लेकिन ताप्ती के किनारे बसे गांवो के
छोटे - छोटे बालक - बालिकायें बिना किसी डर एवं झिझक के नदी के इस छोर से
उस छोर तैरते चले जाते है. पूरी दुनिया में मात्र सूर्य पुत्री ताप्ती ही
एक ऐसी नदी है जो कि भीषण से भीषण गर्मी में आज तक कभी भी सुखी नहीं है. यह
विश्व की एक मात्र ऐसी नदी है जो कि ऊपरी और नीचली सतह में सदैव बहती रहती
है. ताप्ती नदी के पत्थरो का वजन एक समान नहीं होता तथा इन पत्थरो का रंग -
रूप आकार भी भिन्न होता है. सबसे आश्चर्य की बात यह है कि गर्मी के दिनो
में अन्य पत्थरो की अपेक्षा ताप्ती नदी के पत्थर कम गर्म होते है. ताप्ती
नदी की एक विशेषता यह भी है कि वह पश्चिम दिशा से पूर्व की ओर बहती हुई
दिखाई देती है. मोक्ष दायनी मां ताप्ती के बारे में यह भी कहा जाता है कि
ताप्ती के किनारे सर्वाधिक शिव लिंग मिलेगें जिसके पीछे इस नदी के किनारे
असुरी एवं दैविय शक्तियों की देवाधिदेव महादेव को प्रसन्न करने के लिए की
गई घोर तपस्या भी प्रमुख कारण है. महा पंडित रावण के बलशाली पुत्र मेघनाथ
ने ताप्ती तट पर ही भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करके अनेको शक्तियां प्राप्त
की थी. ताप्ती के किनारे ही रावण पुत्र मेघनाथ का राज्य एवं आदिवासियों
द्वारा उसकी पूजा के पीछे का प्रमुख कारण उसकी शिव भक्ति एवं अपने राजा के
प्रति मान - सम्मान - प्रेम - समपर्ण एवं उसके देवता तुल्य मान कर उसकी
पूजा अर्चना करना भी आज भी देखने को मिलता है. सूर्य पुत्री ताप्ती के बारे
में पुराणो में खास की स्कंद पुराण - वराह पुराण - सूर्य पुराण - शनि
पुराण - महा भारत - रामायण तक में उल्लेख पढऩे को मिलता है. जैन मुनि
विशुद्ध महाराज भी ताप्ती की जन्म स्थली बैतूल जिले को देव भूमि मानते है.
उनका दावा है कि भगवान श्री राम वनवास के दौरान ताप्ती के_ नमन कर उसकी
पूजा - अर्चना की है. ऐसा कहा जाता है कि उतर भारत के पंडितो ने गंगा के
महात्म को कम न हो इसके लिए ताप्ती की महिमा का बखान करना ही छोड़ दिया.
मां ताप्ती जागृति मंच जिला बैतूल मां सूर्य पुत्री ताप्ती की
महिमा को जन - जन तक पहुंचाने के लिए प्रयासरत है। कोई भी जिझासु व्यक्ति
कभी भी सम्पर्क कर मिल कर जानकारी प्राप्त कर सकता है। नेट पर भी ताप्ती
महिमा के नाम से एवं ताप्ती जी के नाम पर कई कथायें दे चुका है।
सम्पर्क करे
रामकिशोर पंवार
संस्थापक
मां ताप्ती जागृति मंच बैतूल