भोपाल (6 मई 2016)। एम.पी.वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष राधावल्लभ शारदा ने आज यूनियन के कार्यालय में संपन्न कोर कमेटी की बैठक को संबोधित करते हुये कहा कि जब पत्रकारों का चोला पहन कुछ ऐसे लोग अपने आपको पत्रकार बताते है, जिन्हें पत्रकारिता की एबीसीडी नहीं आती और ऐसे लोगों को पत्रकार यूनियन और प्रेस क्लब जैसे संस्थानों में सदस्यता दे दी जाती है तब ये कथित पत्रकार करेला और नीम चढ़ा कहावत को चरितार्थ करते है जिससे पत्रकारिता के दामन पर काला दाग लगता है। तब जिन लोगों ने अपनी पत्रकारिता प्रूफ रीडिंग से शुरू की उनका सर शर्म से नीचे होता है।
इंदौर एवं भोपाल के उदाहरण आज के लिये पर्याप्त है। इंदौर का प्रेस प्रदेश के तमाम प्रेस क्लबों से ऊंचा स्थान रखता है जहां तक मेरी जानकारी है प्रेस क्लब इंदौर की स्थापना ख्याति नाम पत्रकार स्व.राजेन्द्र माथुर जी, स्व.प्रभाष जोशी जी, स्व.राहुल वारपुते जी, स्व.माणिक चंद वाजपेई जी द्वारा की गई। इन महान विभूतियों के विचारों से अंदाज जगाया जा सकता है कि उनकी भावना प्रेस क्लब के पीछे क्या रही होगी। समय ने करवट ली और इंदौर प्रेस क्लब ने व्यवसायिक रूप ले लिया। इंदौर प्रेस क्लब में कुछ ऐसे पत्रकारों को स्थान दे दिया जिनको पत्रकारिता से कोई लेना देना नहीं।
आज इंदौर प्रेस क्लब चर्चा का विषय बना हुआ है। कारण कुछ सदस्यों की सदस्यता समाप्त कर दी थी। इंदौर प्रेस क्लब के चुनाव होने है, एक पैनल इस बात का विरोध कर रहा है कि जिन लोगों को पत्रकारिता से लेना देना नहीं उनकी सदस्यता समाप्त की जाये। जबकि दूसरा पैनल सदस्यता देने के पक्ष में है। मुझे इंदौर प्रेस क्लब के विवाद से कोई लेना देना नहीं परन्तु पत्रकारिता की अस्मत बचाने के लिये अमित सोनी जो कि वर्तमान में प्रेस क्लब के कार्यकारी अध्यक्ष है तथा एक पैनल से महासचिव का चुनाव लड़ रहे है। उनका मानना है कि पत्रकारिता से जुड़े लोगों को ही प्रेस क्लब की सदस्यता दी जाना चाहिये। उनका यह सराहनीय कदम है। पत्रकारों दलाली छोड़ो-दलालों पत्रकारिता छोड़ो। आज यह चरितार्थ है प्रेस क्लब इंदौर के चुनाव में, अमित सोनी के पैनल की मुहिम है दलालों पत्रकारिता छोड़ो।
अब मैं बात भोपाल के पत्रकार भवन की करता हूँ। पत्रकार भवन भोपाल की नींव के पत्थर के रूप में स्व.धन्नालाल शाह जी, स्व.दादा भादुड़ी जी, स्व.ध्यान सिंह तोमर राजा जी, स्व.मेहता जी, स्व.त्रिभुवन सिंह यादव जी, स्व.श्याम सुंदर व्यौहार जी तथा श्री लज्जा शंकर हरदेनिया जी जैसे जाने माने पत्रकार जाने जाते है।
