ब्रह्माकुमारीज राजयोगिनी जानकी दादीजी का जीवन परिचय : 104 वर्ष की उम्र में ब्रह्माकुमारीज संस्थान की मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी डॉ. जानकी जी का देवलोकगमन |
खबरों और जिले, तहसील की एजेंसी के लिये सम्पर्क करें : 98932 21036
ह्माकुमारीज राजयोगिनी जानकी दादीजी का जीवन परिचय : 104 वर्ष की उम्र में ब्रह्माकुमारीज संस्थान की मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी डॉ. जानकी जी का देवलोकगमन
104 वर्ष की उम्र में ब्रह्माकुमारीज संस्थान की मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी डॉ. जानकीजी का देवलोकगमन
- 91 वर्ष की उम्र में नियुक्त की गईं थीं ब्रह्माकुमारीज की मुखिया
- 46 हजार ब्रह्माकुमारी बहनों की अलौकिक मां का छूटा साथ
-140 देशों में स्थित संस्थान के 8500 सेवाकेंद्र का करतीं थी कुशल संचालन
- इतनी उम्र में भी अलसुबह ब्रह्यमुहूर्त में 4 बजे से हो जाती थीं ध्यान मग्न
- विश्व की सबसे स्थिर मन की महिला का है वल्र्ड रिकार्ड
- पिछले साल इतनी उम्र के बाद भी की थी 50 हजार किमी की यात्रा
- 12 घंटे विश्व सेवा में रहती थीं तत्पर
- 91 वर्ष की उम्र में नियुक्त की गईं थीं ब्रह्माकुमारीज की मुखिया
- 46 हजार ब्रह्माकुमारी बहनों की अलौकिक मां का छूटा साथ
-140 देशों में स्थित संस्थान के 8500 सेवाकेंद्र का करतीं थी कुशल संचालन
- इतनी उम्र में भी अलसुबह ब्रह्यमुहूर्त में 4 बजे से हो जाती थीं ध्यान मग्न
- विश्व की सबसे स्थिर मन की महिला का है वल्र्ड रिकार्ड
- पिछले साल इतनी उम्र के बाद भी की थी 50 हजार किमी की यात्रा
- 12 घंटे विश्व सेवा में रहती थीं तत्पर
दादीजी का जीवन परिचय-
- 1916 में हैदराबाद सिंध प्रांत में जन्म
- 1970 में पहली बार विदेश सेवा पर आध्यात्म का संदेश लेकर निकलीं
- 2007 में ब्रह्माकुमारीज की मुख्य प्रशासिका के रूप में संभाली संस्थान की कमान
- 100 देशों में अकेले पहुंचाया राजयोग मेडिटेशन और आध्यात्म का संदेश
- 140 देशों में हैं ब्रह्माकुमारीज संस्थान के सेवाकेंद्र
- 21 वर्ष की आयु में संस्थान से समर्पित रूप से जुड़ी
- 12 लाख से अधिक भाई-बहन वर्तमान में संस्थान से जुड़े हैं जुड़े विद्यालय से
- 14 वर्ष तक की थी गुप्त योग-साधना
- 80 फीसदी चीजें उम्र के आखिरी पड़ाव में भी रहती थीं याद।
- 1916 में हैदराबाद सिंध प्रांत में जन्म
- 1970 में पहली बार विदेश सेवा पर आध्यात्म का संदेश लेकर निकलीं
- 2007 में ब्रह्माकुमारीज की मुख्य प्रशासिका के रूप में संभाली संस्थान की कमान
- 100 देशों में अकेले पहुंचाया राजयोग मेडिटेशन और आध्यात्म का संदेश
- 140 देशों में हैं ब्रह्माकुमारीज संस्थान के सेवाकेंद्र
- 21 वर्ष की आयु में संस्थान से समर्पित रूप से जुड़ी
- 12 लाख से अधिक भाई-बहन वर्तमान में संस्थान से जुड़े हैं जुड़े विद्यालय से
- 14 वर्ष तक की थी गुप्त योग-साधना
- 80 फीसदी चीजें उम्र के आखिरी पड़ाव में भी रहती थीं याद।
