अवधेश पुरोहित // टीओसी न्यूज
भोपाल। आज से १२ साल पूर्व भले ही प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बिजली, पानी और सडक़ के मुद्दे की समस्या का समाधान करने के वायदे के साथ सत्ता में आई हो लेकिन इतने वर्ष गुजर जाने के बाद स्थिति यह है कि ना तो इस प्रदेश की जनता को ठीक से बिजली मिल पा रही है और न ही प्रदेश की सडक़ों में जो गुणवत्ता होना चाहिए उस गुणवत्ता के साथ प्रदेश की सडक़ें बनाई जा रही हैं हाँ यह जरूर है कि सडक़ों के नाम पर करोड़ों का खेल इस सरकार में बैठे अधिकारियों द्वारा खेला जा रहा है तो वहीं राज्य में जितनी भी बीओटी की सडक़ें एमपीआरडीसी के तहत जो सडक़ें बनाई गई हैं उसकी हालत यह है कि वह बनने के चंद दिनों बाद ही उनमें गड्ढे ही गड्ढे नजर आते हैं लेकिन इसके बावजूद भी इन सडक़ों पर चलने वाले वाहन चालकों से सरकार और टोल ठेकेदारों की दादागिरी के चलते जेब तो ढीली होती ही हैं। बात यदि भाजपा के सत्ता में आने के पहले किये गये इस प्रदेश की जनता को वायदे की बात करें तो पानी की भी लगभग यही स्थिति है, कहने को सरकार द्वारा इस समस्या के समाधान हेतु करोड़ों रुपये पानी की तरह बहा दिये गये हैं लेकिन आज भी प्रदेश की आधी से अधिक आबादी के सामने पानी की समस्या बनी हुई है पानी की इस समस्या के चलते कई गांवों के युवा आज भी कुंवारे बैठे हैं क्योंकि बिजली और पानी की समस्या के चलते कोई भी अपनी लाड़ली को इन गांव के युवाओं के साथ शादी करने को तैयार नहीं हैं, कई गांवों में स्थिति यह है कि उल्टे लडक़े वाले लडक़ी वालों को दहेज देने को तैयार हैं लेकिन फिर भी इन युवाओं की शादी नहीं हो रही है। दिग्विजय सिंह के शासनकाल में यह समस्या कुछ ज्यादा ही थी लेकिन आज इतने वर्षों बाद भी राज्य की आम जनता को ठीक तरह से बिजली नहीं मिल पा रही है बल्कि मरम्मत और आदि के नाम पर प्रतिदिन कई घंटों तक राज्यभर में बिजली कटौती का दौर जारी है। इसके बावजूद भी यह सरकार राज्य में २४ घंटे बिजली देने का दावा करते नहीं थकती, राज्य में विद्युतीकरण के नाम पर जो खेल खेला गया उसके चलते जो ट्रांसफार्मर और केबल लगाये गये उनकी स्थिति यह है कि जरा सा लोड बढऩे पर वह एक ही क्षण में जल जाते हैं, विद्युतीकरण के नाम पर करोड़ों रुपये की लागत से राज्यभर में जो खम्बे गाड़े गए उनकी स्थिति यह है कि वह ठीक से खड़े नहीं दिखाई देते हैं पूरे राज्य में जहां देखो वहां बिजली के खम्भे आड़े तिरछे नजर आएंगे यह स्थिति उस क्षेत्र की भी है जिस क्षेत्र से विद्युत मंत्री का संबंध है, लेकिन फिर भी घटनाओं को निमंत्रण दे रहे यह खम्भे आज भी सिर झुकाए यह संदेश देने में लगे हैं कि प्रदेश में बिजली व्यवस्था के सुधार के नाम पर करोड़ों का घोटाला हुआ है, बात यदि विद्युत समस्या से निजात पाने की की जाए तो इस मामले में करोड़ों रुपए तो खर्च किए गए लेकिन आज भी राज्य में ठीक से विद्युत वितरण की व्यवस्था में सुधार दिखाई दे रहा है और न ही उत्पादन के क्षेत्र में राज्य सरकार भले ही राज्य में रिकार्ड विद्युत उत्पादन का ढिंढोरा पीटने में नहीं थक रही हो लेकिन स्थिति यह है कि राज्य में लगे विद्युत संयंत्रों के रख रखाव पर करोड़ों रुपये तो खर्च प्रतिवर्ष