अवधेश पुुरोहित @ toc news
भोपाल। भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल के दौरान प्रदेश पर लगे कुपोषण के कलंक को यह सरकार मिटा पाने में असफल सी साबित होती नजर आ रही है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य पर्यवेक्षण के तहत १७ राज्यों के आंकड़े जारी किए गए उसमें कुपोषण के मामले में मध्यप्रदेश दूसरे नम्बर पर है, सर्वे के अनुसार बिहार पहले नम्बर पर है जहां पर करीब ४३ फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं जबकि ४२.८ प्रतिशत आंकड़े के साथ मध्यप्रदेश दूसरे स्थान पर है, मजे की बात यह है कि इस कुपोषण के कलंक को मिटाने के लिए राज्य सरकार द्वारा करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा दिए गए और रोज नई नई योजनायें इससे मुक्ति पाने के लिए राज्य सरकार द्वारा तैयार की गई, लेकिन उसके नतीजे शून्य ही नजर आ रहे हैं। हालांकि राज्य सरकार कुपोषण को लेकर तरह-तरह के दावे करती नजर आती है।
यूं तो पूरा राज्य कुपोषण की चपेट में है लेकिन जिस विदिशा जिले को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपना जिला बताते हैं और यहां से विदेश मंत्री सुषमा स्वराज सांसद हैं, लेकिन इसके बावजूद भी इस जिले में पांच साल तक के ४० फीसद बच्चे कुपोषण के शिकार हैं तो वहीं ३७ प्रतिशत ठिगने हैं, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-चार ने जो आंकड़े जारी किए हैं वह चौंका देने वाले तो हैं ही तो वहीं इस सरकार के कुपोषण के मामले में किये जा रहे बड़े-बड़े दावों की भी पोल खुलती नजर आ रही है। सर्वे के अनुसार विदिशा जिले में करीब ३६.७ प्रतिशत बच्चों को ही जन्म के तुरंत बाद मां का दूध मिल पाता है बच्चों में कुपोषण होने के कई कारण हो सकते हैं, गर्भवती महिला को यदि भरपूर पोषण नहीं मिला तो उसका सीधा असर जन्म लेने वाले बच्चे पर पड़ता है,
साथ ही जन्म के तुरंत बाद मां का दूध नहीं मिला तो नवजात में कुपोषण की संभावना अधिक बड़ जाती है ऐसा देखा जाए तो प्रदेश के हालत भी काफी अच्छे नहीं है सर्वे में ३७.२ प्रतिशत बच्चे कम वजन के तथा ४२ फीसद बच्चे सर्वेक्षण में ठिगने पाए गए। यूं तो सरकार के दावों के अनुसार जिलों में करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद कुपोषण घटने की बजाए बढ़ते नजर आ रहे हैं ग्रामीण क्षेत्रों के हर गांव में आठ से लेकर दस बच्चे कुपोषण का शिकार हैं उसमें बासौदा के शहर के सहरिया आदिवासी का भी एक बड़ा तबका है। इस क्षेत्र के १९ गांवों में यह लोग रहते हैं गरीबी सुविधाओं की कमी के कारण इन परिवारों में कुपोषित बच्चों की संख्या अधिक रहती है, जागरूकता की कमी के कारण एक ही परिवार में छ: से सात बच्चे होते हैं जिनकी देखरेख न होने के कारण वह कुपोषण की चपेट में आ जाते हैं।
मजे की बात यह है कि राज्य सरकार भले ही लाख दावे करे और सरकार के साथ महिला बाल विकास तथा स्वास्थ्य विभाग के द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के बाद भी महिलाओं तथा बच्चों के स्वास्थ्य पर कोई सुधार नजर नहीं आ रहा है वार्षिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण २०१२-१३ के अनुसार विदिशा जिले में शिशु मृत्यु दर ६५ है जबकि प्रदेश की ६२ है इसका मतलब यह है कि जिले में जन्म लेने वाले प्रत्येक एक हजार बच्चों में ६५ बच्चों की स्वास्थ्यगत कारणों