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भारत के संविधान के अनुच्छेद १४ में कहा गया है कि कानून के सामने प्रत्येक व्यक्ति को एक समान समझा जायेगा और प्रत्येक व्यक्ति को कानून का एक समान संरक्षण प्रदान किया जायेगा| जिसके तहत प्रत्येक अपराधी के विरुद्ध एक समान कानूनी कार्यवाही करना भी शामिल है, लेकिन इसके बावजदू भी पिछले कुछ समय से भारत में कुछ इस प्रकार की घटनाएँ हो रही हैं, जिन्हें जान, समझ और पढकर मैं ये सोचने को विवश हूँ कि इस देश में कानून का मतलब क्या है? कानून किन लोगों के लिये है? कानून कब और कैसे काम करता है? इस देश में संविधान का मतलब क्या है? इस देश में कानून किस चिड़िया का नाम है? इतने सारे सवाल दिमांग में उठ रहे हैं कि उनका उत्तर खोजना मुश्किल हो रहा है| इसलिये सवालों की फेहरिस्त बढाने के बजाय तथ्यों को ही पाठकों सामने रखना ठीक होगा :-
आसाराम के खिलाफ बलात्कार का मुकदमा दर्ज हो जाने और बलात्कारित पीड़िता नाबालिग लड़की के मजिस्ट्रेट के समक्ष दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा १६४ के तहत कलमबन्द बयान दर्ज हो जाने के उपरान्त भी राजस्थान पुलिस आसाराम को गिरफ्तार करने के बजाय, आसाराम के समक्ष सात घंटे तक इन्तजार करने के बाद आसाराम को समन देकर आयी और ये अनुरोध करके आयी कि आप जोधपुर आकर पुलिस के समक्ष पेश हों, जिससे कि आपसे आपके विरुद्ध बलात्कार जैसे गंभीर अपराध के बारे में दर्ज मुकदमे के सम्बन्ध में जरूरी पूछताछ की जा सके| जबकि इन हालातों में कानून में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है| मुझे नहीं मालूम कि कानून के इतिहास में कभी भी इस प्रकार के अन्य मामले में आरोपी को समन देकर पुलिस द्वारा पूछताछ के लिये बुलाया गया हो?
आसाराम को समन देने के समय भारतीय जनता पार्टी के विधायक पुलिस को देखकर नारे लगाते रहे, ‘‘बापू तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं|’’ लेकिन इस बारे में किसी प्रकार की कोई जानकारी नहीं है कि मध्य प्रदेश की पुलिस ने एक अपराधी को बचाने और राजस्थान की पुलिस को आसाराम को समन देने में व्यवधान उत्पन्न करने के आरोप में आज तक भाजपा के उक्त विधायक के विरुद्ध कोई कानूनी कार्यवाही की हो या कोई मुकदमा दर्ज किया गया हो!
आसाराम को अन्तत: गिरफ्तार किये जाने से पूर्व आसाराम और उसके समर्थकों की ओर से राजस्थान की सराकर को आगामी चुनावों में परिणाम भुगतने की चेतावनी दी गयी और यहॉं तक कि आसाराम को गिरफ्तार नहीं करने के एवज में पुलिस के समक्ष रिश्वत की भी पेशकश की गयी, लेकिन राजस्थान पुलिस की ओर से इन्दौर में इस बारे में आसाराम या उसके समर्थकों के विरुद्ध आज तक कोई मुकदमा दर्ज किया गया हो, इसकी भी कोई सूचना सामने नहीं आयी है|
आसाराम को गिरफ्तार किये जाने के बाद आसाराम के कथित भक्तों ने अनेक राज्यों में सड़कों पर उतरकर राजस्थान सरकार और केन्द्रीय सरकार के विरुद्ध नारेबाजी की जो राज्य की संवैधानिक शक्ति को चुनौती देना है, लेकिन मुझे नहीं पता कि एक भी व्यक्ति के विरुद्ध किसी भी राज्य में सार्वजनिक रूप से किये गये इस अपराध के बारे में कोई मुकमा दर्ज किया गया हो?
आसाराम को बलात्कार जैसे संगीन आरोप में नामजद रिपोर्ट दर्ज होने के करीब तीन सप्ताह बाद गिरफ्तार किये जाने का भी अनेक राजनेताओं और कथित साधु-संतों की ओर से ये कहकर विरोध किया गया कि आसाराम के खिलाफ की गयी कार्यवाही हिन्दू धर्म के विरुद्ध सरकारी षड़यंत्र है| इसके उपरान्त भी ऐसे लोगों के विरुद्ध आज तक कोई कानूनी कार्यवाही किये जाने की जानकारी नहीं है|
आसाराम के गिरफ्तार होते से ही, उसके आश्रमों की ओर से किये गये गैर-कानूनी अतिक्रमणों के बारे में हर दिन सरकारों द्वारा कानूनी कार्यवाही की जाने की खबरें आ रही हैं, लेकिन ऐसा अतिक्रमण किये जाने के समय जिन अधिकारियों ने आसाराम का सहयोग किया था, उनके विरुद्ध किसी प्रकार की कानून कार्यवाही किये जाने के बारे में या किसी प्रकार की आगे कार्यवाही की जायेगी, इसके बारे में कोई खबर या जानकारी जनता के सामने नहीं आ रही है|
आसाराम ने कोर्ट को लिखकर दिया कि उसे त्रिनाड़ी दोष है तो उसकी सम्पूर्ण शारीरिक जॉंच करवा दी गयी, जिसमें राज्य सरकार के खजाने से हजारों रुपये खर्च किये गये हैं| जबकि यदि किसी आम कैदी या बंदी को भयंकर शारीरिक तकलीफ हो तो भी कारागार पुलिस द्वारा उसकीे सम्पूर्ण जॉंच करवाना तो दूर उसे जेल से बाहर के अस्पताल में ले जाकर उपचार करवाने के बारे में तब तक नहीं सोचा जाता, जब तक कि वह पूरी तरह से अधमरा नहीं हो जाये!
आखिर ये सब क्या और क्यों हो रहा है?
क्या आसाराम के बारे में कानून आसाराम के अनुसार ही कार्य कर रहा है या फिर सभी राज्यों की सरकारें आसाराम से बुरी तरह से डरी हुई हैं? या फिर कोई भी व्यक्ति जो धर्म का चोला ओढ लेता है तो वो इतना महान हो जाता है, कि उसके खिलाफ देशभर का मीडिया जब तक एकजुट होकर चिल्लाने नहीं लगे, तब तक सरकारों द्वारा उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही करना जरूरी नहीं समझा जाता है और मजबूरी में कानूनी कार्यवाही की खानापूरी कर भी दी जाती है तो फिर उपरोक्त प्रकार के आपराधिक मामलों के बारे में सरकारों की ओर से कोई कार्यवाही प्रारम्भ नहीं किया जाना किस बात का द्योतक है? इससे जनता को क्या संदेश मिल रहा है? जनता बार-बार ये जानना चाहती है कि इस देश में यदि कानून का राज है तो फिर आसाराम के मामले में कानून कहॉं सो रहा है? कानून किस चिड़िया का नाम है? ये कैसी कानूनी चिड़िया है जो सरकार जब चाहे चुप और सरकार जब चाहे बोलने लगती है!
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