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''अपने बचत के पैसे से नियमित आय की व्यवस्था करने के लिए बहुत से लोग एफडी में पैसा डालने का रास्ता चुनते हैं। पहली नजर में ब्याज से मिलने वाला रिटर्न ज्यादा और सुरक्षित दिखाई देता है, लेकिन असलियत इससे अलग है। महंगाई और टैक्स के असर को जोड़ने के बाद ब्याज से मिलने वाला रिटर्न बहुत कम रह जाता है। इस स्थिति से बचने के लिए म्यूचुअल फंडों में निवेश एक अच्छा विकल्प हो सकता है। एक्विटी म्यूचुअल फंडों में रिटर्न अच्छा मिलता है। टैक्स के मोर्चे पर भी इनमें कई लाभ मिल जाते हैं। इन लाभों का आकलन किया जाए तो लंबी अवधि में म्यूचुअल फंडों से प्रभावी रिटर्न ब्याज से होने वाली कमाई की तुलना में पांच से सात फीसद तक ज्यादा हो जाता है।''
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। फिक्स्ड डिपॉजिट यानी एफडी पर ब्याज दरों में कटौती के बाद इक्विटी आधारित म्यूचुअल फंडों में निवेश की मदद से नियमित आय की व्यवस्था की ओर लोगों का तेजी से रुझान बढ़ा है। बैंकों में कराई गई एफडी नियमित आय का अच्छा स्रोत नहीं हो सकती है, यह सोच एक दिन में पैदा नहीं हुई। महंगाई की दर को ध्यान में रखते हुए एफडी (या कोई भी ब्याज वाली बचत योजना) का चुनाव हमेशा से गलत विकल्प रहा है। असल में एक नियमित आय पाने के लिए, खासकर रिटायरमेंट या बाद की लंबी अवधि के लिए इक्विटी म्यूचुअल फंड या बैलेंस्ड फंड इनसे कहीं ज्यादा बेहतर विकल्प हैं।
इसकी तीन वजहें हैं: पहली, कम टैक्स। दूसरी, पैसा निकालने पर ही कर लगना और तीसरी, ज्यादा रिटर्न। इन सभी बातों को एक साथ देखें तो निसंदेह सब स्पष्ट हो जाता है। इसे जरा विस्तार से देखते हैं।
एफडी से लाभ-हानि: सबसे पहले एफडी पर विचार करते हैं। मान लीजिए कि आपके पास एक करोड़ रुपये की बचत है, जिससे आप एक नियमित आय की व्यवस्था करना चाहते हैं। एक बैंक एफडी में एक साल बाद यह राशि 1.07 करोड़ रुपये हो जाएगी। यानी आपने कुल सात लाख रुपये की कमाई की। इस हिसाब से आपकी मासिक आय बनती है 58,000 रुपये। लेकिन यह केवल कागज पर ही है। असल में अगर हम महंगाई दर को पांच फीसद मानकर चलें तो सालभर बाद एक करोड़ रुपये के असल मूल्य को बनाए रखने के लिए आपको 1.05 करोड़ रुपये की जरूरत रहेगी। इसका अर्थ हुआ कि असल रिटर्न केवल दो लाख रुपये का ही रहा। यानी महीने में आप औसतन 16,666 रुपये ही खर्च कर सकेंगे।
इसका मतलब अगर आपको 50,000 रुपये मासिक के हिसाब से रिटर्न की जरूरत हो तो आपको तीन करोड़ रुपये एफडी में डालने होंगे। निसंदेह, इस स्तर पर पहुंचकर आयकर भी बढ़ेगा और सालाना 30,000 रुपये आपको आयकर के रूप में भी देने होंगे। इसमें भी बुरी बात यह है कि आयकर का भुगतान तो करना ही होगा, आप रिटर्न का इस्तेमाल करें या नहीं।
