TOC NEWS @ अवधेश पुरोहित
भोपाल । यूँ तो वर्तमान राजनीति के चलते कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका के साथ-साथ जो लोकतंत्र का चौथा स्तंभ पत्रकारिता को माना जाता है वह पूरी तरह से इस समय दिशा विहीन हो गया जिसके चलते इस समय जो कुछ हो रहा है
वह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है, मजे की बात यह है कि इसी दौर में लोकतंत्र का मंदिर कहे जाने वाले विधानसभा में वर्षों से बहुत कुछ होता आया है और उसको लेकर हमेशा समाचार सुर्खियों में रहे हैं बात यदि मध्यप्रदेश विधानसभा की करें तो जिन पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी और मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कार्यकाल के दौरान विधानसभा में हुई फर्जी भर्ती को लेकर जो हंगामा पूरे प्रदेश की राजनीति में मचा और अंतत: इस संपूर्ण मामले की रिपोर्ट जिस विधानसभा के कर्मचारी मैथिल ने की, उसी मैथिल को इस तरह की रिपोर्ट दर्ज कराने को लेकर उसकी सेवा निवृत्ति होने के बाद उसकी सेवायें बढ़ा दी गई और अब वही विधानसभा प्रदेश में फर्जी नियुक्तियों का दौर प्रारंभ कर रही है। हाल ही में विधानसभा में सहायक ग्रेड-तीन के २४ पदों पर भर्ती को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं
इस मामले को लेकर आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति ने भर्ती कि नियमों की अनदेखी का आरोप लगाते हुए शिकायत सीएम सचिवालय को की है। मजे की बात यह है कि जिन श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी के कार्यकाल के दौरान हुई नियुक्तियों को लेकर बवाल उठाने वाले जिम्मेदार ही अब विधानसभा में सीधी भर्ती और विभिन्न निगमों से प्रतिनियुक्ति पर लाकर संविलियन करने में लगे हुए हैं ऐसा ही एक मामला एलके दलवानी का है जो प्रतिनियुक्ति पर आवास संघ से यहाँ आए थे और अब खाद्य आपूर्ति निगम के एक अधिकारी विधानसभा में प्रतिनियुक्ति पर जाकर संविलियन करने की जुगाड़ में लगे हुए हैं,
राज्य विधानसभा में जिस तरह से पिछले दरवाजे से भर्ती का दौर चल रहा है उसे लेकर तरह-तरह की चर्चाएं व्याप्त हैं, मजे की बात यह है कि लोकतंत्र के इस मंदिर में जहां पिछले दरवाजे से भर्तियों का दौर जारी है और पिछले दिनों एक ऐसी भर्ती की गई जिसमें उम्मीदवार टाइपिंग परीक्षा में तो फेल पाया गया लेकिन लोकतंत्र के इस मंदिर के अधिकारियों की कारगुजारी के चलते उसको भर्ती कर लिया गया। लोकतंत्र के इस मंदिर विधानसभा में जहाँ अपनों को उपकृत करने का रास्ता निकालकर सीधी भर्ती तो की ही जा रही है तो वहीं सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भी अवहेलना की जा रही है। यह मामला केवल लोकतंत्र के इस मंदिर विधानसभा का ही नहीं बल्कि प्रदेश में भर्ती नियमों को संशोधन को लेकर तीन सांसद, तीन मंत्री, पचास विधायकों ने सेवा भर्ती नियम १९८७ में संशोधन करने की मांग की लेकिन ना तो राज्य शासन ने इन अपने जनप्रतिनिधियों की मांग पर गौर किया और न ही लोकतंत्र के इस मंदिर विधानसभा में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को भी ताक में रखते हुए सीधी भर्ती का दौर जारी है,
जबकि आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति ने इस तरह की भर्ती पर सवाल उठाते हुए इसकी व्यापमं या उचित माध्यम से भर्ती की प्रक्रिया अपनाने की मांग की है लेकिन इसी विधानसभा में हुई श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को उस दौरान की गई भर्ती का दोषी मानते हुए विधानसभा के एक कर्मचारी मैथिल द्वारा एफआईआर तक दर्ज कराई गई लेकिन अब इसी विधानसभा के कर्ताधर्ता उसी तर्ज पर चलकर सीधी भर्ती करने में लगे हुए हैं। यही नहीं वह सुप्रीम कोर्ट के द्वारा सामान्य प्रशासन विभाग को ऐसे मामले में दिये गये निर्देशों को भी ताक में रखा जा रहा है, सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष २००६ में उमादेवी बनाम कर्नाटक सरकार के प्रकरण में सरकारी भर्ती में सभी को समान अधिकार देने का फैसला सुनाया था,
