रिजवान चंचल // लखनऊ
toc news internet channel (टाइम्स ऑफ क्राइम)
पत्रकारों, कवियों, सचरित्र जनप्रतिनिधियों, प्रबुद्ध नागरिकों को राष्ट्र व बेहतर समाज के निर्माण के लिए ''भ्रष्टाचार के खिलाफ'' आगे आना ही होगा यही समय की मांग भी है। देश की प्रगति, गरीबी, और बेरोजगारी उन्मूलन और साफ सुथरी राजनीति तथा पारदर्शी प्रशासन के लिए ऊपर से नीचे तक पैर जमा चुके भ्रष्टाचार को मिटाना ही होगा तभी देश की खुशहाली सम्भव है और सही अर्थो में लोकतंत्र भी। जब तक सरकारी और जन कल्याणकारी योजनाओं का फायदा आम आदमी तक नहीं पहुंचेगा तथा आंवटित धनराशि ईमानदारी के साथ योजनाओं के अमल पर खर्च नहीं की जायेगी और बीच में ही बंदरबांट की जाती रहेगी तब तक देश में खुशहाली आना मुश्किल ही नहीं असम्भव भी है यह तभी मुमकिन है जब शासक और प्रशासक जवाब देही के साथ पारदर्शिता बनायें।
भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने, जनजागरण करने, नागरिक समाज को खड़ा करने से पहले जरूरी है कि हम यह तो जाने कि आखिर भ्रष्टाचार है क्या? हमारे देश मे अभी भ्रष्टाचार की परिभाषा को लेकर भी तरह-तरह की उलझने है और यह भी सच्चाई है कि जब तक भ्रष्टाचार को ठीक तरह समझा नहीं जायेगा तब तक इस पर काबू पाया जाना भी नामुनकिन है। कैग के पूर्व निदेशक वी. एन. कौल के मुताबिक भ्रष्टाचार पर काबू की जिम्मेदारी देखने वाले विजिलेंश अधिकारियों को ही अपनी ड्यूटी के बारे में पूरी तरह से यह पता नही है कि उसे किस-किस व्यवहार को भ्रष्टाचार मानना है और किस-किस को नहीं। यही नही भ्रष्टाचार को लेकर शोर शराबा भी खूब होता है किन्तु व्यक्तिगत जवाबदेही तय करने की प्रणाली दूर-दूर तक नजर नहीं आती कल तक साधारण मकान में रहने वाला विधायक व सांसद बनने के कुछ महीनों बाद अकूत सम्पदा व महल रूपी बंगले आयातित वाहनों का स्वामी कैसे हो गया इसकी जवाब देही जरूरी ही नही समझी जाती। एक साधारण अधिकारी, अनुभाग अधिकारी जो 25 से 30 हजार मात्र वेतन प्राप्त करते है राजसी संसाधनों से युक्त हैं बंगला, चार पहिया वाहन एक नही चार-चार हैं किंतु जवाबदेही कोई नहीं।
तात्पर्य यह है कि जवाबदेही प्रणाली को प्रमुखता से प्रभावी किया जाना चाहिए। आज हालात यह है कि किसी विभाग में भ्रष्टाचार का अगर खुलासा हो भी गया तो पूरे विभाग को ही जिम्मेदार मान लिया जाता है और शीर्ष पर बैठे उस भ्रष्टाचार का नायक बच निकलता है लिहाजा व्यक्तिगत जवाबदेही जांचने की प्रणाली को तैयार करना जरूरी है इसके अलावा अगर अथारटी को विकेन्द्रीकृत कर दिया जाये तब भी भ्रष्टाचार पर काफी हद तक नियंत्रण किया जाा सकता है। वर्तमान मे जगह-जगह व्याप्त भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए पारदर्शिता वरतना बेहद जरूरी है सूचना का अधिकार कानून इस दिशा में बेहद अच्छा कदम है अगर सरकार इसे ढ़ंग से प्रभावी करे तो इसमें कोई दो राय नहीं काफी हद तक लोगों की परेशानियां कम हो जायेंगी। सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि आर टी आई के तहत सूचनायें दिखाने में कहीं अधिकारी चालाकी तो नहीं कर रहे हैं।
सच्चाई यह है कि कमजोर शासन भ्रष्टाचार की फसल को खाद देने में अहं किरदार निभा रहा है गठबंधन सरकारों की राजसत्ता को बचाये रखने के लिए मजबूरियॉ भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रही है स्थित यह है कि राजनैतिक अनैतिक दबाव पुलिस विभाग एवं अन्य विभागों को भी कमजोर कर रही है गैर जरूरी तबादलों ने भी सिस्टम को काफी खराब किया है अक्सर देखने में आया है कि लगन व निष्ठा से कार्य में लगे ईमानदार अधिकारी राजनेताओं की नाजायज सिफारिस न मानने के कारण चन्द महीनों में ही इधर-उधर पटक दिये गये यानी नाजायज काम में भी नेताओं का कालर ऊॅचा रहे नही तो खैर नहीं। ऐसी स्थित में ईमानदारी बरतने की जब यह सजा मिलती है तो मजबूरन उसे भी यह सोंचना पड़ जाता है कि क्यों न बह रही बयार में ही शामिल होकर चला जाये। थैली अटैची भेंट कर लाभप्रद कुर्सी पाने वाले अधिकारियों का उदाहरण दे आधुनिकता से घिरे पाश्चात्य संस्कृति को अंगीकार किये इनके बच्चे भी इन्हे घर पर जब यह कहते नजर आते है कि वो भी है बंगला गाड़ी फार्म हाउस सब कुछ कर लिया उन्होने और एक आप भी हैं उसी पद आज तककुछ नही जुटा पाये? कहने का तात्पर्य जरूरत है ईमान दार अधिकारियों को शसक्त करने की, प्रोत्साहित किये जाने की, सम्मानित किये जाने की और पदोन्नति किये जाने की।लोकायुक्त न्यायमूर्ति एस. हेगडे द्वारा दिया गया इस्तीफा, डा. किरन वेदी द्वारा वी आर एस लेना, आयकर आयुक्त द्वारा नौकरी छोंडऩा शासन प्रणाली की नीतियों का श्वयमेव खुलासा कर रहे है।
