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व्यापमं के पूर्व डायरेक्टर और डीमेट के कोऑर्डिनेटर व कोषाध्यक्ष योगेश उपरीत ने प्रदेश के निजी मेडिकल कॉलेजों की अरबों की काली कमाई का राज एसआईटी के सामने खोल दिया है।
निजी मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए डीमेट (डेंटल/मेडिकल एडमिशन टेस्ट) परीक्षा तो केवल औपचरिकता के लिए होती है, जिन छात्रों का सिलेक्शन होना होता था, उनकी लिस्ट कॉलेज प्रबंधन पहले ही डीमेट को थमा देता था और उन्हीं छात्रों की आंसरशीट के गोले काले किए जाते थे। डीमेट में 100 फीसदी छात्रों का सिलेक्शन गोले काले कर किया जाता था। एमबीबीएस की सीट 30 लाख व प्री-पीजी की एक सीट ब्रांच के हिसाब से 90 लाख से डेढ़ करोड़ रुपए में बिकती थी। योगेश उपरीत द्वारा किए गए इस खुलासे की जानकारी एसआईटी, हेडक्वार्टर भेजकर कार्रवाई के लिए दिशा- निर्देश मांग रही है। इस खुलासे के बाद प्रदेश के निजी मेडिकल कॉलेज भी जांच के दायरे में आ जाएंगे।
एसआईटी ने की लंबी पूछताछ जबलपुर के न्यूरोलोजिस्ट डॉ. एमएस जौहरी की बेटी डॉ. ऋचा जौहरी का प्री-पीजी में गोले काले कर सिलेक्शन कराने के आरोप में गिरफ्तार योगेश उपरीत से एसआईटी ने गुरुवार रात को लंबी पूछताछ की। उपरीत डीमेट के गठन से ही उसका कोषाध्यक्ष व कोऑर्डिनेटर है। शासन के आदेश से डीमेट का गठन होने के साथ उसके परीक्षा के नियम-कायदे योगेश उपरीत ने ही दक्षिण भारत के निजी मेडिकल कॉलेजों में होने वाली एडमिशन प्रक्रिया की कॉपी कर बनाए हैं। 50 फीसदी सीटें डीमेट से राज्य शासन के नियमानुसार 50 प्रतिशत सीटें पीएमटी के जरिए व 50 फीसदी डीमेट से भरी जाती हैं। यही गणित प्री-पीजी का है। इससे पहले निजी मेडिकल कॉलेजों में मेरिट के हिसाब से एडमिशन दिया जाता था। कॉलेज संचालकों की मनमानी रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य शासन को एडमिशन से पहले टेस्ट लेने की व्यवस्था करने के निर्देश दिए ताकि मेडिकल क्षेत्र में योग्य छात्र ही आ सकें। शासन ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करते हुए डीमेट परीक्षा की व्यवस्था की। लेकिन अपने रसूख के जरिए योगेश उपरीत ने डीमेट पर अनाधिकृत रूप से कब्जा कर लिया।
ऐसे होते थे डीमेट में गोले काले योगेश उपरीत ने एसआईटी के सामने खुलासा किया कि डीमेट का पेपर टफ बनाया जाता था, ताकि होशियार से होशियार छात्र 50 प्रतिशत से अधिक अंक हासिल नहीं कर पाएं। जबकि निजी मेडिकल कॉलेज संचालक के पास जिन छात्रों का पैसा एडवांस पहुंच जाता था उन छात्रों की सूची संचालक मुझे थमा देते थे। इन छात्रों को पहले से हिदायत होती थी कि वह आंसर शीट को खाली छोड़ देंगे। इनके गोले बाद में काले कर दिए जाते थे। इसके एवज में डीमेट के सदस्यों को मोटी रकम मिलती थी, लेकिन पूरा रोल योगेश उपरीत का होता था। रेट पहले से निर्धारित उपरीत ने एसआईटी को बताया कि एमबीबीएस व प्री-पीजी सीट के लिए रेट पहले से निर्धारित रहती थी। एमबीबीएस की एक सीट के निजी मेडिकल कॉलेज 30 लाख रुपए वसूलते थे। प्रत्येक कॉलेज में 75 के लगभग सीटें होती हैं। इसी तरह प्री-पीजी में गोले किए जाते थे।
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