Friday, February 25, 2011

भगवान भरोसे हो गई बैतूल जिले की स्वास्थ सेवा गांव से लेकर शहर तक हर जगह अव्यवस्था का ही आलम



भगवान भरोसे हो गई बैतूल जिले की स्वास्थ सेवा गांव से लेकर शहर तक हर जगह अव्यवस्था का ही आलम
बैतूल, रामकिशोर पंवार:
मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले की आमला तहसील के ग्राम बोरदेही के सरकारी अस्पताल में बीते करीब छ: महीनों से जननी एक्सप्रेस नहीं है। यह वाहन नहीं होने से डिलेवरी करवाने अस्पताल तक पहुचने में महिलाओं को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।वहीं अब सप्ताह में 2 दिन डॉक्टर पहुंचनें से लोगों ने थोड़ी राहत महसूस की है। यहां करीब छ: माह पहले तक वाहन उपलब्ध था, लेकिन कुछ कारणों से वाहन की सेवाएं बंद हो गई है।लिहाजा अब महिलाओं को अस्पताल तक पहुंचना है तो आशा कार्यकर्ता का मुंंह ताकना पड़ता है या फिर किराए का वाहन लेकर अस्पताल पहुंचना पड़ता है। ग्रामीणों का कहना है कि वाहन नहीं होने से उन्हें जहां अक्सर अधिक खर्च उठाना पड़ता है तो कई बार वाहन नहीं मिलने पर जिंदगी और मौत से जूझने जैसी परेशानी का सामना भी करना पड़ता है। जानकारी के मुताबिक करीब 6 माह पहले तक अस्पताल में जननी एक्सप्रेस की सुविधा उपलब्ध थी, लेकिन कुछ समय बाद इसे बंद कर दिया गया। तब से यह समस्या बढ़ गई है। जानकारी के मुताबिक पर्याप्त प्रकरण नहीं मिलने के कारण संबंधित ने यहां वाहन की सेवा देना बंद कर दिया है। इटावा सरपंच उमा प्रमोद सोनी, हथनोरा की संध्याबाई राजेंद्र सिंह, बामला के भवानी सूर्यवंशी, बोरदेही के संजय सूर्यवंशी, हथनोरा के भगवत पटेल, घाटावाड़ी के हरिराम पटेल का कहना है कि प्राइवेट वाहन बंद भी हो गया है तो शासन अस्पताल में स्थाई वाहन का इंतजाम किया जाना था। ग्राम पंचायत की शिकायतों से कई ज्यादा गंभरी हैं बैतूल जिला मुख्यालय के मुख्य अस्पताल की जहां पर ओपीडी में डाक्टरों के बैठने के समय में कोई सुधार होता नजर नहीं आ रहा है। प्रतिदिन जिला चिकित्सालय में सभी डयूटी पर पदस्थ डाक्टर अपने कक्षों से नदारद रहते हैं। इससे मरीजों को देर तक इंतजार करना पड़ा। कतार लगाकर खड़े मरीज कहने को मजबूर हो गए कि, डॉक्टर साहब कब आएंगें.....? जिला अस्पताल में सुबह 8 से 1 बजे तक डॉक्टरों की ड्यूटी रहती है। वैसे तो जिला चिकित्सालय में मरीजों की हमेशा लम्बी कतार लगी रहती हैं। सुबह से मरीज ओपीडी में बैठकर डॉक्टरों का इंतजार करते रहे। कई बार तो सुबह से देर शाम तक डॉक्टरों के नहीं आने पर कई लोग तो बिना उपचार कराए ही वापस चले जातें हैं। गौठान से डॉक्टर को स्वास्थ्य दिखाने आई युवती कमलती ने बताया कि वह साढ़े 9 बजे से डॉक्टर के आने का इंतजार कर रही है। कक्ष में डॉक्टर नहीं है तो फिर किसे दिखाऊं...? अस्पताल में अक्सर ऐसी ही स्थिति बनी रहती है। बच्चे को इंजेक्शन लगवाने वाले