-इंदौर के सीए ने लिखा सीएम को लिखा खुला पत्र
माननीय श्री शिवराज जी चौहान
मुख्यमंत्रीजी
विषय : मध्यप्रदेश के स्कुलों में फीस वृद्धि हेतु जारी गाइडलाइन पर एक विवेचना व् अनुरोध
धन्यवाद् की आप के १२ साल के कार्यकाल में आपके मातहत विद्वान् अफसर आपकी सरकार के सदन में पूर्ण बहुमत के बावजूद के कानून के बजाये एक गाइडलाइन ले कर आये है|
आप जानते है की शिक्षा का क्षेत्र लाभ का क्षेत्र नहीं माना गया है इसलिए सरकार इसे ट्रस्ट और सोसाइटी के माध्यम से गैर लाभकारी संघठन के मातहत चलाया जाता है|
ये वो क्षेत्र है जो देश की भावी पीढ़ी कैसी हो निर्धारित करता है| शिक्षा को सबसे महत्वपूर्ण मानते है इसलिए शिक्षा क्षेत्र में कोई कर नहीं है है न आयकर न सेवा कर न विक्रय कर न ही कोई अन्य कर. |
शिक्षा का क्षेत्र कोई मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री नहीं है जहाँ कच्चे माल की लागत हा रोज बढती रहे या रोज माल बेचने के लिए मार्केटिंग टीम की जरुरत पढ़े . न ही ऐसा क्षेत्र है जहाँ रोजमर्रा की तरह रिश्वत की जरुरत पढ़े|
किसी भी स्कूल के संचलन का मुख्य खर्च उस स्कूल की बिल्डिंग और कर्मचारियों की सैलरी रहती है |
और इसमें से स्कूल बिल्डिंग का खर्च तो एक मुस्त रहता है जिसमे लागत वृद्धि नहीं होती अपितु डेप्रिसिएशन होता है और वह भावी सुविधाओ के संचय के लिए संचय बन जाता है |
रही बात कर्मचारियों के वेतन की तो यह वसूल की जाने वाली फीस और फीस वृद्धि में मुकाबले बहुत ही कम रकम होती है , तिस पर इतने गहन विचार विमर्श कर आपकी टीम ने १०% के जनरल बढ़ोतरी की अनुमति दे कर पलको की कमर तोड़ कर रख दी| आपकी गाइडलाइन में स्कूल संघ की और से जो फीस वृद्धि के पक्ष में जो भी तर्क दिए है क्या आपके अफसरों ने उन तथ्यो की विवेचना भी की है?
गाइडलाइन के para ३ में बताये गए स्कूल के पक्ष की विवेचना :-
==========================================
फीस वृद्धि का सबसे महत्वपूर्ण कारन नंबर १ पर उनका योगदान है
क्या शिक्षा के क्षेत्र में किसी शिक्षण संसथान का महत्वपूर्ण योगदान रहा है तो वह फीस वृद्धि का कारन रहेगा ?
2. शिक्षा की गुणवत्ता को आधार बनाया गया है ? क्या शिक्षा की गुणवत्ता की जाँच की है आपने इस गाइडलाइन को बनाते समय ?
क्या ऊच्च शिक्षा का मापदंड किसी स्कूल में कितने एयरकंडीशन लगे है उस पर निर्धारित किया जाता है या उसके शिक्षक से ? किसी भी स्कूल में शिक्षा में गुणवत्ता का मापदंड उसका शिक्षक होता है ,तो क्या स्कूल अपने शिक्षको को उनकी योग्यता के आधार पर अलग अलग तनख्वा देता है ? क्या अफसरों ने उन स्कूलो में शिक्षको को क्या सैलरी दी जा रही है ये जानने की कोशिश की ?
संस्था में उपलब्ध सुविधाओ और गुणवत्ता के आधार पर पालको द्वारा स्वेच्छा से एडमिशन लिया जाता है
इसका मतलब यह हुआ की एडमिशन के बाद हर वर्ष मन मने तरीके से स्कूल को फीस बढ़ने का लाइसेंस मिल गया ? क्या हर बार फीस बढ़ोतरी के बाद पलक हर वर्ष स्कूल परिवर्तन करवाए?
