Sunday, October 28, 2012

रंजना देवी ने सौतन नाम के कंलक को मिटाया.......


रंजना देवी ने सौतन नाम के कंलक को मिटाया.......

आलेख- संतोष गंगेले-(लेखक/पत्रकार )
नोगॉव जिला छतरपुर मध्य प्रदेष
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भारतीय संस्कृति के हिन्दू धर्म में मॉ, बहन, बहू, बेटी, बुऑ, मौसी, चाची, मामी, भाभी, दादी, नानी, ननद, पुत्री, भतीजी, देवरानी,जेठानी,सहेली, के पवित्र रिष्ते है इन रिष्तों से ही परिवार के रिष्ते बने हैं , अन्यथा परिवार की परिभाषा में नही की जा सकती हैं , परिवार की परिभाषा में हर रिष्ते का अपना एक महत्व व कर्तव्य हैं, जिस प्रकार भाई का कर्तव्य अपनी बहन के प्रति कितना हैं, ऐसा ही बहन का कर्तव्य अपने भाई के प्रति कितना हैं , इसी प्रकार से भाई की बहन व पत्नि की नंद का अपना एक अलग रिष्ता हैं, अपनी संतान की बुऑ जो कि हमारी बहन होती हैं , इसी प्रकार पत्नी  की बहन बच्चों की  मौसा होती हैं जबकि पत्नी  के भाई की पत्नी बच्चों की मामी जी होती हैं । भाई केलिए  बड़े भाई की पत्नी हमारी भाभी जी होती हैं, साले की पत्नी भी भाभी होती है लेकिन पत्नी के भाई की पत्नी से हंसी मजाक व दिल की बात की जा सकती है लेकिन भाई की पत्नी जो हमारी भाभी जी होती है वह मॉ के समान होती हैं उससे मर्यादा व संस्कृति के अनुसार ही सम्मान जनक बात की जाती हैं भाभी को भी चाहिये कि वह अपने देवर जी से मर्यादित एवं संयम पूर्ण बातावरण करें । इसी प्रकार अपने पिता के भाई की पत्नि को  चाची जी या काकी जी कहा जाता हैं वह मॉ के समान ही होती हैं । हमारी बहन जो  पत्नी की ननद होती हैं , देवरानी व जेठानी के रिष्ते पत्नी से जुड़े होते हैं , पति के बड़े भाई की पत्नी को पत्नी जेठानी के रूप में सम्बोधित करती हैं उसे बड़ी दीदी या जीजी के नाम से पुकारते हैं , पति के छोटे भाई की पत्नी को छोटी बहन या देवरानी के नाम से पुकारा जाता हैं  , इसी प्रकार से भतीजी पुत्री के समान सम्मान पाने की हकदार होती हैं , भतीजी अपने भाई , भाभी जी या साले की की पुत्री को कहते हैं । अन्य मित्र की पुत्री को भी भतीजी ही कहा जाता हैं । यहीं सभी रिष्ते एक दूसरे को आपस में जोड़कर रखते हैं और जीवन भर केलिए यहीं रिष्ते होते हैं । लेकिन जब कोई व्यक्ति अपनी व्याहता पत्नि के रहने दूसरी महिला से ष्षादी करता है या उसे अपनी रखैल रखकर पत्नि का दर्जा दिया जाता है तो वह सौतन के नाम से संबोधित होती है । पहिली पत्नी के बच्चों को भी दूसरी मॉ केलिए सौतेली मॉ का सम्बोधन होता है । यह समाज में सबसे बड़ी समस्या हो जाती है कि सौतन एवं सौतेली मॉ का रिष्ते को कैसे पवित्र बनाया जावे यह कठिन होता है ? लेकिन समाज में धर्म है तो अधर्म का नाम होगा, सत्य है तो पाप होगा, दिन है तो रात होगी । इस प्रकार से प्रकृति अपने नियम से ही संचालित हो रही है और होती रहेगी । 