27 मार्च आबू रोड (राजस्थान)। योग शक्ति की मिसाल, अद्भुत, अद्वितीय, अविश्वसनीय व्यक्त्वि की धनी 104 वर्षीय राजयोगिनी दादी डॉ. जानकी जी नहीं रहीं। उन्होंने 27 मार्च (शुक्रवार) को प्रात: 2 बजे माउंट आबू के ग्लोबल हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की मुख्य प्रशासिका दादी जानकी के देवलोकगमन से भारत सहित विश्वभर में शोक की लहर छा गई। शुक्रवार दोपहर 3.30 बजे संस्थान के अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय शांतिवन, आबू रोड में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। दादीजी के प्रति संस्थान के देश-विदेश के 8500 सेवाकेंद्र पर योग-साधना जारी। 46 हजार ब्रह्माकुमारी बहनों की अलौकिक मां और 12 लाख भाई-बहनों की प्रेरणापुंज दादी का साथ हमेशा-हमेशा के लिए छूट गया।
ब्रह्माकुमारीज के मैनेजिंग ट्रस्टी और मीडिया प्रभाग के अध्यक्ष बीके करुणा ने बताया कि आदरणीय दादी मां जानकीजी 91 वर्ष की उम्र में वर्ष 2007 में संस्थान की मुखिया नियुक्त की गईं थीं। दादीजी के कुशल मार्गदर्शन में दुनियाभर के 140 देशों में फैले प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के 8500 से अधिक सेवाकेंद्रों का संचालन किया जा रहा था। दादीजी की अथक मेहनत, त्याग-तपस्या के चलते भारतीय पुरातन संस्कृति आध्यात्म और राजयोग मेडिटेशन का संदेश उन्होंने अकेले विश्व के 100 से अधिक देशों में पहुंचाया।
बीके करुणा भाई ने बताया कि दादीजी मात्र चौथी कक्षा तक पढ़ी थीं। साथ ही 46 हजार ब्रह्माकुमारी बहनों की अलौकिक मां होने के साथ संस्थान से जुड़ी 12 लाख से अधिक नियमित विद्यार्थी (साधक) की प्रेरणापुंज भी थीं।
उम्र के इस पड़ाव पर भी वे 12 घंटे जन की सेवा में सक्रिय रहती थीं। साथ ही अलसुबह 4 बजे ब्रह्ममुहूर्त में जागरण के साथ ध्यान-साधना उनकी दिनचर्या का हिस्सा था। हमेशा युवाओं जैसा उत्साह देखने को मिलता था। साथ ही 80 फीसदी चीजें मौखिक याद रहती थीं।
विश्व की सबसे स्थिर मन की महिला का है वल्र्ड रिकार्ड
मीडिया निदेशक बीके करुणा ने बताया कि दादीजी के नाम नाम विश्व की सबसे स्थिर मन की महिला का वल्र्ड रिकार्ड भी है। अमेरिका के टेक्सास मेडिकल एवं साइंस इंस्टीट्यूट में वैज्ञानिकों द्वारा परीक्षण के बाद दादीजी को मोस्ट स्टेबल माइंड ऑफ द वल्र्ड वूमन से नवाजा था। उन्होंने योग से अपने को मन इतना संयमित, पवित्र, शुद्ध और सकारात्मक बना लिया था कि वह जिस समय चाहें, जिस विचार या संकल्प पर और जितनी देर चाहें, स्थिर रह सकती थीं। दादीजी को लोग देखकर, सुनकर, मिलकर प्रेरित हुए हैं जो आज एक अच्छी जिंदगी के राही हैं। उनका एक-एक शब्द लाखों भाई-बहनों के लिए मार्गदर्शक और पथप्रदर्शक बन जाता था।
मीडिया निदेशक बीके करुणा ने बताया कि दादीजी के नाम नाम विश्व की सबसे स्थिर मन की महिला का वल्र्ड रिकार्ड भी है। अमेरिका के टेक्सास मेडिकल एवं साइंस इंस्टीट्यूट में वैज्ञानिकों द्वारा परीक्षण के बाद दादीजी को मोस्ट स्टेबल माइंड ऑफ द वल्र्ड वूमन से नवाजा था। उन्होंने योग से अपने को मन इतना संयमित, पवित्र, शुद्ध और सकारात्मक बना लिया था कि वह जिस समय चाहें, जिस विचार या संकल्प पर और जितनी देर चाहें, स्थिर रह सकती थीं। दादीजी को लोग देखकर, सुनकर, मिलकर प्रेरित हुए हैं जो आज एक अच्छी जिंदगी के राही हैं। उनका एक-एक शब्द लाखों भाई-बहनों के लिए मार्गदर्शक और पथप्रदर्शक बन जाता था।
हैदराबाद सिंध प्रांत में 1916 में हुआ था जन्म