क्या हर वर्ष उपलब्ध सुविधाओ और गुणवत्ता का कोई मापदंड पूर्वक कोई मूल्याङ्कन होता है ? जीके आधार पर फीस वृधि की जा सके ? माफ़ कीजियेगा यदि एसा कोई मानदंड स्थापित यदि हो गया तो ९५% स्कूलो की फीस वृद्धि में १०-१० साल लग जायेंगे
वस्तुतः सुविधाओ के नाम पर स्कूल अंधाधुन्द लाभ कमाने के साधन बन गए है!
उपलब्ध करवाई जाने वाली सुविधाओ पर बहुत व्यय होता है इसलिए हर साल फीस वृद्धि जायज है
क्या आपकी सरकार ने इन स्कूलो द्वारा सुविधाओ का कोई मुल्याकन के लिए कोई मापदंड बनाये है ?
जब हर स्कूल द्वारा उपलब्ध करवाई जाने वाली सुविधा अलग अलग है है तो फीस वृद्धि क्यों नहीं स्कूल का स्वतंत्र मल्यांकन के आधार पर बढाई जाने की अनुशंषा क्यों नहीं की गयी सभी स्कूलो को एक जैसी १०% फीस बढ़ने की अनुशंषा क्यों की गयी ?
क्या इस बात की कोई गाइडलाइन है कि स्कूल में क्या क्या न्यूनतम सुविधा होना चाहिए ? और उस न्यूनतम सुविधा पर सामान्यतः क्या खर्च होता है ?
अच्छा तो यह होता की सभी स्कूलों द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधाओ का स्वतंत्र मूल्याङ्कन होता और उस मूल्याङ्कन की रेटिंग के आधार पर हर स्कूल को अलग अलग रेटिंग मिलती और उस रेटिंग के आधार पर स्कूल फीस वृद्धि के लिए योग्य होता !
बेहतर शिक्षक , और शिक्षण की बेहतर तकनीक और बेहतर सुविधाए ?
क्या अफसरान विचारिक तोर पर इतने कमजोर है की एक ही बात को ४ बार अलग लग तरीके से कहने पर उन्हें मुद्दा समझ नहीं आएगा?
क्या स्कूल शिक्षको को उनके द्वारा पढाई जाने वाली तकनीक के आधार पर तनख्वा देते है ?
हर वर्ष शिक्षा के क्षेत्र में ऐसी कौन सी तकनीक आ जाती है जो हर वर्ष उसमे फीस वृधि की जरुरत पढ़ जाती है ?
रही बात सुविधाओ की तो जब पालक एडमिशन के समय ही आपकी सुविधाओ की कीमत चूका देता है तो हर वर्ष ऐसी कौन सी सुविधाए नयी प्रदान की जाती है जो आपको फीस वृद्धि का आधार लगती है ?
यदि बच्चो को प्रदान की जाने वाली सुविधाओ पर नजर डाले तो पता चलता है की इन सुविधाओ के संधारण पर एसा कोई विशेष खर्च नहीं होता जिसके लिए उन्हें प्रतिवर्ष १०% अक की फीस वृद्धि की जरुरत पढ़े! मसलन पिने के पानी ,खेल का मैदान , कंप्यूटर लेब , साइंस लैब , पुस्तकालय. सभी बच्चो से भोजन और यातायात की सुविधा का खर्च अलग से लिया जाता है जो स्कूल की फीस में शामिल नहीं होता!
हर स्कूल के सुविधाए भिन्न भिन्न होती है अतः उनकी पारस्परिक तुलना कठीण हैं
दुर्भाग्य से हम सभी स्कूलो में एक जैसी शिक्षण की किताबे तो प्रस्तावित न कर पाए तो और न स्कूलो को अलग अलग छोटी छोटी आधारभूत सुविधाए तो सुनिश्चित कर पाए और न उनके लिए कोई मानदंड स्थापित कर पाए| स्कूल में दी जाने वाली छोटी छोटी सुविधा में छोटा सा परिवर्तन फीस बढ़ने का बड़ा मुद्दा बन जाता है !
सुविधाए भिन्न भिन्न है तो सभी स्कूलों को भिन्न भिन्न सुविधाओ के आधार पर १०% तक फीस बढ़ने का मनमानी छुट क्यों दी गयी ?
सभी स्कूलों द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधा की रेटिंग होना चाहिए! शैक्षणिक स्टार की रेटिंग होना चाहिए जिससे सभी स्कूलों में आपस में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और छात्रो को सही शिक्षा का स्तर मिलेगा !
