जिला प्रतिनिधि // डी. जी. चौरे (बालाघाट // टाइम्स ऑफ क्राइम)
जिला प्रतिनिधि डी. जी. चौर से सम्पर्क 93023 02479
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मध्यप्रदेश के गिने चुने अस्पताल में ही बालाघाट चिकित्सालय के जैसी स्वच्छता देखने को मिलेगी जिला चिकित्सालय बालाघाट में स्वच्छता के नाम पर उसका कोई सानी नहीं है। जिला चिकित्सालय बालाघाट में चिकित्सा के नाम पर आँसु पोंछने वाला कार्य किया जा रहा है। चिकित्सालय में भर्ती मरीजों को दवाई के नाम पर सस्ती दवाई दी जाती है। मरीजों के लिए चिकित्सालय में दवाईयाँ उपलब्ध नहीं है। मरीजों को सभी दवाईयाँ बाहर से लेनी पड़ती है। परंतु बाहर की दवाई लिखने की मनाई है और डॉक्टर से विनती करने पर ही डॉक्टर बाहर की दवाई लिखता है गरीब आदमी ना जी सकता है और ना मर सकता है, जिस डॉक्टर बाहर की दवाई लिखता है गरीब आदमी ना जी सकता है और ना मर सकता है, जिस डॉक्टर के द्वारा मरीज भर्ती होता है वहीं डॉक्टर मरीज को देखता है, दूसरे डॉक्टर के द्वारा भर्ती किये गये मरीज पर डॉक्टर ध्यान नहीं रखता। चाहे वह डॉक्टर छुट्टी पर क्यों न गया हो, मरीज की हालत अधिक खराब या सिरियस होने पर नागपुर रिफर कर दिया जाता है। जिला चिकित्सालय की सोनोग्राफी ठीक न होना आश्चर्य की बात है, जिला शासकीय चिकित्सालय होने के बावजूद सोनोग्राफी खराब होना आश्चर्य की बात है, डॉक्टर सोनोग्राफी खराब कहकर अपने निजी अस्पताल में सोनोग्राफी करवाते हैं, जिसमें मरीज से 500 से 900 रूपये तक वसूली करते है दीनदयाल पचार योजना के अंतर्गत 20,000 हजार रूपये तक दवा देने का प्रावधान है। परंतु मरीज को अस्पताल से दवाई के नाम पर नाम मात्र की दवाई उपलब्ध होती है, अन्यथा बाहरी दुकान से ही दवाई मंगाई जाती है, ऑपरेशन के लिए भी इंजेक्शन एवं अन्य दवाईयां बाहर से मंगाई जाती है। भर्ती होने वाले मरीज से नर्स एवं कर्मचारी मरीजों के सहायक रिश्तेदारों से बतमिजी से पेश आते हैं। अत: मरीज के सहायक रिश्तेदार नर्स एवं अन्य कर्मचारियों से बात करने से डरते है अन्यथा उन्हें डाँट खानी पड़ती है, जिला प्रशासन एवं जिला चिकित्सालय विभाग के उच्चाधिकारियों के मिलीभगत का परिणाम है जो शासन से मिलने वाली सुविधा के अंतर्गत गरीबों को करोड़ों रूपया दीनदयाल अंत्योदय उपचार के नाम पर मंत्री एंव अधिकारी डकार रहे है एवं साथ ही मुख्यमंत्री एवं लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री अपने नाम का प्रचार कर रहे हैं।
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