भी अकसर सुबह 9 बजे से आकर डाक्टरों को ताकते रहते हैं। डाक्टरों के कक्ष में बैठने का इंतजार करते रहे। बीते दिनो मोबाइल टार्ज में हुई महिला की डिलेवरी की घटना को लेकर हुई अपने विभाग की फजी़हत के बाद जिला चिकित्सालय बैतूल अधिक्षक द्वारा रानीपुर अस्पताल में एक महिला के प्रसव में लापरवाही के मामले में पदस्थ महिला डॉक्टर पुष्पारानी को तलब किया है। सीएमएचओ डॉ. डीके कौशल ने प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र रानीपुर में पदस्थ चिकित्सा अधिकारी डॉ. श्रीमती पुष्पारानी सिंह को निर्धारित मुख्यालय पर नियमित न रहने, स्वास्थ्य केंद्र में रात में दरवाजे पर हुए एक प्रसव में लापरवाही के मामले में कारण बताओ नोटिस दिया है। सीएमएचओ ने नोटिस में डॉ. पुष्पारानी को निर्धारित मुख्यालय पर निवास कर मरीजों को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने तथा अधीनस्थ कर्मचारियों का मुख्यालय पर निवास सुनिश्चित करने के लिए भी पाबंद किया है। परिवार कल्याण कार्यक्रम के क्रियान्वयन में उदासीनता एवं लापरवाही बरतने के मामले में सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र प्रभातपट्टन में पदस्थ एलएचवी रेणुका कातलकर तथा महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता सत्यफुला देशमुख को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है। सीएचएमओ डॉ. डीके कौशल ने बताया कि निलंबन अवधि में दोनों कर्मचारियों का मुख्यालय जिला अस्पताल बैतूल होगा। इतना सब कुछ होने के बाद भी हर मंगलवार को लगने वाले मेडिकल बोर्ड में कर्मचारी तो बैठे मिले, लेकिन डॉक्टर नहीं आए। समय में परिवर्तन के बावजूद डॉक्टरों ने अपनी सीटों पर बैठकर ही आवेदनोंं पर हस्ताक्षर किए और टाइम पर निकल गए। हर मंगलवार को लगने वाले मेडिकल बोर्ड के बैठने के समय में प्रभारी मंत्री के निर्देश पर परिवर्तन कर दिया गया है। इससे अब बोर्ड सुबह 9 से 1 बजे की जगह 4 बजे तक लगेगा। यह परिवर्तन मेडिकल व विकलांग सर्टिफिकेट बनाने आने वाले लोगों की सुविधा के लिए किया गया था। इस मंगलवार को लगे मेडिकल बोर्ड में कर्मचारी बैठकर सील-सिक्के लगाते रहे, लेकिन डॉक्टर नहीं बैठे। दूर-दराज से आने वाले लोगों को प्रमाण पत्रों पर सील-सिक्के लगाने के बाद डाक्टरों को ढूंढते रहना पड़ा। डाक्टरों ने ओपीडी में बैठकर प्रमाण पत्रों पर हस्ताक्षकर करने का काम निपटाया और एक बजे राइट टाइम पर घर रवाना हो गए। मेडिकल बोर्ड के नियम के मुताबिक डॉक्टरों को बोर्ड में बैठना चाहिए, लेकिन वे बोर्ड में न बैठकर ओपीडी में हस्ताक्षर करते रहे। जिन व्यक्तियों को डॉक्टर मिल गए तो उनके प्रमाण पत्रों पर हस्ताक्षर हो गए, लेकिन जिन्हें नहीं मिले उन्हें भटकते रहना पड़ा। मुलताई चूनाभट्टी गांव के रमेश अपनी विकलांग बेटी का प्रमाण पत्र बनाने आए थे। उनके प्रमाण पत्रों पर सील सिक्के