छत्तीसगढ़ का बहुचर्चित नान घोटाला : डीओपीटी (DOPT) के आदेश से टुटेजा का होना चाहिए था निलंबन
♦ विजया पाठक
- अनिल टुटेजा क्यों महत्वपूर्ण पद पर हैं पदस्थ
- टुटेजा ने नही भेजा नक्सली क्षेत्रों में चावल, बढ़ी नक्सली समस्या
छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित नागरिक आपूर्ति निगम (नान) घोटाले का पर्दाफाश होने के बावजूद मुख्य आरोपियों पर मेहरबानी बरसती जा रही है। रमन सरकार और अब भूपेश बघेल सरकार में भी यह आरोपी महत्वपूर्ण पदों पर पदस्थ हैं। आपको बता दें कि इस घोटाले के दो प्रमुख आरोपी अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला हैं। जिस वक्त यह घोटाला हुआ था उस समय आलोक शुक्ला खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग में सचिव के पद पर थे और अनिल टुटेजा एमडी थे। ये दोनेां आएएएस अफसर हैं।
अनिल टुटेजा पर नान घोटाले में "Prevention of Corruption Act" सेक्शन 13(1) डी एवं 11 के अंतर्गत फौज़दारी मामले के आर्थिक अपराध के रूप में अनुपूरक चालान प्रस्तुत किया एवं मामला दर्ज किया। मामला यह बनता है कि शासन ने कानून का मखौल उड़ाते हुए अनिल टुटेजा का निलंबित नही किया अलबत्ता ऐसे अधिकारी को संयुक्त सचिव स्तर पर बैठा दिया। जबकि किसी भी फौज़दारी मामले के या आर्थिक प्रकार के मामले में फंसे अधिकारी पर भारत के कार्मिक मंत्रालय के "Hand Book for Inquiry of Officers and Disciplinary Authorities 2013" में पेज 58, भाग 10 सस्पेंशन में "Rule 10 of CCS(CCA) Rules 1955 में पैरा 3.0 में वर्णित हैं कि -:
3.0- सरकारी कर्मचारी/नौकर को नियम-10 (1) में निलंबित कब कर सकते हैं।
(iii) जब भी ऐसे कर्मचारी या सरकारी नौकर के ऊपर कोई फौज़दारी मामले में विवेचना, जांच या परिक्षण चालू हैं तो उन्हें निलंबित करना चाहिए। लेकिन अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला के मामले में मंत्रालय के सर्कुलर का खुला उल्लंघन हो रहा है। DOPT के सर्कुलर के मुताबिक कोर्ट में चालान पेश होने के पश्चात् संबंधित अधिकारी को सस्पेंड करना चाहिए। लेकिन इन आरोपियों के साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। घोटाला उजागर होने के बाद से ही सरकारें इन पर मेहरबानी बरतती जा रही हैं। निश्चित तौर पर ये दोनों आरोपी न्यायिक प्रक्रिया भी बाधित कर रहे हैं क्योंकि ये कोर्ट के आदेशों को भी नजर अंदाज करते हैं। एक और बड़ा मामला जिसे देवजी भाई पटेल ने विधानसभा के पटल पर भी उठाया था, जिसमें अनिल टुटेजा ने बगैर सामान्य प्रशासन विभाग से अनुमति/क्लिेरियेंस लिये कई विदेश यात्रा कर डाली थी। यह मामला भी कोड आफ कंडक्ट नियम के विरूद्ध जाता है और इस पर शासन को तुरंत निलंबन की कार्यवाही करनी चाहिए थी।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना
अनिल टुटेजा के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत 2016-17 में चालान पेश हुआ था। यह चालान रायपुर में मान. श्रीमती लिना अग्रवाल की कोर्ट में पेश हुआ था। दिसम्बर 2018 में पूरक चालान पेश हुआ। जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट गया तो सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से कहा था कि इस मामले का ट्रायल एक साल में होना चाहिए। किन्तु उस आदेश को आज 2 साल हो गए हैं। इस तरह सुप्रीम कोर्ट की अवमानना हो रही है। यहां कोर्ट की अव्हेलना पर कार्यवाही होनी चाहिए। यदि ऐसा होता रहा तो लोगों में कोर्ट का डर ही समाप्त हो जाऐगा।
धान खरीदी में कमीशनखोरी, नक्सलवाद को बढ़ावा दिया।
जब अनिल टुटेजा खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग में थे तब धान खरीदी में खूब कमीशन खोरी करते थे। निगम के गोडाऊन में जो धान रखा जाता था उसके एवज में 6 रुपये प्रति बोरा की दर से लेते थे। जो किसान प्रति बोरा के हिसाब से 6 रुपये नही देने को तैयार होते थे उनकी धान की ट्राली खड़ी रहने देते थे। वहीं किसानों की धान का भाव भी कम कर देते थे। 6 रुपये में से 3 रुपये खुद रखते थे और बाकी 3 रुपये जिला कार्यालय में भेजते थे। ऐसे करके टुटेजा करोड़ों का कमीशन पा लेते थे।