कोर्ट ने कहा था कि जो भी नियुक्तियां खुली प्रतियोगिता से नहीं होती हैं वे संविधान के अनुच्छेद १४ और १६ का खुला उल्लंघन है, लेकिन लोकतंत्र के जिस मंदिर में नियम, कायदे बनाये जाते हैं उसी लोकतंत्र के मंदिर में इस तरह की अनदेखी को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं व्याप्त हैं तो वहीं पिछले दिनों हुई इसी विधानसभा में की गई नियुक्तियों को लेकर और वर्तमान में जिन नियुक्तियों की भर्ती करने की प्रक्रिया जारी है उसको लेकर लोग यह चर्चा करते नजर आ रहे हैं कि एक ओर जहां इसी लोकतंत्र के कर्ताधर्ता पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी व दिग्विजय सिंह के कार्यकाल के दौरान की गई नियुक्तियों पर सवाल खड़े कर मामला एसटीएफ तक पहुंचा दिया गया और अब वही लोकतंत्र के मंदिर के कर्ताधर्ता जहाँ पूर्व विधानसभा अध्यक्ष के कार्यकाल के दौरान हुई निुयक्तियों को एसटीएफ तक पहुँचाने में एक क्षण नहीं रुके अब वही एक नये एसटीएफ में मामला दर्ज कराने के प्रयास में लगे हुए हैं तभी तो जहाँ वर्तमान अध्यक्ष के कार्यकाल के दौरान एक ओर जहां सीधी भर्ती का दौर जारी है तो वहीं दूसरी ओर विभिन्न निगमों के अधिकारी यहाँ विधानसभा में अपनी प्रतिनियुक्ति पर पहुंचकर विधानसभा में संविलियन करने की तैयारी में लगे हुए हैं।
हालांकि कानून के जानकार यह कहते हैं कि भले ही राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी व पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कार्यकाल के दौरान विधानसभा में हुई सीधी भर्ती की नियुक्तियों को लेकर तमाम भाजपा द्वारा बवाल मचाकर इन राजनेताओं की छवि धूमिल करने का प्रयास किया गया हो लेकिन वर्तमान में भी इस तरह की सीधी भर्ती को लेकर भी कुछ न कुछ खेल करने में यह भाजपाई लगे हुए हैं तो विधानसभा में हो रही भर्तियों को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं व्याप्त हैं, तो वहीं कई लोकतंत्र के इस मंदिर के कर्ताधर्ताओं को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं चटकारे लेकर देखे जा रहे हैं।
भोपाल । यूँ तो वर्तमान राजनीति के चलते कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका के साथ-साथ जो लोकतंत्र का चौथा स्तंभ पत्रकारिता को माना जाता है वह पूरी तरह से इस समय दिशा विहीन हो गया जिसके चलते इस समय जो कुछ हो रहा है
वह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है, मजे की बात यह है कि इसी दौर में लोकतंत्र का मंदिर कहे जाने वाले विधानसभा में वर्षों से बहुत कुछ होता आया है और उसको लेकर हमेशा समाचार सुर्खियों में रहे हैं बात यदि मध्यप्रदेश विधानसभा की करें तो जिन पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी और मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कार्यकाल के दौरान विधानसभा में हुई फर्जी भर्ती को लेकर जो हंगामा पूरे प्रदेश की राजनीति में मचा और अंतत: इस संपूर्ण मामले की रिपोर्ट जिस विधानसभा के कर्मचारी मैथिल ने की, उसी मैथिल को इस तरह की रिपोर्ट दर्ज कराने को लेकर उसकी सेवा निवृत्ति होने के बाद उसकी सेवायें बढ़ा दी गई और अब वही विधानसभा प्रदेश में फर्जी नियुक्तियों का दौर प्रारंभ कर रही है। हाल ही में विधानसभा में सहायक ग्रेड-तीन के २४ पदों पर भर्ती को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं
इस मामले को लेकर आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति ने भर्ती कि नियमों की अनदेखी का आरोप लगाते हुए शिकायत सीएम सचिवालय को की है। मजे की बात यह है कि जिन श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी के कार्यकाल के दौरान हुई नियुक्तियों को लेकर बवाल उठाने वाले जिम्मेदार ही अब विधानसभा में सीधी भर्ती और विभिन्न निगमों से प्रतिनियुक्ति पर लाकर संविलियन करने में लगे हुए हैं ऐसा ही एक मामला एलके दलवानी का है जो प्रतिनियुक्ति पर आवास संघ से यहाँ आए थे और अब खाद्य आपूर्ति निगम के एक अधिकारी विधानसभा में प्रतिनियुक्ति पर जाकर संविलियन करने की जुगाड़ में लगे हुए हैं,
