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अवधेश पुरोहित
भोपाल। पिछले दिनों मध्यप्रदेश सरकार की ओर से एक विज्ञापन जारी किया गया जिसमें भ्रष्टाचार से मुक्त प्रदेश के संकल्प की ओर एक ठोस कदम की बात कही गई, सवाल यह उठता है कि आखिर भय, भूख और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन प्रदेश की जनता को देने के वायदे के साथ २००३ में यह सरकार सत्ता पर काबिज हुई, यदि दो मुख्यमंत्री सुश्री उमा भारती और बाबूलाल गौर के कार्यकाल को छोड़ दें तो प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार को ११ वर्ष होने को हैं, लेकिन रोजाना जिस तरह से प्रदेश के कर्मचारियों और अधिकारियों पर लोकायुक्त और विभिन्न जांच एजेंसियों द्वारा डाले जा रहे छापे के दौरान जिस पर भी छापे की कार्यवाही की जा रही है वह करोड़पति ही निकल रहा है तो वहीं दूसरी ओर प्रतिदिन लोकायुक्त की गिरफ्त में कभी बाबू तो कभी अधिकारी तो कभी पटवारी कोई ना कोई रिश्वत लेते धराये जा रहे हैं, मजे की बात यह है कि प्रदेश के भाजपा शासनकाल के दौरान स्थिति यह बन गई है कि छोटा कर्मचारी भी करोड़पति दिख रहा है, उस प्रदेश को भ्रष्टाचार मुक्त कहने का प्रयास सरकार को क्या आईना दिखाने का काम नहीं है, सवाल यह भी उठता है कि आखिरकार प्रदेश के लोकप्रिय जनप्रिय दरिद्र नारायण की सेवा का संकल्प लेकर राजनीति में उतरे और प्रदेश के विकास के लिये अपनी रातों की नींद का त्याग कर प्रदेश को स्वर्णिम मध्यप्रदेश बनाने का सपना संजोने में लगे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इस सपने के स्वर्णिम मध्यप्रदेश को आखिर भ्रष्ट प्रदेश कहा किसने यह भी एक शोध का विषय है, सवाल यह भी उठता है कि आखिरकार इस तरह का विज्ञापन वी. पाली रस्तोगी के विभाग के द्वारा इस समय जारी करने की आवश्यकता क्या पड़ गई और यह बताने की आवश्यकता क्यों महसूस हुई कि भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश के संकल्प की ओर कदम बढ़ा रहा है। इस विज्ञापन को लेकर प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह की चर्चाओं का दौर जारी है और लोग इसे चटकारे लेकर यह कहते देखे जा रहे हैं कि अभी तक तो राज्य के लोगों को यह समझ में आ रहा है कि हमारा प्रदेश भ्रष्ट नहीं है लेकिन अब भ्रष्टाचार मुक्त संकल्प के विज्ञापन से यह साफ इशारा करता है कि प्रदेश में कहीं न कहीं भ्रष्टाचार पनप रहा है और सरकार अब इस सदी के १६वें साल में और अपने सत्ता के ११वें वर्ष में यह संकल्प ले रही है कि अब वह इस प्रदेश को भ्रष्टाचारमुक्त मध्यप्रदेश बनाने की ओर अग्रसर है, तो लोग यह कहते भी नजर आ रहे हैं कि इस तरह के संकल्प के स्लोगन के साथ सरकार की ओर से जारी इस विज्ञापन में यह भी संकेत मिल रहे हैं कि २००३ में भले ही सत्ता पर काबिज होने के समय भाजपा ने अपने जनसंकल्प में इस बात का दावा किया हो कि प्रदेश की जनता को भय, भूख और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देंगे वह तो शायद उमा भारती के नेतृत्व में लड़ा गया विधानसभा चुनाव के समय का था, लेकिन अब शिवराज सरकार भाजपा के २०११ के बाद एक नया वायदा इस प्रदेश की जनता के समक्ष इस विज्ञापन के माध्यम से करने जा रही है, देखना अब यह है कि यह सरकार की ओर से भ्रष्टाचार मुक्त मध्यप्रदेश के संकल्प की ओर ठोस कदम, यह संकल्पयुक्त विज्ञापन में दिया गया संदेश कितना ठोस होगा यह तो भविष्य बताएगा कि इस विज्ञापन के जारी होने के बाद मध्यप्रदेश में कितना भ्रष्टाचार कम हुआ है।