अविभाज्य भारत के हैदराबाद सिंध प्रांत में 1916 में जन्मी दादी जानकी ने मात्र चौथी कक्षा तक ही पढ़ाई की है। भक्ति भाव के संस्कार बचपन से ही मां-बाप से विरासत में मिले। लोगों को दु:ख, दर्द और तकलीफ, जातिवाद और धर्म के बंधन में बंधे देख आपने अल्पायु में ही समाज परिवर्तन का दृढ़ संकल्प किया। साथ ही अपना जीवन समाज कल्याण, समाजसेवा और विश्व शांति के लिए अर्पण करने का साहसिक फैसला कर लिया। माता-पिता की सहमति के बाद 21 वर्ष की आयु में आप ओम् मंडली (ब्रह्माकुमारी का पहले यही नाम था) से जुड़ गईं। ब्रह्माकुमारी•ा के संस्थापक ब्रह्माबाबा के सान्निध्य में आपने 14 वर्ष तक गुप्त तपस्या की।
अविभाज्य भारत के हैदराबाद सिंध प्रांत में 1916 में जन्मी दादी जानकी ने मात्र चौथी कक्षा तक ही पढ़ाई की है। भक्ति भाव के संस्कार बचपन से ही मां-बाप से विरासत में मिले। लोगों को दु:ख, दर्द और तकलीफ, जातिवाद और धर्म के बंधन में बंधे देख आपने अल्पायु में ही समाज परिवर्तन का दृढ़ संकल्प किया। साथ ही अपना जीवन समाज कल्याण, समाजसेवा और विश्व शांति के लिए अर्पण करने का साहसिक फैसला कर लिया। माता-पिता की सहमति के बाद 21 वर्ष की आयु में आप ओम् मंडली (ब्रह्माकुमारी का पहले यही नाम था) से जुड़ गईं। ब्रह्माकुमारी•ा के संस्थापक ब्रह्माबाबा के सान्निध्य में आपने 14 वर्ष तक गुप्त तपस्या की।
60 वर्ष की आयु में गई थीं विदेश
जब लोग खुद को कार्यों सेवानिवृत्त समझ लेते हैं उस समय 60 साल की उम्र में वर्ष 1970 दादी जानकीजी पहली बार विदेशी जमीं पर मानवीय मूल्यों और आध्यात्मिकता का बीज रोपने के लिए निकलीं। दादी ने सबसे पहले लंदन से वर्ष 1970 में ईश्वरीय संदेश की शुरुआत की। यहां वर्ष 1991 में कई एकड़ क्षेत्र में फैले ग्लोबल को-ऑपरेशन हाऊस की स्थापना की गई। धीरे-धीरे यह कारवां बढ़ता गया और यूरोप के देशों में आध्यात्म का शंखनाद हुआ। दादी के साथ हजारों की संख्या में बीके भाई-बहनें जुड़ते गए। दादीजी की कर्मठता, सेवा के प्रति लगन और अथक परिश्रम का ही कमाल है कि अकेले विश्व के सौ देशों में भारतीय प्राचीन संस्कृति आध्यात्मिकता एवं राजयोग का संदेश पहुंचाया। बाद में यह कारवां बढ़ता गया और आज 140 देशों में लोग राजयोग मेडिटेशन का अभ्यास कर रहे हैं।
जब लोग खुद को कार्यों सेवानिवृत्त समझ लेते हैं उस समय 60 साल की उम्र में वर्ष 1970 दादी जानकीजी पहली बार विदेशी जमीं पर मानवीय मूल्यों और आध्यात्मिकता का बीज रोपने के लिए निकलीं। दादी ने सबसे पहले लंदन से वर्ष 1970 में ईश्वरीय संदेश की शुरुआत की। यहां वर्ष 1991 में कई एकड़ क्षेत्र में फैले ग्लोबल को-ऑपरेशन हाऊस की स्थापना की गई। धीरे-धीरे यह कारवां बढ़ता गया और यूरोप के देशों में आध्यात्म का शंखनाद हुआ। दादी के साथ हजारों की संख्या में बीके भाई-बहनें जुड़ते गए। दादीजी की कर्मठता, सेवा के प्रति लगन और अथक परिश्रम का ही कमाल है कि अकेले विश्व के सौ देशों में भारतीय प्राचीन संस्कृति आध्यात्मिकता एवं राजयोग का संदेश पहुंचाया। बाद में यह कारवां बढ़ता गया और आज 140 देशों में लोग राजयोग मेडिटेशन का अभ्यास कर रहे हैं।
37 साल रहीं विदेश में
दादी जानकी ने वर्ष 1970 से वर्ष 2007 तक 37 वर्ष विदेश में अपनी सेवाएं दीं। इसके बाद वर्ष 2007 में संस्था की तत्कालीन मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी प्रकाशमणि के शरीर छोडऩे के बाद आपको 27 अगस्त को ब्रह्माकुमारी•ा की मुख्य प्रशासिका नियुक्त किया गया। तब से लेकर आज तक आप संस्था को कुशलतापूर्वक नेतृत्व करते हुए लाखों लोगों की प्रेरणापुंज बनी हुई हैं।
