सूचना की शक्ति से डरे हुए भ्रष्ट राजनेताओं ने पत्रकारों पर लगाम लगाने के लिए जो हथकंडे अपनाए वे आज प्रगति के पथ पर तेजी से बढ़ती जा रही शिवराज सरकार के पैरों की बेडियां बन गए हैं. अमानत में खयानत करने वाला कथित जालसाज शलभ भदौरिया ऐसा ही एक नमूना है जो सरकारी नुमाईंदों के पस्त हौसलों का उद्घोष कर रहा है. पत्रकारों के इस गद्दार ने अपने बचाव के लिए पत्रकारिता का मुखौटा पहन रखा है. भ्रष्ट सत्तातंत्र यह मुखौटा नोंचना भी नहीं चाहता क्योंकि उसे लगता है कि पत्रकारों को इसी बहाने कुछ खरी खोटी सुनाई जा सकती है. जबकि हकीकत यह है कि शलभ भदौरिया पर मुकदमा चलाकर उसे जेल न भेजने से बदनामी राजनीति की होगी पत्रकारिता पर उसका कोई असर नहीं पडऩे वाला. आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो के अफसरों ने तमाम दबावों और प्रलोभनों को दरकिनार करते हुए अपना अभियोग पत्र पूरी मुस्तैदी के साथ तैयार किया है.इसे जिला अदालत के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किया जाना है. लेकिन विधि विशेषज्ञ की रायशुमारी के बहाने यह अभियोग पत्र अब तक अदालत की देहरी नहीं लांघ पाया है. न्यायप्रिय शासन की आवाज बुलंद करने के लिए इस अभियोग पत्र पर अदालत में सुनवाई होना जरूरी है.
अभियोग पत्र की इबारत पढऩे के बाद भविष्य की साफ तस्वीर उभर रही है. भारतीय दंड संहिता सभी के लिए एक समान है. इसलिए पत्रकारिता की खाल ओढ़कर आपराधिक जालसाजियां करने वाले शलभ भदौरिया की गिरफ्तारी और दंड सुनिश्चित है. इसीलिए वह चाहता है कि यह मामला किसी तरह ठंडे बस्ते में पड़ा रहे. दैनिक अग्निबाण के लिए खंडवा से पत्रकारिता करने वाले रवि जायसवाल ने इस मामले की खबर अपने अखबार में प्रकाशित कर दी. इससे तिलमिलाए शलभ भदौरिया ने उसे फोन करके काफी भला बुरा कहा और देख लेने की धमकी भी दी.
इसकी शिकायत पत्रकार साथी ने जिले के पुलिस अधीक्षक आई. पी. एस. हरिनारायण चारी मिश्रा से की है. गृह विभाग ने पत्रकारों के खिलाफ शिकायत की प्राथमिकी दर्ज करने से पहले पुलिस की जांच का प्रावधान किया है इसलिए यह शिकायत फिलहाल जांच में है. पुलिस अधीक्षक एच.एन.सी. मिश्रा ने खंडवा में अपराधियों पर लगाम कसने का जो अभियान चलाया हुआ है उसे नागरिक और पत्रकार सभी समर्थन दे रहे हैं. जाहिर है कि स्थानीय पत्रकार की शिकायत को भी कानून को बुलंद बनाने वाले नजरिए से ही देखा जाएगा. मामले की तह में झांकें तो आम नागरिक भी समझ सकता है कि किस तरह पत्रकारिता की आड़ लेकर जालसाजी की गई है. इस मामले की शिकायत वर्ष 2003 में भोपाल के पत्रकार राधावल्लभ शारदा ने आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो में की थी. इस शिकायत के सत्यापन के बाद निरीक्षक इंद्रजीत सिंह चौहान ने पाया कि वर्ष 1999 से 2003 के बीच श्रमजीवी पत्रकार नाम से प्रकाशित किए जाने वाले अखबार के प्रधान संपादक शलभ भदौरिया और संपादक विष्णुवर्मा विद्रोही थे. प्रेस पुस्तक पंजीकरण अधिनियम के अनुसार किसी भी समाचार पत्र के प्रकाशन से पहले उसका नाम भारत के पंजीयक के रजिस्टर में दर्ज करवाना अनिवार्य होता है.