किये जाते हैं लेकिन वह उस क्षमता से अपना उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं, इसके पीछे का जो कारण बताया जा रहा है वह यह है कि यह सरकार अपने उत्पादन बंद कर निजी कंपनियों से बिजली खरीदकर जनता को देने के पक्ष में है और अपने उत्पादन इन्हीं निजी कंपनियों को बेचने की फिराक में हैं, लगता है कि इस मामले में सरकार सफल भी होती नजर आ रही है तभी तो राज्य के अधिकांश पावर प्लांटों को इस सरकार ने बंद कर रखा है ओर जो चल रहे हैं उन्हें भी बंद करने की तैयारी की जा रही है। यह सब खेल निजी कम्पनियों को लाभ पहुंचाने का चल रहा है और इस तरह के गोरखधंधे में भ्रष्टाचार की बू भी आ रही है। हालांकि यह सिलसिला शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल के दौरान साल दर साल बढ़ता रहा और हर वर्ष तीन से पांच हजार करोड़ की बिजली निजी कंपनियों से खरीदी जाती रही इसी नीति को कारगार बनाने में १२०-१२० मेगावाट के सारणी और चचाई प्रोजेक्ट पुरानी मशीनों का बहाना लेकर बंद कर दिये गये जबकि निजी कम्पनियों से २५-२५ साल के अनुबंध इस सरकार द्वारा बिजली खरीदी करने के लिए किये गये मजे की बात यह है कि निजी कंपनियों से सस्ती दरों में बिजली मिलने के कारण राज्य से रेलवे सहित अन्य केन्द्रीय संस्थाऐं राज्य सरकार से बिजली खरीदी बंद करती जा रही हैं। प्रदेश के पांच थर्मल पॉवर प्लांटों को चलाने में भले ही करोड़ों रुपए खर्च किए गए हों पर बिजली उत्पादन १५ फीसदी (६२७ मेगावाट) ही हो पा रहा है। जबकि इनसे ४३२० मेगावाट बिजली पैदा होना चाहिए थी लेकिन इन प्लांटों में तैनात अधिकारियों द्वारा राज्य सरकार की मंशा के अनुरूप धीरे-धीरे सभी प्लांटों से बिजली उत्पादन ठप करने की रणनीति चल रही है फिर चाहे वह सारणी थर्मल पावर प्लांट की सभी छ: यूनिटें हो या संजय गांधी पावर स्टेशन की एक या फिर अमरकंटक की दो इसी क्रम में सिंगाजी की एक यूनिट से बिजली उत्पादन बंद कर दिया गया मजे की बात यह है कि जहां राज्य सरकार ने अपनी एक रणनीति के चलते अपने पावर प्लांटों को तो बंद कर दिया तो वहीं दूसरी ओर निजी क्षेत्रों से करोड़ों की बिजली खरीदी का भी सिलसिला जारी रहा। जिन कम्पनियों पर मेहरबानी करके इस सरकार ने करोड़ों रुपए की बिजली खरीदी उनके नाम हैं मेसर्स एमबी पॉवर इन्फ्रा इस यूनिट से ६५९.५६ बिजली खरीदी गई, बिजली खरीदी ३.३८ प्रति यूनिट की दर से खरीदी गई और इसका भुगतान २८७.८० करोड़ का किया गया इसी तरह से बीना पावर सप्लाई से ४७६८.३२ यूनिट बिजली खरीदी गई जिसको ५.०७ प्रति यूनिट की दर से ३०८८.७१ करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। इसी तरह मेसर्स बीएल पावर लिमिटेड से ४१२.५२ बिजली की खरीदी ४.३८ प्रति यूनिट की दर से बिजली खरदी गई और १८८.८२ करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। निजी क्षेत्रों की कंपनियों को लाभ पहुंचाने के इसी क्रम में मेसर्स जेपी पावेर वेंचर्स से ३२४७.२८ बिजली ३.०९६ की दर से खरीदी गई जिसका भुगतान एक १००३.६० करोड़ का किया गया। राज्य शासन निजी विद्युत कंपनियों से बिजली खरीदने के मामले में सबसे ज्यादा मेहरबान रही तो मेसर्स सासन अल्ट्रा मेगा पर और इसी मेहरबानी के चलते इस निजी कम्पनी से १५५०६.