डॉ. शशि तिवारी
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जनता द्वारा चुनी सरकार का सबसे अहम् दायित्व जनता के हितों का संरक्षण करते हुए देश को प्रगति के पथ पर ले जाए एवं जनप्रतिनिधि के रूप में विभिन्न संवैधानिक पदों के माध्यम से जनता का सेवक बन देश में अमन एवं खुशहाली का वातावरण निर्मित करें। लेकिन सब कुछ उलटा-पुलटा हो रहा है शासन में बैठे जनप्रतिनिधि अपने को राजा एवं जनता को भिखारी समझ रहे है।toc news internet channel
आज सत्ता के मद में ये इतने मदमस्त एवं अहंकारी हो गए हैं कि जिस जनता से भीख में मांगे गए वोट पर राजा बने वही अपने दायित्वों से मुुंह-मोड़ न केवल जनता के साथ धोखा दे रहे हैं बल्कि बड़े-बड़े पूंजीपतियों से मिल उन्हें सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर रहे हैं? जिससे चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है, आज जनता को ऐसा एहसास हो रहा है कि देश में सरकार नाम की कोई चीज है भी या नहीं? इनकी मक्कारी के नित नए किस्से रोजाना छप रहे है, इन्हें देखकर तो ऐसा लगता है कि चोरों का कोई गिरोह सरकार के रूप में कार्य कर रहा है। आज सबसे बड़ा संकट विधायी पालिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका की आपसी टकराहट का है।
विधायीपालिका एवं कार्य पालिका में आपसी गठबंधन चोर-चोर मौसेरे भाई की तर्ज पर कार्य कर रहे हैं, जब-जब न्यायपालिका ने अपने न्याय के चाबुक को इनकी मोटी चमड़ी पर बरसाया है तब-तब ये सियार की भांति एक जुट हो न्यायपालिका को कोसने, भलाबुरा कहने में एक स्वर में जुट जाते हैं, इस तरह के मुद्दों पर इन सभी का एका भी गजब का होता है, मक्कारी एवं भ्रष्टाचार पर इनका गठबंधन लाजवाब होता है। यहां यक्ष प्रश्न उठता है आखिर न्यायपालिका को सरकार के काम-काज में दखलंदाजी करने की आवश्यकता ही क्यों पड़ी? बड़ा सीधा-सपाट उत्तर होगा मंत्री एवं जन प्रतिनिधि अपने कर्तव्यों का निर्वाह ठीक से नहीं कर रहे है, आज भ्रष्ट एवं आला दर्जे के निकम्मों को जब मंत्री पदों से नवाजा जायेगा तो हर किसी का इनसे विश्वास उठना भी तय है? बात यहीं आकर नहीं रूकती इन्हीं भ्रष्टों को देख अफसरों के अंर्तमन में भी कुछ इसी तरह की इच्छा बलवती होती जा रही है और गरीबों के पैसों को अपना ही मान हजम करने के सौ नायाब तरीके भी इजाद कर रहे हैं। पहले जेल और लोकलाज का डर था, अब तो ये इस कदर बेशर्म हो गए हैं कि इसे ही शान और स्टेट्स सिम्बॉल मानने लगे हैं।
यहां पुन: यक्ष प्रश्न उठ खड़ा होता है जब हर समस्या का निराकरण न्यायालयों को ही करना हे तो सरकार का क्या काम? जिस प्रकार न्यायालय एक के बाद एक चाबुक सरकार को लगा रही है उससे तो ऐसा ही लगता है फिर बात चाहे काले धन की हो या गोदामों में अनाज सडऩे की हो या आदर्श सोसायटी की हो या अन्य घोटालों की हो, फोन टेपिंग मामले की हो, प्रधानमंत्री ने क्यों नहीं देखा? इन्हें सजा क्यों नहीं दी? मंत्री मंडल से बाहर का रास्ता क्यों नहीं दिखाया? ऐसे भ्रष्टों की वैसे लंबी सूची है प्रधानमंत्री को जनता को जवाब देना ही होगा, भाजपा के नेता लालकृष्ण आडवाणी कहते हैं कि मेरे पास कालेधन वालों के नाम है? शरद यादव बोलते हैं मेरे पास नाम है आखिर ये लोग मीडिया के माध्यम से जनता के सामने इनके नाम उजागर क्यों नहीं करते ? क्या सरकार से कोई ब्लेकमेंलिंग का इरादा है।