नई दिल्ली। बाबा रामदेव के गुरु 80 साल के स्वामी शंकरदेव 2007 में हरिद्वार के कनखल आश्रम से रहस्यमय तरीके से गायब हो गए। आज तक उनका कोई पता नहीं चल सका है। पुलिस में दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट की ओर से गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई गई मगर जांच बेनतीजा रही और वो फाइल आखिर बंद कर दी गई। लेकिन क्या वाकई में पुलिसवालों ने स्वामी शंकरदेव की तलाश गंभीरता से की? आईबीएन7 और आउटलुक के लिए रिपोर्टर पुष्प शर्मा ने खुफिया कैमरे का सहारा लेकर पड़ताल की तो कई चौंकाने वाली बातें पता चलीं। इस केस से जुड़े 8 खाकी वर्दी वाले खुफिया कैमरे पर कैद हुए और लगभग सभी ने माना कि जांच में ढिलाई हुई।
स्वामी शंकरदेव ही उस दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट के मालिक थे जिसके सर्वेसर्वा आज बाबा रामदेव हैं। जिस वक्त दिल्ली में बाबा रामदेव भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल बजा रहे थे, उत्तराखंड में पुलिस उनके गुरु स्वामी शंकरदेव की गुमशुदगी के केस में फाइनल रिपोर्ट लगा रही थी। स्वामी शंकरदेव अपनी कर्मभूमि हरिद्वार से 16 जुलाई 2007 को अचानक अदृश्य हो गए। हमने उनके बारे में पड़ताल की तो खुफिया कैमरे की पहली मुठभेड़ हई SOG के SI आरबी चमोला से। चमोला को ही बाबा रामदेव के गुरु को ढूंढने का जिम्मा सौंपा गया था। फिलहाल चमोला SI, आर्म्स ट्रेनिंग स्कूल, हरिद्वार हैं।
चमोला कहते हैं- बिल्कुल आया था ये केस…मैं आपको शायद बताऊं कि हमें शायद वैसे तो ऑन-पेपर ही ये कहा होगा क्योंकि इसमें कभी भी बहुत ज्यादा फोर्स नहीं किया गया कि इस केस में आप करो या इसको ओवर-काउंट करो या फिर SOG के दिए जाते हैं न स्पेशल केस।
रिपोर्टर- जो बहुत स्पेशल केस आते हैं क्योंकि SOG को तो हम क्राइम ब्रांच और STF उस लेवल पर नापते हैं।
चमोला- वो बेसिस जिस तरीके से दिए जाते हैं..उसके बाद फिर हमें डेली बेसिस से हमसे..
रिपोर्टर- अपडेट लिए जाते हैं..
चमोला- अपडेट लिए जाते हैं, लेकिन इस केस में कभी कोई अपडेट नहीं लिया गया।
रिपोर्टर- जी, तो मतलब किसका समय चल रहा था आप…अजय जोशी जी आपके साथ थे उस कोऑर्डिनेशन में।
चमोला- अजय जोशी उस समय एसपी सिटी साहब थे..
साफ है कि खुफिया कैमरे पर इस पुलिसवाले ने कबूला कि न तो उनके सीनियर अफसरों ने जांच में तेजी के लिए जोर डाला। न कभी उनसे जांच रिपोर्ट ही तलब की गई। यही नहीं, खुद बाबा रामदेव या उनके आश्रम ने भी कभी पूछा तक नहीं।
चमोला- मतलब इन लोगों की तरफ से इन तीन महीनों में कभी भी पलट के नहीं पूछा गया कि जी हमारे केस में क्या चल रहा है। हम ही लोग जाते थे।
चमोला वो अफसर हैं जिन्होंने फूलन देवी की हत्या के आरोपी राणा को तिहाड़ से भागने के दो साल बाद कोलकाता में ढूंढ निकाला था और ताज्जुब ये कि वो स्वामी शंकरदेव को नहीं ढूंढ सके। तो क्या कोई ऐसी ताकत हरिद्वार में थी जो नहीं चाहती थी कि ये अफसर ये पहेली सुलझा ले। चमोला ने योग मंदिर ट्रस्ट की ओर ही उंगली उठा दी।
चमोला- आज भी आप हरिद्वार में जाओगे.. तो काफी सारे लोग यही कहेंगे कि ये सब इन्हीं का किया हुआ काम है। वहां के लोग कहते हैं साफ बात।
रिपोर्टर- मतलब रामदेव वाली फैमली..