पूंजीवाद के आगमन से पहले ट्रेड यूनियन आंदोलन बहुत प्रभावी हुआ करता था. इसी के चलते राजनेता भी पत्रकारों की तमाम मांगें आंखें मूंदकर मान लेते थे.
ऐसा ही कमोबेश पत्रकार भी किया करते थे.यही कारण था कि वर्ष 2002 में जब शलभ भदौरिया को तत्कालीन शासकों ने संगठन का मुखपत्र निकालने के लिए जनसंपर्क महकमे से धन देने का आश्वासन दिया तो उसने श्रमजीवी पत्रकार नामक अखबार का नकली पंजीयन प्रमाण पत्र बनवाया. यह जालसाजी पत्रकार भवन में ही की गई. जनसंपर्क महकमे की विज्ञापन शाखा ने इस फर्जी पंजीयन प्रमाण पत्र के आधार पर अखबार को विज्ञापन जारी करना शुरु कर दिए. मामले की शिकायत होने तक समाचार पत्रों के पंजीयक कार्यालय के फर्जी पंजीयन प्रमाण पत्र के आधार पर भदौरिया लाखों रुपयों की ठगी कर चुका था. यह ठगी मध्यप्रदेश के पत्रकारों के लिए विज्ञापन के मद में दी जाने वाली धन राशि की भी थी और डाक विभाग से मिलने वाली छूट की भी थी. तब सूचना का अधिकार अधिनियम लागू नहीं था और जनसंपर्क महकमे के अधिकारी आज की ही तरह जनसंपर्क के बजट की राशि को उजागर नहीं होने देना चाहते थे. इसीलिए जनसंपर्क विभाग के माध्यम से मध्यप्रदेश की जनता से की गई धोखाघड़ी आज भी सामने नहीं आई है. लेकिन डाक विभाग की ओर से रियायती मूल्यों पर डाक वितरण की जो छूट दी जाती है उस छूट की राशि शिकायत होने की तारीख तक एक लाख चौहत्तर हजार नौ सौ सत्तर हो चुकी थी.
यह शिकायत पंजीयक कार्यालय से प्राप्त जानकारी के आधार पर सत्य पाई गई. आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक सुधीर लाड़, थाना प्रभारी उमाशंकर तिवारी और विवेचना करने वाले निरीक्षक नरेन्द्र तिवारी ने अभियोग पत्र में पाया है कि आरोपियों ने भारतीय दंड संहिता की धारा-120 बी, 420, 467, 468, 471 के अंतर्गत अपराध किया है इसलिए माननीय न्यायालय के समक्ष अभियोग पत्र भेजा जा रहा है. जाहिर है कि इस मामले में कार्यपालिका ने अपना काम मुस्तैदी के साथ किया है.अब बारी विधायिका की है. माननीय मुख्यमंत्रीजी विधानसभा में उद्घोष कर चुके हैं कि अपराधी कोई भी हो,कैसा भी हो उसे छोड़ा नहीं जाएगा. इसलिए उम्मीद नजर आ रही है कि इस मामले में भी अपराधी सलाखों के पीछे अवश्य पहुंचेंगे. च
अभियोग पत्र की इबारत पढऩे के बाद भविष्य की साफ तस्वीर उभर रही है. भारतीय दंड संहिता सभी के लिए एक समान है. इसलिए पत्रकारिता की खाल ओढ़कर आपराधिक जालसाजियां करने वाले शलभ भदौरिया की गिरफ्तारी और दंड सुनिश्चित है. इसीलिए वह चाहता है कि यह मामला किसी तरह ठंडे बस्ते में पड़ा रहे. दैनिक अग्निबाण के लिए खंडवा से पत्रकारिता करने वाले रवि जायसवाल ने इस मामले की खबर अपने अखबार में प्रकाशित कर दी. इससे तिलमिलाए शलभ भदौरिया ने उसे फोन करके काफी भला बुरा कहा और देख लेने की धमकी भी दी.