दादी जानकी ने वर्ष 1970 से वर्ष 2007 तक 37 वर्ष विदेश में अपनी सेवाएं दीं। इसके बाद वर्ष 2007 में संस्था की तत्कालीन मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी प्रकाशमणि के शरीर छोडऩे के बाद आपको 27 अगस्त को ब्रह्माकुमारी•ा की मुख्य प्रशासिका नियुक्त किया गया। तब से लेकर आज तक आप संस्था को कुशलतापूर्वक नेतृत्व करते हुए लाखों लोगों की प्रेरणापुंज बनी हुई हैं।
स्वच्छ भारत मिशन की थीं ब्रांड एंबेसेडर
ब्रह्माकुमारीज की पूरे विश्व में साफ-सफाई और स्वच्छता को लेकर विशेष पहचान रही है। देश में स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दादी जानकी को स्वच्छ भारत मिशन का ब्रांड एंबेसेडर भी नियुक्त किया था। दादी के नेतृत्व में पूरे भारतवर्ष में विशेष स्वच्छता अभियान भी चलाए गए।
ब्रह्माकुमारीज की पूरे विश्व में साफ-सफाई और स्वच्छता को लेकर विशेष पहचान रही है। देश में स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दादी जानकी को स्वच्छ भारत मिशन का ब्रांड एंबेसेडर भी नियुक्त किया था। दादी के नेतृत्व में पूरे भारतवर्ष में विशेष स्वच्छता अभियान भी चलाए गए।
दादी को पसंद था ये खाना
दादी शरीर को ठीक और खुद को हल्का रखने के लिए सुबह नाश्ते में दलिया, उपमा और फल लेती हैं। दोपहर में खिचड़ी, सब्जी लेना पसंद करती हैं। रात में सब्जियों का गाढ़ा सूप पसंदीदा आहार है। दादी वर्षों से तेल-मसाले वाले भोजन से परहेज करती हैं। भोजन करने का भी समय निर्धारित है। दादी का कहना था कि हम जैसा अन्न खाते हैं वैसा हमारा मन होता है। इसलिए सदा भोजन परमात्मा की याद में ही करना चाहिए। हमारे मन का भोजन से सीधा संबंध है।
दादी शरीर को ठीक और खुद को हल्का रखने के लिए सुबह नाश्ते में दलिया, उपमा और फल लेती हैं। दोपहर में खिचड़ी, सब्जी लेना पसंद करती हैं। रात में सब्जियों का गाढ़ा सूप पसंदीदा आहार है। दादी वर्षों से तेल-मसाले वाले भोजन से परहेज करती हैं। भोजन करने का भी समय निर्धारित है। दादी का कहना था कि हम जैसा अन्न खाते हैं वैसा हमारा मन होता है। इसलिए सदा भोजन परमात्मा की याद में ही करना चाहिए। हमारे मन का भोजन से सीधा संबंध है।
कई राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय अवार्ड से नवाजा गया
दादी को विदेश में सेवा के दौरान कई देशों में अंतरराष्ट्रीय अवार्ड से भी नवाजा गया। इसके अलावा भारत में भी कई अवार्ड से पुरस्कृत किया गया। मूल्यनिष्ठ शिक्षा एवं आध्यात्मिकता में विश्वरभर में सराहनीय योगदान देने पर दादीजी को वर्ष 2012 में गीतम विश्वविद्यालय, विशाखापट्नम ने डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया।
दादी को विदेश में सेवा के दौरान कई देशों में अंतरराष्ट्रीय अवार्ड से भी नवाजा गया। इसके अलावा भारत में भी कई अवार्ड से पुरस्कृत किया गया। मूल्यनिष्ठ शिक्षा एवं आध्यात्मिकता में विश्वरभर में सराहनीय योगदान देने पर दादीजी को वर्ष 2012 में गीतम विश्वविद्यालय, विशाखापट्नम ने डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया।
दादी सदा कहती थीं- एक ही बात याद रखती हूं मैं कौन और मेरा कौन...
