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*भोपाल* आम आदमी पार्टी के प्रदेश संयोजक आलोक अग्रवाल ने मौजूदा भाजपा सरकार के आखिरी पूर्ण बजट को उद्देश्य से भटका हुआ और आम आदमी की मुश्किलों को बढ़ाने वाला करार दिया। एक प्रेस रिलीज में उन्होंने कहा कि अपने बजट भाषण की शुरुआत ही वित्त मंत्री ने झूठ से की। वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार ने किसानों को लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया है। यह बात सिरे से झूठ है। पिछले साल के मुकाबले इस साल नवंबर में उड़द के दाम 4396 रुपए प्रति क्विंटल तक सस्ती बिकी। सोयाबीन, मूंग, मक्का और तुअर का भी यही हाल है। उन्होंने कहा कि किसानों के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है। वह महज कर्ज देकर किसानों को खुशहाल करना चाहती है, जबकि सभी जानते हैं कि देश के मेहनतकश किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य देकर ही मुश्किल से उबारा जा सकता है। देश की जनता जानती है कि इस बजट में आम आदमी और छोटे व्यापारियों के लिए कुछ भी नहीं है।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने मौजूदा बजट में काफी सारी घोषणाएं ऐसी की हैं, जिनके नतीजे सामने आने में तीन से पांच साल का वक्त लगेगा। ऐसे में यह घोषणाएं सरकार को अपने पहले बजट में करनी चाहिए थीं। जैसे शिक्षा सुधार के लिए जो 1 लाख करोड़ रुपए दिए हैं, वे चार साल के लिए दिए गए हैं। इसके अलावा किसानों की आमदनी और आवास योजनाओं को एक बार फिर दोहराया है। लेकिन सरकार की असली मंशा महज लोगों को लुभाने की ओर कथित अच्छे दिनों की तस्वीर दिखाने की है। सरकार लोगों को लुभाने की इस कोशिश में भी पूरी तरह सफल नहीं हो पाई है। यह बजट असल में बड़े उद्योगपतियों को योजनाओं के माध्यम से लाभ पहुंचने का एक और उपाय भर साबित होगा। उन्होंने कहा कि सरकार शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत जरूरतों के लिए काफी कम आवंटन दिया है।
उन्होंने कहा कि एक तरफ सरकार स्मार्ट सिटी मिशन के तहत 99 शहरों को 2.04 लाख करोड़ रुपए दे रही है, लेकिन देश के 6 लाख 70 हजार गांवों में मूलभूत सुविधाओं के लिए कोई योजना नहीं है। उन्होंने कहा कि रेलवे के लिए वित्त मंत्री जी ने 1.48 लाख करोड़ रुपए का आवंटन दिया है। रेल किराया काफी बढ़ाने के बावजूद सुरक्षा को लेकर किसी ठोस योजना को नहीं दिया है। आम जनता रेलगाडिय़ों की भीड़ से परेशान है, लेकिन सरकार नई रेलें न चलाकर हवाई जहाज उड़ाने की तैयारी कर रही है। इससे साफ हो जाता है कि सरकार की प्राथमिकता में कौन लोग हैं।
उन्होंने कहा कि कृषि सिंचाई योजना के लिए 2600 करोड़ रुपए बेहद कम हैं। खेतों तक पानी पहुंचाने की मुकम्मल व्यवस्था के लिए कम से कम 10 हजार करोड़ रुपए दिए जाने चाहिए थे। वित्तमंत्री जी का झूठ यह भी है कि नोटबंदी से काले पैसे पर लगाम लगी है। नोटबंदी के बाद भी पुराने नोट सामने आने की घटनाओं में कमी नहीं आई है। उन्होंने कहा कि वित्त मंत्री जी ने देश में 7.5 फीसदी विकास दर की उम्मीद जताई है, लेकिन उनके चेहरे पर ही साफ था कि वे अपनी ही घोषणा के प्रति आश्वस्त नहीं हैं। मौजूदा नीतियों से साढ़े सात फीसदी की विकास दर पाना नामुमकिन लगता है। वैसे भी भाजपा सरकार दो अंकों की विकास दर का दावा करती थी, जो अब आठ प्रतिशत का दावा भी नहीं कर पा रही है।
उन्होंने कहा कि सरकारी कंपनियों के शेयर बेचकर 80 हजार करोड़ जुटाने की जो कवायद कर रही है, वह असल में बड़े उद्योगपतियों को फायदा पहुंचने की एक और कोशिश है।
उन्होंने कहा कि एक तरफ सरकार न्यूनतम गवर्नेंस की बात करती है, लेकिन डायरेक्ट टैक्स में 12.6 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होने के बावजूद वित्तीय घाटा कम 5.95 लाख करोड़ रुपए रहा है। इससे साफ है कि सरकार ने खर्च में कटौती की कोशिश नहीं की है। उन्होंने कहा कि प्रत्यक्ष कर की सीमा न बढ़ाकर भी सरकार ने आम आदमी की उम्मीदों से खिलवाड़ किया है। इसके विपरीत लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर टैक्स लगाकर मध्य वर्ग की उम्मीदों को तोड़ा है।
- - चार साल पहले जो घोषणाएं करनी चाहिए थीं, उन्हें अपने आखिरी पूर्ण बजट में सामने लाई है सरकार
