Wednesday, February 9, 2011

खूबसूरत वादियों व प्राचीन धरोहरों को लगी नजर

ब्यूरो प्रमुख // डा. मकबूल खान (छतरपुर // टाइम्स ऑफ क्राइम)
ब्यूरों प्रमुख से सम्पर्क : 99260 03805
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छतरपुरबुन्देलखण्ड का इतिहास गरिमामय होने के साथ शोर्य वाला भी है। राजकालीन समय में बनबायी गई धरोहरों के साथ जंगल की खूबसूरत वादिया यहां की शान है जो कि अब कुछ धूमिल होती नजर आ रही है। बेजोड़ शिल्पकला के लिए विश्वभर में मशहूर पर्यटन नगरी खजुराहो के मंदिर घूमने के लिए प्रतिवर्ष हजारों की तादाद में देशी एवं विदेशी पर्यटक आते है जो कि खजुराहो व आसपास को घूमकर चले जाते है। बदले में पर्यटन विभाग व शासन को करोड़ों रूपये के राजस्व का लाभ हो जाता है। जिसमें वे खुश नजर आ रहे है।

बुन्देलखण्ड की धरती को ईमानदार अधिकारियों की दरकार,
धुबेला संग्रहालय को छोड़कर सब जर्जर

पर सोचने वाला मुद्दा है कि अगर जीर्ण-शीर्ण हालत में पड़ी बेशुमार प्राचीन इमारतों को पुन: बुलन्द कर दिया जाये तो विभाग को हजारों करोड़ रूपये की आमदनी का रास्ता और खुल जोय गा पर शायद शासन व पर्यटन विभाग पर्यटन बढ़ाने के लिये कोई कारगर कदम नहीं उठाना चाहता है। जबकि बुंदेलखण्ड की वीरान धरोहरों को चमका दिया जाये तो यहां पर रोजगार के साधन के साथ पर्यटकों की संख्या में भी संभावना से ज्यादा बढ़ोत्तरी होगी। ऐसा नहीं है कि शासन पर्यटक स्थलों के रखरखाव में खर्चा नहीं करता पर अधिकारियों की ईमानदारी वाली कार्यप्रणाली गुम होने के कारण धरोहरों को संवारने के नाम पर मात्र लीपा-पोती की जा रही है।
पर्यटक स्थलों पर विदेशी पर्यटकों के साथ लपकागिरी व गुमराह करने के कई मामले प्रकाश में आ चुके हैं और लगातार घटित भी हो रहे है। ऐसे में हमारे देश के अतिथि देवो भव: का मंत्र निराधार साबित हो रहा है। और यही कारण है कि विदेशी पर्यटकों की संख्या में कुछ गिरावट आंकी जा रही है। भारत भ्रमण पर आने वाले पर्यटक खजुराहो घूमने तो आते है पर पहले की तरह ज्यादा दिन रूकने की अपेक्षा सैरसपाटा कर जल्दी चले जाते है।