दादी कहती थीं कि सब बाबा का कमाल है। सदा एक ही बात याद रखती हूं मैं कौन (एक आत्मा) और मेरा कौन (परमात्मा)। मन में हर पल एक ही संकल्प परमात्मा की याद का चलता है। बाबा देने के लिए बैठा है, दिया है दे रहा है। राजयोग मेडिटेशन तन एवं मन दोनों की दवा है। आज इसकी सभी को आवश्यकता है। परिवर्तन संसार का नियम है। जैसे कलियुग के बाद सतयुग आता है। वैसे ही रात-दिन का चक्र चलता है। यदि जीवन में नवीनता नहीं तो वह नीरस हो जाएगा। हर दिन, हर पल नया सोचें, नया करें और जीवन पथ पर आगे बढ़ते रहें। आने वाले समय में और समस्याएं बढ़ेंगी इसके लिए सभी को योगबल बढ़ाने की जरूरत है। सबका ड्रामा में अपना-अपना पार्ट है। सदा मन में एक ही संकल्प चलता है मैं कौन और मेरा कौन। परमात्मा की याद बगैर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाती हूं। हर संकल्प में उसकी याद समायी हुई रहती है। बाबा को याद नहीं करना पड़ता है बाबा स्वत: याद आता है। मन को मारो नहीं सुधारो। उसका भटकना बंद करो। एक शिव बाबा में सदा बुद्धि के तार लगे रहेंगे तो मन स्थिर हो जाएगा।
दादी कहती थीं कि सब बाबा का कमाल है। सदा एक ही बात याद रखती हूं मैं कौन (एक आत्मा) और मेरा कौन (परमात्मा)। मन में हर पल एक ही संकल्प परमात्मा की याद का चलता है। बाबा देने के लिए बैठा है, दिया है दे रहा है। राजयोग मेडिटेशन तन एवं मन दोनों की दवा है। आज इसकी सभी को आवश्यकता है। परिवर्तन संसार का नियम है। जैसे कलियुग के बाद सतयुग आता है। वैसे ही रात-दिन का चक्र चलता है। यदि जीवन में नवीनता नहीं तो वह नीरस हो जाएगा। हर दिन, हर पल नया सोचें, नया करें और जीवन पथ पर आगे बढ़ते रहें। आने वाले समय में और समस्याएं बढ़ेंगी इसके लिए सभी को योगबल बढ़ाने की जरूरत है। सबका ड्रामा में अपना-अपना पार्ट है। सदा मन में एक ही संकल्प चलता है मैं कौन और मेरा कौन। परमात्मा की याद बगैर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाती हूं। हर संकल्प में उसकी याद समायी हुई रहती है। बाबा को याद नहीं करना पड़ता है बाबा स्वत: याद आता है। मन को मारो नहीं सुधारो। उसका भटकना बंद करो। एक शिव बाबा में सदा बुद्धि के तार लगे रहेंगे तो मन स्थिर हो जाएगा।
जिन्दगी में कभी भी झूठ नहीं बोला...
