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- विजया पाठक
अनिल टुटेजा के खिलाफ लगाया था आरोप :
क्या गिरिश शर्मा को मिलेगा न्याय?
छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े और बहुचर्चित 36 हजार करोड के नान घोटाले के मुख्य आरोपी अनिल टुटेजा के खिलाफ पर्याप्त सबूत और साक्ष्य मौजूद होने के बाद अब अदालत कोई मील का पत्थर फैसला दे सकता है। इनका प्रकरण माननीय जज लीना अग्रवाल की अदालत में चल रहा है।
दूसरी तरफ अनिल टुटेजा की इंतरिम बेल पर बिलासपुर हाईकोर्ट ने सुनवाई पूरी कर मामला रिजर्व कर दिया है। आरोपी छत्तीसगढ़ शासन के एक सशक्त पद पर विराजमान है जहां से वह सरकार से प्राप्त शक्ति का भरपूर उपयोग कर रहे हैं। आज की तारीख में इस आरोपी पर शिकंजा कसने के बजाय मौजूदा सरकार एवं पूर्व सरकार दोनों ने उल्टा इनको फ्री हैण्ड ही दे दिया।
गिरिश शर्मा नान घोटाले के मुख्य गवाह हैं, जो नान घोटाले के अहम सूत्रधार रहे हैं। इनके पास ईओडब्ल्यू ने 20 लाख रुपये बरामद किये और बाद में गिरिश शर्मा को मुख्य गवाह बना लिया गया, जो की एक तरह से सही भी था। क्योंकि विवेचना में बड़े मगरमच्छ को पकड़ने के लिये छोटी मछलियों को छोड़ना जरुरी था।
इनके मुख्य गवाह बनाने के मामले में अनिल टुटेजा के वकीलों ने कोर्ट में आपत्ति भी जताई थी, और कहा इस मामले में ईओडब्ल्यू आरोपी को गवाह कैसे बना सकते हैं। जिस पर कोर्ट ने संज्ञान लिया और कहा कि गिरिश शर्मा, अरविंद ध्रुव और जीतराम यादव नान में पदस्थ थे और वहां के जिम्मेदार अधिकारियों के कहने पर काम करते थे। कोर्ट ने यह भी माना था कि वे प्रकरण में साक्ष्य की महत्वपूर्ण कडि़या है। यदि उन्हें आरोपी बनाया जाता है तो अपराध की महत्वपूर्ण कडि़या विलुप्त हो जाएंगी। इसलिए उन्हें आरेापी नही बनाया जा सकता।
नान घोटाले के अन्य आरोपी संदीप शर्मा, सतीश कैवर्त्य, सुधीर, आरपी पाठक, डीएस कुशवाह, कौशल किशोर यदु, शिवशंकर भट्ट की ओर से धारा 314 दप्रस का आवेदन एसीबी की अदालत में लगाया गया था। आरोपियों ने कहा था कि प्रथम सूचना पत्र में अन्य आरोपियों के नाम होने के बावजूद उनको आरोपी नही बनाया गया है। जबकि धारा 164 के बयान में अपने अपराध को स्वीकार किया है। फिर भी एसीबी ने गिरीश शर्मा, अरविंद ध्रुव और जीतराम यादव के खिलाफ चालान पेश नही किया।
इस पर कोर्ट ने कहा था कि न्यायहित में उन्हें आरोपी नहीं बनाया जा सकता है। कुल मिलाकर इन तीनों गवाही घोटाले की प्रमुख कड़ी रही है अब इनके बयान भी दर्ज हो चुके हैं। इन आरोपियों में शिवशंकर भट्ट लंबी जेल काट आये हैं। एक और महत्वपूर्ण घटना संज्ञान में लाना बहुत आवश्यक है, भारत के विवेचना के संपूर्ण इतिहास में किसी मामले में पहली बार ऐसा हुआ होगा जब गवाह पर पोस्ट फैक्टियो आय से अधिक संपत्ति के मामले में कार्यवाही की गई और करीब चार साल पहले बरामद रकम भी इस मामले के माध्यम से उसी व्यक्ति के मथ्थे मारने की कोशिश की गई है।
गिरिश शर्मा जिनके पास से ईओडब्ल्यू ने नान घोटालो के छापे में 20 लाख रुपये बरामद किये और इसी से संबंधित कोर्ट में उन्होंने बयान दिया कि यह पैसा अनिल टुटेजा का है। अब इस बयान के 6-8 महीने बाद ईओडब्ल्यू द्वारा पोस्ट फैक्टियो केस दर्ज कराना संदिग्ध दिखता है। सूत्रों के अनुसार जिसकी पुष्टि नही हो पाई है ऐसी जानकारी मिली है कि ईओडब्ल्यू ने जब विवेचना प्रारंभ कि तो गिरिश शर्मा की आय से अधिक संपत्ति 10 प्रतिशत से काफी कम पाई गई।
उस समय किसी महाशय के दबाव से आय से अधिक संपत्ति काफी बढ़ाकर 30 से 35 प्रतिशत का मामला बनाया गया। इसके बाद कोई महाशय और दबाव बनवाकर इसको 150 प्रतिशत आय से अधिक संपत्ति करने की जुगत में लगा हुआ है। ताकि सिम्बालिक तौर पर 5 साल पुराने ईओडब्ल्यू द्वारा जप्त किये हुये 20 लाख रुपये भी गिरिश शर्मा के दिखे। इस मामले में उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके।
ऐसी स्थिति में प्रदेश की वर्तमान सरकार को चाहिए वह तत्काल इन्हें लाभ के पदों से तुरंत हटा देना चाहिए। इतने बड़े और व्यापक घोटाले के परिणाम तक पहुंचाना चाहिए। अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला जैसे अपराधियों को अपने किए की सजा जरुर मिलना चाहिए। कोर्ट अपना काम कर रही है। सरकार को भी न्याय की लड़ाई में अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए।
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