नारी जो जननी है मगर उसे आज के विकासशील दौर में भी दोयम दर्जे का जीवन जीना पड़ता है. दुनियाँ भर में महिलाएं जहाँ अपनी योग्यता के बल पर शीर्ष पदों को शोभायमान कर रहीं हैं वहीँ विश्व के कई देशों में औरत आज भी मर्दों की गुलाम की तरह बरती जाती हैं. भास्कर ने दस ऐसे देशों की सूचि प्रकाशित की है जहाँ नारी आज भी नारकीय जीवन जीने को मजबूर है. पेश है दिल दहला देने वाली रिपोर्ट…
यूं तो मानवाधिकार आयोग का कहना होता है कि किसी भी व्यक्ति के साथ अपमानजनक, निर्दयता या अमानवीय व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जा सकता, बावजूद इसके महिलाओं को जेंडर के आधार पर दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है. सारी दुनिया में पुराने रीति-रिवाजों और धार्मिक सिद्धांतों की वजह से महिलाओं की दशा और भी खराब हो गई है.
बहुत सारे मामलों में युद्ध और प्राकृतिक आपदाओं की वजह से दुनिया का ध्यान महिलाओं की इस दुर्दशा से दूसरी ओर मुड़ जाता है. हालांकि, अभी की कुछ घटनाओं से लोगों में जागरूकता काफी बढ़ी है. अरब क्रांति में ट्यूनीशिया, मिस्र, लीबिया और यमन में महिलाओं को अपनी आवाज उठाने का मौका मिला.
दिसम्बर 2012 में दिल्ली में हुई रेप की घटना ने दुनिया को झकझोर दिया. 23 साल की लड़की के साथ 6 लोगों ने चलती बस में रेप और टॉर्चर किया. कुछ दिनों बाद उसकी मौत हो गई. एक स्टडी से यह बात सामने आई है कि हर तीसरी महिला मानसिक रूप से अस्वस्थ है. कुछ तो ऐसे कल्चर भी हैं, जिनमें महिलाएं आज भी बहुत ही दयनीय स्थिति में हैं. उनके लिए तो मदद पाना भी बहुत ही मुश्किल हो गया है.
नेपाल
सऊदी अरब
2009 में ‘द वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम’ ने जेंडर के आधार पर भेदभाव के मामले में सऊदी अरब
को सबसे बुरे देशों में से एक बताया है. सऊदी अरब में हर उम्र की महिला के साथ एक पुरुष अभिभावक का होना जरूरी है. यहां तक कि घर में घुसने के लिए महिला-पुरुष के दरवाजे भी अलग होते हैं. वहां भेदभाव वाले नियम आज भी मौजूद हैं, जैसे एक महिला 1990 के बाद से हवाई जहाज में यात्रा तो कर सकती है, लेकिन एयरपोर्ट तक कार चला कर नहीं जा सकती है. 2012 में पहली बार सराह अत्तर और वोजडन शाहरकनी ने ओलिंपिक में भाग लेकर एक नया इतिहास रचा. 2012 में एक नया नियम लागू किया गया, जिसमें 2015 में महिलाएं पुरुष की इजाजत के बिना भी वोट दे सकेंगी.
पाकिस्तान
अफगानिस्तान
अफगानिस्तान कई सारे झगड़ों से अभी तक उभर नहीं पाया है. इन सभी झगड़ों का असर देश के लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है. यहां पर डिप्रेशन, पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर और ज्यादा चिंता करना एक कॉमन समस्या है. यह समस्या परिवार को तहस-नहस कर रही है, खासकर महिलाओं को इन सबसे बहुत मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है.
अफगानिस्तान ‘तालिबान’ और ‘मुजाहिद्दीन’ के नियमों का पालन करते हुए पतन की तरफ जा रहा है. इस कारण यहां पर महिलाओं की शिक्षा अभी 15 फीसदी तक ही बढ़ पाई है. यहां पर सामान्यतः अरेंज मैरिज होती है और एक इंसान अपनी पत्नी को बिना उसकी मंजूरी के भी तलाक दे सकता है.
महिलाओं की दशा सुधारने के लिए नए लोकतंत्र की मांग जारी है. हालांकि, यह उस देश के लिए एक बड़ी बात है, जिस देश में महिलाओं की मृत्यु दर काफी ज्यादा है. उनकी औसत आयु 44 साल है.
चीन
चीन में मानवाधिकार बहुत ही ज्यादा समय से एक अंतरराष्ट्रीय मामला बना हुआ है. अब
जाकर थोड़ा ध्यान महिलाओं के अधिकारों पर दिया जा रहा है. चार दशकों से चीन में ‘एक बच्चे’ की पॉलिसी को प्रमोट किया जा रहा है, जिसका देश में जेंडर अनुपात पर बहुत ही गहरा असर पड़ रहा है. यह अनुमान है कि चीन के लगभग 40 मिलियन पुरुषों को पार्टनर नहीं मिलेगी.