अवधेश पुरोहित
भोपाल। पिछले दिनों मध्यप्रदेश सरकार की ओर से एक विज्ञापन जारी किया गया जिसमें भ्रष्टाचार से मुक्त प्रदेश के संकल्प की ओर एक ठोस कदम की बात कही गई, सवाल यह उठता है कि आखिर भय, भूख और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन प्रदेश की जनता को देने के वायदे के साथ २००३ में यह सरकार सत्ता पर काबिज हुई, यदि दो मुख्यमंत्री सुश्री उमा भारती और बाबूलाल गौर के कार्यकाल को छोड़ दें तो प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार को ११ वर्ष होने को हैं, लेकिन रोजाना जिस तरह से प्रदेश के कर्मचारियों और अधिकारियों पर लोकायुक्त और विभिन्न जांच एजेंसियों द्वारा डाले जा रहे छापे के दौरान जिस पर भी छापे की कार्यवाही की जा रही है वह करोड़पति ही निकल रहा है तो वहीं दूसरी ओर प्रतिदिन लोकायुक्त की गिरफ्त में कभी बाबू तो कभी अधिकारी तो कभी पटवारी कोई ना कोई रिश्वत लेते धराये जा रहे हैं, मजे की बात यह है कि प्रदेश के भाजपा शासनकाल के दौरान स्थिति यह बन गई है कि छोटा कर्मचारी भी करोड़पति दिख रहा है, उस प्रदेश को भ्रष्टाचार मुक्त कहने का प्रयास सरकार को क्या आईना दिखाने का काम नहीं है, सवाल यह भी उठता है कि आखिरकार प्रदेश के लोकप्रिय जनप्रिय दरिद्र नारायण की सेवा का संकल्प लेकर राजनीति में उतरे और प्रदेश के विकास के लिये अपनी रातों की नींद का त्याग कर प्रदेश को स्वर्णिम मध्यप्रदेश बनाने का सपना संजोने में लगे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इस सपने के स्वर्णिम मध्यप्रदेश को आखिर भ्रष्ट प्रदेश कहा किसने यह भी एक शोध का विषय है, सवाल यह भी उठता है कि आखिरकार इस तरह का विज्ञापन वी. पाली रस्तोगी के विभाग के द्वारा इस समय जारी करने की आवश्यकता क्या पड़ गई और यह बताने की आवश्यकता क्यों महसूस हुई कि भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश के संकल्प की ओर कदम बढ़ा रहा है। इस विज्ञापन को लेकर प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह की चर्चाओं का दौर जारी है और लोग इसे चटकारे लेकर यह कहते देखे जा रहे हैं कि अभी तक तो राज्य के लोगों को यह समझ में आ रहा है कि हमारा प्रदेश भ्रष्ट नहीं है लेकिन अब भ्रष्टाचार मुक्त संकल्प के विज्ञापन से यह साफ इशारा करता है कि प्रदेश में कहीं न कहीं भ्रष्टाचार पनप रहा है और सरकार अब इस सदी के १६वें साल में और अपने सत्ता के ११वें वर्ष में यह संकल्प ले रही है कि अब वह इस प्रदेश को भ्रष्टाचारमुक्त मध्यप्रदेश बनाने की ओर अग्रसर है, तो लोग यह कहते भी नजर आ रहे हैं कि इस तरह के संकल्प के स्लोगन के साथ सरकार की ओर से जारी इस विज्ञापन में यह भी संकेत मिल रहे हैं कि २००३ में भले ही सत्ता पर काबिज होने के समय भाजपा ने अपने जनसंकल्प में इस बात का दावा किया हो कि प्रदेश की जनता को भय, भूख और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देंगे वह तो शायद उमा भारती के नेतृत्व में लड़ा गया विधानसभा चुनाव के समय का था, लेकिन अब शिवराज सरकार भाजपा के २०११ के बाद एक नया वायदा इस प्रदेश की जनता के समक्ष इस विज्ञापन के माध्यम से करने जा रही है, देखना अब यह है कि यह सरकार की ओर से भ्रष्टाचार मुक्त मध्यप्रदेश के संकल्प की ओर ठोस कदम, यह संकल्पयुक्त विज्ञापन में दिया गया संदेश कितना ठोस होगा यह तो भविष्य बताएगा कि इस विज्ञापन के जारी होने के बाद मध्यप्रदेश में कितना भ्रष्टाचार कम हुआ है।
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