राज्य विधानसभा में जिस तरह से पिछले दरवाजे से भर्ती का दौर चल रहा है उसे लेकर तरह-तरह की चर्चाएं व्याप्त हैं, मजे की बात यह है कि लोकतंत्र के इस मंदिर में जहां पिछले दरवाजे से भर्तियों का दौर जारी है और पिछले दिनों एक ऐसी भर्ती की गई जिसमें उम्मीदवार टाइपिंग परीक्षा में तो फेल पाया गया लेकिन लोकतंत्र के इस मंदिर के अधिकारियों की कारगुजारी के चलते उसको भर्ती कर लिया गया। लोकतंत्र के इस मंदिर विधानसभा में जहाँ अपनों को उपकृत करने का रास्ता निकालकर सीधी भर्ती तो की ही जा रही है तो वहीं सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भी अवहेलना की जा रही है। यह मामला केवल लोकतंत्र के इस मंदिर विधानसभा का ही नहीं बल्कि प्रदेश में भर्ती नियमों को संशोधन को लेकर तीन सांसद, तीन मंत्री, पचास विधायकों ने सेवा भर्ती नियम १९८७ में संशोधन करने की मांग की लेकिन ना तो राज्य शासन ने इन अपने जनप्रतिनिधियों की मांग पर गौर किया और न ही लोकतंत्र के इस मंदिर विधानसभा में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को भी ताक में रखते हुए सीधी भर्ती का दौर जारी है,
जबकि आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति ने इस तरह की भर्ती पर सवाल उठाते हुए इसकी व्यापमं या उचित माध्यम से भर्ती की प्रक्रिया अपनाने की मांग की है लेकिन इसी विधानसभा में हुई श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को उस दौरान की गई भर्ती का दोषी मानते हुए विधानसभा के एक कर्मचारी मैथिल द्वारा एफआईआर तक दर्ज कराई गई लेकिन अब इसी विधानसभा के कर्ताधर्ता उसी तर्ज पर चलकर सीधी भर्ती करने में लगे हुए हैं। यही नहीं वह सुप्रीम कोर्ट के द्वारा सामान्य प्रशासन विभाग को ऐसे मामले में दिये गये निर्देशों को भी ताक में रखा जा रहा है, सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष २००६ में उमादेवी बनाम कर्नाटक सरकार के प्रकरण में सरकारी भर्ती में सभी को समान अधिकार देने का फैसला सुनाया था,
कोर्ट ने कहा था कि जो भी नियुक्तियां खुली प्रतियोगिता से नहीं होती हैं वे संविधान के अनुच्छेद १४ और १६ का खुला उल्लंघन है, लेकिन लोकतंत्र के जिस मंदिर में नियम, कायदे बनाये जाते हैं उसी लोकतंत्र के मंदिर में इस तरह की अनदेखी को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं व्याप्त हैं तो वहीं पिछले दिनों हुई इसी विधानसभा में की गई नियुक्तियों को लेकर और वर्तमान में जिन नियुक्तियों की भर्ती करने की प्रक्रिया जारी है उसको लेकर लोग यह चर्चा करते नजर आ रहे हैं कि एक ओर जहां इसी लोकतंत्र के कर्ताधर्ता पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी व दिग्विजय सिंह के कार्यकाल के दौरान की गई नियुक्तियों पर सवाल खड़े कर मामला एसटीएफ तक पहुंचा दिया गया और अब वही लोकतंत्र के मंदिर के कर्ताधर्ता जहाँ पूर्व विधानसभा अध्यक्ष के कार्यकाल के दौरान हुई निुयक्तियों को एसटीएफ तक पहुँचाने में एक क्षण नहीं रुके अब वही एक नये एसटीएफ में मामला दर्ज कराने के प्रयास में लगे हुए हैं तभी तो जहाँ वर्तमान अध्यक्ष के कार्यकाल के दौरान एक ओर जहां सीधी भर्ती का दौर जारी है तो वहीं दूसरी ओर विभिन्न निगमों के अधिकारी यहाँ विधानसभा में अपनी प्रतिनियुक्ति पर पहुंचकर विधानसभा में संविलियन करने की तैयारी में लगे हुए हैं।
हालांकि कानून के जानकार यह कहते हैं कि भले ही राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी व पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कार्यकाल के दौरान विधानसभा में हुई सीधी भर्ती की नियुक्तियों को लेकर तमाम भाजपा द्वारा बवाल मचाकर इन राजनेताओं की छवि धूमिल करने का प्रयास किया गया हो लेकिन वर्तमान में भी इस तरह की सीधी भर्ती को लेकर भी कुछ न कुछ खेल करने में यह भाजपाई लगे हुए हैं तो विधानसभा में हो रही भर्तियों को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं व्याप्त हैं, तो वहीं कई लोकतंत्र के इस मंदिर के कर्ताधर्ताओं को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं चटकारे लेकर देखे जा रहे हैं।
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