भारतीय संस्कृति में कन्या को देवी का रूप माना गया है और जिस दिन कन्या पैदा होती है उसी समय कहा जाता है कि घर में देवी जी का आगमन हो गया हैं , कन्याओं का महत्व हिन्दू धर्म के सभी गन्थों , बेद ,पुरान व षास़्त्रों में बताया गया हैं । जिस परिवार में कन्या नही होती है वह परिवार एक तरह से अष्वमेघ यज्ञ से अधूरा माना गया हैं ं । कन्या का विवाह व कन्यादान का महत्व उसी प्रकार से माना गया हैं जिस प्रकार कोई सौ गॉव का मिलकर एक भण्डारा या पूर्ण यज्ञ कराया जावें , इसी प्रकार से कन्या विवाह माना जाता हैं ं । कन्या के पैदा होते ही यह कहा जाता है कि हमारे यहॉ बरात आ गई । यह बात तीन स्थानों पर लागू हो जाती है । एक तो उस परिवार का मुखिया का सिर कन्या होते ही झुकता हैं, दूसरा उसका समाज में सम्मान होता हैं तीसरा उसे कोई यज्ञ की आवष्यकता नही होती है कि कन्यादान कन्या विवाह से बड़ा कोई पुण्य कार्य और कोई नही हैं । हमें आपको इस बात को सोचने केलिए मजबूर होना चािहये कि यदि हमारी माता जी किसी की पुत्री थीं , उन्ही के कारण आज हम इस संसार में हैं , जिस प्रकार हमारी मॉ ने हमें जन्म दिया है और प्रकृति के नियमों का पालन करते हुये हमारा पालन पोषण किया , हमारे सभी सुख दुःखों को अपने सिर पर रखा, दिन व रात का अनुभव नही किया ,हमारा अपनी माता जी के प्रति क्या सम्मान बनता है क्या हम या तुम या अन्य कोई अपनी मॉ के ़ऋण को अदा करने का साहस कर सकते हैं ? कभी नही  यदि जो व्यक्ति यह कह दें कि मेरी मॉ ने मुझे कुछ नही दिया या मेरे साथ मेरे पिता व माता जी ने कुछ नही किया तो उससे बड़ा अपराधी इस संसार में कोई नही हो सकता हैं । माता पिता की गहराई , माता पिता ही समझते हैं , जिन्हे मॉ-बाप बनने का ईष्वर ने सौभाग्य दिया हो वही इस सुख-दुःख का अनुभव कर सकते हैं ं आपको स्मरण दिलाता हॅू कि महाराज मनू व सतरूपा ने हजारों बर्ष तपस्या की और जब प्रभु प्रषन्न हुये तो उन्होने महाराज से कहा कि आप जो बर मॉगें में दे सकता हॅू तब प्रभु से दोनो पति-पत्नि ने एक ही बर मॉगा था प्रभु हम तो आपके समान पुत्र चाहते हैं । तब प्रभु  ने कहा कि मुझ समान तो में हॅू , लेकिन भक्त के बष में प्रभु ने कहा था कि में तुम्हें यह बर देता हॅू और वह भगवान श्री राम के रूप में तुम्हारा पुत्र रहॅगा, अयोध्या के ं महाराज दषरथ जो पूर्व में महाराज मनू व  भगवान श्री राम की मॉ जो कौषिलया थी वही सतरूपा  कौषिल्या हुई । 