तो लग गए थे, लेकिन डाक्टरों के हस्ताक्षर कराने उन्हें कक्षों में परेशान होते रहना पड़ा। मेडिकल बोर्ड में सिविल सर्जन डॉ. डब्ल्यूए नागले, डॉ. ओपी माहोर, डॉ. पीके कुमरा, डॉ. डीटी गजभिए, डॉ. के बाजपेयी, डॉ. श्रीमती आर गोहिया, आरएमओ डॉ. एके पांडे सदस्य हैं। मंगलवार की शाम 4 बजे बोर्ड कक्ष में डॉ. बाजपेयी और अस्पताल परिसर में डॉ. नागले नजर आए। इनके अलावा कोई डॉक्टर नहीं था। मेडिकल बोर्ड की दीवार पर प्रमाण पत्र बनाने की सूचना के संबंध में चस्पा पर्चें में टाइम टेबल नहीं बदला गया। इस पर्चे पर सुबह 9 से 1 बजे का टाइम लिखा हुआ था। इससे लोग भ्रमित होते नजर आए। जबकि टाइम सुबह 9 से 4 बजे तक का हो चुका है। इसे लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ा। मेडिकल बोर्ड के सदस्य डॉक्टरों ने ओपीडी में पहुंचने वाले लोगोंं के प्रमाण पत्रों के बनाने का काम निपटाया। दोपहर 1 बजे तक 35 विकलांग और 28 मेडिकल प्रमाण पत्र बनाए। इसके बाद कोई प्रमाण पत्र नहीं बन सके। क्योंकि 1 बजे ओपीडी बंद हो जाती है। बोर्ड का समय 4 बजे का होने के बावजूद डॉक्टर नहीं आए। इससे 1 बजे के बाद आने वाले लोगों को परेशान होना पड़ा। वे डाक्टरों के बैठने का इंतजार करते रहे। विकलांगता श्रेणी में मिलने वाली छूट एवं फायदों के लिए अब अपात्र भी एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। यही कारण है कि अस्पताल के आसपास दलालों की सक्रियता भी बढ़ गई है। 40 प्रतिशत विकलांगता की पात्रता के लिए लोग जहां बार-बार अस्पताल के चक्कर काट रहे हैं। वहीं इनकी हर सप्ताह बढ़ती संख्या से जिला मेडिकल बोर्ड भी खासा चितिंत है। विकलांगता प्रमाण-पत्र से मिलने वाले लाभ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब प्रमाण-पत्र बनाने की कतार में फै्रक्चर और मामूली विकलांगता वाले भी खड़े नजर आ रहे हैं। जिला मेडिकल बोर्ड का कहना था कि अधिकांश लोग लाभ के लिए प्रमाण-पत्र बनवाना चाहते हैं। यहीं कारण है कि एक बार अपात्र घोषित कर दिए जाने के बाद भी वे दोबारा यहां आ रहे हैं। जिससे ?से लोगों की संख्या बढ़ रही है। विकलांगता प्रमाण-पत्र बनवाने के लिए हर मंगलवार को करीब एक सैकड़ा से अधिक लोग जिला अस्पताल के चक्कर काटते हैं। जबकि नियमानुसार जिला मेडिकल बोर्ड द्वारा 40 प्रतिशत से ऊपर विकलांगता होने पर ही प्रमाण-पत्र जारी किए जाते हैं, लेकिन कुछ लोग विकलांगता प्रमाण-पत्र का लाभ लेने अस्पताल के चक्कर काट रहे हैं। देखने में आ रहा है कि अपात्र लोग भी विकलांगता प्रमाण-पत्र बनाने के लिए आ रहे हैं। बार-बार इनके आने से अस्पताल में भीड़ बढ़ जाती है। इस स्थिति से निपटने के लिए अब जिला चिकित्सालय बैतूल में कम्प्यूटर फिडिंग के संबंध में भी विचार किया जा रहा है ताकि ?से लोग आसानी से पकड़े जा सके।

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