आलोक पुराणिक
भ्रष्टाचार को समझने के लिए एक बड़ा सेमिनार हुआ। नेता समझा रहे थे, पब्लिक समझने की कोशिश कर रही थी। पब्लिक के बंदे दुबले-पतले, गन्नानुमा शेप में सिर पर टोपी लगाए हुए थे, जिसमें एक तरफ लिखा था- मैं हूं गन्ना। दूसरी तरफ एक कार्टून बना था, जिसके एक फ्रेम में एक नेता गन्नानुमा बंदे को गन्ने की रस की मशीन में डाल रहा था। दूसरे फ्रेम में निचुड़े, चुसे गन्नानुमा बंदे को फिर से नई मशीन में डाला जा रहा था।
एक गन्ने ने पूछा- नेताजी विकलांगों के लिए सरकार ने रकम आपको दी और आपने फर्जी कागजात दिखा दिए कैंप लगाने के। यह भ्रष्टाचार नहीं तो और क्या है। नेता बोले- यह तो ट्रस्टाचार है। ट्रस्ट ऐसे ही काम करते हैं। समझिए, भ्रष्टाचार नहीं है। दूसरे गन्ने ने जोर से पूछा- तमाम तरह की खानों को खोदने के लिए अपने-अपने चुन लिए। यह भ्रष्टाचार नहीं है क्या। नेता बोले- यह भ्रष्टाचार नहीं है, यह तो नेह निमंत्रणवाद है। देश तो दावत है नेता की। दावत में अपनों को खाने के लिए न्यौता भेजते हैं। उन्हें नेह निमंत्रण भेजते हैं। आप गौर से समझें, यह भ्रष्टाचार नहीं है।
एक गन्ना बहुत गुस्से में बोला- कंपनियां फर्जी निकल रही हैं, यह भ्रष्टाचार नहीं है। इसके जवाब में संयत, संजीदा वाणी में संबंधित नेता बोला- यह भ्रष्टाचार नहीं है, यह तो माया का दर्शन है, जो दिखता है, वह है नहीं। चार-पांच गन्ने गुस्से में बोले- आपके लिए तो कुछ भी भ्रष्टाचार नहीं है। नेता बोला- जी आपने अभी तक एक भी मामला भ्रष्टाचार का नहीं बताया। मैं बताता हूं कि भ्रष्टाचार क्या है। जनता का चारित्रिक पतन हो रहा है, यह भ्रष्टाचार है। सब्सिडी वाले सस्ते सिलिंडरों का इस्तेमाल करके उसे मुफ्तखोरी की आदत पड़ रही है, यह भ्रष्टाचार है। हमारा कर्त्तव्य है कि जनता को भ्रष्ट होने से बचाएं, इसलिए जल्दी ही हर गैस सिलिंडर के लिए 2000 रुपये कीमत चुकानी पड़ेगी। हम ऐसा करके मानेंगे क्योंकि हम भ्रष्टाचार हटाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
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