भोपाल // विनय जी. डेविड (टाइम्स ऑफ क्राइम) mo. 9893221036
घपलेबाजों के घपलेबाज, घोटालों के महानायक कहें तो भी इन भ्रष्टाचारियों को कम पड़ेगा। इन भ्रष्टाचारी दरिन्दों ने जो किया वह किसी स्तर से भी इनको बख्शने के काबिल नहीं है। पिछले कई सालों से इस स्वास्थ्य विभाग में जितने भी संचालक आये उनने विभाग को अपने बाप की बपौती समझ कर नोंच-नोंच कर खा गये। देश में शिवराज सरकार को जो सुनना सहना पड़ा है, शायद वो उनकी जिन्दगी का सपना ही होगा, परन्तु इन घोषित मगरमच्छों ने तो प्रदेश कि उन जनता का खून चुस लिया जिनको खून चढ़ाने की आवश्यकता थी। विभाग के सर्वश्री घपलेबाज डॉ. योगी राज शर्मा, कमिश्नर राजेश राजौरा और उस पर पनौती डॉ. अशोक शर्मा ने जो किया उसका परिणाम सीधे इनको जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाना ही है। इनके घिनौने कृत्य ने देश में मध्यप्रदेश को भ्रष्टाचार की श्रेणी में प्रथम पायदान पर पहुंचा दिया है। इन रूपयों के हवसखोरों की भूख इतनी है कि ये अगर अपने पदों पर रहे तो पूरा प्रदेश बिमारू राज्य के पायदान पर में प्रथम होगा। इन नियुक्त लुटेरों ने दुआ नहीं प्रदेश के मरीजों की हाय का भण्डार बटोरा है जिन्हें कई बिमारियों के चलते दवाओं की आवश्यकता थी। जहां वो मौत से लड़ रहे थे उनको दवायें नहीं मिली, जबकि पूरे प्रदेश के उन गरीबों की जीवन स्वास्थ्य के साथ खेला है जो शासकीय दवाईंयों के सहारे अपना इलाज करवाने को मजबूर हैं। जो मौत के सामने बजट के अभाव में जीवन से हार गये। बजट की कही कमी नहीं थी। परन्तु विभाग में बैठे नासूरों ने इसे अपनी भूख मिटाने के लिये चीर फाड़ कर अनेकों बार बलात्कार किया है। इस ओछी हरकतों ने शिवराज सिंह चौहान की अच्छी खासी थू-थू करवाई है, परन्तु अपनी लाज शर्म के मारे वे कहें तो क्या कहें। पूरा का पूरा विधानसभा सत्र भ्रष्टाचार कि चित्कार से गंूज रहा है। जवाब देना, सामना करने को कुछ रहा नहीं मात्र समय पास करना इस भा.ज.पा. संचालित सरकार की हो गई है। ग्लूकोज में चल रही भ्रष्टाचारी संरक्षण सरकार चाहे जितना चाह ले इनको बचाकर रखने की परन्तु एक दिन तय है कि ये नासूर कैन्सर बन कर इनके जीवन की इललीला समाप्त कर देगा। भोले-भाले शिवराज इनकी तिगड़ी एवं प्रदेश की ए.आई.एस. लाबी के आगे नस्मस्तक हैं जो इस बात को संकेत देता है कि हमारा प्रदेश का मुख्यमंत्री काफी कमजोर है। अरे मुंह की फकर-फकर तो हर सूरमा भोपाली कर लेता है, अगर वाकई प्रशासनिक दर्द है, तो इन घोटालेबाजों को बर्खास्त कर इनकी समस्त संपत्ति जब्त कर पिछले तीन पीढिय़ों का हिसाब ले लेना चाहिये। आखिर इन तयशुदा लुटेरों ने पूर्ण संपत्ति कैसे आर्जित की है। क्यों इन भ्रष्टाचारियों के पीछे अपनी छी-छी लीदड़ करते फिर रहे हैं। ऐसी सटीक कार्यवाही करना चाहिये जिससे इन भ्रष्टाचारी रावणों की सात पीढ़ी भी दण्डनीय व्यवस्था में गंजी उत्पन्न हों। घोटालेबाजी अच्छी होती है उसके सुख अच्छे होते हैं। लेकिन परिणाम जेल की सलाखे ही होती है। कानून इतना अभी कमजोर नहीं की इन दानवों के आगे नापुंशक नजर आये। बात तो वक्त की है और बिकाऊ व्यवस्था की जो अपनी बुज़दीली के आगे अपने घुटने टेक दे। भ्रष्टाचार के आगे अगर शिवराज सिंह चौहान झुक रहें हैं तो हमारी सलाह है उनको इतने भ्रष्टाचार के आगे अपना श्वेतपत्र हथियार डाल देना चाहिये। अगर नहीं तो मर्दों की भान्ति कानूनी परिक्रमा में इन चौट्टों को अपनी कामचोरी का फायदा उठाने का सबक जरूर देना चाहिये ये तो छोटी लड़ाई है गांधी जी ने तो देश से अंग्रेजों को भगाया था ये तो मात्र विभागीय लुटेरे हैं। अगर इनके आगे नस्मस्तक हो गये तो अनेकों विभाग हैं जिसके महायोद्धा आपको धूल चटा देगें।