चमोला- हां, यस-यस.. नो डाउट.. आप इनके शायद उनसे गुरुभाई से कभी मिले हैं कर्मवीर से..
रिपोर्टर- मैं मिला हूं.. वो साफ बोला है..
चमोला- वो साफ बोलता है..
चमोला ने दावा किया कि आश्रम में कई बार अपराध की वारदात हुई हैं। बाबा रामदेव के शिष्य बालकृष्ण का नाम भी निकल पड़ा।
चमोला- 100% और इनके कई तरह के केसेज हुए थे..एक केस मुझे और याद है बालकृष्ण जी का हुआ था..
रिपोर्टर- जी..
चमोला- कोई शायद पेशेंट को देखते हुए छेड़ने-वेड़ने का कोई मामला आया था..
चमोला- इस तरह के कई केसेज हुए.. डॉक्टर यहां से जॉब छोड़कर गई, वो बनारस में थी..
रिपोर्टर- अच्छा..
चमोला- उसने आरोप लगाया था कि मेरा यौन शोषण किया गया फिर इन्होंने उसको पता नहीं कुछ पैसे-वैसे दे दिए हों…
चमोला- मैं कोशिश करूंगा अगर मुझे उसका एड्रेस या कुछ मिल पाया तो..
रिपोर्टर- सर प्लीज क्योंकि मैं..
चमोला- वो कहीं कनखल में किराए के मकान में रहती थी..
रिपोर्टर- ओके..
चमोला- और..मेरे पास एक..पता नहीं कोई लेकर के आया था उसको कि सर मेरा वहां पे बड़ा शोषण हो रहा है..
चमोला ने खुफिया कैमरे पर एक और राज खोला कि गुरु के लापता होने के बाद कनखल आश्रम में कई लोगों को हटाया गया…कई के मुंह बंद कर दिए गए…और इसके लिए बाकायदा बाउंसर्स का इस्तेमाल हुआ।
चमोला- हां, बाउंसर्स इन्होंने रखे हुए हैं…बाकायदा अप्वाइंट किया है और मेरे ख्याल से अभी इन्होंने 2-3 साल से.. जब से वो घटनाएं 2-3 हुई हैं पतंजलि में उसके बाद से इन्होंने..
रिपोर्टर – और वो 100 के करीब एक टीम है पूरी
चमोला – बाउंसर्स अप्वाइंट किए हैं
रिपोर्टर – बाउंसर्स अप्वाइंट किए हैं..तो एक बाबा के पास बाउंसर्स का क्या लेना-देना चमोला साहब वो..
चमोला – एक बाउंसर्स तो वही है रामभारत
अब अगर चमोला सच बोल रहे हैं तो स्वामी शंकरदेव के गायब होने से खुद उनके हितैषियों का नाता जुड़ता दिख रहा था। पुलिस खुद मानती रही कि दाल में कुछ काला जरूर है। लेकिन चमोला के स्वर में भी झलका कि जैसे इस केस में उत्तराखंड पुलिस के हाथ बंधे हुए थे। लेकिन क्यों और किससे कहने पर। तलाश जारी थी।
चमोला के बाद खुफिया कैमरा मिला इस केस में फाइनल रिपोर्ट लगाने वाले पुलिस अफसर से। इस अफसर ने साफ संकेत दिए कि वो एक जूनियर अफसर था फिर भी उसे इतना संवेदनशील केस जांच के लिए दिया गया और जब उसने इसपर ऐतराज जताया तो उसकी नौकरी छीनने तक की धमकी दे दी गई।
नाम है सुरेंद्र बिष्ट। जांच के समय SI, कनखल, हरिद्वार थे जबकि अभी SI, पुलिस लाइन, हरिद्वार हैं। सुरेंद्र बिष्ट खुफिया कैमरे पर अपने महकमे के आला अफसरों को कठघरे में खड़ा करते दिख रहे हैं।
रिपोर्टर- अक्टूबर तक जांच हुई 2007 में 3 महीने तक
बिष्ट- अरे साहब, उसके बाद तो बीच में 2 साल ये फाइल दबी रही
रिपोर्टर- हूं
बिष्ट- 2 साल फाइल दबी रही है
रिपोर्टर- क्यों
बिष्ट- सीओ सिटी के यहां
रिपोर्टर- वो क्यों
बिष्ट- अब पता नहीं क्यों..क्या बीच में..हमें तो बहुत बाद में मिली है..