इसलिए माता व पिता का रिष्ता ईष्वरी रिष्ता के समान है, यह रिष्ता गंगा जी से भी अधिक पवित्र रिष्तों को हमें कभी नही भूलना चाहिये जो व्यक्ति अपने मॉ-बाप को भूल सकते हैं वह संसार में किसी के हितकारी नही हो सकते हैं न ही वह संसार में सुख प्राप्त कर सकते हैं । यह बात प्रमाणित हे और जो ऐसा करते हैं वह जगह जगह परेषान व दुःखी है और जन्म जन्म तक दुःखित रहते हैं । हम जो भी बैज्ञानिक खोज करते है या हो रही है और होगी वह भारतीय संस्कृति के इतिहास से ही हो रही हैं , वह ईष्वर कृपा हैं और बिना ईष्वर के कोई खोज नही हो सकती हैं  । तुलसीदास जी ने लिखा है कि हरि अनंत है और उनकी कथा अनंत हैं । उनका रहस्य विरला ही कोई समझ पाता हैं , उनके इस रहस्य में संसार के प्राणी उलझे हैं । जो प्रभु की लीला का रहस्य जान जाते है वह संसार की भौतिक बस्तुओं से दूर हो जाते हैं उसकी इच्छा प्रभु ध्यान व भक्ति में लगी रहती है तथा वह अपने कर्तव्यो का पालन करते हुये परिवारिक वं सामाजिक बंधनों में बंधकर देष सेवा में लग जाता है । 

सौतन कौन हैं ? 

भारतीय संस्कृति में अनेक परिभाषायें परिवार में आती है लेकिन सौतन एक ऐसा रिष्ता है जो हर कोई और केलिए जहर की तरह है बैसे जहर पीकर या खाकर तो महिलायें तुरन्त प्राण त्याग कर सकती है लेकिन सौतन का जहर पूरे जीवन जीते नषा करता हैं और यह महिलाओं केलिए खाना-पीना तक भुला देता हैं । आखिर यह सौतन का नाम क्यों इतना खतरनाक हैं ? हम आप इस बात का अहसास नही कर पाते है लेकिन सौतन के बारे में जानना भी आवष्यक है । 

साधारण बोल चाल की भाषा में सौतन ष्षव्द का एक पत्नी के रहते पति किसी दूसरी महिला से प्रेम करता है या किसी महिला के संतान न हो तो वह दूसरी ष्षादी करें या कोई प्रेम करने बाली महिला पति के गले पड़ जावें तो उसे अपना ही सौतन कहा जाता हैं  ।  सौतन का महत्व पति केलिए सुखदायी हो सकता हैं लेकिन पत्नि केलिए सबसे बड़ा जहर है ।  महिलायें तो यहॉ तक कहती है कि वह किसी मिट्टी या चून (आटा) से बनी सौतन को भी नही देख सकती हैं । इसलिए कोई भी प्र्रेमिका या महिला से आपका कितना ही स्नेह व प्यार हो यदि आप अपने बीच जहर या जीवन को बर्वाद करना चाहते है तो किसी अमुक महिला के बारे में अपनी प्रेमिका या पत्नि को यह बात बता दें कि हमारा प्रेम तो अब अमुक महिला से हो गया है या हम करने जा रहे हैं तो आपका सालों पुराना प्यार व स्नेह एक पल में रेत के पहाड़  की तरह  बिखर जायेगा । 

