उज्जैन //डॉ. अरुण जैन
उज्जैन . संभाग में लाखों रुपए के बीज घोटाले के मामले में शुक्रवार को नए तथ्य सामने आए हैं। 26 जुलाई को ही बीज प्रमाणीकरण विभाग के अधिकारियों को इस बात की जानकारी मिल गई थी कि उज्जैन की संस्थाओं और निजी फर्मों ने जो बीज खरीदना बताया है वे जबलपुर कृषि विश्वविद्यालय से नहीं आए हैं, विवि के दस्तावेज फर्जी हैं। इसके बावजूद 23 सितंबर यानी 3 माह तक अधिकारी बीज को प्रमाणित मानकर संस्थाओं को सर्टिफिकेट जारी करते रहे। 24 सितंबर को बीज उत्पादन सहकारी संस्थाओं और निजी फर्मों को बीज प्रमाणीकरण विभाग ने नोटिस जारी कर प्रजनक बीज को अवैध घोषित कर दिया था।संस्थाओं ने रखा अपना पक्ष - शुक्रवार को उज्जैन सीड एसोसिएशन द्वारा मीडिया के समक्ष अपना पक्ष रखा गया। एसोसिएशन अध्यक्ष बालाराम जाट, सदस्य बहादुरसिंह पटेल, प्रदीप खड़ीकर आदि ने संयुक्त रूप से बताया कि संभाग की जिन संस्थाओं और निजी फर्मों को बीज प्रमाणीकरण विभाग द्वारा ब्लैक लिस्टेड किया गया है, उन फर्मों और संस्थाओं ने बीज प्रमाणीकरण विभाग के अधिकारी सीएस सिंह, महिपालसिंह, सुरेश कुमार, राजीव सिन्हा, दिनेश शर्मा के कहने पर प्रजनक बीज क्रय किया था। इन्हीं अधिकारियों ने संस्थाओं और फर्मों को लंबे समय तक धोखे में रखा था। उक्त सभी अधिकारियों को निलंबित किया जा चुका है।ऐसे हुआ किसानों से धोखा - हजिले की जिन बीज उत्पादक संस्थाओं और निजी फर्मों ने करीब 500 कविन्टल बीज क्रय किया था, उन्हें जबलपुर कृषि विवि का टेग लगा हुआ बीज दिया गया। बीज के साथ प्रजनक सोयाबीन बीज के प्रमाणीकरण से संबंधित अन्य दस्तावेज भी दिए गए। हबीज प्रमाणीकरण संस्था को जबलपुर कृषि विवि से यह जानकारी 26 जुलाई को ही मिल चुकी थी कि जो बीज उज्जैन पहुंचा है, वह विवि ने भेजा ही नहीं था। इसके बावजूद चार दिन बाद तक यानी 30 जुलाई तक संस्थाओं के पंजीयन किए जाते रहे। यानी विभाग के अधिकारियों ने ही वास्तविक स्थिति सामने नहीं आने दी। हइस बीच संस्थाओं के निरीक्षण होते रहे। बीज का सत्यापन भी किया गया, लेकिन जबलपुर विवि का पत्र सार्वजनिक नहीं किया गया। इससे साफ होता है कि बीज प्रमाणीकरण विभाग के कुछ अधिकारी ही इस प्रकरण को दबाना चाहते थे।
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