इसकी शिकायत पत्रकार साथी ने जिले के पुलिस अधीक्षक आई. पी. एस. हरिनारायण चारी मिश्रा से की है. गृह विभाग ने पत्रकारों के खिलाफ शिकायत की प्राथमिकी दर्ज करने से पहले पुलिस की जांच का प्रावधान किया है इसलिए यह शिकायत फिलहाल जांच में है. पुलिस अधीक्षक एच.एन.सी. मिश्रा ने खंडवा में अपराधियों पर लगाम कसने का जो अभियान चलाया हुआ है उसे नागरिक और पत्रकार सभी समर्थन दे रहे हैं. जाहिर है कि स्थानीय पत्रकार की शिकायत को भी कानून को बुलंद बनाने वाले नजरिए से ही देखा जाएगा. मामले की तह में झांकें तो आम नागरिक भी समझ सकता है कि किस तरह पत्रकारिता की आड़ लेकर जालसाजी की गई है. इस मामले की शिकायत वर्ष 2003 में भोपाल के पत्रकार राधावल्लभ शारदा ने आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो में की थी. इस शिकायत के सत्यापन के बाद निरीक्षक इंद्रजीत सिंह चौहान ने पाया कि वर्ष 1999 से 2003 के बीच श्रमजीवी पत्रकार नाम से प्रकाशित किए जाने वाले अखबार के प्रधान संपादक शलभ भदौरिया और संपादक विष्णुवर्मा विद्रोही थे. प्रेस पुस्तक पंजीकरण अधिनियम के अनुसार किसी भी समाचार पत्र के प्रकाशन से पहले उसका नाम भारत के पंजीयक के रजिस्टर में दर्ज करवाना अनिवार्य होता है.
पूंजीवाद के आगमन से पहले ट्रेड यूनियन आंदोलन बहुत प्रभावी हुआ करता था. इसी के चलते राजनेता भी पत्रकारों की तमाम मांगें आंखें मूंदकर मान लेते थे.
ऐसा ही कमोबेश पत्रकार भी किया करते थे.यही कारण था कि वर्ष 2002 में जब शलभ भदौरिया को तत्कालीन शासकों ने संगठन का मुखपत्र निकालने के लिए जनसंपर्क महकमे से धन देने का आश्वासन दिया तो उसने श्रमजीवी पत्रकार नामक अखबार का नकली पंजीयन प्रमाण पत्र बनवाया. यह जालसाजी पत्रकार भवन में ही की गई. जनसंपर्क महकमे की विज्ञापन शाखा ने इस फर्जी पंजीयन प्रमाण पत्र के आधार पर अखबार को विज्ञापन जारी करना शुरु कर दिए. मामले की शिकायत होने तक समाचार पत्रों के पंजीयक कार्यालय के फर्जी पंजीयन प्रमाण पत्र के आधार पर भदौरिया लाखों रुपयों की ठगी कर चुका था. यह ठगी मध्यप्रदेश के पत्रकारों के लिए विज्ञापन के मद में दी जाने वाली धन राशि की भी थी और डाक विभाग से मिलने वाली छूट की भी थी. तब सूचना का अधिकार अधिनियम लागू नहीं था और जनसंपर्क महकमे के अधिकारी आज की ही तरह जनसंपर्क के बजट की राशि को उजागर नहीं होने देना चाहते थे. इसीलिए जनसंपर्क विभाग के माध्यम से मध्यप्रदेश की जनता से की गई धोखाघड़ी आज भी सामने नहीं आई है. लेकिन डाक विभाग की ओर से रियायती मूल्यों पर डाक वितरण की जो छूट दी जाती है उस छूट की राशि शिकायत होने की तारीख तक एक लाख चौहत्तर हजार नौ सौ सत्तर हो चुकी थी.
यह शिकायत पंजीयक कार्यालय से प्राप्त जानकारी के आधार पर सत्य पाई गई. आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक सुधीर लाड़, थाना प्रभारी उमाशंकर तिवारी और विवेचना करने वाले निरीक्षक नरेन्द्र तिवारी ने अभियोग पत्र में पाया है कि आरोपियों ने भारतीय दंड संहिता की धारा-120 बी, 420, 467, 468, 471 के अंतर्गत अपराध किया है इसलिए माननीय न्यायालय के समक्ष अभियोग पत्र भेजा जा रहा है. जाहिर है कि इस मामले में कार्यपालिका ने अपना काम मुस्तैदी के साथ किया है.अब बारी विधायिका की है. माननीय मुख्यमंत्रीजी विधानसभा में उद्घोष कर चुके हैं कि अपराधी कोई भी हो,कैसा भी हो उसे छोड़ा नहीं जाएगा. इसलिए उम्मीद नजर आ रही है कि इस मामले में भी अपराधी सलाखों के पीछे अवश्य पहुंचेंगे. च
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