इस युग में तो सौतन या दूसरी महिलायें हर किसी के पीछे पड़ सकती है इस भौतिकवादी युग में आम आदमी की आवष्यकता बहुत बढ़ गई हैं और आये दिन समाचार पत्रों एवं घटनाओं में यहीं बात सामने आती है कि अमुक महिला के चलते हत्या, डकैती, मारपीट व झगड़ा हो रहे है या अमुक परिवार में नव विवाहिता ने तेल डाल कर या जहर खाकर आत्म हत्या कर ली हैं । इसका कारण आज के युग में कथित महिलायें किसी परिवार को हंसता खेंलता देंख नही पा रही हैं , अपनी सुन्दरता ,मधुरता का जाल तथा रमणीय भाषा, का उपयोग कर पुरूषों का अपनी ओर आकर्षित करती है।  पुरूष कामुक बिषयविकार व पापी हो कर अपने परिवार व बच्चों की चिन्ता का त्याग कर परनारी के चक्कर में पड़ जाता है । जिससे वह अपना जीवन अनेक तरह से बर्वाद करता हैं , तुलसीदार जी लिखा है कि दूसरी स्त्री से प्रेम करने बाले तीन तरह से अपना जीवन को नष्ट करते हैं , परनारी पैनी छुरी तीन ठोर से खाय-धन छीन यौवन हरे मरें नरक ले जायें ।। यानी दूसरी स्त्री से जब कोई आदमी पागलपन में प्रेम या प्यार करता है तो उसे धन की क्षति होती है वह दूसरी स्त्री के कहने पर जो चाहे सामग्री खरीददारी करने को तैयार रहता है और अपनी बनी हुई संपत्ति मिटा देता हैं , सौतन के रूप में ष्षराब भी आती है जो परिवारिक व्यक्ति यदि दूसरी पत्नि से प्रेम नही करता यदि ष्षराब पीता है तो वह भी ष्षौतन का ही काम करती हैं । और परिवार बिखर जाते हैं उस पर भी वही तीन बातें लागू हो जाती हैं ं धन जाता है और स्वास्थ्य नष्ट होता है , और ष्षराव के नषें में नाली-नरदा , अच्छी बुरी जगह नही देंखता वह गिर जाता है पड़ा रहता हैं । इसी प्रकार दूसरी औरत व्यक्ति से धन छीनती है उसकी जवानी को पूरी तरह समाप्त करती है , जब दूसरी स्त्री संग रंगेलियॉ मनाओं तो समाज में प्रतिष्ठा नष्ट हो जायेगी और सामाजिक बहिष्कार एवं विवाहिता पत्नि व बच्चों की दुःखित आवाज के बाद पाप के अंधकार से तुम्हारी बुध्दि व विवेक समाप्त हो जायेगा जो सीधा नरक का व्दार खोल देता हैं यानी बुरी दुर्गति हो जाती हैं । 

           बुन्देलखण्ड की राजधानी कहलाने बाला एक स्थान नौगॉव छावनी के नाम से जाना जाता है इस नौगॉव छावनी को अपना एक इतिहास है, यह मध्य प्रदेष के छतरपुर जिला की तहसील नौगॉव के नाम से स्थापित है । इसी तहसील के ग्राम झीझन के एक गरीब ब्राम्हण परिवार धर्मदास -लक्ष्मी देवी की लाड़ली बेटी रंजना देवी ने अपनी भारतीय संस्कृति एंव संस्कारों के प्रति अपना जीवन न्यौछावर करते हुये सौतन के इस कंलक को मिटाया है जिसकी जीवनी लिखना कठिन है लेकिन इस बेटी ने अपना जीवन समर्पित करते हुये एक उजड़े परिवार की चार संतानों को अपनी अल्प आयु में ही मॉ का स्थान देकर उनका पालन पोषण करती आ रही है , भगवान कामता नाथ जी चित्रकूट व भगवान श्री राम राजा सरकार की परम भक्ति के कारण रंजना देवी की गोदी भी एक संतान रत्नदीप जैसी उन्हे प्राप्त हुई है । 