६८ की बिजली एक रुपये १४ पैसे प्रति यूनिट की दर से खरीदी गई जिसका भुगतान १७७४.६० करोड़ रुपये का किया गया। मेसर्स टोरंट पीटीसी से १५५०.७१ की बिजली ५.१६ पैसे प्रति यूनिट की दर से खरीदी गई जिसका भुगतान १०५०.२६ करोड़ का किया गया। निजी कम्पनियों से बिजली खरीदी के क्रम में सरकार द्वारा मेसर्स लेंको अमरकंटक से ६४०७.४५ बिजली तीन रुपये २५ पैसे की दर से खरीदी गई और इसका भुगतान २०८९.०७ करोड़ का किया गया। एक ओर जहां निजी कंपनियों से बिजली खरीदी का गोरखधंधा भी इस राज्य में जोरों से पनप रहा है तो वीं दूसरी ओर राज्य की वितरण कंपनियों को घाटा होने का दौर भी जारी रहा राज्य के चार कंपनियों में जिनमें मध्य क्षेत्र विद्युत वितराण कंपनी को १११३.०० करोड़ रुपये का हुआ तो वहीं पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी १८८७.०० के घाटे में रही लगभग यही स्थिति प. क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी की रही जिसको १८१०.०० करोड़ का घाटा हुआ। कम्पनियों को हो रहे घाटों के इस दौर में मप्र विद्युत उत्पादन कम्पनी को ८९६.८२ करोड़ रुपये का घाटा पहुंचा। राज्य में कुल मिलाकर बिजली के नाम पर जो खेला जा रहा है वह भी अपने आपमें एक अजीब है, बिजली के इस खेल के चलते जहां करोड़ों रुपये का कारोबार का दौर भी जारी है तो वहीं राज्य की विद्युत उत्पादन इकाईयों को एक सुनियोजित षडय़ंत्र के चलते धीरे-धीरे बंद कर इस प्रदेश की बिजली व्यवस्था को लचर बनाकर निजी कंपनियों के हाथों सौंपने की तैयारी में यह सरकार लगी हुई है।
भोपाल। आज से १२ साल पूर्व भले ही प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बिजली, पानी और सडक़ के मुद्दे की समस्या का समाधान करने के वायदे के साथ सत्ता में आई हो लेकिन इतने वर्ष गुजर जाने के बाद स्थिति यह है कि ना तो इस प्रदेश की जनता को ठीक से बिजली मिल पा रही है और न ही प्रदेश की सडक़ों में जो गुणवत्ता होना चाहिए उस गुणवत्ता के साथ प्रदेश की सडक़ें बनाई जा रही हैं हाँ यह जरूर है कि सडक़ों के नाम पर करोड़ों का खेल इस सरकार में बैठे अधिकारियों द्वारा खेला जा रहा है तो वहीं राज्य में जितनी भी बीओटी की सडक़ें एमपीआरडीसी के तहत जो सडक़ें बनाई गई हैं उसकी हालत यह है कि वह बनने के चंद दिनों बाद ही उनमें गड्ढे ही गड्ढे नजर आते हैं लेकिन इसके बावजूद भी इन सडक़ों पर चलने वाले वाहन चालकों से सरकार और टोल ठेकेदारों की दादागिरी के चलते जेब तो ढीली होती ही हैं। बात यदि भाजपा के सत्ता में आने के पहले किये गये इस प्रदेश की जनता को वायदे की बात करें तो पानी की भी लगभग यही स्थिति है, कहने को सरकार द्वारा इस समस्या के समाधान हेतु करोड़ों रुपये पानी की तरह बहा दिये गये हैं लेकिन आज भी प्रदेश की आधी से अधिक आबादी के सामने पानी की समस्या बनी हुई है पानी की इस समस्या के चलते कई गांवों के युवा आज भी कुंवारे बैठे हैं क्योंकि बिजली और पानी की समस्या के चलते कोई भी अपनी लाड़ली को इन गांव के युवाओं के साथ शादी करने को तैयार नहीं हैं, कई गांवों में स्थिति यह है कि उल्टे लडक़े वाले लडक़ी वालों को दहेज देने को तैयार हैं लेकिन फिर भी इन युवाओं की शादी नहीं