इसके परिणामस्वरूप चीन के पड़ोसियों के लिए और भी बुरे हो सकते हैं. उत्तर कोरिया से कुछ महिलाएं पैसे कमाने के लिए सीमा पार जाती हैं, लेकिन यदि वो पकड़ी नहीं भी जाती हैं, तब भी यह देश उनके लिए काफी खतरनाक है. उत्तर कोरिया की हजारों लड़कियां इस देश में आती हैं. उनमें से लगभग 90 फीसदी को चीन में दुल्हनों (जिसके कई पति होते हैं) के काले बाजार में बेच दी जाती हैं.
माली
माली में एक महिला को घर से बाहर जाने से पहले भी अपने पति से अनुमति लेनी पड़ती है. हाल की रिपोर्ट के अनुसार वहां के ‘इस्लामिक चरमपंथी’ संगठन बिन ब्याही मां बन चुकी लड़कियों की एक लिस्ट बना रहे हैं. ऐसी हड़कियों को बर्बर दंड दिया जाता है. यह दंड फांसी, पत्थरों से मार देना और शरीर काट देने जैसे होते हैं. लगभग पिछले एक साल से महिलाओं के कुछ समूह अपने लिए अधिकारों की मांग कर रहे हैं.
इराक
इराक ऐसा देश है, जहां पर झगड़े और सांप्रदायिक विद्वेष बहुत ज्यादा है. सद्दाम हुसैन
के न होने और अमेरिकी सेना के हटा लिए जाने के बावजूद इराक अभी भी खुद को बंटा हुआ मानता है. एक सर्वे से यह बात सामने आई है कि इराक में 19 फीसदी महिलाएं मानसिक परेशानियों से जूझ रही हैं. कहा जाता है कि सद्दाम हुसैन की मौत के बाद से महिलाओं की स्वतंत्रता काफी कम हो गई है. 2003 में कुछ एनजीओ भी शुरू हुए जैसे, ‘ऑर्गेनाइजेशन फॉर वुमेंस फ्रीडम इन इराक’. नई सरकार ने 2004 में एक ‘शारिया’ कानून भी लागू किया जो महिलाओं के विकास के लिए बनाया गया. ओडब्ल्यूएफआई ने महिलाओं की सुरक्षा में एक बड़ा रोल अदा किया है. इसने लोगों का ध्यान बढ़ते हुए रेप के मामलों, महिलाओं पर होने वाले हमलों, ऑनर किलिंग जैसे मामलों की तरफ आकर्षित किया. धार्मिक एवं सांप्रदायिक मामलों की वजह से महिलाओं को संघर्ष करना पड़ रहा है. 2003 से इस्लाम के दबाव की वजह से बुर्का प्रथा को काफी बढ़ावा मिला. एक महिला डॉ. लुब्ना नाजी ने बताया कि सद्दाम शासनकाल में महिलाएं ज्यादा स्वतंत्र थीं.
भारत
सोमालिया
नवम्बर, 2012 में फोजिया यूसुफ हाजी अदान सोमालिया की पहली महिला विदेश मंत्री बनीं.
महिलाओं के लिए सोमालिया एक बहुत ही बुरा देश माना जाता है.अदान ने कहा कि उनका विदेश मंत्री बनना राजनीति में एक बड़ी पहल है. इससे देश की हालत सुधारी जा सकेगी. 2011 में ‘थॉम्पसन रॉयटर्स फाउंडेशन सर्विस ट्रस्ट लॉ’ ने यह पाया कि महिलाओं के लिए शिक्षा के अवसर बहुत कम हैं. महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा आम बात है. यहां की 95 प्रतिशत लड़कियों के गुप्तांग अंग-भंग करने की बात भी सामने आई है. इस्लामी आतंकवादियों अल-शबाब वाले क्षेत्र सबसे ज्यादा बुरे माने जाते हैं. इन क्षेत्रों में महिलाओं को कैंपों में रहना होता है. यहां पर हथियार बंद गुटों के द्वारा उनके साथ रेप किया जाना एक आम बात है.
डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो
डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो को ‘दुनिया की रेप की राजधानी’ कहा जाता है. यूएन की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2009 में लगभग 8000 महिलाओं का रेप किया गया था. द्वितीय कांगो युद्ध के बाद से इस देश में हिंसा बरकरार है. इन महिलाओं का इस्तेमाल न केवल रेप के लिए, बल्कि युद्ध में हथियार के रूप में किया जाता है.
एक पत्रकार जिम्मी ब्रिग्स ने यहां कैंप में रहने वाली महिलाओं से बात की. उन्होंने पाया कि वे महिलाएं डिप्रेशन और पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस से ग्रसित थीं. उनमें से बहुत-सी महिलाएं अपने परिवार की इज्जत के लिए कुछ भी कहने से डर रही थीं. उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए काफी कम सुविधाएं थीं.
कम उम्र में ही शादी एक आम बात है. कुछ ऑर्गेनाइजेशनंस का कहना है कि जब बात अरेंज मैरिज के लिए बाध्य करने की आती है तो यहां की पुलिस और स्थानीय अथॉरिटी को भी दोषी पाया गया है.
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