बर्तमान इस भौतिकवादी युग जिसे आम आदमी कलयुग के नाम से संवोधित करता है तथा आये दिन अन्याय अत्याचार दहेज  प्रताड़ता के कारण महिलाओं की हत्यायें हो रही है उन्हे जिन्दा जलाया जा रहा है महिलाओ को आत्म हत्या करने केलिए मजबूर किया जा रहा है , ऐसे समय में एक भारतीय नारी ने भारतीय महिलाओं पर लगने बाले सोतन के नाम के कलंक को मिटा दिया है । आज हजारों लोगों के मुॅह पर इस महिला व परिवार का नाम एक सम्मान के साथ साथ एक आदषर््ा नारी के रूप पहचान बना कर सौतने के रूप मे जीवन निर्वाहन करने बाली महिलाओं के लिए नजीर बनकर समाज में जीवित हैं । यदि भारतीय महिलाओ में सत्य व चरित्र न होता तो आज भारत के अंदर धर्म न रहता है । यदि आज भी महिलाये चाहे तो अपने सत्य व चरित्र के कारण भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों का जो विनाष हो रहा है उसे बचाया जा सकता है , अन्यथा भारत की नारी विदेषी महिला हो जायेगी और उसके चरित्र की कीमत बाजार के चौराहो पर लगाई जा सकती है ।  इस कलंक से बचने केलिए महिलाओं को प्रेरणा देने बाली इस महिला के बारे में पूरा पता लगाना भी आवष्यक है । 

सौतन का दायित्य 

यदि बास्तविक कोई परिवार किसी हादसे का षिकार है या उसका बंष नही आगे बढ़ रहा है और विवाहित स्त्री के संतान नही हो रही है और विवाहित पत्नी की भी इच्छा है तो दूसरी ष्षादी या महिला का अपनाना कोई अपराध नही है ।  या किसी परिवार में कोई महिला की मृत्यु हो गई हैं और बच्चें है उनका पालन पोषण नही हो पा रहा हैं तो दूसरी ष्षादी करना  किसी महिला को पत्नी  स्वीकार करना भी समाज में अपराध नही हैं  । बैसे ऐसे समय में कोई भी समाज की बिधवा या तलाक षुदा महिला को सजातिय रूप में अपनाना समाज के हित में होगा और महिला को भी दूसरा जीवनदान मिलता है। । ऐसी दूसरी आने बाली महिलाओं का कर्तव्य या दायित्व बनता है कि वह भी महिला है और उसकी भी वहीं इच्छायें है जो पहिलें से पत्नी है या उसकी मदद से वह घर में हैं वह उसकी ही तो बहन हैं । 
         सौतन को ऐसे में उसे अपनी बहन स्वीकार कर लेना चाहिये हैं और उससे मिलकर ही परिवार का संचालन करना चाहिये ।  आज समाज में अनेक ऐसी महिलायें समाज केलिए उदाहरण है और उनका परिवार बहुत ही अच्छा चल रहा है । लेकिन सौतन का नाम ही बदनाम है वह कितना ही अच्छा करें लोग उसे बुरी नजर से ही देंखत हैं और कोई नही महिलाओं में ही आपस में यहीं बात कहीं जाती हे कि अमुक महिला के कारण ऐसा हुआ , चाहे किसी का भी अपराध हो लेकिन कहां कुछ ही जायेगा । आज आवष्यकता है कि महिलाओं एवं पुरूष को एक अच्छी सोच एवं संयम के साथ जीवन जीने की कला सीखना चाहिये ।  आज के इस भौतिकवादी युग में महिलाओं एवं पुरूष को समानता का अधिकार है अब औरते किसी नर की सेविका के रूप में जीवन जीना नही चाहती हैं वह भी अपने अधिकार समझती है और उनकी इच्छायें हैं । इसलिए समान रूप से सहयोग करना चाहिये । ऐसा नही कि औरतें के दिल व दिमाग को प्रकृति ने बदल दिया है आज भी औरतें पुरूष के प्यार के आगे वह तन,मन,धन समर्पित नही कर सकती हैं , उनके लिए पति ही ईष्वर आज है और जब तक सृष्टि रहेगी औरत पति को अपना सब कुछ मानती रहेगीं । लेकिन पति को चाहिये कि वह हमेषा अनुषासन एवं गरमदल की बातें न करें उसे भी अपनी पत्नी के मन की बात को टटोलना होगा । यदि व्यक्ति अपनी पत्नी को बिष्वास में लेकर कोई भी गलत से गलत कार्य कर देता है तो उसे वह माफ करती हैं लेकिन जब झूठ बोलकर कोई कार्य किया जावें या उसे गुमराह किया जाता है तो वह परिवार टूटने लगते है और मुकदमवाजी एवं तलाक होने लगते हैं । सौतन को पहली पत्नी के बच्चों के साथ अन्याय व अत्याचार नही करना चाहिये अन्यथा इसके परिणाम बहुत घातक व कष्टदायी होते हैं । जीवन नरक के समान हो सकता है । पहली पत्नी के बच्चों को ममता व दुलार तो नही दिया जा सकता हैं लेकिन उन्हे स्नेह व प्यार दिया जा सकता हैं इसलिए जो प्यार दूसरी मॉ दे सकती हैं उसे देने का पूरा  प्रयास करना चाहिये । 