सभी संस्थाओ पर शुल्क का निर्धारण एक सा नहीं किया जा सकता
फिर क्यों सभी संस्थाओ को १०% तक की फीस बिना अप्रूवल का अधिकार क्यों दिया ?
फिर भी संस्थाओ को शुल्क बढ़ने की स्वंतत्रता दी जानी चाहिए ?
क्यों सरकार निजी शिक्षण संस्थाओ के ये लचर तर्क मान कर उनके हाथो की कठपुतली बनी है ?
फीस
महोदय हम पलक गण को १०% फीस की वृधि ही बहुत ज्यादा लग रही थी आपने तो अब सभी संस्थाओ को १०% फीस बिना अनुमति का कानूनन अधिकार उनके हाथ में दे दिया और सभी पलक गण आपसे आस लगाये बैठे थे की आप कोई बुद्धिपूर्वक निर्णय लेंगे
परन्तु आपकी सारकार का निर्णय पूरी तरह निजी संस्थाओ के पक्ष में जाता हुआ प्रतीत होता दिखाई पढ़ रहः है
मनमानी फीस की सुनवाई एक छलावा मात्र है जब संस्थाओ को १०% बढ़ने का अधिकार दे ही दिया है तो मनमानी फीस की बात तो ख़तम हो गयी
किताब
अफ़सोस है की जारी गाइडलाइन में संस्थाओ के सभी हितो का ध्यान रखा गया है | गाइडलाइन में उम्मीद की जा रही थी की स्कूलो में सिर्फ NCERT की किताबो को अधिमान्यता दी जाएगी और निजी प्रकाशकों की महँगी किताबो से छुटकारा मिल सकेगा
आज हर स्कूल अपनी मन माफिक किताब चुनने का अधिकार रखता है क्यों हर स्कूल में सुविधाओ के नाम पर अलग अलग किताबे पढाई जाती है | संस्थाओ और पुस्तक प्रकाशकों की साठगांठ पर नकेल क्यों नहीं कसी गयी ? आपने दिखावे के लिए किताबो को ३ दुकान पर उपलब्ध करवाने का आदेश दिया है |
माफ़ कीजियेगा अफसरशाही शायद इस मुद्दे पर या तो अनुभवहीन है या निजी संस्थाओ के हितो के लिए ये नूरा नियम बना दिया जिससे पलक ठगे न महसूस करे | जब पब्लिशर ही स्कूल संचालक से पूर्व में अनुबंध कर लेगा की अमुक किताब अगले सत्र में पढाई जाएगी तो दुकानदार क्या कर लेगा ? सामान्य सी बात है जब एक ही पाठ्यक्रम जब NCERT के पास उपलब्ध है तो फिर स्कूलो को अलग अलग किताबे खरीदने की अनुमंती देना समझ से परे है क्या कारण है की प्राइवेट प्रकाशकों की किताबों को रखने की छुट दी जा रही है
जब सामान्य ज्ञान के पालक ही इस छोटी सी बात समझते है तो विशिस्ट ज्ञान व् योग्यता से युक्त अफसरान क्यों नहीं समझते होंगे ? लेकिन शायद निजी हित के आगे सब मजबुर है !
अलग अलग किताबो के नाम पर बच्चो में शिक्षा गत हीनभावना बढती जा रही है एक स्कूल में H फॉर Hen एक स्कूल में H for Horse और एक स्कूल में H for Hippopotomus पढाया जा रहा है
क्यों नहीं सामान शिक्षा के अधिकार में सामन किताब से शिक्षा का अधिकार शामिल किया जाए ? हर वर्ष सुविधा के नाम पर नया पाठ्यक्रम नयी किताबे और पब्लिशर से मोटा कमीशन स्कूल संचालक की जेब में पहुच जाता है जिसका कोई हिसाब नहीं | 50-50 पेज की किताबे निजी प्रकाशकों द्वारा Rs 150-200 में बेचीं जा रह है ! बाजारवाद के नाम पर शिक्षा से खिलवाड़ क्यों किया जा रहा है यह समझ से परे है !!