म्यूचुअल फंड से लाभ-हानि: जब आप ब्याज से कमाने की बजाय किसी बैलेंस्ड म्यूचुअल फंड में किए हुए निवेश से पैसा निकाल रहे होते हैं तो स्थिति इससे काफी अलग हो जाती है। डिपॉजिट से इतर इसमें रिटर्न ज्यादा होता है, लेकिन उतार-चढ़ाव के साथ। किसी एक साल में रिटर्न कम या ज्यादा हो सकता है। लेकिन पांच से सात साल बाद अगर देखा जाए तो इनसे मिलने वाला रिटर्न महंगाई की दर को किनारे रखते हुए छह से सात फीसद या उससे ज्यादा हो जाता है।
उदाहरण के रूप में, पिछले पांच साल के दौरान ज्यादातर इक्विटी फंडों ने सालाना 12 से 14 फीसद का रिटर्न दिया है। किसी-किसी साल में रिटर्न कम रह सकता है। निसंदेह बचत खातों में पैसा डालने वाले के साथ ऐसा नहीं होता, लेकिन वृद्धावस्था में गरीबी के खतरे से बचने का यही रास्ता है। इन फंडों में निवेश करने वाला व्यक्ति सालाना चार फीसद तक राशि निकाल सकता है, उसके बाद भी पर्याप्त मार्जिन बचा रहेगा। इस पर टैक्स भी बहुत कम है। इसका रिटर्न ब्याज से हुई आय की तरह आपकी कमाई में नहीं जुड़ता है, बल्कि आपको निकाली गई राशि पर कैपिटल गेन टैक्स देना होता है। इस तरह से 50,000 रुपये मासिक की आय के लिए 1.5 करोड़ रुपये का निवेश पर्याप्त होगा, जबकि एफडी में तीन करोड़ रुपये की जरूरत होती। आपकी बचत या खर्च कितना भी हो, इस पर 10 फीसद ही टैक्स लगता है। हालांकि टैक्स में होने वाला फायदा इसका एक छिपा हुआ तथ्य भी है।
माना आपने म्यूचुअल फंड में 10 लाख का निवेश किया। एक साल बाद निवेश राशि बढ़कर 10.80 लाख हो गई। अब आप रिटर्न के रूप में आए 80,000 रुपये निकालना चाहते हैं। अब टैक्स की गणना का तरीका देखते हैं। आपने जो पैसा लगाया है, उसमें 7.4 फीसद लाभ यानी गेन है। बाकी 92.6 फीसद आपकी मूल राशि है। इसमें से आप जो भी राशि निकालते हैं, उसमें लाभ और मूल राशि की गणना इसी प्रतिशत के आधार पर होगी। मतलब कि 80,000 में से आपका लाभ केवल 5,926 रुपये ही माना जाएगा। यही वह राशि होगी, जिस पर टैक्स देना होगा। इससे चुकाए गए टैक्स पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है।
इक्विटी म्यूचुअल फंड बेहतर विकल्प
कुल मिलाकर यह बात स्पष्ट है कि किसी भी संभव परिस्थिति में इक्विटी म्यूचुअल फंड से नियमित आय पाना ब्याज से कमाने की तुलना में बेहतर विकल्प है। नियमित रूप से पैसा निकालने के लिए सभी ओपन-एंडेड फंड में एसडब्ल्यूपी (सिस्टमेटिक विड्रॉल प्लान) की सुविधा रहती है। यहां तक कि अब तो यह सुविधा देने के लिए कई विशेष योजनाएं भी शुरू की जा चुकी हैं।
उदाहरण के तौर पर एसबीआइ म्यूचुअल फंड ने ‘बंधन’ के नाम से एसडब्ल्यूपी की शुरुआत की है। इसे उन मामलों के लिए लांच किया गया है, जहां किसी एक व्यक्ति द्वारा किया गया निवेश परिवार में किसी अन्य के लिए नियमित आय के स्रोत के रूप में काम करता है। आने वाले दिनों में ऐसे और विकल्प सामने आएंगे। मैं कहता हूं कि ब्याज से मिलने वाले पैसे को कमाई की तरह इस्तेमाल करने के दिन नहीं रहे। लोग जितनी जल्दी इसे समझ जाएंगे, उनके लिए उतना ही बेहतर होगा।
यह लेख वैल्यू रिसर्च के सीईओ धीरेंद्र कुमार ने लिखा है।
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