से मृत्यु हो जाती है विदिशा जिले को मुख्यमंत्री अपना जिला बताते हैं तो वहीं दूसरी ओर इस क्षेत्र की सांसद सुषमा स्वराज हैं इसके बावजूद भी इस जिले की हालत यह है कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस जिले में २२९३ आंगनबाड़ी केन्द्र चालू अवस्था में हैं जिनमें कुल ७३ हजार बच्चे दर्ज हैं, इन आंगनबाडिय़ों में बच्चों के पोषण आहार एवं व्यवस्थाओं पर हर साल पचास करोड़ की राशि खर्च की जाती है इसके बावजूद भी जिले में कुपोषण कम होने का नाम नहीं ले रहा है
जिले के शिशु मृत्यु दर तथा आंगनबाड़ी में दर्ज बच्चों के आधार पर यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि जिले में प्रतिवर्ष ११०५ बच्चों की सिर्फ कुपोषण तथा कुपोषण से संबंधित कारणों से मौत हो जाती है, कुपोषण के लिए चलाए जा रहे तमाम कार्यक्रमों के बाद यदि विदिशा जिले की यह स्थिति है तो इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि राज्य के ठेठ आदिवासी जिला झाबुआ, अलीराजपुर, बड़वानी, मण्डला, डिण्डौरी, बालाघाट, जिलों के साथ-साथ अन्य जिलों की क्या स्थिति होगी जबकि विदिशा मुख्यमंत्री का जिला है
यहां यह हालत है तो बाकी जिलों की तो क्या हालत होगी यह कहना मुश्किल है। कुल मिलाकर राज्य में कुपोषण के कलंक मिटाने के लिए लाख दावे किये जा रहे हैं लेकिन धरातल पर ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा है कि इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाए जा रहे हों हां यह जरूर है कि कुपोषण के नाम पर करोड़ों रुपए का बजट खर्च किया जा रहा है, ऐसी स्थिति में तो इस प्रदेश का भगवान ही मालिक है।
भोपाल। भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल के दौरान प्रदेश पर लगे कुपोषण के कलंक को यह सरकार मिटा पाने में असफल सी साबित होती नजर आ रही है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य पर्यवेक्षण के तहत १७ राज्यों के आंकड़े जारी किए गए उसमें कुपोषण के मामले में मध्यप्रदेश दूसरे नम्बर पर है, सर्वे के अनुसार बिहार पहले नम्बर पर है जहां पर करीब ४३ फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं जबकि ४२.८ प्रतिशत आंकड़े के साथ मध्यप्रदेश दूसरे स्थान पर है, मजे की बात यह है कि इस कुपोषण के कलंक को मिटाने के लिए राज्य सरकार द्वारा करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा दिए गए और रोज नई नई योजनायें इससे मुक्ति पाने के लिए राज्य सरकार द्वारा तैयार की गई, लेकिन उसके नतीजे शून्य ही नजर आ रहे हैं। हालांकि राज्य सरकार कुपोषण को लेकर तरह-तरह के दावे करती नजर आती है।
यूं तो पूरा राज्य कुपोषण की चपेट में है लेकिन जिस विदिशा जिले को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपना जिला बताते हैं और यहां से विदेश मंत्री सुषमा स्वराज सांसद हैं, लेकिन इसके बावजूद भी इस जिले में पांच साल तक के ४० फीसद बच्चे कुपोषण के शिकार हैं तो वहीं ३७ प्रतिशत ठिगने हैं, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-चार ने जो आंकड़े जारी किए हैं वह चौंका देने वाले तो हैं ही तो वहीं इस सरकार के कुपोषण के मामले में किये जा रहे बड़े-बड़े दावों की भी पोल खुलती नजर आ रही है। सर्वे के अनुसार विदिशा जिले में करीब ३६.७ प्रतिशत बच्चों को ही जन्म के तुरंत बाद मां का दूध मिल पाता है बच्चों में कुपोषण होने के कई कारण हो सकते हैं, गर्भवती महिला को यदि भरपूर पोषण नहीं मिला तो उसका सीधा असर जन्म लेने वाले बच्चे पर पड़ता है,
