Toc News @Jabalpur
जबलपुर। सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व विधानसभा अध्यक्ष व वरिष्ठ कांग्रेस नेता श्रीनिवास तिवारी की अग्रिम जमानत अर्जी मंजूर कर ली। इसी के साथ राजधानी भोपाल की जहांगीराबाद थाना पुलिस द्वारा उनकी गिरफ्तारी की आशंका पर विराम लग गया। सुप्रीम कोर्ट ने 22 साल के लंबे अंतराल के बाद महज राजनीतिक विद्वेषवश एफआईआर दर्ज करने को लेकर राज्य को जमकर फटकार भी लगाई गई।
इस संबंध में राज्य को अपना जवाब पेश करने के लिए 3 सप्ताह का समय दिया गया है। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जेएस केहर व जस्टिस मदन लोकुर की डिवीजन बेंच में मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान श्रीनिवास तिवारी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक कृष्ण तन्खा ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि संपूर्ण प्रकरण विशुद्घ राजनीतिक है। इसका अंदाजा पूरे 22 साल के विलंब से एफआईआर दर्ज किए जाने से लगाया जा सकता है।
राज्य शासन की मंशा 90 साल के वयोवृद्घ राजनेता को येन-केन-प्रकारेण गिरफ्तार करके जेल में डालकर विरोधी दल के नेताओं पर दबाव बनाने की है। चूंकि इस मामले में प्रथमदृष्ट्या एफआईआर निराधार और राजनीति-प्रेरित प्रतीत हो रही है, अतः अग्रिम जमानत का वैधानिक आधार बनता है। यह है मामला विधानसभा सचिवालय के उप सचिव एमएम मैथिल की शिकायत पर 27 फरवरी 2014 को राजधानी भोपाल के जहांगीराबाद थाने की पुलिस ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह व पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी सहित 18 के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली।
इन सभी पर 1993 से 2003 के मध्य विधानसभा में अवैध नियुक्तियों का आरोप लगाया गया है। इस मामले में गिरफ्तारी के आशंका के कारण श्रीनिवास तिवारी ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत अर्जी दायर की थी। जिसे जस्टिस जीएस सोलंकी की एकलपीठ ने 1 मई 2015 को खारिज कर दिया। लिहाजा, सुप्रीम कोर्ट की शरण ली गई।
जबलपुर। सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व विधानसभा अध्यक्ष व वरिष्ठ कांग्रेस नेता श्रीनिवास तिवारी की अग्रिम जमानत अर्जी मंजूर कर ली। इसी के साथ राजधानी भोपाल की जहांगीराबाद थाना पुलिस द्वारा उनकी गिरफ्तारी की आशंका पर विराम लग गया। सुप्रीम कोर्ट ने 22 साल के लंबे अंतराल के बाद महज राजनीतिक विद्वेषवश एफआईआर दर्ज करने को लेकर राज्य को जमकर फटकार भी लगाई गई।
इस संबंध में राज्य को अपना जवाब पेश करने के लिए 3 सप्ताह का समय दिया गया है। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जेएस केहर व जस्टिस मदन लोकुर की डिवीजन बेंच में मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान श्रीनिवास तिवारी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक कृष्ण तन्खा ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि संपूर्ण प्रकरण विशुद्घ राजनीतिक है। इसका अंदाजा पूरे 22 साल के विलंब से एफआईआर दर्ज किए जाने से लगाया जा सकता है।
राज्य शासन की मंशा 90 साल के वयोवृद्घ राजनेता को येन-केन-प्रकारेण गिरफ्तार करके जेल में डालकर विरोधी दल के नेताओं पर दबाव बनाने की है। चूंकि इस मामले में प्रथमदृष्ट्या एफआईआर निराधार और राजनीति-प्रेरित प्रतीत हो रही है, अतः अग्रिम जमानत का वैधानिक आधार बनता है। यह है मामला विधानसभा सचिवालय के उप सचिव एमएम मैथिल की शिकायत पर 27 फरवरी 2014 को राजधानी भोपाल के जहांगीराबाद थाने की पुलिस ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह व पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी सहित 18 के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली।
इन सभी पर 1993 से 2003 के मध्य विधानसभा में अवैध नियुक्तियों का आरोप लगाया गया है। इस मामले में गिरफ्तारी के आशंका के कारण श्रीनिवास तिवारी ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत अर्जी दायर की थी। जिसे जस्टिस जीएस सोलंकी की एकलपीठ ने 1 मई 2015 को खारिज कर दिया। लिहाजा, सुप्रीम कोर्ट की शरण ली गई।