दादी ने चर्चा में कहा कि आज मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि 102 साल की उम्र में भी मुझे ईश्वर और लोगों की दुआओं ने इतना भरपूर किया है कि मैं आज भी पूरी दुनिया का चक्कर लगाकर लोगों के साथ मानवीय मूल्यों को बांटती हूं तथा उन्हें नए जीवन जीने की प्रेरणा के लिए प्रेरित करती हूं। आज एक ऐसा आध्यात्मिक राज्य है जिसमें कभी सूर्य अस्त नहीं होता। मैंने पूरे जिन्दगी में कभी भी झूठ नहीं बोला है। इसी कारण आज मैं स्वस्थ हंू। साथ ही लोगों को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने की प्रेरणा देती हूं। कई देशों के प्रतिनिधियों ने मुझे अपने देश की नागरिकता देने की कोशिश की। परन्तु मुझे अपना देश भारत प्यारा है। नागरिकता देने वाले प्रतिनिधियों को भी मैंने भारत में आकर यहां की संस्कृति में घुलने और मिलने के लिए आमंत्रित करती हूं। आज मुझे गर्व है कि लाखों लोगों की जिन्दगी में एक नई रोशनी भरने का जो ईश्वर ने मुझे कार्य दिया था उसे आज भी सफलतापूर्वक कर रही हूं। मुझे यह पूर्ण विश्वास है कि एक दिन पूरे भारत को ही नहीं बल्कि सारे संसार को बदल कर ही छोड़ेंगे। झूठ नहीं बोला
दादी ने चर्चा में कहा कि आज मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि 102 साल की उम्र में भी मुझे ईश्वर और लोगों की दुआओं ने इतना भरपूर किया है कि मैं आज भी पूरी दुनिया का चक्कर लगाकर लोगों के साथ मानवीय मूल्यों को बांटती हूं तथा उन्हें नए जीवन जीने की प्रेरणा के लिए प्रेरित करती हूं। आज एक ऐसा आध्यात्मिक राज्य है जिसमें कभी सूर्य अस्त नहीं होता। मैंने पूरे जिन्दगी में कभी भी झूठ नहीं बोला है। इसी कारण आज मैं स्वस्थ हंू। साथ ही लोगों को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने की प्रेरणा देती हूं। कई देशों के प्रतिनिधियों ने मुझे अपने देश की नागरिकता देने की कोशिश की। परन्तु मुझे अपना देश भारत प्यारा है। नागरिकता देने वाले प्रतिनिधियों को भी मैंने भारत में आकर यहां की संस्कृति में घुलने और मिलने के लिए आमंत्रित करती हूं। आज मुझे गर्व है कि लाखों लोगों की जिन्दगी में एक नई रोशनी भरने का जो ईश्वर ने मुझे कार्य दिया था उसे आज भी सफलतापूर्वक कर रही हूं। मुझे यह पूर्ण विश्वास है कि एक दिन पूरे भारत को ही नहीं बल्कि सारे संसार को बदल कर ही छोड़ेंगे। झूठ नहीं बोला
दादी के सम्मान में लंदन में जानकी फाउंडेशन की स्थापना
आध्यात्मिक एवं धार्मिक लोगों के एक संगठन कीपर्स ऑफ विजडम की दादी जी सदस्य भी थीं। विश्व स्तर पर मानव आवास एवं पर्यावरण की समस्याओं से संबंधित अनेक आध्यात्मिक रूप से द्विविधा ग्रस्त स्थितियों के समाधान के लिए यह संगठन कार्य करता है। दादीजी की इसमें महती भूमिका रहती है। दादी जी के सम्मान में वर्ष 1977 में लंदन में जानकी फाउंडेशन फॉर ग्लोबल हेल्थकेयर की स्थापना की गई।
दादीजी --लिखी गईं पुस्तकें-
- विंग्स ऑफ सोल, 1999 में हीथ कम्युनिकेशन
- पल्र्स ऑफ विजडम, 1999 में हेल्थ कम्युनिकेशन द्वारा
- कम्पेनिंस ऑफ गॉड, 1999 में बीके आईएस द्वारा
- इनसाइड आउट, 2003 में बीके आईएस द्वारा
- विंग्स ऑफ सोल, 1999 में हीथ कम्युनिकेशन
- पल्र्स ऑफ विजडम, 1999 में हेल्थ कम्युनिकेशन द्वारा
- कम्पेनिंस ऑफ गॉड, 1999 में बीके आईएस द्वारा
- इनसाइड आउट, 2003 में बीके आईएस द्वारा
दादी जी की जीवन यात्रा-
- 2005 में अमेरिका की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी द्वारा दादीजी को करेज ऑफ कशेन्स अवार्ड से नवाजा गया।
- जून 2005 में काशी ह्यूमानाटेरियन अवार्ड से नवाजा गया।
- 1996 में दुनिया के 60 से अधिक देशों में बच्चों को सिखलाई जा रही लिविंग वैल्यूज इन एजुकेशन इनिशियेटिव का शुभारंभ यूनिसेफ के साथ मिलकर किया।
- 2005 में अमेरिका की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी द्वारा दादीजी को करेज ऑफ कशेन्स अवार्ड से नवाजा गया।
- जून 2005 में काशी ह्यूमानाटेरियन अवार्ड से नवाजा गया।
- 1996 में दुनिया के 60 से अधिक देशों में बच्चों को सिखलाई जा रही लिविंग वैल्यूज इन एजुकेशन इनिशियेटिव का शुभारंभ यूनिसेफ के साथ मिलकर किया।
No comments:
Post a Comment