जरा सोंचे हॉ हजूरी जायज-नाजायज में बिना भेदभाव किये जो अधिकारी नेता व देश-प्रदेश के नायकों के इशारों पर कठपुतली की भांति नाचेगा वह शीर्ष कुर्सी तक पहुॅचेगा और जो नाजायज को तरजीह नही देगा तो इनका कोपभाजन बनेगा तो कैसे होगा लोकतंत्र मजबूत, कैसे आयेगी भारत में खुशहाली, और तो और सी. वी. आई. को भी अभी तक स्वतंत्र नही किया गया है, लोकायुक्त जैसी संस्थाओं के पास भी सीमित शक्तियॉ ही है और उस पर भी शासक का उल्टा दबाव तो भला कैसे हो भ्रष्टाचार पर काबू? जब भी कहीं भ्रष्टाचार का मामला उजागर होता है तो समिति बना दी जाती है। वित्तीय और आर्थिक अपराध शाखाये बैठा दी जाती है जब कि यह समस्या का हल नहीं है जरूरत तो इस बात की है कि ऐसी संस्थाओं को और मजबूत किया जाना चाहिए इनकी शक्तियों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। मेरा मानना यह भी है कि देश में अफसरों की संख्या भी बहुत ज्यादा है जिसे कम किया जाना चाहिए इससे न केवल पैसा बचेगा बल्कि कार्य क्षमता में भी इजाफा होगा। ओवर स्टाििफंग और संसाधनो का गलत तरीके से किया गया आवंटन भी भ्रष्टाचार को मजबूती देता है चूंकि जहां जरूरत से ज्यादा संसाधन होगें वहां भ्रष्टाचार पैदा होगा ही, हर समस्या के लिये नये कानून बनाये जाते रहे यह भी जरूरी नही है और न ही समस्या का हल है।
जरूरत तो मौजूदा कानून को ठीक ढंग से लागू करने व उसे प्रभावी बनाये जाने की है। जैसे पुलिस, विकास प्राधिकरण, कृषि, ऊर्जा, शिक्षा, स्वास्थ जो प्रमुख संस्थायें है उनमें बेइमानी के आरोपों वाले किसी भी अधिकारी को प्रमुख न बनाया जाये। ईमानदार अधिकारियों को ही महत्वपूर्ण संस्थाओं का प्रमुख बनाया जाये तो भी काफी हद तक सुधार संभव है। जय हिन्द
अब तो अपनी चवन्नी भी चलना बंद हो गयी यार
ReplyDeleteदोस्तों पहले कोटा में ही किया पुरे देश में अपनी चवन्नी चलती थी क्या अपुन की हाँ अपुन की चवन्नी चलती थी ,चवन्नी मतलब कानूनी रिकोर्ड में चलती थी लेकिन कभी दुकानों पर नहीं चली , चवन्नी यानी शिला की जवानी और मुन्नी बदनाम हो गयी की तरह बहुत बहुत खास बात थी और चवन्नी को बहुत इम्पोर्टेंट माना जाता था इसीलियें कहा जाता था के अपनी तो चवन्नी चल रही हे ।
लेकिन दोस्तों सरकार को अपनी चवन्नी चलना रास नहीं आया और इस बेदर्द सरकार ने सरकार के कानून याने इंडियन कोइनेज एक्ट से चवन्नी नाम का शब्द ही हटा दिया ३० जून २०११ से अपनी तो क्या सभी की चवन्नी चलना बंद हो जाएगी और जनाब अब सरकरी आंकड़ों में कोई भी हिसाब चवन्नी से नहीं होगा चवन्नी जिसे सवाया भी कहते हें जो एक रूपये के साथ जुड़ने के बाद उस रूपये का वजन बढ़ा देती थी , दोस्तों हकीकत तो यह हे के अपनी तो चवन्नी ही क्या अठन्नी भी नहीं चल रही हे फिर इस अठन्नी को सरकार कानून में क्यूँ ढो रही हे जनता और खुद को क्यूँ धोखा दे रही हे समझ की बात नहीं हे खेर इस २०१० में नही अपनी चवन्नी बंद होने का फरमान जारी हुआ हे जिसकी क्रियान्विति नये साल ३०११ में ३० जून से होना हे इसलियें नये साल में पुरे आधा साल यानि जून तक तो अपुन की चवन्नी चलेगी ही इसलियें दोस्तों नया साल बहुत बहुत मुबारक हो ।
नये साल में मेरे दोस्तों मेरी भाईयों
मेरे बुजुर्गों सभी को इज्जत मिले
सभी को धन मिले ,दोलत मिले ,इज्जत मिले
खुदा आपको इतना ताकतवर बनाये
के लोगों के हर काम आपके जरिये हों
आपको शोहरत मिले
लम्बी उम्र मिले सह्तयाबी हो
सुकून मिले सभी ख्वाहिशें पूरी हो
जो चाहो वोह मिले
और आप हम सब मिलकर
किताबों में लिखे
मेरे भारत महान के कथन को
हकीकत में पूरा करें इसी दुआ और इसी उम्मीद के साथ
आप सभी को नया साल मुबारक हो ॥ अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान