Present by - toc news
-स्टिंग आॅपरेशन्स से आजिज आया उत्तराखंड
-हवा में तैर रही हैं कई दिग्गजों के स्टिंग की चर्चाएं
- उठ रहे हैं सवाल, आखिर क्यों दबे रह जाते हैं स्टिंग्स
देहरादून.मुख्यमंत्री हरीश रावत के सचिव के एक स्टिंग आॅपरेशन सामने आने के बाद सूबे की सियासत में तूफान मचा है। आपदा राहत घोटाले को लेकर पहले से ही हमलावर भाजपा की तो मानों मनचाही मुराद पूरी हो गई। भाजपा के लिये मुश्किलों की किलेबंदी कर रहे हरीश रावत पर प्रहार करने के लिये उसके हाथ स्टिंग की सीडी के रूप में एक नायाब ‘शस्त्र’ लगा है। आज के समय की जो राजनीतिक संस्कृति है, उस हिसाब से विपक्ष में यदि कांग्रेस भी होती तो इसी मुद्रा में होती। मगर प्रश्न उन स्टिंग आॅपरेशनों का है, जो सियासी हवाओं में तैरते हैं और उजागर होने से पहले ही बुलबुले की मानिंद गायब हो जाते हैं।
इत्तेफाक से जो सार्वजनिक होते भी हैं, उनके पीछे की मंशा पर सवालों के घेरे में होती है। दिक्कत स्टिंग आॅपरेशन्स की नहीं है, उन षडयंत्रों से है जो सार्वजनिक तो जनहित के नाम पर होते हैं, लेकिन उनके पीछे की हकीकत बेहद स्याह होती है। जहां तक हाल ही में उजागर हुये स्टिंग आॅपरेशन का सवाल है तो वह एक अफसर को कथिततौर पर आबकारी नीति के नाम पर डील करने की ‘इनसाइड स्टोरी’ को तो बता रहा है, मगर कुछ सवालों पर मौन है। मसलन, ये स्टिंग किस समय का है? दरअसल, उत्तराखंड राज्य स्टिंग आॅपरेशन्स से आजिज आ चुका है।
पिछले एक-दो साल में ही तीन स्टिंग आॅपरेशन सामने आ चुके हैं जिनमें राज्य एक विधायक और आईएएस अफसर समेत सचिवालय के दो अफसर लपेटे में आ चुके हैं। परेशान स्टिंग आॅपरेशनों से नहीं है, सवाल इनके खुलासे की ‘टाइमिंग’ को लेकर है। ज्यादा वक्त नहीं गुजरा जब राजधानी में एक कैबिनेट मंत्री के स्टिंग की सीडी उजागर होने की चर्चाएं तैर रही थीं। ऐसा लग रहा था कि देर-सबेर सीडी जारी हो ही जाएगी। लेकिन सीडी आज तक जारी नहीं हुई, क्यों? यही वह सवाल है जो स्टिंग आॅपरेशन की मंशा से जुड़ा है। वह राजनीति हो या कार्यव्यवस्था इनमें शुचिता, निष्ठा और ईमानदारी तो होनी चाहिए।
भ्रष्ट और कदाचारियों को बेनकाब करने के लिये स्टिंग उचित इलाज है। लेकिन क्या उत्तराखंड में स्टिंग आॅपरेशनों इसी मंशा से अंजाम दिया जा रहा है? यदि मंशा साफ है तो ये स्टिंग तभी क्यों नहीं जारी हो जाते हैं जब इन्हें अंजाम दिया जाता है। इन्हें जारी करने के वक्त का इंतजार क्यों किया जाता है? इससे बड़ा सवाल उन स्टिंग आॅपरेशनों का है जिनकी चर्चाएं तो हवाओं में तैरती हैं, लेकिन वे कभी बाहर नहीं आ पाते? लंबे समय से कहा-सुना जा रहा है कि दर्जन भर स्टिंग आॅपरेशन कैमरों में कैद कर लिये गए हैं? उन्हें जारी करने का अब सही वक्त नहीं आया है।
जैसे-जैसे राज्य में विधान सभी चुनाव नजदीक आएंगे, वैसे-वैसे स्टिंग आॅपरेशनों के जारी होने की चर्चाएं जोर पकड़ेंगी। हो सकता है कि इक्का-दुक्का स्टिंग आॅपरेशन जारी हो भी जाएं। मगर सवाल मीडिया का है, जो स्टिंग आॅपरेशन की मिसाइलें दागने के का ‘लांचिंग पैड’ बनकर रह गया है, मगर आॅपरेशन के सारे साइड इफेक्ट्स उसके खाते में दर्ज हो जाते हैं। यह स्टिंग आॅपरेशन की सनसनी में खो जाने का ही समय नहीं है बल्कि उसके पीछे के षडयंत्र को समझने की भी जरूरत है कि क्या वास्तव में ये जनहित में है?