साथ ही जन्म के तुरंत बाद मां का दूध नहीं मिला तो नवजात में कुपोषण की संभावना अधिक बड़ जाती है ऐसा देखा जाए तो प्रदेश के हालत भी काफी अच्छे नहीं है सर्वे में ३७.२ प्रतिशत बच्चे कम वजन के तथा ४२ फीसद बच्चे सर्वेक्षण में ठिगने पाए गए। यूं तो सरकार के दावों के अनुसार जिलों में करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद कुपोषण घटने की बजाए बढ़ते नजर आ रहे हैं ग्रामीण क्षेत्रों के हर गांव में आठ से लेकर दस बच्चे कुपोषण का शिकार हैं उसमें बासौदा के शहर के सहरिया आदिवासी का भी एक बड़ा तबका है। इस क्षेत्र के १९ गांवों में यह लोग रहते हैं गरीबी सुविधाओं की कमी के कारण इन परिवारों में कुपोषित बच्चों की संख्या अधिक रहती है, जागरूकता की कमी के कारण एक ही परिवार में छ: से सात बच्चे होते हैं जिनकी देखरेख न होने के कारण वह कुपोषण की चपेट में आ जाते हैं।
मजे की बात यह है कि राज्य सरकार भले ही लाख दावे करे और सरकार के साथ महिला बाल विकास तथा स्वास्थ्य विभाग के द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के बाद भी महिलाओं तथा बच्चों के स्वास्थ्य पर कोई सुधार नजर नहीं आ रहा है वार्षिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण २०१२-१३ के अनुसार विदिशा जिले में शिशु मृत्यु दर ६५ है जबकि प्रदेश की ६२ है इसका मतलब यह है कि जिले में जन्म लेने वाले प्रत्येक एक हजार बच्चों में ६५ बच्चों की स्वास्थ्यगत कारणों से मृत्यु हो जाती है विदिशा जिले को मुख्यमंत्री अपना जिला बताते हैं तो वहीं दूसरी ओर इस क्षेत्र की सांसद सुषमा स्वराज हैं इसके बावजूद भी इस जिले की हालत यह है कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस जिले में २२९३ आंगनबाड़ी केन्द्र चालू अवस्था में हैं जिनमें कुल ७३ हजार बच्चे दर्ज हैं, इन आंगनबाडिय़ों में बच्चों के पोषण आहार एवं व्यवस्थाओं पर हर साल पचास करोड़ की राशि खर्च की जाती है इसके बावजूद भी जिले में कुपोषण कम होने का नाम नहीं ले रहा है
जिले के शिशु मृत्यु दर तथा आंगनबाड़ी में दर्ज बच्चों के आधार पर यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि जिले में प्रतिवर्ष ११०५ बच्चों की सिर्फ कुपोषण तथा कुपोषण से संबंधित कारणों से मौत हो जाती है, कुपोषण के लिए चलाए जा रहे तमाम कार्यक्रमों के बाद यदि विदिशा जिले की यह स्थिति है तो इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि राज्य के ठेठ आदिवासी जिला झाबुआ, अलीराजपुर, बड़वानी, मण्डला, डिण्डौरी, बालाघाट, जिलों के साथ-साथ अन्य जिलों की क्या स्थिति होगी जबकि विदिशा मुख्यमंत्री का जिला है
यहां यह हालत है तो बाकी जिलों की तो क्या हालत होगी यह कहना मुश्किल है। कुल मिलाकर राज्य में कुपोषण के कलंक मिटाने के लिए लाख दावे किये जा रहे हैं लेकिन धरातल पर ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा है कि इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाए जा रहे हों हां यह जरूर है कि कुपोषण के नाम पर करोड़ों रुपए का बजट खर्च किया जा रहा है, ऐसी स्थिति में तो इस प्रदेश का भगवान ही मालिक है।
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