रिपोर्टर- सीओ सिटी मणिकांत मिश्र
बिष्ट- जो भी रहे हों..दबी रही वहां पे फाइल उनकी लापरवाही..जो भी मतलब थे।
बिष्ट की मानें तो सीओ सिटी के दफ्तर में स्वामी शंकरदेव केस ने दम तोड़ा। लेकिन आखिर ऐसा हुआ क्यों, इसका जवाब उसके पास नहीं था।
रिपोर्टर- 4 साल बीत चुके थे..
बिष्ट- हां, सही बात है..
रिपोर्टर- ठीक है तो, लेकिन आप पुलिस अधिकारी मानते हैं कि इसमें साजिश का भी एंगल देखा जाना चाहिए न..
बिष्ट- हां, देखा जाना चाहिए था साजिश का भी..बिल्कुल-बिल्कुल क्योंकि उन्हें कोई बॉडी कहीं नहीं मिली, ऐसा कुछ नहीं हुआ…
सवाल है कि जब अगर उत्तराखंड पुलिस मानती है कि बाबा रामदेव के गुरु के गायब होने के पीछे साजिश हो सकती थी तो उसने इस लिहाज से जांच क्यों नहीं की।
सवाल है कि जब अगर उत्तराखंड पुलिस मानती है कि बाबा रामदेव के गुरु के गायब होने के पीछे साजिश हो सकती थी तो उसने इस लिहाज से जांच क्यों नहीं की।
रिपोर्टर- वो शर्तें कुछ क्लियर हैं कि बाबा शंकरदेव के न रहने से फायदा किसको होना था
बिष्ट- फायदा तो ये इन्हीं को फायदा
रिपोर्टर- किसको
बिष्ट- इन्हीं को फायदा..फायदा
रिपोर्टर- इन्हीं को किसको
बिष्ट- वो यह लोग हैं सब और क्या
रिपोर्टर- कौन-कौन
बिष्ट- रामदेव प्लस जो भी हैं
रिपोर्टर- उनकी पार्टी
बिष्ट- उनकी पार्टी और क्या
याद रहे, ये बात स्वामी शंकरदेव केस में फाइनल रिपोर्ट लगाने वाला पुलिस अधिकारी कह रहा है यानि वो अफसर जिसने ये केस बंद किया। आखिर इतने सनसनीखेज कांड की जांच एक जूनियर अफसरों को क्यों दी गई थी – खुफिया कैमरे पर दर्ज बयान चौंकाने वाला था।
बिष्ट- हां, वो आदेश करा, जबकि मैंने विरोध भी किया और फिर ये जोशी साहब आए थे उस टाइम पर..बाद में मैंने कहा सर, SO लेवल का है, इसको जो है आप किसी सीनियर अधिकारी से करवाओ.. क्यों नौकरी नहीं करनी है…मैंने कहा ठीक है साहब..
बिष्ट- हां, वो आदेश करा, जबकि मैंने विरोध भी किया और फिर ये जोशी साहब आए थे उस टाइम पर..बाद में मैंने कहा सर, SO लेवल का है, इसको जो है आप किसी सीनियर अधिकारी से करवाओ.. क्यों नौकरी नहीं करनी है…मैंने कहा ठीक है साहब..
रिपोर्टर- जोशी साहब ने बोला
बिष्ट- जोशी साहब ने बोला
रिपोर्टर- मतलब फाइनल रिपोर्ट भी आपको जिद करके लगवाई..पूरी करवाई
बिष्ट- हां, खत्म करो जल्दी जल्दी
रिपोर्टर- खत्म करो जल्दी से
बिष्ट- खत्म करो इसको बहुत टाइम हो गया है..ये है और उस समय मेरे पास बिलकुल टाइम नहीं था..15-16 इन्वेस्टिगेशन थे..फिर भी प्रयास किया हमने जो भी न..
साफ है ये पुलिसवाला कह रहा है कि इस केस को किसी भी तरह निपटाने का खासा दबाव था। सवाल ये कि ये दबाव आखिर किस का था। आखिर पुलिस अफसर अपने ही महकमे के लोगों को क्यों डरा-धमका रहे थे?