रिपोर्ट-शाकेब रिज़वी पत्रकार देहरादून
-स्टिंग आॅपरेशन्स से आजिज आया उत्तराखंड
-हवा में तैर रही हैं कई दिग्गजों के स्टिंग की चर्चाएं
- उठ रहे हैं सवाल, आखिर क्यों दबे रह जाते हैं स्टिंग्स
देहरादून.मुख्यमंत्री हरीश रावत के सचिव के एक स्टिंग आॅपरेशन सामने आने के बाद सूबे की सियासत में तूफान मचा है। आपदा राहत घोटाले को लेकर पहले से ही हमलावर भाजपा की तो मानों मनचाही मुराद पूरी हो गई। भाजपा के लिये मुश्किलों की किलेबंदी कर रहे हरीश रावत पर प्रहार करने के लिये उसके हाथ स्टिंग की सीडी के रूप में एक नायाब ‘शस्त्र’ लगा है। आज के समय की जो राजनीतिक संस्कृति है, उस हिसाब से विपक्ष में यदि कांग्रेस भी होती तो इसी मुद्रा में होती। मगर प्रश्न उन स्टिंग आॅपरेशनों का है, जो सियासी हवाओं में तैरते हैं और उजागर होने से पहले ही बुलबुले की मानिंद गायब हो जाते हैं।
इत्तेफाक से जो सार्वजनिक होते भी हैं, उनके पीछे की मंशा पर सवालों के घेरे में होती है। दिक्कत स्टिंग आॅपरेशन्स की नहीं है, उन षडयंत्रों से है जो सार्वजनिक तो जनहित के नाम पर होते हैं, लेकिन उनके पीछे की हकीकत बेहद स्याह होती है। जहां तक हाल ही में उजागर हुये स्टिंग आॅपरेशन का सवाल है तो वह एक अफसर को कथिततौर पर आबकारी नीति के नाम पर डील करने की ‘इनसाइड स्टोरी’ को तो बता रहा है, मगर कुछ सवालों पर मौन है। मसलन, ये स्टिंग किस समय का है? दरअसल, उत्तराखंड राज्य स्टिंग आॅपरेशन्स से आजिज आ चुका है।
पिछले एक-दो साल में ही तीन स्टिंग आॅपरेशन सामने आ चुके हैं जिनमें राज्य एक विधायक और आईएएस अफसर समेत सचिवालय के दो अफसर लपेटे में आ चुके हैं। परेशान स्टिंग आॅपरेशनों से नहीं है, सवाल इनके खुलासे की ‘टाइमिंग’ को लेकर है। ज्यादा वक्त नहीं गुजरा जब राजधानी में एक कैबिनेट मंत्री के स्टिंग की सीडी उजागर होने की चर्चाएं तैर रही थीं। ऐसा लग रहा था कि देर-सबेर सीडी जारी हो ही जाएगी। लेकिन सीडी आज तक जारी नहीं हुई, क्यों? यही वह सवाल है जो स्टिंग आॅपरेशन की मंशा से जुड़ा है। वह राजनीति हो या कार्यव्यवस्था इनमें शुचिता, निष्ठा और ईमानदारी तो होनी चाहिए।
भ्रष्ट और कदाचारियों को बेनकाब करने के लिये स्टिंग उचित इलाज है। लेकिन क्या उत्तराखंड में स्टिंग आॅपरेशनों इसी मंशा से अंजाम दिया जा रहा है? यदि मंशा साफ है तो ये स्टिंग तभी क्यों नहीं जारी हो जाते हैं जब इन्हें अंजाम दिया जाता है। इन्हें जारी करने के वक्त का इंतजार क्यों किया जाता है? इससे बड़ा सवाल उन स्टिंग आॅपरेशनों का है जिनकी चर्चाएं तो हवाओं में तैरती हैं, लेकिन वे कभी बाहर नहीं आ पाते? लंबे समय से कहा-सुना जा रहा है कि दर्जन भर स्टिंग आॅपरेशन कैमरों में कैद कर लिये गए हैं? उन्हें जारी करने का अब सही वक्त नहीं आया है।
जैसे-जैसे राज्य में विधान सभी चुनाव नजदीक आएंगे, वैसे-वैसे स्टिंग आॅपरेशनों के जारी होने की चर्चाएं जोर पकड़ेंगी। हो सकता है कि इक्का-दुक्का स्टिंग आॅपरेशन जारी हो भी जाएं। मगर सवाल मीडिया का है, जो स्टिंग आॅपरेशन की मिसाइलें दागने के का ‘लांचिंग पैड’ बनकर रह गया है, मगर आॅपरेशन के सारे साइड इफेक्ट्स उसके खाते में दर्ज हो जाते हैं। यह स्टिंग आॅपरेशन की सनसनी में खो जाने का ही समय नहीं है बल्कि उसके पीछे के षडयंत्र को समझने की भी जरूरत है कि क्या वास्तव में ये जनहित में है?
रिपोर्ट-शाकेब रिज़वी पत्रकार देहरादून