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जहां आपकी आमदनी एक साल में 10 से 15 प्रतिशत तक बढ़ती है, वहीं राजनीतिक पार्टियों की आमदनी में हर साल 400-500 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ रही है. पिछले कुछ सालों में राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे की बाढ़ सी आ गई है. साल 2016-17 में सत्ता में काबिज बीजेपी की कुल इनकम 532.27 करोड़ थी जो एक साल बाद बढ़कर 1,027.33 करोड़ रुपये हो गई. इलेक्टोरल बॉन्ड से भी सबसे ज्यादा रकम बीजेपी को ही मिली है.
सरकार के आधिरकारिक आंकड़ों के मुताबिक 2016-17 में प्रति व्यक्ति आय 10.3 प्रतिशत बढ़ी थी. अगले साल ये बढ़ने के बजाय घट गई थी. 2017-18 में इसमें 8.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी.
सिर्फ एक साल में 368% बढ़ा सियासी चंदा
चुनावी चंदे से राजनीतिक पार्टियों की कितनी बल्ले-बल्ले हो रही है, ये इस चौंकाने वाले आंकड़े से साबित हो जाता है. एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2015-16 के मुकाबले 2016-17 में राजनीतिक पार्टियों को मिले चुनावी चंदे में 368 प्रतिशत की बढ़त हुई. देखिए कैसे और कितना बढ़ा चंदा.
- नेशनल पार्टीज की टोटल डोनेशन 2015-16 के मुकाबले 2016-17 में 102 करोड़ रुपये से 478.36 करोड़ पहुंच गई, यानी 368% का इजाफा
- बीजेपी को 2015-16 में 76.85 करोड़ रुपये चंदा मिला, जो अगले साल बढ़कर 532.27 करोड़ रुपये हो गया. यानी 592% का इजाफा
- 2017-18 में बीजेपी को कुल चंदे का 86 प्रतिशत मिला. पिछले साल के 532 करोड़ से बढ़कर ये 1027 करोड़ रुपये हो गया. यानी 93% का इजाफा
- एनसीपी को मिलने वाले चुनावी चंदे में 2016-17 में 793% की बढ़ोतरी हुई, एक साल में 71 लाख रुपये से चंदा 6.34 करोड़ रुपये हो गया
- 2016-17 में तृणमूल कांग्रेस के चंदे में 231%, सीपीएम के चंदे में 190% और कांग्रेस के चुनावी चंदे में 105% प्रतिशत की बढ़त देखने को मिली
किसे कितना मिला चंदा
- एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक सभी पार्टियों को साल 2016-17 में कुल 589.38 करोड़ रुपये चंदा मिला, जो 2123 अलग-अलग डोनेशन से मिला
- बीजेपी ने इस साल कुल 532.27 करोड़ रुपये चंदे का ब्योरा दिया, बताया गया कि ये 1194 डोनेशंस से मिला
- कांग्रेस को साल 2016-17 में 41.90 करोड़ रुपये का चंदा मिला
- बीजेपी को मिला कुल चंदा बाकी पार्टियों जैसे कांग्रेस, एनसीपी, सीपीआई, सीपीएम और टीएमसी को मिले कुल चंदे से करीब 9 गुना ज्यादा था
- बीएसपी ने घोषित किया कि उसे 2016-17 में 20 हजार से ज्यादा किसी ने भी डोनेशन नहीं दिया
बीजेपी को 2017-18 में इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए कुल 210 करोड़ रुपये मिले. जो कि कुल खरीदे गए इलेक्टोरल बॉन्ड का 95 प्रतिशत पैसा है. हाल ही में सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में ये भी कहा गया कि चंदे की जानकारी लोगों को देने की क्या जरूरत है
कैसे आता है सियासी चंदा?