भोपाल में समय ने करवट ली और वही होने लगा जो इंदौर में हो रहा है। पत्रकार भवन समिति भोपाल में अनियमितताओं का सिलसिला शुरू हुआ। पंजीयक फम्र्स एवं संस्थाएं के द्वारा जांच की गई और अनियमितताओं के आधार पर समिति को भंग कर प्रशासक की अनुशंसा की। सरकार ने वर्ष 1998 में प्रशासक के हवाले पत्रकार भवन कर दिया। कुछ सिरफिरे अमित सोनी जैसे भोपाल में भी है। स्वार्थी तत्वों के खिलाफ लड़े। हाईकोर्ट के निर्णय पर वर्ष 2012 में चुनाव हुये। मतलब 14 वर्ष के वनवास के बाद पत्रकार भवन के अध्यक्ष बने श्री विनोद तिवारी। उनको भी उनकी इच्छा के अनुसार उनके दो वर्ष के कार्यकाल में काम नहीं करने दिया गया। फिर चुनाव हुये और श्री एन.पी.अग्रवाल अध्यक्ष चुने गये। इनके सामने भी चुनौतियां थी। तब निर्णय लिया गया कि क्यों न पत्रकार भवन को उसके मूल मालिक वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन भोपाल को सौंप दी जाये और इस निर्णय पर अमल किया। परन्तु फिर कुछ पत्रकारों ने अपनी जमीन खिसकती देख कोर्ट चले गये। ये लोग उस यूनियन से है जिनका जन्म ही बाद में हुआ।
पत्रकार भवन की जमीन वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन भोपाल के नाम थी। यहां मैं यह बताना चाहता हूं कि नाम का रूपांतरण नहीं होता। परन्तु पत्रकार भवन समिति के विधान में इसे बदलकर श्रमजीवी पत्रकार संघ कर दिया जो कि अनुचित है पंजीयक श्रम विभाग के एक निर्णय के अनुसार।
विवादों से बचने के लिये पत्रकार भवन समिति ने निर्णय लिया कि जिसकी जमीन उसे भवन दे दिया जाये और किया भी। वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन भोपाल के अध्यक्ष श्री अवधेश भार्गव ने कलेक्टर को भवन सहित जमीन दे दी। कारण समिति पर लगभग 1 करोड़ रुपये संपत्तिकर बकाया था। कलेक्टर भोपाल ने जमीन को जनसम्पर्क विभाग को दे दी। फिर कुछ नये लोगों ने दावेदारी जताई परन्तु 25 अप्रैल 2016 को अपर आयुक्त भोपाल संभाग, भोपाल ने कलेक्टर के निर्णय को उचित बताया और निर्णय दे दिया। आगे क्या होता है यह तो समय ही बतायेगा।
जबलपुर, टीकमगढ़ में भी जिसके कब्जे में भवन वही मालिक बैठा और अच्छी कमाई की। पुरानी कहावत है झगड़े की तीन जड़, उनमें से एक जमीन भी है अत: सरकारों को चाहिये कि किसी भी पत्रकार संस्था को प्रेस क्लब अथवा पत्रकार भवन के लिये जमीन, पैसा न दें। मैं देश के सांसदों, विधायकों से भी आग्रह करूंगा कि पत्रकार भवन अथवा प्रेस क्लब को उनकी निधि से धन न देने का कष्ट करें।
आज इंदौर प्रेस क्लब चर्चा का विषय बना हुआ है। कारण कुछ सदस्यों की सदस्यता समाप्त कर दी थी। इंदौर प्रेस क्लब के चुनाव होने है, एक पैनल इस बात का विरोध कर रहा है कि जिन लोगों को पत्रकारिता से लेना देना नहीं उनकी सदस्यता समाप्त की जाये। जबकि दूसरा पैनल सदस्यता देने के पक्ष में है। मुझे इंदौर प्रेस क्लब के विवाद से कोई लेना देना नहीं परन्तु पत्रकारिता की अस्मत बचाने के लिये अमित सोनी जो कि वर्तमान में प्रेस क्लब के कार्यकारी अध्यक्ष है तथा एक पैनल से महासचिव का चुनाव लड़ रहे है। उनका मानना है कि पत्रकारिता से जुड़े लोगों को ही प्रेस क्लब की सदस्यता दी जाना चाहिये। उनका यह सराहनीय कदम है। पत्रकारों दलाली छोड़ो-दलालों पत्रकारिता छोड़ो। आज यह चरितार्थ है प्रेस क्लब इंदौर के चुनाव में, अमित सोनी के पैनल की मुहिम है दलालों पत्रकारिता छोड़ो।