पर्यटन नगरी खजुराहो के अद्वितीय मंदिर सहित अन्य प्राकृतिक पर्यटन स्थलों को देखने के लिये देशी-विदेशी पर्यटकों का जमावड़ा लगा रहता है।इस कारण जिले की अन्य धरोहरों उपेक्षा का शिकार हो रही है। जिले में अभी ऐसी भी गढ़ी व मकबरे है। जिनका अपना एक अलग इतिहास है पर खजुराहो व अन्य पर्यटक स्थलों में व्यस्त विभाग की लापरवाही के कारण मय धरोहरों के यह इतिहास मिट्टी में दफन होते जा रहे है। जिला मुख्यालय से महज 18 किलोमीटर दूर धुबेला संग्रहालय की बात की जाये तो यहां पर शासन द्वारा प्रदेश स्तर का रंगारंग विरासत सांस्कृतिक कार्यक्रम कराया जाता है। पर्यटन को बढ़ावा देने कार्यक्रम के दौरान आये प्रदेश के कर्ताधर्ता घोषणायें तो कर देते है लेकिन उन पर अमली जामा नहीं पहनाया जाता जिसके चलते धुबेला मात्र म्यूजियम तक ही सिटम कर रह गया है। म्यूजियक के पीछे बना रानी का विशाल किला जिस पर आकर्षक शिल्पकला प्राचीन कारीगरों द्वारा बनायी गई है, रख-रखाव के अभाव में जर्जर होती जा रही है।
गौड़ों का महल तो जमीन पर मिलने की कगार पर है और छत्रसाल महाराज के मकबरा तक पहुंचने के लिये पगडंडी सहित उबड़-खावड़ रास्ता से जूझना पड़ता है। उल्लेखनीय है कि महाराजा छत्रसाल का मकबरा उनके सिपेसालार द्वारा सात मंजिला बनवाया जाना था लेकिन निर्माणाधीन मकबरें के दौरान उनकी मृत्यु हो जाने के कारण मकबरा महज कुछ ही मंजिलों तक बन पाया। महेबा तिगैला हाईवे रोड से 200 मीटर अंदर बना मकबरा सूत्रों के मुताबिक अय्यासी का अड्डा बनकर रह गया है। पर्यटन विभाग शायद भूल गया है कि पर्यटक नये निर्माण कार्य नहीं बल्कि प्राचीन धरोहरों को निहारने की ललक से भारत आते है।
पर्यटकों का गिरता ग्राफ
कुछ खामियोंं के चलते विदेशी पर्यटकों के आने का ग्राफ साल दर साल गिरता जा रहा है। पन्ना जिला का पाण्डवफाल जो कि पाण्डवों के इतिहास की साक्षात गौरव गाथा सुनाता है को देखने के लिये देसी पर्यटकों में तो इजाफा हो रहा है पर विदेशी पर्यटक घट रहे है। वर्ष 2008-09 में देशी पर्यटकों की संख्या 25075 थी जो कि वर्ष 2009-10 में 33777 हो गई। जबकि वर्ष पाण्डवफाल घूमने 335 विदेशी पर्यटक आये। राष्ट्रीय उद्यान पन्ना की बात की जाये तो वर्ष 2008-09 में 10090 थी जबकि वर्ष 2009-10 में डेढ़ हजार पर्यटकों की कमी आंकी गई और संख्या 80504 पर्यटकों में सिमट कर रह गई।
भीमकुण्ड व जटाशंकर को नहीं दी जा रही तबज्जो
जिले के भीमकुण्ड व जटाशंकर धाम में पर्यटन की अपार संभावनायें है। दोनों ही स्थल अपने आप में अनोखे है। भीमकुण्ड में पांच पाण्डव वनवास के दौरान कुछ दिनों तक रूके तो जटाशंकर की आधार शिला एक ऐसे सख्श द्वारा रखी गई जो कि डकैत था। यहां पर प्रकृति की अनोखी छटा बिखरती है पर शासन की अनदेखी व पर्यटन विभाग द्वारा तबज्जो न दिये जाने के कारण विदेशी एवं देश के दूरस्थ प्रदेशों के पर्यटकों के लिये यह स्थल गुमनाम बने हुये है। हालांकि मकर संक्रांति के समय भीमकुण्ड एवं अमावस्या के समय हजारों की तादाद में श्रद्धालु पहुंचते है पर वे केवल छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना जिलों के होते है। अगर दोनों स्थानों पर पर्यटन विभाग पर्यटकों के मतलब की सुविधायें कर थोड़ा सा प्रचार-प्रसार कर यहां पर गाईड व्यवस्था एवं विभाग के अधिकारियों को सक्रिय कर दें तो क्षेत्र की गरीब जनता के सामने रोजगार के द्वार खुल जायेगें और शासन को अतिरिक्त राजस्व का लाभ होने के साथ आस-पास के ग्रामों के ग्रामीणों को रोजगार भी मिल जायेगा।

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