स्कूल ड्रेस
धन्यवाद् आपको की गाइडलाइन में आपने ५ साल में एक बार ड्रेस परिवर्तन का प्रावधान रखा | क्या जरुरत है स्कूलो की अलग अलग ड्रेस रखने की | और आज के स्कूल तो एक कदम आगे है इन में तो आजकल हर एक क्लास में अलग अलग हाउस के नाम पर अलग अलग कलर की ड्रेस का कोड लागु है (Like Red house, blue house)
माननीय श्री शिवराज जी चौहान
मुख्यमंत्रीजी
विषय : मध्यप्रदेश के स्कुलों में फीस वृद्धि हेतु जारी गाइडलाइन पर एक विवेचना व् अनुरोध
धन्यवाद् की आप के १२ साल के कार्यकाल में आपके मातहत विद्वान् अफसर आपकी सरकार के सदन में पूर्ण बहुमत के बावजूद के कानून के बजाये एक गाइडलाइन ले कर आये है|
आप जानते है की शिक्षा का क्षेत्र लाभ का क्षेत्र नहीं माना गया है इसलिए सरकार इसे ट्रस्ट और सोसाइटी के माध्यम से गैर लाभकारी संघठन के मातहत चलाया जाता है|
ये वो क्षेत्र है जो देश की भावी पीढ़ी कैसी हो निर्धारित करता है| शिक्षा को सबसे महत्वपूर्ण मानते है इसलिए शिक्षा क्षेत्र में कोई कर नहीं है है न आयकर न सेवा कर न विक्रय कर न ही कोई अन्य कर. |
शिक्षा का क्षेत्र कोई मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री नहीं है जहाँ कच्चे माल की लागत हा रोज बढती रहे या रोज माल बेचने के लिए मार्केटिंग टीम की जरुरत पढ़े . न ही ऐसा क्षेत्र है जहाँ रोजमर्रा की तरह रिश्वत की जरुरत पढ़े|
किसी भी स्कूल के संचलन का मुख्य खर्च उस स्कूल की बिल्डिंग और कर्मचारियों की सैलरी रहती है |
और इसमें से स्कूल बिल्डिंग का खर्च तो एक मुस्त रहता है जिसमे लागत वृद्धि नहीं होती अपितु डेप्रिसिएशन होता है और वह भावी सुविधाओ के संचय के लिए संचय बन जाता है |
रही बात कर्मचारियों के वेतन की तो यह वसूल की जाने वाली फीस और फीस वृद्धि में मुकाबले बहुत ही कम रकम होती है , तिस पर इतने गहन विचार विमर्श कर आपकी टीम ने १०% के जनरल बढ़ोतरी की अनुमति दे कर पलको की कमर तोड़ कर रख दी| आपकी गाइडलाइन में स्कूल संघ की और से जो फीस वृद्धि के पक्ष में जो भी तर्क दिए है क्या आपके अफसरों ने उन तथ्यो की विवेचना भी की है?
गाइडलाइन के para ३ में बताये गए स्कूल के पक्ष की विवेचना :-
==========================================
फीस वृद्धि का सबसे महत्वपूर्ण कारन नंबर १ पर उनका योगदान है
क्या शिक्षा के क्षेत्र में किसी शिक्षण संसथान का महत्वपूर्ण योगदान रहा है तो वह फीस वृद्धि का कारन रहेगा ?
2. शिक्षा की गुणवत्ता को आधार बनाया गया है ? क्या शिक्षा की गुणवत्ता की जाँच की है आपने इस गाइडलाइन को बनाते समय ?
क्या ऊच्च शिक्षा का मापदंड किसी स्कूल में कितने एयरकंडीशन लगे है उस पर निर्धारित किया जाता है या उसके शिक्षक से ? किसी भी स्कूल में शिक्षा में गुणवत्ता का मापदंड उसका शिक्षक होता है ,तो क्या स्कूल अपने शिक्षको को उनकी योग्यता के आधार पर अलग अलग तनख्वा देता है ? क्या अफसरों ने उन स्कूलो में शिक्षको को क्या सैलरी दी जा रही है ये जानने की कोशिश की ?
संस्था में उपलब्ध सुविधाओ और गुणवत्ता के आधार पर पालको द्वारा स्वेच्छा से एडमिशन लिया जाता है
इसका मतलब यह हुआ की एडमिशन के बाद हर वर्ष मन मने तरीके से स्कूल को फीस बढ़ने का लाइसेंस मिल गया ? क्या हर बार फीस बढ़ोतरी के बाद पलक हर वर्ष स्कूल परिवर्तन करवाए?
