पंकज बेंगाणी -
समाज जिस महिला की तस्वीर आप देख रहे हैं उसका नाम है बीबी आयशा. इस अफगान महिला का यह चित्र अमेरीका की मशहूर समाचार पत्रिका टाइम के मुखपृष्ठ पर प्रकाशित हुआ. मुखपृष्ठ का शीर्षक था -क्या होगा अगर हम अफगानिस्तान से चले जाएंगे. इस वाक्य के बाद कोई प्रश्नचिह्न नही लगा था जो काफी महत्वपूर्ण है. तो क्या यह माना जाना चाहिए कि अफगानी महिलाओं का भविष्य अंधकारमय है और तालिबान का शासन खत्म हो जाने के बाद भी उनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं आया है? इस सवाल का जवाब हाँ और ना दोनों ही है. ऊपरी तौर पर तालिबान आज अफगानिस्तान की सत्ता से बाहर हैं परंतु कथित तौर पर जनता के द्वारा चुनी हुई हामिद करज़ई के नैतृत्व वाली सरकार का आधार भी कोई बहुत बडा नहीं है और ना ही उसका पूरे देश पर नियंत्रण भी है. काबुल के बाहर का अफगानिस्तान काफी अलग है और वहाँ कबिलाई राज चलता है. ये कबीले तालिबान सहित कई कट्टरपंथी तत्वों के आदेशानुसार चलते हैं. तालिबानी शासन के खात्मे के बाद से अफगानिस्तान की स्थिति में सुधार तो आया है परंतु काबुल के बाहर इस्लामी कट्टरपंथ के बढ रहे व्याप को महसूस किया जा सकता है. महिलाएँ पहले से अधिक स्वतंत्र जरूर हुई हैं. कुछ महिला मंत्री पद तक भी पहुच चुकी है. परंतु यह बदलाव ऊपरी तौर पर ही आया हुआ लगता है. अंदरूनी वास्तविकता काफी अलग और भयावह है. अफगानिस्तान में कट्टरपंथ हावी हो रहा है और बीबी आयशा ऐसे ही कट्टरपंथ की शिकार हुई है. जब वह 12 वर्ष की थी तब उसके पिता ने उसे तथा उसकी बहन को एक तालीबानी लड़ाके को सौंप दिया था. उसके पिता के हाथों बीबी आयशा के होने वाले पति के एक रिश्तेदार का कत्ल हो गया था और उसकी भरपाई आयशा का हाथ तालीबानी लड़ाके के हाथ में देकर पूरी की गई. वह लडाका आयशा को अर्गुज़ान ले गया जहाँ उसने उसके साथ विवाह किया. उस तालिबानी अधिकतर समय 'इस्लामÓ के कथित दुश्मनों से लडऩे में ही जाता था और बीबी आयशा पर उस तालिबानी के परिवार वाले अत्याचार करते थे. एक दिन आयशा घर छोड कर भाग गई और कंदहार पहुँच गई. एक वर्ष तक वह छिपती रही परंतु एक दिन उस तालिबानी लड़ाके ने उसे ढूंढ निकाला और उसे अर्गुजान ले आया. इस्लामिक और कबिलाई रीति रिवाजों के अनुसार उस लड़ाके की नाक कट चुकी थी और उसकी भरपाई उसने आयशा के नाक और कान काट कर की. इस जघन्य कृत्य के बाद उसने आयशा को घायल अवस्था में ही छोड़ दिया. आयशा को याद नहीं कि वह कैसे वहाँ से भाग खड़ी हुई और अमेरीकी सहायता कार्यकर्ताओं की नजर में आई. ये कार्यकर्ता आयशा को एक सहायता केन्द्र ले आए. आयशा की जान बच गई परंतु उसका चेहरा बिगड चुका था. अफगानिस्तान में अमेरीकी और ब्रिटिश स्वयंसेवी संस्थाओं ने अपनी अपनी सरकारों की मदद से ऐसे कई सहायता केन्द्र खोल रखे हैं जहाँ त्याग दी गई, तलाक दे दी गई या अत्याचार की शिकार महिलाओं को रखा जाता है और उन्हें अपने पैरों पर खडे होने की शिक्षा दी जाती है. वहाँ वे काम करती हैं और नई नई विधाएँ सिखती है. भारत की सेवा नामक संस्था भी ऐसा ही कार्य करती है. परंतु ये सहायता केन्द्र भी अब कट्टरपंथियों की आँख की किरकिरी बनते जा रहे हैं. ये कट्टरपंथी इस तरह से प्रचार करते हैं कि अमेरिकियों ने सहायता केन्द्र के नाम पर वेश्यालय खोल रखे हैं और अफगानी महिलाओं का शोषण कर रहे हैं. अफगानिस्तान के एक टीवी चैनल नूरीन टीवी पर प्रतिदिन 1 घंटे का सनीसनीखेज कार्यक्रम प्रसारित होता है. एक कट्टरपंथी द्वारा प्रस्तुत यह कार्यक्रम स्टिंग ओपरेशन के सहारे यह दिखाता है कि समाज में क्या गलत हो रहा है. ऐसी ही एक रिपोर्ट में दिखाया गया कि कैसे अमेरिकी अधिकारी इन सहायता केन्द्रों को वेश्यालय बना रहे हैं. हालाँकि पूरी रिपोर्ट के दौरान ऐसा एक भी फूटेज नहीं दिखाया गया जो इस बात को साबित कर सके. परंतु इसका जमकर प्रचार किया गया. उधर अफगानी महिलाओं के लिए एक तरफ कुँआ और दूसरी तरफ खाई जैसी स्थिति हो गई है. वे कट्टरपंथ की शिकार हो रही हैं और उनके लिए सहायता केन्द्रों में रहना भी मुश्किल हो रहा है. उधर कई लोग ऐसे भी हैं जो मानते हैं कि अमेरीका अफगानिस्तान छोडना नहीं चाहता और बीबी आयशा जैसी महिलाओं के उदाहरणों का इस्तेमाल कर गलत प्रचार कर रहा है. ऐसी महिलाओं को ढाल बनाकर भावनात्मक ब्लैकमेलिंग की जा रही है. वास्तविकता चाहे जो हो परंतु बीबी आयशा के जीवन में कोई बदलाव नहीं आया है, तालिबानी शासन के दौर में भी और आज के अपेक्षाकृत मुक्त अफगानिस्तान में भी. फिलहाल आयशा अमेरीका में अपनी कॉस्मेटिक सर्जरी करवा रही हैं. एक संस्था ने इसका पूरा खर्च उठाने का बीड़ा उठाया है. परंतु आयशा अकेली नहीं है, ऐसी हजारों महिलाएँ अफगानी कट्टरपंथी समाज की जेल में कैद है.च
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