आईबीएन7 और आउटलुक के लिए पत्रकार पुष्प शर्मा की तहकीकात अब एक ऐसे मुकाम पर थी जहां बाबा शंकरदेव के करीबी शक के घेरे में आए। पुलिस अफसरों ने खुलासा किया कि खुद 80 बरस के बाबा शंकरदेव ने भले ही आश्रम का अधिकार बाबा रामदेव को दे दिया था लेकिन वीटो पॉवर यानि अंतिम फैसला लेने का हक उन्होंने अपने ही पास रखा था। क्या पुलिसवाले यहां कोई साजिश सूंघ रहे थे, अगर उन्हें साजिश की भनक लगी थी तो उन्होंने जांच क्यों नहीं की। एसएस सावंत उस समय हरिद्वार के कनखल के एसएचओ थे। आज वे रुड़की भगवानपुर में एसएचओ हैं।
रिपोर्टर- सर, जो आश्रम के अंदर के लोग थे, उनका ये कहना था कि इन्हें एक तरीके से नेगलेक्ट..
सावंत- वो तो मैं भी देखता था न नेगलेक्ट
रिपोर्टर- उनका कुछ था नहीं
सावंत- वहीं बैठे रहते थे बाहर
रिपोर्टर- बाहर मतलब रोज के मामलों में उनका कोई दखल नहीं
सावंत- कुछ नहीं, उनका उन चीजों में कोई दखल नहीं हुआ करता था.. लेकिन वो उसके पास गए थे..कहीं किसी के बयान में मैंने लिया है
रिपोर्टर- हूं
रिपोर्टर- हूं
सावंत- कि वो जब कर्मवीर आता था..आता था, तब वो उनसे मिलने जाते थे
रिपोर्टर- बिल्कुल-बिल्कुल..
सावंत- जिससे इन लोगों को ऐतराज था
ट्रस्ट की डीड के मुताबिक वीटो पावर उन्हीं के हाथ में थी.. यानी वो जब चाहें आश्रम के बारे में कोई भी बड़ा फैसला ले सकते थे..सवाल है कि क्या इसी वीटो पावर की वजह से वो गायब हुए? मणिकांत मिश्रा उस समय सीओ सिटी थे। आज वे देहरादून में सीओ सिटी हैं।
मणिकांत- बाबा रामदेव के लिए वो लीस्ट बॉदर्ड पर्सन हो गए होंगे..बाबा रामदेव उनकी चिंता भी नहीं करते होंगे..मरे चाहे जिए, मुझे उनसे कोई मतलब नहीं है..
मणिकांत- बाबा रामदेव के लिए वो लीस्ट बॉदर्ड पर्सन हो गए होंगे..बाबा रामदेव उनकी चिंता भी नहीं करते होंगे..मरे चाहे जिए, मुझे उनसे कोई मतलब नहीं है..
रिपोर्टर- हूं
मणिकांत- लेकिन कोई साजिश थी उनको मारने में मुझे नहीं लगता.. हां, बाकी ये है कि रामदेव के लिए उसकी अब जरूरत नहीं थी शंकरदेव की..
रिपोर्टर- उनके कंधों पर पैर रखकर जितना चढ़ना था, चढ़ चुके..
मणिकांत- जितना चढ़ना था, चढ़ चुके
आखिर क्यों पुलिसवाला कह रहा था कि बाबा रामदेव के लिए उनके गुरु की अहमियत खत्म हो चुकी थी। तो क्या इसीलिए सालों साल स्वामी शंकरदेव का केस कछुए की रफ्तार से चलता रहा। प्रदीप चौहान 2011 में कनखल के एसएचओ थे आज वे एसएसआई, थाना वसंतविहार देहरादून में हैं।
प्रदीप- देखो उस समय तो राइजिंग पोजीशन पे था सही बताऊं तो रामदेव
रिपोर्टर- हूं
प्रदीप- हो सकता है सभी लोग उसके प्रभाव में शासन-प्रशासन जो रहा होगा मैं एक अपना एक आयडिया बता रहा हूं…
रिपोर्टर- हूं
रिपोर्टर- हूं
प्रदीप- क्योंकि 2007 में कोई विवाद था नहीं कि जी योगगुरु था..योगगुरु था
रिपोर्टर- राइट
प्रदीप- हर कोई उसके..
रिपोर्टर- फॉलो कर रहा था
प्रदीप- फॉलो कर रहे थे या उसकी इज्जत थी
रिपोर्टर- राइट-राइट
प्रदीप- प्रशासन भी कहीं न कहीं.. शासन भी उसको वो शासन भी अब 2011 की बात आई, तो रामदेव बहुत बड़ा नाम हो चुका था वो विवाद में पड़ चुके थे..