क्या हर वर्ष उपलब्ध सुविधाओ और गुणवत्ता का कोई मापदंड पूर्वक कोई मूल्याङ्कन होता है ? जीके आधार पर फीस वृधि की जा सके ? माफ़ कीजियेगा यदि एसा कोई मानदंड स्थापित यदि हो गया तो ९५% स्कूलो की फीस वृद्धि में १०-१० साल लग जायेंगे
वस्तुतः सुविधाओ के नाम पर स्कूल अंधाधुन्द लाभ कमाने के साधन बन गए है!
उपलब्ध करवाई जाने वाली सुविधाओ पर बहुत व्यय होता है इसलिए हर साल फीस वृद्धि जायज है
क्या आपकी सरकार ने इन स्कूलो द्वारा सुविधाओ का कोई मुल्याकन के लिए कोई मापदंड बनाये है ?
जब हर स्कूल द्वारा उपलब्ध करवाई जाने वाली सुविधा अलग अलग है है तो फीस वृद्धि क्यों नहीं स्कूल का स्वतंत्र मल्यांकन के आधार पर बढाई जाने की अनुशंषा क्यों नहीं की गयी सभी स्कूलो को एक जैसी १०% फीस बढ़ने की अनुशंषा क्यों की गयी ?
क्या इस बात की कोई गाइडलाइन है कि स्कूल में क्या क्या न्यूनतम सुविधा होना चाहिए ? और उस न्यूनतम सुविधा पर सामान्यतः क्या खर्च होता है ?
अच्छा तो यह होता की सभी स्कूलों द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधाओ का स्वतंत्र मूल्याङ्कन होता और उस मूल्याङ्कन की रेटिंग के आधार पर हर स्कूल को अलग अलग रेटिंग मिलती और उस रेटिंग के आधार पर स्कूल फीस वृद्धि के लिए योग्य होता !
बेहतर शिक्षक , और शिक्षण की बेहतर तकनीक और बेहतर सुविधाए ?
क्या अफसरान विचारिक तोर पर इतने कमजोर है की एक ही बात को ४ बार अलग लग तरीके से कहने पर उन्हें मुद्दा समझ नहीं आएगा?
क्या स्कूल शिक्षको को उनके द्वारा पढाई जाने वाली तकनीक के आधार पर तनख्वा देते है ?
हर वर्ष शिक्षा के क्षेत्र में ऐसी कौन सी तकनीक आ जाती है जो हर वर्ष उसमे फीस वृधि की जरुरत पढ़ जाती है ?
रही बात सुविधाओ की तो जब पालक एडमिशन के समय ही आपकी सुविधाओ की कीमत चूका देता है तो हर वर्ष ऐसी कौन सी सुविधाए नयी प्रदान की जाती है जो आपको फीस वृद्धि का आधार लगती है ?
यदि बच्चो को प्रदान की जाने वाली सुविधाओ पर नजर डाले तो पता चलता है की इन सुविधाओ के संधारण पर एसा कोई विशेष खर्च नहीं होता जिसके लिए उन्हें प्रतिवर्ष १०% अक की फीस वृद्धि की जरुरत पढ़े! मसलन पिने के पानी ,खेल का मैदान , कंप्यूटर लेब , साइंस लैब , पुस्तकालय. सभी बच्चो से भोजन और यातायात की सुविधा का खर्च अलग से लिया जाता है जो स्कूल की फीस में शामिल नहीं होता!
हर स्कूल के सुविधाए भिन्न भिन्न होती है अतः उनकी पारस्परिक तुलना कठीण हैं
दुर्भाग्य से हम सभी स्कूलो में एक जैसी शिक्षण की किताबे तो प्रस्तावित न कर पाए तो और न स्कूलो को अलग अलग छोटी छोटी आधारभूत सुविधाए तो सुनिश्चित कर पाए और न उनके लिए कोई मानदंड स्थापित कर पाए| स्कूल में दी जाने वाली छोटी छोटी सुविधा में छोटा सा परिवर्तन फीस बढ़ने का बड़ा मुद्दा बन जाता है !
सुविधाए भिन्न भिन्न है तो सभी स्कूलों को भिन्न भिन्न सुविधाओ के आधार पर १०% तक फीस बढ़ने का मनमानी छुट क्यों दी गयी ?
सभी स्कूलों द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधा की रेटिंग होना चाहिए! शैक्षणिक स्टार की रेटिंग होना चाहिए जिससे सभी स्कूलों में आपस में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और छात्रो को सही शिक्षा का स्तर मिलेगा !
सभी संस्थाओ पर शुल्क का निर्धारण एक सा नहीं किया जा सकता
फिर क्यों सभी संस्थाओ को १०% तक की फीस बिना अप्रूवल का अधिकार क्यों दिया ?