- - लोगों को लुभाने की कोशिश की है, लेकिन फिर भी अपनी असली मंशा से नहीं बच पाई भाजपा सरकार
- - लुभावनी तस्वीर दिखाकर आम आदमी को लूटने की कोशिश कर रहे हैं जेटली
*भोपाल* आम आदमी पार्टी के प्रदेश संयोजक आलोक अग्रवाल ने मौजूदा भाजपा सरकार के आखिरी पूर्ण बजट को उद्देश्य से भटका हुआ और आम आदमी की मुश्किलों को बढ़ाने वाला करार दिया। एक प्रेस रिलीज में उन्होंने कहा कि अपने बजट भाषण की शुरुआत ही वित्त मंत्री ने झूठ से की। वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार ने किसानों को लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया है। यह बात सिरे से झूठ है। पिछले साल के मुकाबले इस साल नवंबर में उड़द के दाम 4396 रुपए प्रति क्विंटल तक सस्ती बिकी। सोयाबीन, मूंग, मक्का और तुअर का भी यही हाल है। उन्होंने कहा कि किसानों के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है। वह महज कर्ज देकर किसानों को खुशहाल करना चाहती है, जबकि सभी जानते हैं कि देश के मेहनतकश किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य देकर ही मुश्किल से उबारा जा सकता है। देश की जनता जानती है कि इस बजट में आम आदमी और छोटे व्यापारियों के लिए कुछ भी नहीं है।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने मौजूदा बजट में काफी सारी घोषणाएं ऐसी की हैं, जिनके नतीजे सामने आने में तीन से पांच साल का वक्त लगेगा। ऐसे में यह घोषणाएं सरकार को अपने पहले बजट में करनी चाहिए थीं। जैसे शिक्षा सुधार के लिए जो 1 लाख करोड़ रुपए दिए हैं, वे चार साल के लिए दिए गए हैं। इसके अलावा किसानों की आमदनी और आवास योजनाओं को एक बार फिर दोहराया है। लेकिन सरकार की असली मंशा महज लोगों को लुभाने की ओर कथित अच्छे दिनों की तस्वीर दिखाने की है। सरकार लोगों को लुभाने की इस कोशिश में भी पूरी तरह सफल नहीं हो पाई है। यह बजट असल में बड़े उद्योगपतियों को योजनाओं के माध्यम से लाभ पहुंचने का एक और उपाय भर साबित होगा। उन्होंने कहा कि सरकार शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत जरूरतों के लिए काफी कम आवंटन दिया है।
उन्होंने कहा कि एक तरफ सरकार स्मार्ट सिटी मिशन के तहत 99 शहरों को 2.04 लाख करोड़ रुपए दे रही है, लेकिन देश के 6 लाख 70 हजार गांवों में मूलभूत सुविधाओं के लिए कोई योजना नहीं है। उन्होंने कहा कि रेलवे के लिए वित्त मंत्री जी ने 1.48 लाख करोड़ रुपए का आवंटन दिया है। रेल किराया काफी बढ़ाने के बावजूद सुरक्षा को लेकर किसी ठोस योजना को नहीं दिया है। आम जनता रेलगाडिय़ों की भीड़ से परेशान है, लेकिन सरकार नई रेलें न चलाकर हवाई जहाज उड़ाने की तैयारी कर रही है। इससे साफ हो जाता है कि सरकार की प्राथमिकता में कौन लोग हैं।
उन्होंने कहा कि कृषि सिंचाई योजना के लिए 2600 करोड़ रुपए बेहद कम हैं। खेतों तक पानी पहुंचाने की मुकम्मल व्यवस्था के लिए कम से कम 10 हजार करोड़ रुपए दिए जाने चाहिए थे। वित्तमंत्री जी का झूठ यह भी है कि नोटबंदी से काले पैसे पर लगाम लगी है। नोटबंदी के बाद भी पुराने नोट सामने आने की घटनाओं में कमी नहीं आई है। उन्होंने कहा कि वित्त मंत्री जी ने देश में 7.5 फीसदी विकास दर की उम्मीद जताई है, लेकिन उनके चेहरे पर ही साफ था कि वे अपनी ही घोषणा के प्रति आश्वस्त नहीं हैं। मौजूदा नीतियों से साढ़े सात फीसदी की विकास दर पाना नामुमकिन लगता है। वैसे भी भाजपा सरकार दो अंकों की विकास दर का दावा करती थी, जो अब आठ प्रतिशत का दावा भी नहीं कर पा रही है।
उन्होंने कहा कि सरकारी कंपनियों के शेयर बेचकर 80 हजार करोड़ जुटाने की जो कवायद कर रही है, वह असल में बड़े उद्योगपतियों को फायदा पहुंचने की एक और कोशिश है।
उन्होंने कहा कि एक तरफ सरकार न्यूनतम गवर्नेंस की बात करती है, लेकिन डायरेक्ट टैक्स में 12.6 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होने के बावजूद वित्तीय घाटा कम 5.95 लाख करोड़ रुपए रहा है। इससे साफ है कि सरकार ने खर्च में कटौती की कोशिश नहीं की है। उन्होंने कहा कि प्रत्यक्ष कर की सीमा न बढ़ाकर भी सरकार ने आम आदमी की उम्मीदों से खिलवाड़ किया है। इसके विपरीत लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर टैक्स लगाकर मध्य वर्ग की उम्मीदों को तोड़ा है।
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