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक सुनवाई में कहा कि ''पर्सनल कानूनों में सुधार की सरकारी कोशिशों हिन्दु समुदाय से आगे नहीं बढ़ती है, यह समुदाय परंपरागत कानूनों में सरकार द्वारा होने वाली ऐसी कोशिशों के प्रति सहिष्णु रहता है लेकिन इस मामले में धर्म निरपेक्ष रूझान का अभाव दिखता है क्योंकि ऐसा अन्य धर्मों के मामले में नहीं किया जाता। हिन्दुओं के ही कानून क्यों बदले जाते है? इससे अब सरकार की नियत एवं धर्म निरपेक्षता की छदमता पर प्रश्न उठा खड़ा हो गया है? इसी तरह सुप्रीम कोर्ट ने सभी जिला एवं हाईकोर्ट को भ्रष्टाचार में संलिप्त नेताओं के मामलों को शीघ्र निपटाने के निर्देश दिये हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने पन बिजली परियोजना के ठेके में पद दुरूपयोग करने के मामले में केरल के पूर्व ऊर्जा मंत्री आर.बालकृष्णन पिल्लई को एक साल की सजा के साथ दस हजार रूपये का जुर्माना भी लगाया है।
कोर्ट ने ऐसा कर आज के दिशाहीन माहोल को एक दिशा देने का सार्थक प्रयास किया है। अब ऐस लगने लगा है कि देश के संवैधानिक पद अब बड़ी राजनैतिक पार्टियों की बपोती बनते जा रहे हैं राजस्थान के पंचायत राज्यमंत्री अमीन खां ने एक रहोस्याद्घाटन किया कि जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री नहीं थी तब प्रतिभा पाटिल उनके निवास पर रसोई में चाय और भोजन बनाती थी उनके इसी समर्पण के कारण आज राष्ट्रपति बनी है इसमें क्या सच्चाई है ये राम जाने बरहाल महामहिम के बारे में दिये गए वक्तव्य का समय किसी भी सूरत में उचित नहीं कहा जा सकता। हाँ एक बात सर्वमान्य है कि आज बड़े-बड़े संवैधानिक पदों पर तभी पहुं्रच सकते हो जब किसी राजनीतिक पार्टी का आर्शीवाद प्राप्त है।
यह सही है संसद कानून बनाती है यहां यक्ष प्रश्न उठता है किसके लिए? सभी के लिए या सांसदों को छोड़ केवल निरीह जनता के लिए? क्यों नहीं सभी मिलकर ऐसा कानून पारित करा लेते हैं कि जिसमें सांसदों, विधायकों सभी तरह के जनप्रतिनिधियों को लूट-चोरी, भ्रष्टाचार का पूरा-पूरा अधिकार होगा? उन पर भारत की किसी भी कोर्ट में केस नहीं चल सकेगा? इससे दो बड़े फायदे होंगे पहला कोर्ट के सामने अपमानित या जेल नहीं जाना पड़ेगा दूसरा इनके मूल अधिकारों में सम्मिलित हो जायेगा ताकि ये मनमाफिक लूट, भ्रष्टाचार एवं उपद्रव मचा सकें। वैसे भी सभी एक स्वर में एक मिनट में अपने वेतन भत्ते चाहे जब बढ़ा लेते हैं जनता जाए भाड़ में ऐसा लगता है अब कानून निर्माताओं में बुद्धि विवेक नहीं रहा है। ये ही तथा कथित जनप्रतिनिधि अपने-अपने निजी तो कभी पार्टी के स्वार्थ के चलते जनता को भड़का देश की शासन की संपत्ति को आग, तोडफ़ोड़ के हवाले कर देते हैं। सरकार केैसे बनती है? सांसद और विधायकों की खरीद-फरोख्त कैसे होती है? किसी से छिपी नहीं है। अब वक्त आ गया है जनप्रतिनिधियों को ऐसे कुकर्मों, घिनाने कृत्यों से बचना ही होगा नहीं तो न्यायालयों को ही इनकी औकात बताना पड़ेगी।
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