आखिर क्यों नहीं होती समय रहते कार्यवाहीइन भस्मासूरों पर कार्यवाही करने, ना करने के पीछे सरकार की दवाबी राजनीति होती है, पीछे से माल बटोरने की। और शिकायतों को दबा-दबा कर मुद्दों की हवा निकलने की रणनीति काम करती है। अधिकारी वर्ग एक दूसरे से जब तक खुन्दक ना हो, तब तक कोई कार्यवाही नहीं करते। यहां पर घोटालेबाज एक दूसरे को अपना घोटालेभाई मानते हैं। जब मुद्दा सार्वजनिक हो जाता है, जो जांच और टाला मटोली के शब्दबाण चलते हैं, परन्तु सालों में जांचे पूरी नहीं होती। अब हमारे इन घोटालेबाजों की ही शिकायतें लें लेते तो सारा माजरा कई सालों पहले खुल जाता, श्रीमान डाक्टर भ्रष्टाचारी महोदय योगीराज के तो काले कारनामों की तो काफी लम्बी चौड़ी लिस्ट है, अनेकों बार इनके घपले समाचार पत्रों, मैग्जिनों में चिघांड़ रहे थे, परन्तु आंख की अंधी, कान की बहरी प्रशासनिक लाबी कुंभकरण निकली, प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज को भी कई शिकायतें दी गई परन्तु ना जाने कौन सी मजबूरी रही कि वे भी पूर्ण स्वास्थ्य मंत्री के साथ स्प्रिंग गर्दन वाले गुड्डे के जैसे सिर हिलाते रहे और इनको मूक सहमति दे दी। कार्यवाही अब की तो क्यों घोटाले की हद पार हो गई, करोड़ों का बजट ये लुटेरे लुट गये, अपनी बीबी, बच्चों को खूब खिला-पिला कर मुस्टंडा बना दिया, अब क्या है कार्यवाही करो न करो।भ्रष्टाचारों पर लगामसरकार को चाहिये की सभी बजट ऑन लाईन कर दें वही आय-व्यय की पूर्ण जानकारी एक क्लिक पर सार्वजनिक हो पूरा खर्चा वितरण नाम सहित शो कर देना चाहिये, जब सब खुला रहेगा तो अनेकों नजर पड़ेगी जल्दी घपला पकड़ा जायेगा और पोल खुल जायेगी, ऐसे कई और तरीके हैं जिससे भ्रष्टाचारों पर लगाम लगाई जा सकती
घपलेबाजों के घपलेबाज, घोटालों के महानायक कहें तो भी इन भ्रष्टाचारियों को कम पड़ेगा। इन भ्रष्टाचारी दरिन्दों ने जो किया वह किसी स्तर से भी इनको बख्शने के काबिल नहीं है। पिछले कई सालों से इस स्वास्थ्य विभाग में जितने भी संचालक आये उनने विभाग को अपने बाप की बपौती समझ कर नोंच-नोंच कर खा गये। देश में शिवराज सरकार को जो सुनना सहना पड़ा है, शायद वो उनकी जिन्दगी का सपना ही होगा, परन्तु इन घोषित मगरमच्छों ने तो प्रदेश कि उन जनता का खून चुस लिया जिनको खून चढ़ाने की आवश्यकता थी। विभाग के सर्वश्री घपलेबाज डॉ. योगी राज शर्मा, कमिश्नर राजेश राजौरा और उस पर पनौती डॉ. अशोक शर्मा ने जो किया उसका परिणाम सीधे इनको जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाना ही है। इनके घिनौने कृत्य ने देश में मध्यप्रदेश को भ्रष्टाचार की श्रेणी में प्रथम पायदान पर पहुंचा दिया है। इन रूपयों के हवसखोरों की भूख इतनी है कि ये अगर अपने पदों पर रहे तो पूरा प्रदेश बिमारू राज्य के पायदान पर में प्रथम होगा। इन नियुक्त लुटेरों ने दुआ नहीं प्रदेश के मरीजों की हाय का भण्डार बटोरा है जिन्हें कई बिमारियों के चलते दवाओं की आवश्यकता थी। जहां वो मौत से लड़ रहे थे उनको दवायें नहीं मिली, जबकि पूरे प्रदेश के उन गरीबों की जीवन स्वास्थ्य के साथ खेला है जो शासकीय दवाईंयों के सहारे अपना इलाज करवाने को मजबूर हैं। जो मौत के सामने बजट के अभाव में जीवन से हार गये। बजट की कही कमी नहीं थी। परन्तु विभाग में बैठे नासूरों ने इसे अपनी भूख मिटाने के लिये चीर फाड़ कर अनेकों बार बलात्कार किया है। इस ओछी हरकतों ने शिवराज सिंह चौहान की अच्छी खासी थू-थू करवाई है, परन्तु अपनी लाज शर्म के मारे वे कहें तो क्या कहें। पूरा का पूरा विधानसभा सत्र भ्रष्टाचार कि चित्कार से गंूज रहा है। जवाब देना, सामना करने को कुछ रहा नहीं मात्र समय पास करना इस भा.