फिर भी संस्थाओ को शुल्क बढ़ने की स्वंतत्रता दी जानी चाहिए ?
क्यों सरकार निजी शिक्षण संस्थाओ के ये लचर तर्क मान कर उनके हाथो की कठपुतली बनी है ?
फीस
महोदय हम पलक गण को १०% फीस की वृधि ही बहुत ज्यादा लग रही थी आपने तो अब सभी संस्थाओ को १०% फीस बिना अनुमति का कानूनन अधिकार उनके हाथ में दे दिया और सभी पलक गण आपसे आस लगाये बैठे थे की आप कोई बुद्धिपूर्वक निर्णय लेंगे
परन्तु आपकी सारकार का निर्णय पूरी तरह निजी संस्थाओ के पक्ष में जाता हुआ प्रतीत होता दिखाई पढ़ रहः है
मनमानी फीस की सुनवाई एक छलावा मात्र है जब संस्थाओ को १०% बढ़ने का अधिकार दे ही दिया है तो मनमानी फीस की बात तो ख़तम हो गयी
किताब
अफ़सोस है की जारी गाइडलाइन में संस्थाओ के सभी हितो का ध्यान रखा गया है | गाइडलाइन में उम्मीद की जा रही थी की स्कूलो में सिर्फ NCERT की किताबो को अधिमान्यता दी जाएगी और निजी प्रकाशकों की महँगी किताबो से छुटकारा मिल सकेगा
आज हर स्कूल अपनी मन माफिक किताब चुनने का अधिकार रखता है क्यों हर स्कूल में सुविधाओ के नाम पर अलग अलग किताबे पढाई जाती है | संस्थाओ और पुस्तक प्रकाशकों की साठगांठ पर नकेल क्यों नहीं कसी गयी ? आपने दिखावे के लिए किताबो को ३ दुकान पर उपलब्ध करवाने का आदेश दिया है |
माफ़ कीजियेगा अफसरशाही शायद इस मुद्दे पर या तो अनुभवहीन है या निजी संस्थाओ के हितो के लिए ये नूरा नियम बना दिया जिससे पलक ठगे न महसूस करे | जब पब्लिशर ही स्कूल संचालक से पूर्व में अनुबंध कर लेगा की अमुक किताब अगले सत्र में पढाई जाएगी तो दुकानदार क्या कर लेगा ? सामान्य सी बात है जब एक ही पाठ्यक्रम जब NCERT के पास उपलब्ध है तो फिर स्कूलो को अलग अलग किताबे खरीदने की अनुमंती देना समझ से परे है क्या कारण है की प्राइवेट प्रकाशकों की किताबों को रखने की छुट दी जा रही है
जब सामान्य ज्ञान के पालक ही इस छोटी सी बात समझते है तो विशिस्ट ज्ञान व् योग्यता से युक्त अफसरान क्यों नहीं समझते होंगे ? लेकिन शायद निजी हित के आगे सब मजबुर है !
अलग अलग किताबो के नाम पर बच्चो में शिक्षा गत हीनभावना बढती जा रही है एक स्कूल में H फॉर Hen एक स्कूल में H for Horse और एक स्कूल में H for Hippopotomus पढाया जा रहा है
क्यों नहीं सामान शिक्षा के अधिकार में सामन किताब से शिक्षा का अधिकार शामिल किया जाए ? हर वर्ष सुविधा के नाम पर नया पाठ्यक्रम नयी किताबे और पब्लिशर से मोटा कमीशन स्कूल संचालक की जेब में पहुच जाता है जिसका कोई हिसाब नहीं | 50-50 पेज की किताबे निजी प्रकाशकों द्वारा Rs 150-200 में बेचीं जा रह है ! बाजारवाद के नाम पर शिक्षा से खिलवाड़ क्यों किया जा रहा है यह समझ से परे है !!
स्कूल ड्रेस
धन्यवाद् आपको की गाइडलाइन में आपने ५ साल में एक बार ड्रेस परिवर्तन का प्रावधान रखा | क्या जरुरत है स्कूलो की अलग अलग ड्रेस रखने की | और आज के स्कूल तो एक कदम आगे है इन में तो आजकल हर एक क्लास में अलग अलग हाउस के नाम पर अलग अलग कलर की ड्रेस का कोड लागु है (Like Red house, blue house)