Sunday, May 21, 2017

सोशल मीडिया पर बैन लगा तो 16 साल के कश्मीरी ने बना डाला 'KashBook'

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26 अप्रैल को कश्मीरी अधिकारियों ने एलान किया था कि कश्मीर में 22 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक महीने तक प्रतिबंध रहेगा. इनमें व्हाट्सऐप, फेसबुक और ट्विटर भी शामिल हैं, जिनका ज़्यादातर लोग इस्तेमाल करते हैं. रोक की वजह यह बताई कि 'भारत-विरोधी तत्व' इनका ग़लत इस्तेमाल कर रहे हैं. इस रोक से केवल 'भारत-विरोधी तत्व' ही नहीं, हर कश्मीरी प्रभावित हुआ है.

अब जब कश्मीर में फेसबुक पर रोक है, लोग एक दूसरे से कनेक्ट नहीं हो पा रहे हैं, तो अनंतनाग ज़िले के महज 16 साल के जीयान शफीक़ ने कश्मीरियों के लिए एक अलग ही फेसबुक बना डाला. उन्होंने इसे KashBook नाम दिया है.
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पिता से प्रेरणा, कैशबुक की न्यूज़ फीड

कैशबुक का आइडिया बेशक नया है, पर शफीक और उनके मित्र ने इसे 2013 में ही बना दिया था. तब शफीक 13 के थे और उनके मित्र उजेर जेन 17 के. शफीक को किशोरावस्था से ही कोडिंग में काफी दिलचस्पी थी. उनके पिता सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं और निश्चित रूप से उन्हें इसकी प्रेरणा उनसे ही मिली होगी. बचपन से ही उन्होंने शफीक को लैपटॉप पर काम करने दिया. शफीक ने जब एचटीएमएल टैग्स लिखने शुरू किए, उसकी कोडिंग में भी रुचि बढ़ी.
वे कहते हैं, "शुरू में मैं केवल एचटीएमएल में लगा रहता था, फिर पीएचपी, सीएसएस और अन्य चीजें करता गया." शफीक ने हाल ही में दसवीं पास की है. वे कैच को बताते हैं, "शुरू में कैशबुक चलन में नहीं आया क्योंकि 2013 में इसकी कोई आवश्यकता नहीं थी." पर ऐसा नहीं है कि कोई इसका इस्तेमाल नहीं करता था. शफीक कहते हैं, "कुछ दिनों पहले मिले ईमेल से मुझे आश्चर्य हुआ क्योंकि लोग अब भी पुरानी कैशबुक वेबसाइट इस्तेमाल कर रहे थे. जब हमने देखा कि लोगों को सोशल मीडिया की ज़रूरत है, मैंने उजेर के साथ उस पर फिर से काम शुरू किया और परिणाम सामने है."
अब कैशबुक की अपनी वेबसाइट है और एनड्रॉएड ऐप भी. शफीक ने हमें बताया कि वे आईओएस ऐप भी जल्द लॉन्च करेंगे. सोशल नेटवर्क को फिर से शुरू करने के बाद इसके यूजर्स तेजी से बढ़े हैं. दो दिन पहले 130 यूजर्स थे. आज 1500 से ज्यादा हैं. अब शफीक और उजेर वेबसाइट बंद नहीं करेंगे. फिलहाल इसे मॉनेटाइज करने की भी योजना नहीं है.
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कैशबुक की खूबियां

घाटी में कैशबुक फेसबुक से बेहतर परिणाम दे रहा है. इस सोशल नेटवर्क के लिए शफीक और उजेर ने खूब मेहनत की है. शफीक गर्व से कहते हैं, "साइट की खास खूबी यह है कि यह वीपीएन के बिना काम करती है और लोग इस तक आसानी से पहुंच सकते हैं. कश्मीरी एक दूसरे से कनेक्ट हो सकते हैं. इसके अलावा सर्वर कभी भी ब्लैकलिस्ट हो जाता है, तो दोनों तुरंत सर्वर बदलते हैं और कैशबुक तक पहुंच बनाए रखते हैं. इसमें मुश्किल से 5 से 10 मिनट लगते हैं और साइट फिर से आ जाती है. इस तत्परता से तो स्थापित नेटवर्क फेसबुक भी काम नहीं करता और नतीजतन कश्मीरियों की पहुंच से बाहर हो जाता है."
एक और खूबी, जिसका कैशबुक दावा करता है, वह है मार्केट. यह वह मंच है, जहां से लोग अपना बिजनेस बढ़ा सकते हैं, माल बेच सकते हैं. शफीक को उम्मीद है कि इससे कश्मीर में बनने वाली चीजों और उनकी बिक्री में इजाफा होगा. और अंतिम खूबी, जो शायद सबसे महत्वपूर्ण है, कैशबुक से कश्मीरी आपस में संवाद रख सकते हैं.

कैशबुक की प्रोफाइल. कैशबुक बंद नहीं होगा

हो सकता है सरकार सोशल मीडिया पर प्रतिबंध एक महीने से ज्यादा कर दे. शफीक और जेन को नहीं लगता कि इसका असर कैशबुक पर होगा. शफीक उत्तेजित हो जाते हैं, "मैं इस पर प्रतिबंध नहीं चाहता, यदि रोक लगती भी है, तो सर्वर बदल दूंगा और लोगों की इस तक पहुंच बनी रहेगी. भले ही शफीक सरकारी रोक को विफल करने में सफल रहे हैं, पर इससे सरकार की आलोचना कम नहीं होती." शफीक कहते हैं, "हम इसके विरोध में हैं. दरअसल सभी इसके विरोध में हैं क्योंकि सोशल मीडिया को ब्लॉक करके वे (सरकार) चाहते हैं कि हम दुनिया से कट जाएं. वे हमारे साथ मनमर्जी कर सकते हैं क्योंकि कोई भी देख-सुन नहीं सकेगा."
फिलहाल कैशबुक कश्मीरियों को जुड़ने में मदद कर रहा है. जब तक उनकी समस्या हल नहीं हो जाए, दोनों मदद कर रहे हैं. शफीक कहते हैं, "पिछले दो हफ्तों से मैं सोना भूल गया हूं. मैं सवेरे 7 बजे सोता हूं और 8 बजे उठ जाता हूं और काम पर लग जाता हूं." साइट चलती रहे और इसका ज्यादा से ज्यादा इस्मेमाल हो, इसके लिए शफीक दृढ़ हैं. वे घाटी से बाहर के लोगों को भी वेबसाइट जॉइन करने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं.
एक बात तो है, नरेंद्र मोदी के सोशल मीडिया पर रोक से कुछ अच्छा ही हुआ है. 'मेक इन इंडिया' और 'डिजिटल इंडिया' का बेस्ट प्रोडक्ट सामने आया है. जब सोशल मीडिया पर से प्रतिबंध हटेगा, तब भी उम्मीद करते हैं कि फेसबुक की खातिर लोग कैशबुक को नहीं भूलेंगे.

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