यानि बाबा रामदेव का जलवा जलाल इतना था कि उनके गुरु के गायब होने के केस में उन पर या उनके आश्रम पर निगाहें तरेरने का साहस वर्दीवालों को भी नहीं था। हाल तो ये है कि केस के इंचार्ज रहे IPS अजय जोशी को भी इस केस में कभी साजिश की बू नहीं आई। अजय जोशी 2007 में हरिद्वार के एसपी सिटी थे
अजय- और मुझे नहीं लगता कि कोई इनको बहुत बड़ा वो मानता था
रिपोर्टर- तो खुद को अनदेखा फील किया उसकी वजह से शायद ये हुआ
अजय- नेग्लेक्टेड फील ये एक फैक्टर होता है, पर उसकी वजह से हुआ हो ये कहना
रिपोर्टर- ये जरूरी नहीं है
अजय- हां कहना बड़ा मुश्किल है
आखिर अजय जोशी क्या कहना चाह रहे हैं, क्या वो ये कह रहे हैं कि स्वामी शंकरदेव अपनी अनदेखी की वजह से ही कहीं चले गए। क्या वो ये कहना भी चाह रहे हैं कि उदासी, मायूसी से घिरे शंकरदेव का मन उचाट हो गया था और इसीलिए उस गुमशुदगी के पीछे किसी साजिश को सूंघना ठीक नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी दबाव के आगे पुलिस ने घुटने टेक दिए और बाबा रामदेव के गुरुदेव के रहस्यमय तरीके से गायब होने की फाइल कागज के पुलिंदों में दफन हो गई। ऐसा तो नहीं कि इंसाफ के पहरुओं ने तय कर लिया था कि स्वामी शंकरदेव की गुत्थी सुलझानी ही नहीं है।
बाबा शंकरदेव के गुमशुदा होने के बाद आश्रम की तरफ से कहा गया था कि वो दर्द से परेशान थे और अपनी जिंदगी से आजिज आ चुके थे इसलिए एक दिन अचानक सबकुछ छोड़कर गायब हो गए। ये तर्क उस डॉक्टर के गले बिल्कुल नहीं उतरा, जिसने बाबा शंकरदेव का आखिरी दिन तक इलाज किया था।
डॉक्टर गंभीर- और ही वाज क्वाइट फाइन, ही रिकवर्ड अ लॉट..
रिपोर्टर- हूं
डॉक्टर गंभीर – ढाई साल जब हो गया तो फिर मैंने कहा, अब आप दवाई अपनी बंद कर दो..
रिपोर्टर- हूं..
डॉक्टर गंभीर – जनरली हम लोग एक साल का ट्रीटमेंट देते हैं..
रिपोर्टर- जी..
डॉक्टर गंभीर – और स्पाइनल ट्यूबरकुलोसिस में इसको डेढ़ साल तक बढ़ा देते हैं..मतलब 6 महीने और बढ़ा देते हैं..
रिपोर्टर- हूं
डॉक्टर गंभीर – तो उतना हो चुका था..
यानि स्वामी शंकरदेव ने जल्दबाजी में कोई फैसला लिया हो, इसकी आशंका कम है.. इसीलिए उस खत पर भी सवाल खड़े हुए जो शंकरदेव के कमरे से पुलिस को मिला था.. ये खत बाबा रामदेव के जीजा यशदेव शास्त्री के नाम था, जिसमें उन देनदारों से माफी मांगी गई थी, जिसके पैसे लौटाने में शंकरदेव नाकाम रहे थे.. जांच में पता चला कि खत के साथ छेड़छाड़ हुई थी..11 जुलाई 2007 की तारीख काटकर 14 जुलाई 2007 लिखी गई..तारीख बदलने के लिए इस्तेमाल हुई स्याही अलग थी..खत जल्दी में लिखा गया था..जो आखिरी खत लिखने वालों की शैली से उलट बात थी..।
खत से शंकरदेव की गुमशुदगी का राज और गहरा गया.. ऐसे में आखिरी लेकिन अहम सवाल ये कि क्या अपने ट्रस्ट में कानूनी अहमियत ही शंकरदेव की उनकी जान की दुश्मन बन गई.. लेकिन हैरत है कि पुलिस ने जांच का ये पहलू कभी नहीं छुआ।
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