हो रही है। दिग्विजय सिंह के शासनकाल में यह समस्या कुछ ज्यादा ही थी लेकिन आज इतने वर्षों बाद भी राज्य की आम जनता को ठीक तरह से बिजली नहीं मिल पा रही है बल्कि मरम्मत और आदि के नाम पर प्रतिदिन कई घंटों तक राज्यभर में बिजली कटौती का दौर जारी है। इसके बावजूद भी यह सरकार राज्य में २४ घंटे बिजली देने का दावा करते नहीं थकती, राज्य में विद्युतीकरण के नाम पर जो खेल खेला गया उसके चलते जो ट्रांसफार्मर और केबल लगाये गये उनकी स्थिति यह है कि जरा सा लोड बढऩे पर वह एक ही क्षण में जल जाते हैं, विद्युतीकरण के नाम पर करोड़ों रुपये की लागत से राज्यभर में जो खम्बे गाड़े गए उनकी स्थिति यह है कि वह ठीक से खड़े नहीं दिखाई देते हैं पूरे राज्य में जहां देखो वहां बिजली के खम्भे आड़े तिरछे नजर आएंगे यह स्थिति उस क्षेत्र की भी है जिस क्षेत्र से विद्युत मंत्री का संबंध है, लेकिन फिर भी घटनाओं को निमंत्रण दे रहे यह खम्भे आज भी सिर झुकाए यह संदेश देने में लगे हैं कि प्रदेश में बिजली व्यवस्था के सुधार के नाम पर करोड़ों का घोटाला हुआ है, बात यदि विद्युत समस्या से निजात पाने की की जाए तो इस मामले में करोड़ों रुपए तो खर्च किए गए लेकिन आज भी राज्य में ठीक से विद्युत वितरण की व्यवस्था में सुधार दिखाई दे रहा है और न ही उत्पादन के क्षेत्र में राज्य सरकार भले ही राज्य में रिकार्ड विद्युत उत्पादन का ढिंढोरा पीटने में नहीं थक रही हो लेकिन स्थिति यह है कि राज्य में लगे विद्युत संयंत्रों के रख रखाव पर करोड़ों रुपये तो खर्च प्रतिवर्ष किये जाते हैं लेकिन वह उस क्षमता से अपना उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं, इसके पीछे का जो कारण बताया जा रहा है वह यह है कि यह सरकार अपने उत्पादन बंद कर निजी कंपनियों से बिजली खरीदकर जनता को देने के पक्ष में है और अपने उत्पादन इन्हीं निजी कंपनियों को बेचने की फिराक में हैं, लगता है कि इस मामले में सरकार सफल भी होती नजर आ रही है तभी तो राज्य के अधिकांश पावर प्लांटों को इस सरकार ने बंद कर रखा है ओर जो चल रहे हैं उन्हें भी बंद करने की तैयारी की जा रही है। यह सब खेल निजी कम्पनियों को लाभ पहुंचाने का चल रहा है और इस तरह के गोरखधंधे में भ्रष्टाचार की बू भी आ रही है। हालांकि यह सिलसिला शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल के दौरान साल दर साल बढ़ता रहा और हर वर्ष तीन से पांच हजार करोड़ की बिजली निजी कंपनियों से खरीदी जाती रही इसी नीति को कारगार बनाने में १२०-१२० मेगावाट के सारणी और चचाई प्रोजेक्ट पुरानी मशीनों का बहाना लेकर बंद कर दिये गये जबकि निजी कम्पनियों से २५-२५ साल के अनुबंध इस सरकार द्वारा बिजली खरीदी करने के लिए किये गये मजे की बात यह है कि निजी कंपनियों से सस्ती दरों में बिजली मिलने के कारण राज्य से रेलवे सहित अन्य केन्द्रीय संस्थाऐं राज्य सरकार से बिजली खरीदी बंद करती जा रही हैं। प्रदेश के पांच थर्मल पॉवर प्लांटों को चलाने में भले ही करोड़ों रुपए खर्च किए गए हों पर बिजली उत्पादन १५ फीसदी (६२७ मेगावाट) ही हो पा रहा है। जबकि इनसे ४३२० मेगावाट बिजली पैदा होना चाहिए थी लेकिन इन प्लांटों में तैनात अधिकारियों द्वारा राज्य सरकार