नरसिंहपुर से सलामत खान की रिपोर्ट.......
(टाइम्स ऑफ क्राइम)
नरसिंहपुर। जामा मस्जिद नरसिंहपुर में एक बोर्ड टंगा है जिसमें लिखा है, यह मसलके आला हजरत की मस्जिद है, मसलके आला हजरत के अलावा दूसरे वातिल फिरके के मानने वालों को मस्जिद में दाखिल होने की इजाजत नहीं हैं, इस प्रकार से मसलके आला हजरत को न मानने वाली अन्य तबके के लोगों के साथ आये दिन विवाद की स्थिती निर्मित होती रहती है, जिस पर एक सामूहिक आवेदन पत्र होम्यो एवं विधिक सहायता समिति नरसिंहपुर को दिया गया, तब समिति की ओर से एडवोकेट राजेन्द्र तिवारी द्वारा जनहित याचिका हाईकोर्ट में दायर की गई।
अधिवक्ता इकबाल अहमद द्वारा उनका पक्ष कार्यवाहक मुख्य न्यायाधिपति केके लाहोटी एवं न्यायाधिपति सुभाष काकड़े की युगलपीठ के समक्ष रखा गया,उन्होंने बताया कि प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी मस्जिद में जाने से नहीं रोका जा सकता चाहे वह किसी भी तबके का क्यों न हो, इसका प्रावधान हमारे देश के संविधान के अनुच्छेद 25 में है एवं किसी अन्य तबके को मस्जिद में प्रवेश से रोकना संविधान के अनुच्छेद 25 का स्पष्ट उलंघन है, इसी प्रकार मुस्लिम विधि में भी 218 के अनुसार जब भी किसी मस्जिद का निर्माण किसी विशेष तबके द्वारा कराया जाता है तो वह मस्जिद जब तक निर्माणाधीन है तब तक बनाने वाले का कब्जा उस पर हो सकता है एवं उसमें प्रत्येक फिरके या तबके का व्यक्ति नमाज पढ़ सकता है।
दिया फैसलों का हवाला- एड. इकबाल अहमद के अनुसार मस्जिद में इस प्रकार की रोक टोक का कानून विरोधी है इस हेतु इलाहाबाद उच्च न्यायालय तीन न्यायाधीशों बैंच द्वारा 30 सितंवर 1954 को दिये गये फैसले मो वासी एवं अन्य विरूद्ध बच्चन साहब व अन्य प्रकरण एआईआर 1955 आल 68 में प्रतिपादित सिद्धांतों का हवाला दिया जिसके अनुसार मस्जिद में कोई भी मुसलमान किसी भी तबके का जाकर नमाज पढ़ सकता है, मस्जिद किसी विशेष तबके के लिये आरक्षित नहीं की जा सकती, किसी को नमाज पढऩे से रोकना या मस्जिद में आने से रोकना कानूनन अपराध है। उपरोक्त बहस सुनने के बाद न्यायधीश द्वारा जनहित याचिका स्वीकार करते हुये, शासन के गृह विभाग, अध्यक्ष मप्र वक्फ बोर्ड भेपाल, कलेक्टर एवं पुुलिस अधीक्षक नरसिंहपुर, अध्यक्ष इंतजामिया कमेटी जामा मस्जिद नरसिंहपुर एवं शहर काजी तथा पेश इमाम जामा मस्जिद नरसिंहपुर को चार सप्ताह में जबाब पेश करने हेतु नोटिस जारी किये गये।
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अधिवक्ता इकबाल अहमद द्वारा उनका पक्ष कार्यवाहक मुख्य न्यायाधिपति केके लाहोटी एवं न्यायाधिपति सुभाष काकड़े की युगलपीठ के समक्ष रखा गया,उन्होंने बताया कि प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी मस्जिद में जाने से नहीं रोका जा सकता चाहे वह किसी भी तबके का क्यों न हो, इसका प्रावधान हमारे देश के संविधान के अनुच्छेद 25 में है एवं किसी अन्य तबके को मस्जिद में प्रवेश से रोकना संविधान के अनुच्छेद 25 का स्पष्ट उलंघन है, इसी प्रकार मुस्लिम विधि में भी 218 के अनुसार जब भी किसी मस्जिद का निर्माण किसी विशेष तबके द्वारा कराया जाता है तो वह मस्जिद जब तक निर्माणाधीन है तब तक बनाने वाले का कब्जा उस पर हो सकता है एवं उसमें प्रत्येक फिरके या तबके का व्यक्ति नमाज पढ़ सकता है।
दिया फैसलों का हवाला- एड. इकबाल अहमद के अनुसार मस्जिद में इस प्रकार की रोक टोक का कानून विरोधी है इस हेतु इलाहाबाद उच्च न्यायालय तीन न्यायाधीशों बैंच द्वारा 30 सितंवर 1954 को दिये गये फैसले मो वासी एवं अन्य विरूद्ध बच्चन साहब व अन्य प्रकरण एआईआर 1955 आल 68 में प्रतिपादित सिद्धांतों का हवाला दिया जिसके अनुसार मस्जिद में कोई भी मुसलमान किसी भी तबके का जाकर नमाज पढ़ सकता है, मस्जिद किसी विशेष तबके के लिये आरक्षित नहीं की जा सकती, किसी को नमाज पढऩे से रोकना या मस्जिद में आने से रोकना कानूनन अपराध है। उपरोक्त बहस सुनने के बाद न्यायधीश द्वारा जनहित याचिका स्वीकार करते हुये, शासन के गृह विभाग, अध्यक्ष मप्र वक्फ बोर्ड भेपाल, कलेक्टर एवं पुुलिस अधीक्षक नरसिंहपुर, अध्यक्ष इंतजामिया कमेटी जामा मस्जिद नरसिंहपुर एवं शहर काजी तथा पेश इमाम जामा मस्जिद नरसिंहपुर को चार सप्ताह में जबाब पेश करने हेतु नोटिस जारी किये गये।
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