प्रतिनिधि // शेख अज्जू (नरसिंहपुर // टाइम्स ऑफ क्राइम)
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नरसिंहपुर। जिला नरसिंहपुर 23 साल पहले संपूर्ण साक्षर जिला घोषित कर दिया गया पर संपूर्ण साक्षर जिले को रविवार को अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस की याद नहीं रही। साक्षरता होने के दो- दो स्तंभ सूने पड़ रहे। संपूर्ण साक्षर जिला होने के तथ्य यह है कि दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्र के लोग अब भी अंगूठा लगा रहे है। उनके नाम का राशन पानी और योजनाओं के हक का लाभ दूसरे ले रहे हैं।
आज से 23 वर्ष पहले सन् 1990 में नरसिंहपुर जिले को संपूर्ण साक्षर जिला घोषित किया गया था। यह प्रदेश का पहला व भारत का ऐसा दूसरा जिला था जो संपूर्ण साक्षर घोषित था। पहला जिला केरल प्रांत का एर्नाकुलम रहा इसके बाद नरसिंहपुर जिले को घोषित किया गया। जिले में साक्षरता की अलख जगाने कई करोड़ रुपये की योजनाएं अनवरत चलती रहीं। पहले साक्षरता कार्यक्रम फिर उत्तरोत्तर साक्षरता फिर महिला पढऩा-बढऩा, फिर पूरक साक्षरता कार्यक्रम, प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम चलें और फिर 1990 को जिले को संपूर्ण साक्षर घोषित किया। यद्यपि इसके बाद यूनेस्को ने यह अपत्ती दर्ज करायी थी कि कोई जिला संपूर्ण साक्षरता कैसे हो सकता है। 15 से 35 वर्ष आयु वर्ग के लोगों को ही साक्षर किया गया पर कई ऐसे है जो कहीं न कहीं अभियान से अछूते रहें। साक्षरता अभियान की स्थिति यह है कि साक्षर बनाने प्रेरक, मास्टर ट्रेनर खूब बनाए गये। बजट भी खूब रहा। साक्षरता भी कागजों में शत प्रतिशत पहुंच गई। साक्षरता को बढ़ाने के लिए जिले में कई करोड़ रुपये से 990 पुस्तकालय एवं संस्कृति केंद्र खोले गए। पर अब किसी एक भी गांव में यह केंद्र देखने को नहीं मिलेंगे। साक्षरता के कार्यक्रम के संबंध में मुख्यालय में दो- दो स्मृति स्तंभ उपेक्षा के शिकार हैं।
पढ़ा- लिखा न होए पर नरसिंहपुरिया होए
कागजों में दावे- प्रतिदावे गढ़ जाते रहें तो सरकारी आंकड़ों के इतर आमजनों ने यह डायलाग बुलंद किए कि पढ़ा लिखा न होए पर नरसिंहपुरिया होए। आज भी यह डायलाग लोगों की जुबान पर रहती है।
पढ़ा लिखा है हर इंसान
वर्ष 1990 में जब जिला संपूर्ण साक्षर घोषित हो गया तब यह नारा बुलंद किया गया कि नरसिंहपुर की नई पहचान पढ़ा लिखा है हर इंसान। नारे के साथ- साथ लोगों में साक्षरता की अलख जगाने के प्रयास हुए पर आरोप यह लगते रहे मैदानी कार्य अपेक्षा कृत कमजोर रहें।
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