सौतन का मुख्य दायित्य हम यह कह सकते है कि जब भी किसी परिवार में कोई संकट हो या कोई दुघर्टना हो तो वह दूसरी ष्षादी करें लेकिन दूसरी ष्षादी के बाद पहिली पत्नी यदि जीवित है तो प्रथम सम्मान जीवित पत्नी का है और जो भी घर में कार्य किय जावें दूसरी पत्नी व पति को उनकी बिना सलाह से नही करना चाहिये और मिल कर किसी भी बात का समाधान किया जा सकता हैं । जब इस प्रकार का बातावरण होगा तो परिवार में विवाद नही होगें , जब भी घर में कोई बस्त्र या जेबरात लायें जावें तो समान रूप से लियें जावें , जब भी कहीं जावें साथ साथ लेकर जावें । इस प्रकार से समझदारी से कार्य करने पर परिवार में समंजय बना रहेगा और अषॉति व तनाव नही होगा । यदि किसी ऐसे परिवार में किसी दूसरी महिला का प्रवेष हो रहा है कि पहिली पत्नी का निधन हो गया है और उसका एक या अनेक बच्चें है तो महिला का सर्वप्रथम फर्ज है होता है कि वह जैसे ही अपनी ससुराल आवें सबसे पहिले पहिली पत्नी के जो बच्चें है उन्हे गोंदी में उठाकर उन्हे मॉ का दुलार दें, क्योंकि बच्चों के सिर पर मॉ का साया नही है और जो दूसरी मॉ उसके स्थान पर आई है उसका पूरा कर्तव्य बच्चों का पालन पोषण व उन्हे संस्कारवान बनाना हैं । वह सोतेली मॉ जरूर लोगों के लिए कहीं जा सकती हे लेकिन यदि उसका कर्तव्य व दायित्य बच्चों के प्रति हैं तो वह पहिली मॉ से अधिक सम्मान प्राप्त कर सकती हैं और घर-परिवार समाज में सम्मान प्राप्त करने की हकदार हैं । 

सौतन समाज की उनकी महिलाओं के व्दारा दिया गया नाम है जो महिलायें दुराचार व दुष्टा, महिलाओं के आर्दर्षो को जो नारियॉ मर्यादाओं को समाप्त करती हैं । ऐसा नही  कि बिपत्ति या संकट मानव जीवन में न आती है, हर व्यक्ति पर संकट आते हैं लेकिन निराकरण करने का उपाय भी प्रकृति के व्दारा ईष्वर ही  करता हैं । हमें अपने ज्ञान,बुध्दि, विवेक, अनुभव के व्दारा तथा बुर्जुगों के बताये रास्ता को समझ कर परिवार का संचालन करना चाहिये । समाज में दूसरी मॉ व दूसरी पत्नी के ऐसे उदाहरण भी मिलते हैं जिनकी हम कल्पना नही कर सकते हैं लेकिन अधिकॉष दूसरी पत्नी व दूसरी मॉ का व्यवहार उस समय परिवर्तन हो जाता है जब उस महिला को पति कामुक होकर बच्चों का ध्यान नही देता और पत्नी के इंषारे पर नाचने लगता है तो समाज ऐसे महिला व पुरूष को घृणा की दृष्टि से देखता है और लोगों को उदाहरण देने लगता है कि दूसरी ष्षादी व दूसरी मॉ में कितना अन्तर हो जाता हैं । इसलिए यदि समाज में दूसरी मॉ  या जो पत्नी हो उसे समाज व परिवार की मर्यादाओं का ध्यान रखना चाहिये और अपने आत्मबल व संयम के व्दारा परिवार का संचालन करना चाहिये क्योंकि भारत देष ही एक ऐसा देष है जहां नारी की पूजा होती है , नारी की परिभाषा में भारतीय हर नारी आती है ।  