की मंशा के अनुरूप धीरे-धीरे सभी प्लांटों से बिजली उत्पादन ठप करने की रणनीति चल रही है फिर चाहे वह सारणी थर्मल पावर प्लांट की सभी छ: यूनिटें हो या संजय गांधी पावर स्टेशन की एक या फिर अमरकंटक की दो इसी क्रम में सिंगाजी की एक यूनिट से बिजली उत्पादन बंद कर दिया गया मजे की बात यह है कि जहां राज्य सरकार ने अपनी एक रणनीति के चलते अपने पावर प्लांटों को तो बंद कर दिया तो वहीं दूसरी ओर निजी क्षेत्रों से करोड़ों की बिजली खरीदी का भी सिलसिला जारी रहा। जिन कम्पनियों पर मेहरबानी करके इस सरकार ने करोड़ों रुपए की बिजली खरीदी उनके नाम हैं मेसर्स एमबी पॉवर इन्फ्रा इस यूनिट से ६५९.५६ बिजली खरीदी गई, बिजली खरीदी ३.३८ प्रति यूनिट की दर से खरीदी गई और इसका भुगतान २८७.८० करोड़ का किया गया इसी तरह से बीना पावर सप्लाई से ४७६८.३२ यूनिट बिजली खरीदी गई जिसको ५.०७ प्रति यूनिट की दर से ३०८८.७१ करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। इसी तरह मेसर्स बीएल पावर लिमिटेड से ४१२.५२ बिजली की खरीदी ४.३८ प्रति यूनिट की दर से बिजली खरदी गई और १८८.८२ करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। निजी क्षेत्रों की कंपनियों को लाभ पहुंचाने के इसी क्रम में मेसर्स जेपी पावेर वेंचर्स से ३२४७.२८ बिजली ३.०९६ की दर से खरीदी गई जिसका भुगतान एक १००३.६० करोड़ का किया गया। राज्य शासन निजी विद्युत कंपनियों से बिजली खरीदने के मामले में सबसे ज्यादा मेहरबान रही तो मेसर्स सासन अल्ट्रा मेगा पर और इसी मेहरबानी के चलते इस निजी कम्पनी से १५५०६.६८ की बिजली एक रुपये १४ पैसे प्रति यूनिट की दर से खरीदी गई जिसका भुगतान १७७४.६० करोड़ रुपये का किया गया। मेसर्स टोरंट पीटीसी से १५५०.७१ की बिजली ५.१६ पैसे प्रति यूनिट की दर से खरीदी गई जिसका भुगतान १०५०.२६ करोड़ का किया गया। निजी कम्पनियों से बिजली खरीदी के क्रम में सरकार द्वारा मेसर्स लेंको अमरकंटक से ६४०७.४५ बिजली तीन रुपये २५ पैसे की दर से खरीदी गई और इसका भुगतान २०८९.०७ करोड़ का किया गया। एक ओर जहां निजी कंपनियों से बिजली खरीदी का गोरखधंधा भी इस राज्य में जोरों से पनप रहा है तो वीं दूसरी ओर राज्य की वितरण कंपनियों को घाटा होने का दौर भी जारी रहा राज्य के चार कंपनियों में जिनमें मध्य क्षेत्र विद्युत वितराण कंपनी को १११३.०० करोड़ रुपये का हुआ तो वहीं पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी १८८७.०० के घाटे में रही लगभग यही स्थिति प. क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी की रही जिसको १८१०.०० करोड़ का घाटा हुआ। कम्पनियों को हो रहे घाटों के इस दौर में मप्र विद्युत उत्पादन कम्पनी को ८९६.८२ करोड़ रुपये का घाटा पहुंचा। राज्य में कुल मिलाकर बिजली के नाम पर जो खेला जा रहा है वह भी अपने आपमें एक अजीब है, बिजली के इस खेल के चलते जहां करोड़ों रुपये का कारोबार का दौर भी जारी है तो वहीं राज्य की विद्युत उत्पादन इकाईयों को एक सुनियोजित षडय़ंत्र के चलते धीरे-धीरे बंद कर इस प्रदेश की बिजली व्यवस्था को लचर बनाकर निजी कंपनियों के हाथों सौंपने की तैयारी में यह सरकार लगी हुई है।
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