इतना ही नही अनिल टुटेजा ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत बंटने वाले राशन में भी भारी गड़बड़ की है। गरीबों को मिलने वाले चावल, नमक चना को स्थानों तक ही नहीं पहुँचने दिया। आवंटित इस राशन सामग्री में बीच में ही बेच दिया करते थे। खासकर नक्सलवाद प्रभावित जिलों में भेजा ही नही जाता था। महिनों तक राशन ने मिलने के कारण नक्सलवाद जिले के लोग भूखे मरने की स्थिति में पहुंच जाते थे। इसके परिणाम ये होता था कि लोग सरकार के विरोध में खड़े हो जाते और नक्सलवादियों के साथ हो जाते। हम कह सकते हैं कि इस कारण से भी नक्सलवाद को बढ़ावा मिला है। इसका उदाहरण हम नारायणपुर में देख सकते हैं।
पीडीएस के सस्ते चावल में हुआ था घपला
एंटी करप्शन ब्यूरो और आर्थिक अपराध ब्यूरो ने नान के माध्यम से सार्वजनिक वितरण प्रणाली में एक रुपये किलो बंटने वाले चावल में करोड़ों का घोटाले का राजफास किया था। 12 फरवरी 2015 को नागरिक आपूर्ति निगम के मुख्यालय सहित 28 ठिकानों पर कार्रवाई के दौरान 12 अधिकारियों-कर्मचारियों के पास से तीन करोड़ 64 लाख रुपए से ज्यादा की राशि बरामद की थी।
दूसरे प्रदेश में हो नान का ट्रायल
नान के अपराधियों का ट्रायल दूसरे प्रदेशों में होना चाहिए। जैसे मान सिंह का केस राजस्थान में था उसका ट्रायल मथूरा उत्तर प्रदेश में हुआ था। क्योंकि उस केस में भी गवाहों को धमकाने का डर था। ऐसे ही नान के केस की दूसरे प्रदेश में इस लिये ट्रायल कराना चाहिए क्योंकि गवाहों को लालच देकर, डरा धमका कर उनके बच्चों को नौकरी देकर प्रभावित न करें। नान घोटले के जो भी अरोपी हैं वो बहुत ताकतबर एवं पैसे वाले हैं। ऐसा कई बार कई केसों में हुआ है।
मुख्य आरोपी अनिल टुटेजा क्यों नहीं हुए गिरफ्तार
(नान) घोटाले में आईएएस अफसर अनिल टुटेजा भी आरोपी बनाए गए थे। आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्लू) ने को टुटेजा को फरार बताते हुए विशेष जज मान. श्रीमती लीना अग्रवाल की कोर्ट में पूरक चालान पेश किया था। कोर्ट ने पूर्व में टुटेजा को हाजिर होने का नोटिस भी जारी किया था, लेकिन वे अनुपस्थित रहे। पूरक चालान में ईओडब्लू ने घोटाले में टुटेजा के खिलाफ पर्याप्त सबूत मिलने का दावा किया था। नान में फरवरी 2015 में ईओडब्लू और एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) ने छापा मारा था।
छापे में नान से 1.60 करोड़ रुपए जब्त किए गए थे, साथ ही नान के दर्जनभर अफसरों की भी गिरफ्तारी हुई थी। तब शुक्ला और टुटेजा का नाम भी घोटाले में उछला था, पर चार्जशीट में जिक्र न होने से दोनों पर कार्रवाई नहीं हुई। ईओडब्ल्यू ने कोर्ट को बताया था कि जांच के दौरान नान दफ्तर से जो दस्तावेज और डायरी मिली हैं उनमें अन्य लोगों के अलावा शुक्ला और टुटेजा को भी रकम देने का उल्लेख है। आईएएस अनिल टुटेजा ने पूरक चालान के पहले ही अग्रिम जमानत याचिका लगाई थी। कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया था। इस मामले में ईओडब्ल्यू ने दोनों अफसरों समेत 18 लोगों को आरोपी बनाया था।
शुक्ला और टुटेजा की 27 नवंबर को पेशी थी, लेकिन नोटिस तामील नहीं हो पाया। दोबारा नोटिस पर 5 दिसंबर को भी कोर्ट नहीं पहुंचे। बीमारी का हवाला देकर टुटेजा ने 19 दिन की छुट्टी ले ली है। यदि दोनों लगातार कोर्ट में पेश नहीं हुए तो गिरफ्तारी वारंट जारी हो सकती थी। आखिर इनकी गिरफ्तारी क्यों नही हुई।
अब नान घोटाले के मामले में प्रदेश के वर्तमान भूपेश सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। क्योंकि सरकार चाहे तो इस पूरे मामले में पारदर्शिता बरतते हुए दोषियों को उनके किए की सजा दिलवा सकती है।
सरकार को इतने बड़े घोटाले में गंभीरता से विचार करना चाहिए। जो भी आरोपी अभी प्रशासनिक पदों पर बैठे हैं उन्हें तत्काल हटाकर जांच एजेंसियों का सहयोग करना चाहिए। वैसे भी मुख्यमंत्री नान घोटाले से अच्छी तरह से वाकिब हैं। उन्होंने रमन सरकार के दौरान इसे खूब उछाला था। उम्मीद की जा सकती है कि वह दोषियों को सजा दिलाने में पूरा सहयोग करेंगे।
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