         उसकी कोई जाति नही होती हैं वह  तो नारी है तो नारी हैं । चाहे किसी भी धर्म या जाति में पैदा हो । नारी का कर्तव्य क्या है यह उसे समझाना नही होता हैं वह अपने संस्कारों एवं कर्तव्यों से परिचित होती हैं ।  विवाद व झंझट वहां पैदा हो जाते हैं जब कोई मॉ अपनी कोख से संतान पैदा की गई हो और दूसरी मॉ की कोख से पैदा की गई संतान के साथ पक्षपात करती है या कटू बचन बोलती है तो वहां दूसरी मॉ व पत्नी का अहसास होने लगता हैं वहीं सौतन का नाम आता है और यहीं से नारी के सम्मान पर चौंट पहुॅचती हैं । हर माता को चाहिये कि वह अपनी सन्तान की तरह हर सन्तान के साथ अच्छा वर्ताव करें , उसे सुख न दे सकें तो कम से कम दुःख नही देना चाहिये साथ ही किसी की आत्मा को कष्ट नही देना चाहियें जब यह बिचार  हर औरत व माता के हृदय में स्थान बना लेगा तो सौतन का नाम न तो बदनाम होगा न किसी संतान को यह पता हो सकेगा कि मेरी मॉ व दूसरी मॉ में कोई अंतर हैं   इसलिए सौतन के नाम को कंलकित करने बाली महिलाओं को हर बात का ध्यान रखना चाहिये । इस संसार में मॉ की ममता की तुलना आज तक किसी से नही की जा सकी, लेकिन प्रभु कृपा से इस भारत भूमि में हजारो ऐसी भी महिलाये है जिन्होने दूसरी महिला या पत्नि की संतान को अपना पूरा जीवन न्यौछावर किया भले ही उन्हे हजारो हजारेा कठिनाईया परेषानी या दुःख सहन करना पड़े हो लेकिन अपने नारी धर्म का सम्मान व गौरव के कम नही होने दिया , आज भी भारत में महिलाओं को देवी, लक्ष्मी, सरस्वती,, सती, सावित्री, सीता के ही स्वरूप में पूज्यनीय माना जाता है लेकिन इसके लिए महिलाओं को ही अपना त्याग, तपस्या समर्पण, सरलता, सहजता, षालीनता, संयम, कर्मयोगी के साथ साथ लोक लाज मर्यादाओं को पूरा ध्यान रखने बाली भारतीय महिलाओं को इन भारतीय संस्कृति एंव संस्कारों से गुजरना होता है तब वह इस सम्मान को प्राप्त कर पाती है । अन्यथा जो महिलायें अपना चरित्र का पतन करती है, भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों को त्याग कर अपने यौवन, रूप के कारण वैष्याओं जैसे घृणित कार्य करती है उनका बर्तमान व भविष्य तो खराव होता ही है ,धर्म व ष्षास्त्रों के अनुसार उन्हे  अनेक जन्मों तक दुःख व कष्ट उठाना होते है । इसलिए महिलाओं को ही उच्च स्थान है उसको पाने केलिए प्रत्येक महिलाओं को प्रयासरत रहना चाहिये । 

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