मदन झा
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नयी दिल्ली, देश का सबसे बड़ा गैर-सरकारी संगठन सुलभ इंटरनेशनल ससुराल में शौचालय नहीं होने के कारण अपने पति से लगभग तलाक के कगार पर पहुँच चुकी एक दलित महिला को दो लाख रुपये का नकद पुरस्कार देगा.
मध्य प्रदेश में देवास जिले के मुंडलाना गांव के देवकरण और उसकी पत्नी सविता का संबंध लगभग तलाक के कगार पर पहुंच गया था और इसकी एक मात्र वजह थी, घर में शौचालय का न होना. ससुराल में शौचालय न होने के कारण सविता को खुले में शौच करने जाना पड़ता था, जो उसे गंवारा न था.
सविता की शादी आठ वर्ष पहले भूमिहीन मजदूर देवकरण के साथ हुई थी. चार वर्ष तक किसी तरह असुविधाजनक स्थिति झेलने वाली सविता के लाख कहने पर भी जब शौचालय नहीं बन सका तो वह अपने मायके रोजारी गांव लौट आई. इतना ही नहीं उसने परिवार अदालत में गुजारा भत्ता के लिए भी अर्जी दे दी थी.
जब अदालत को गत 24 दिसम्बर को यह पता चला कि दोनों के बीच रिश्ते में आई खटास का एक मात्र कारण शौचालय की कमी है, तो उसने शौचालय बनाकर रिश्ते को दोबारा पटरी पर लाने के लिए 10 जनवरी तक का समय देवकरण को दिया था. सविता शौचालय बनने के बाद ससुराल लौट आई. वह हंसी-खुशी रह रही है. इस घटना की जानकारी के बाद स्वच्छता क्षेत्र के अग्रणी संगठन सुलभ ने अनुसूचित जाति के इस परिवार के लिए एक अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस शौचालय का निर्माण कराया है.
सुलभ आंदोलन के प्रणेता डॉ. बिन्देश्वर पाठक ने बताया कि वह शौचालय के लिए प्रेरणास्रोत का काम करने वाली सविता को जल्द ही दो लाख रुपये का नकद पुरस्कार देंगे. उन्होंने कहा कि उनका संगठन यह प्रयास करेगा कि सविता स्वच्छता के प्रति उनके अभियान में शामिल हों और प्रेरणास्रोत के तौर पर इलाके में कार्य करें.
डॉ. पाठक ने कहा कि वह साहस का परिचय देने वाली सविता के ससुराल व्यक्तिगत रूप से जाएंगे और एक कार्यक्रम में उन्हें नकद पुरस्कार से सम्मानित करेंगे. गांव में एक सामूहिक भोज का भी आयोजन किया जाएगा.
परिवार अदलत ने अपने अंतरिम आदेश में कहा है कि यह बहुत ही आश्चर्यजनक है कि शौचालय बनाने का जो काम स्थानीय निकाय को करना चाहिए था, वह काम एक गैर-सरकारी संगठन ने किया है.
सुलभ ने 2011 में मध्य प्रदेश के बैतूल जिले की आदिवासी महिला अनिता नर्रे को भी सम्मानित किया था. उसने भी शौचालय के अभाव में शादी के तुरंत बाद ही ससुराल छोड़ दिया था और शौचालय बनने के बाद ही मायके से ससुराल वापस आई थी.
संगठन ने ऐसे ही साहस का परिचय देते हुए मायके लौट जाने वाली उत्तर प्रदेश के महाराजगंज की प्रियंका भारती को भी सम्मानित किया था.