ज.पा. संचालित सरकार की हो गई है। ग्लूकोज में चल रही भ्रष्टाचारी संरक्षण सरकार चाहे जितना चाह ले इनको बचाकर रखने की परन्तु एक दिन तय है कि ये नासूर कैन्सर बन कर इनके जीवन की इललीला समाप्त कर देगा। भोले-भाले शिवराज इनकी तिगड़ी एवं प्रदेश की ए.आई.एस. लाबी के आगे नस्मस्तक हैं जो इस बात को संकेत देता है कि हमारा प्रदेश का मुख्यमंत्री काफी कमजोर है। अरे मुंह की फकर-फकर तो हर सूरमा भोपाली कर लेता है, अगर वाकई प्रशासनिक दर्द है, तो इन घोटालेबाजों को बर्खास्त कर इनकी समस्त संपत्ति जब्त कर पिछले तीन पीढिय़ों का हिसाब ले लेना चाहिये। आखिर इन तयशुदा लुटेरों ने पूर्ण संपत्ति कैसे आर्जित की है। क्यों इन भ्रष्टाचारियों के पीछे अपनी छी-छी लीदड़ करते फिर रहे हैं। ऐसी सटीक कार्यवाही करना चाहिये जिससे इन भ्रष्टाचारी रावणों की सात पीढ़ी भी दण्डनीय व्यवस्था में गंजी उत्पन्न हों। घोटालेबाजी अच्छी होती है उसके सुख अच्छे होते हैं। लेकिन परिणाम जेल की सलाखे ही होती है। कानून इतना अभी कमजोर नहीं की इन दानवों के आगे नापुंशक नजर आये। बात तो वक्त की है और बिकाऊ व्यवस्था की जो अपनी बुज़दीली के आगे अपने घुटने टेक दे। भ्रष्टाचार के आगे अगर शिवराज सिंह चौहान झुक रहें हैं तो हमारी सलाह है उनको इतने भ्रष्टाचार के आगे अपना श्वेतपत्र हथियार डाल देना चाहिये। अगर नहीं तो मर्दों की भान्ति कानूनी परिक्रमा में इन चौट्टों को अपनी कामचोरी का फायदा उठाने का सबक जरूर देना चाहिये ये तो छोटी लड़ाई है गांधी जी ने तो देश से अंग्रेजों को भगाया था ये तो मात्र विभागीय लुटेरे हैं। अगर इनके आगे नस्मस्तक हो गये तो अनेकों विभाग हैं जिसके महायोद्धा आपको धूल चटा देगें।आखिर क्यों नहीं होती समय रहते कार्यवाहीइन भस्मासूरों पर कार्यवाही करने, ना करने के पीछे सरकार की दवाबी राजनीति होती है, पीछे से माल बटोरने की। और शिकायतों को दबा-दबा कर मुद्दों की हवा निकलने की रणनीति काम करती है। अधिकारी वर्ग एक दूसरे से जब तक खुन्दक ना हो, तब तक कोई कार्यवाही नहीं करते। यहां पर घोटालेबाज एक दूसरे को अपना घोटालेभाई मानते हैं। जब मुद्दा सार्वजनिक हो जाता है, जो जांच और टाला मटोली के शब्दबाण चलते हैं, परन्तु सालों में जांचे पूरी नहीं होती। अब हमारे इन घोटालेबाजों की ही शिकायतें लें लेते तो सारा माजरा कई सालों पहले खुल जाता, श्रीमान डाक्टर भ्रष्टाचारी महोदय योगीराज के तो काले कारनामों की तो काफी लम्बी चौड़ी लिस्ट है, अनेकों बार इनके घपले समाचार पत्रों, मैग्जिनों में चिघांड़ रहे थे, परन्तु आंख की अंधी, कान की बहरी प्रशासनिक लाबी कुंभकरण निकली, प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज को भी कई शिकायतें दी गई परन्तु ना जाने कौन सी मजबूरी रही कि वे भी पूर्ण स्वास्थ्य मंत्री के साथ स्प्रिंग गर्दन वाले गुड्डे के जैसे सिर हिलाते रहे और इनको मूक सहमति दे दी। कार्यवाही अब की तो क्यों घोटाले की हद पार हो गई, करोड़ों का बजट ये लुटेरे लुट गये, अपनी बीबी, बच्चों को खूब खिला-पिला कर मुस्टंडा बना दिया, अब क्या है कार्यवाही करो न करो।भ्रष्टाचारों पर लगामसरकार को चाहिये की सभी बजट ऑन लाईन कर दें वही आय-व्यय की पूर्ण जानकारी एक क्लिक पर सार्वजनिक हो पूरा खर्चा वितरण नाम सहित शो कर देना चाहिये, जब सब खुला रहेगा तो अनेकों नजर पड़ेगी जल्दी घपला पकड़ा जायेगा और पोल खुल जायेगी, ऐसे कई और तरीके हैं जिससे भ्रष्टाचारों पर लगाम लगाई जा सकती