राजनीतिक दलों ने चंदा लेने के लिए कई रास्ते खोले हुए हैं. यहां तक कि कुछ लोगों ने इसके चोर रास्ते तक निकाल रखे हैं. चुनाव के दौरान पकड़े जाने वाला करोड़ों रुपये का कैश इसी चोर रास्ते से गुजरकर आता है. जानिए पार्टियां चंदा लेने के लिए किन तरीकों का करती हैं इस्तेमाल
- चंदे का सबसे पहला सोर्स वॉलेंट्री यानी अपनी इच्छा से दिया जाने वाला फंड है
- कैश में मिलने वाले चंदे की लिमिट 2000 है, लेकिन पार्टियां कई बार इस अमाउंट को लेकर अपनी झोली भरती हैं
- लोकल बिजनेसमैन और कॉन्ट्रैक्टर सीधे उम्मीदवार को कैश या फिर बैंक खाते में पैसा ट्रांसफर करते हैं
- कई बड़ी कंपनियां अपने स्वार्थ को देखते हुए किसी भी राजनीतिक दल को इलेक्टोरल ट्रस्ट या बॉन्ड के जरिए करोड़ों रुपये देती हैं, इसे कॉरपोरेट फंडिग कहा जाता है
चुनावी चंदे से जुटाए गए पैसे का इस्तेमाल चुनाव के दौरान प्रचार और कई माध्यमों से होने वाली पब्लिसिटी पर होता है. इस पैसे का इस्तेमाल कई पार्टियां वोटर्स को लुभाने के लिए भी करती हैं. करोड़ों रुपये के इसी चंदे से वोट फॉर नोट का खेल चलता है. इससे लोगों को शराब, मोबाइल फोन और कैश दिया जाता है
इलेक्टोरल बॉन्ड से आए अच्छे दिन
चुनावी चंदा तो पिछले कई सालों से राजनीतिक पार्टियों के खजाने भरता आया है, लेकिन बीजेपी सरकार के इलेक्टोरल बॉन्ड वाले दांव के बाद रास्ता काफी साफ हो गया. इलेक्टोरल बॉन्ड इसलिए भी फायदेमंद है क्योंकि इससे किसने किस पार्टी को चंदा दिया इसकी जानकारी आम लोगों तक पहुंचना नामुमकिन है.
इलेक्टोरल बॉन्ड फाइनेंस एक्ट 2017 के तहत लाए गए थे. इलेक्टोरल बॉन्ड में भ्रष्टाचार इसी से नजर आता है कि जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 29 सी में बदलाव करते हुए कहा गया है कि इलेक्टोरल बॉन्ड से आए चंदे को चुनाव आयोग की जांच के दायरे से बाहर रखा जाएगा. हालांकि चुनाव आयोग ने इस पर आपत्ति जताई और कहा कि इससे पारदर्शिता खत्म हो जाएगी.
एक आरटीआई में खुलासा हुआ है कि इलेक्टोरल बॉन्ड लेने वालों में से 99.8 प्रतिशत ने सिर्फ10 लाख और करोड़ रुपये वाले बॉन्ड खरीदे. मार्च 2018 से 24 जनवरी 2019 के बीच कुल 1407.09 करोड़ के बॉन्ड खरीदे गए. इनमें से 1403.90 करोड़ के बॉन्ड 10 लाख और एक करोड़ रुपये के थे.
क्या हैं इलेक्टोरल बॉन्ड?
ये एक प्रकार के प्रोमिसरी नोट हैं, यानी ये धारक को उतना पैसा देने का वादा करते हैं. ये बॉन्ड सिर्फ और सिर्फ राजनीतिकपार्टियां ही भुना सकती हैं. ये बॉन्ड आप एक हजार, दस हजार, एक लाख, दस लाख और एक करोड़ की राशि में ही खरीद सकते हैं. ये इलेक्टोरल बॉन्ड आप स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनिंदा शाखाओं से ही ले सकते हैं. ये बॉन्ड आप अकेले, समूह में, कंपनी या फर्म या हिंदू अनडिवाडेड फैमिली के नाम पर खरीद सकते हैं.
ये बॉन्ड आप किसी भी राजनीतिक पार्टी को दे सकते हैं और खरीदने के 15 दिनों के अंदर उस राजनीतिक पार्टी को उस बॉन्ड को भुनाना जरूरी होगा, वरना वो पैसा प्रधानमंत्री राहत कोष में चला जाएगा. चुनाव आयोग द्वारा रजिस्टर्ड पार्टियां जिन्होंने पिछले चुनाव में कम से कम एक फीसदी वोट हासिल किया है, वो ही इन इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा लेने कीहकदार होंगी. चुनाव आयोग ऐसी पार्टियों को एक वेरिफाइड अकाउंट खुलवाएगी और इसी के जरिए इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे जा सकेंगे.
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