अब मैं बात भोपाल के पत्रकार भवन की करता हूँ। पत्रकार भवन भोपाल की नींव के पत्थर के रूप में स्व.धन्नालाल शाह जी, स्व.दादा भादुड़ी जी, स्व.ध्यान सिंह तोमर राजा जी, स्व.मेहता जी, स्व.त्रिभुवन सिंह यादव जी, स्व.श्याम सुंदर व्यौहार जी तथा श्री लज्जा शंकर हरदेनिया जी जैसे जाने माने पत्रकार जाने जाते है।
भोपाल में समय ने करवट ली और वही होने लगा जो इंदौर में हो रहा है। पत्रकार भवन समिति भोपाल में अनियमितताओं का सिलसिला शुरू हुआ। पंजीयक फम्र्स एवं संस्थाएं के द्वारा जांच की गई और अनियमितताओं के आधार पर समिति को भंग कर प्रशासक की अनुशंसा की। सरकार ने वर्ष 1998 में प्रशासक के हवाले पत्रकार भवन कर दिया। कुछ सिरफिरे अमित सोनी जैसे भोपाल में भी है। स्वार्थी तत्वों के खिलाफ लड़े। हाईकोर्ट के निर्णय पर वर्ष 2012 में चुनाव हुये। मतलब 14 वर्ष के वनवास के बाद पत्रकार भवन के अध्यक्ष बने श्री विनोद तिवारी। उनको भी उनकी इच्छा के अनुसार उनके दो वर्ष के कार्यकाल में काम नहीं करने दिया गया। फिर चुनाव हुये और श्री एन.पी.अग्रवाल अध्यक्ष चुने गये। इनके सामने भी चुनौतियां थी। तब निर्णय लिया गया कि क्यों न पत्रकार भवन को उसके मूल मालिक वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन भोपाल को सौंप दी जाये और इस निर्णय पर अमल किया। परन्तु फिर कुछ पत्रकारों ने अपनी जमीन खिसकती देख कोर्ट चले गये। ये लोग उस यूनियन से है जिनका जन्म ही बाद में हुआ।
पत्रकार भवन की जमीन वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन भोपाल के नाम थी। यहां मैं यह बताना चाहता हूं कि नाम का रूपांतरण नहीं होता। परन्तु पत्रकार भवन समिति के विधान में इसे बदलकर श्रमजीवी पत्रकार संघ कर दिया जो कि अनुचित है पंजीयक श्रम विभाग के एक निर्णय के अनुसार।
विवादों से बचने के लिये पत्रकार भवन समिति ने निर्णय लिया कि जिसकी जमीन उसे भवन दे दिया जाये और किया भी। वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन भोपाल के अध्यक्ष श्री अवधेश भार्गव ने कलेक्टर को भवन सहित जमीन दे दी। कारण समिति पर लगभग 1 करोड़ रुपये संपत्तिकर बकाया था। कलेक्टर भोपाल ने जमीन को जनसम्पर्क विभाग को दे दी। फिर कुछ नये लोगों ने दावेदारी जताई परन्तु 25 अप्रैल 2016 को अपर आयुक्त भोपाल संभाग, भोपाल ने कलेक्टर के निर्णय को उचित बताया और निर्णय दे दिया। आगे क्या होता है यह तो समय ही बतायेगा।
जबलपुर, टीकमगढ़ में भी जिसके कब्जे में भवन वही मालिक बैठा और अच्छी कमाई की। पुरानी कहावत है झगड़े की तीन जड़, उनमें से एक जमीन भी है अत: सरकारों को चाहिये कि किसी भी पत्रकार संस्था को प्रेस क्लब अथवा पत्रकार भवन के लिये जमीन, पैसा न दें। मैं देश के सांसदों, विधायकों से भी आग्रह करूंगा कि पत्रकार भवन अथवा प्रेस क्लब को उनकी निधि से धन न देने का कष्ट करें।