Saturday, February 17, 2018

सहज संवाद / समाज को पुष्ट करती है सक्षम लोगों की उदारवादी प्रकृति से उगने वाली फसल

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 सहज संवाद / डा. रवीन्द्र अरजरिया
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सहज संवाद / डा. रवीन्द्र अरजरिया

सामाजिक विकास के सरोकार को मूर्त रूप देने के लिए सरकारी सुविधाओं और योजनाओं की देश में भरमार है। आम आदमी से जुडी विभिन्न विभागों की परियोजनाओं में गैर सरकारी संस्थाओं की भागीदारी का प्रतिशत निरंतर बढता जा रहा है। इस बढते प्रतिशत के सापेक्ष ऐसी संस्थाओं द्वारा कागजी आंकडों के आधार पर व्यक्तिगत लाभ कमाने का अनुपात भी शीर्षगामी हो रहा है।

समाज को जागरूक करने, विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों को संचालित करने, आंकडे एकत्रित करने, स्थल निरीक्षण करने, धरातली आख्या तैयार करने, जनभागीदारी सुनिश्चित करने जैसे सैकडों कारकों की पूर्ति के लिए प्रभावशाली लोगों से संबंधित समाज सेवी संस्थाओं को दायित्व दिया जाने लगा है। प्रभावशाली व्यक्तियों में प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर राजनेताओं तक के नाम शामिल हैं, जिन पर अंगुली उठाने का अर्थ स्वयं के अनिष्ट को आमंत्रित करने जैसा होता है।
यही कारण है कि उत्तरदायी संस्थाओं की नकारात्मक स्थिति मिलने के बाद भी समानान्तर निरीक्षण करने वाले परियोजना आधिकारियों में वास्तविक आख्या प्रस्तुत करने का साहस पैदा ही नहीं हो पाता। नौकरी पर असुरक्षा भारी पडने लगती है। कटीले जंगलों के मध्य सदियों से निवास करने वाले पूर्वजों के वर्तमान अंशधारियों की कठिन जिन्दगी को लेखनी से कागज पर उकेरने, उकेरी गई तस्वीर को प्रकाशित करने तथा जनकल्याण का ढिंढोरा पीटने वालों को आइना दिखाने की नियत से हम भी दुर्गम इलाकों के दौरे पर निकल पडे। पठारी क्षेत्र के बंजर इलाके में बसे एक गांव में हम पहुंचे ही थे, कि सामने से एक सफेद रंग की कार तथा पीले रंग की वैन आकर गांव की चौपाल पर रुकी। बच्चों से लेकर बूढों तक का हुजूम दौड पडा।
कार से एक दम्पत्ति तथा वैन से कुछ कर्मचारी उतरे। बच्चों ने चरण स्पर्श, बडों ने प्रणाम और वृद्धों ने आशीष देकर दम्पत्ति का स्वागत किया। मैले, कुचैले और अधफटे वस्त्रों में लिपटे लोगों को उन्होंने गले से लगाया। छोटे बच्चों को गोद में उठाया, दुलारा और फिर टाफियां बांटी। सभी की कुशलक्षेम पूछी। तब तक कर्मचारियों ने वैन का दरवाजा खिसका दिया था। ठिठुरते मौसम में ऊनी कपडे, स्वीटर, मफलर, टोपा, शाल, कम्बल आदि बांटे गये। भोजन के पैकेट सहित अन्य आवश्यकताओं की वस्तुओं का वितरण किया गया। हम दूर से ही पूरा नजारा देखते रहे। लगभग एक घंटे चले इस क्रम के उपरान्त जब वह दम्पत्ति जाने लगी तो हमने अपनी गाडी से बाहर आकर उनका अभिवादन किया। बहुत विनम्रता से उन्होंने प्रतिउत्तर देते हुए परिचय पूछती नजरों से घूरा।
हमने अपना परिचय देकर उनका जानने की इच्छा व्यक्त की। विपिन अवस्थी और अंजू अवस्थी नाम के साथ स्वयं को संगम सेवालय का एक अदना सा कार्यकर्ता बताया। इस कार्य के लिये प्रेरित होने से लेकर संगम सेवालय की स्थापना आदि के विवरण प्राप्त करने की इच्छा हुई। महानगरीय चकाचौध से दूर अभावग्रस्त लोगों की कहानियों का उल्लेख करते हुए विपिन जी ने कहा कि मीडिया के माध्यम से दूर दराज के इलाकों की दुःखद स्थितियां काल्पनिक कथानकों की तरह समय-समय पर सामने आती रहीं। हमने भी विवाह के बाद इन कहानियों को नजदीक से देखने का मन बनाया। सपत्नीक यात्रा पर निकल पडे। कठिन ही नहीं बल्कि कठिनतम स्थितियों से साक्षात्कार हुआ। अभावों में चलती सांसों को निकटता से महसूस किया।
पीडा भरे शब्द सीसे की तरह कानों में पहुंचे। आत्मा को अन्दर तक झकझोरने वाले दृष्टान्त सामने आये। हम दौनों ने अपने जीवन के शेष बचा भाग, इन जीवित जीवनियों को समर्पित करने का संकल्प ले लिया। संगम सेवालय की स्थापना की। दो से चार और चार से अनेक होने का क्रम चल निकला। सहयोग में उठने वाले हाथों की संख्या निरंतर बढती चली गई। विकास के क्रम पर विस्तार पा रही चर्चा को बीच में ही रोकते हुए हमने उन्हें संस्था की स्थापना पर बधाई देते हुए इस प्रयास में सरकारी भागीदारी को रेखांकित करने को कहा। हमारे प्रश्न की गेंद को कैच करते हुए अंजू जी ने मोर्चा सम्हाला। संस्थागत प्रयासों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि सरकारी भागीदारी तो सीधी समाज के साथ होना चाहिये। आम आवाम के टैक्स से होने वाली आय पर पूरे समाज का सीधा अधिकार है।
हम किसी भी प्रकार के मध्यस्थ नहीं बनना चाहते। समाज को पुष्ट करती है सक्षम लोगों की उदारवादी प्रकृति से उगने वाली फसल। नाम, पहचान और अहम् को पुष्ट करने वाले कृत्यों से परहेज रखते हुए हम काम, काम और केवल काम करने पर विश्वास रखते हैं। सरकार अपने दायित्वों को बखूबी समझती है। उसकी अपनी नीतियां, रीतियां और अनुशासन हैं। हम इस सब से परे जन-सहयोग द्वारा जन-सहयोग हेतु जन-सहयोग में सक्रिय हैं। गरीब छात्रों को सुविधायें, अभावग्रस्तों को सहयोग और जरूरतमंदों की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु हम अपनी आखिरी सांसों तक संगम सेवालय को सक्रिय रखेंगे। आत्मविश्वास से भरे शब्दों, उनके गूढ अर्थों तथा प्रचार से दूर कृत्यों ने सरकार द्वारा वित्तपोषित समाज सेवी संस्थाओं और वास्तविक समाज सेवी संस्थाओं में धरातली भेद उजागर कर दिया। बात चल ही रही थी कि फोन की घंटी बज उठी।
फोन हमारे कार्यालय का था, सो उसे सुनना जरूरी हो गया। फिर कभी उनकी संस्था, संस्था के कार्यों और अन्य सहयोगियों को नजदीक से जानने हेतु मिलने का आश्वासन देकर हमने अपनी चर्चा को फिलहाल पूर्ण विराम लगाया। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए खुदा हाफिज।

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