मुख्यमंत्री के साले की भी थी इसी अखबार से मान्यता
- मामला एक ही परिवार के 17 लोगों की अधिमान्यता का
Present by - toc news
इन दिनों मुरैना, ग्वालियर व अन्य जगहों से प्रकाशित दैनिक अखबार "हिन्दुस्तान एक्सप्रेस" से जुड़े 17 लोगों को जनसम्पर्क विभाग के द्वारा दी गई अधिमान्यता को लेकर समाचार सुर्खियों में है, लेकिन सवाल यह उठता है कि जिस अखबार के माध्यम से एक समय प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान की धर्मपत्नी श्रीमती साधना सिंह के भाई संजय चौहान की भी मान्यता इसी समाचार पत्र से थी और जिस समाचार पत्र से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साले जुड़े हों, उस अखबार को विज्ञापन और अन्य सुविधाओं के साथ-साथ मनचाही अधिमान्यता न देने का तो जनसंपर्क विभाग के अधिकारियों की हिम्मत नहीं है और ऐसे में उसी अखबार से मध्यप्रदेश खनिज विकास निगम के पूर्व उपाध्यक्ष गोविंद मालू और संघ के नेता अरविंद कोटेकर, भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा के करीबी उदय अग्रवाल की भी अधिमान्यता हो तो प्रदेश के इस तरह की राजनैतिक हस्तियों के समाचार पत्र से जुड़े रहने से यह बात तो साफ हो जाती है कि प्रदेश का कोई भी बड़े से बड़े अधिकारी की कोई जुर्रत हो सकती है कि वह इस समाचार पत्र को कोई दी जाने वाली सुविधा को रोक सके, यही नहीं जहां मुख्यमंत्री के साले इस समाचार पत्र से जुड़े हों और पूर्व सांसद अशोक अर्गल का इस समाचार पत्र के प्रधान संपादक चंद्रप्रकाश शिवहरे से दोस्ताना हो ऐसे में इन हस्तियों के सामाचार पत्र से और उसके प्रधान सम्पादक से जुड़ाव होने के कारण इन दिनों उक्त समाचार पत्र से 17 अधिमान्यताओं को लेकर बवाल मचा हुआ है। इस बवाल के साथ ही कुछ और चर्चाएं इन दिनों लोग चटकारे लेकर करते देखे जा रहे हैं, जहां तक शराब किंग शिवहरे के व्यापारिक ठिकानों पर पड़े छापे के दौरान मिले दस्तावेज और डायरियों को लेकर भी तरह-तरह की चर्चाएं आम हैं, हालांकि इसका खुलासा कुछ दिनों बाद होगा कि इस समूह से किन-किन प्रदेश और देश के राजनेताओं का जुड़ाव है और कौन अधिकारी इस कारोबार में सहभागी हैं, संजय सिंह के इस समाचार पत्र समूह से जुड़ाव होने के कारण चर्चाओं का बाजार गर्म है।
हालांकि इस मामले में जैसा कि जनसम्पर्क के अधिकारी यह दावा कर रहे हैं कि पत्रकारों को अधिमान्यता देने के मामले में जनसम्पर्क विभाग द्वारा बनाई गई अधिमान्यता कमेटी की सिफारिश पर ही पत्रकारों को अधिमान्यता दी जाती है, फिर वह कमेटी चाहे पत्रकारों को जिला स्तर या राज्य स्तर की अधिमान्यता की सिफारिश करे इस कमेटी की सिफारिश के बाद ही जनसम्पर्क विभाग द्वारा पत्रकारों को अधिमान्यता दी जाती है सवाल यह उठता है कि जिस अधिमान्यता कमेटी के सदस्यों द्वारा इस समाचार पत्र के माध्यम से जिन लोगों को अधिमान्यता देने की सिफारिश की गई क्या उन्हें अधिमान्यता के नियमों की जानकारी नहीं है, जबकि जनसम्पर्क विभाग द्वारा होने वाली इस तरह की मीटिंगों के दौरान जो दस्तावेज उन्हें उपलब्ध कराये जाते हैं उनमें अधिमान्यता नियमों की एक कापी भी साथ में लगी होती है, यह उल्लेखनीय है कि जनसम्पर्क विभाग द्वारा उन्हीं पत्रकारों को अधिमान्यता दी जाती है जो श्रमजीवी की श्रेणी में आते हैं, जबकि ना तो जब इस समाचार पत्र से मुख्यमंत्री के साले की अधिमान्यता थी वह ना तो श्रमजीवी थे और ना पत्रकार और आज जिन लोगों की अधिमान्यता को लेकर समाचार सुर्खियों में वह लोग भी श्रमजीवी नहीं हैं, लेकिन कमेटी द्वारा पता नहीं क्यों और किसके दबाव पर या किस कारण ऐसे लोगों को जो जिनका श्रमजीवी से दूर-दूर का वास्ता नहीं, उन्हें अधिमान्यता देने की सिफारिश पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं, भले ही इन दिनों बवाल हिन्दुस्तान एक्सप्रेस के माध्यम से दी गई 17 अधिमान्यताओं को लेकर समाचार सुर्खियों में हो, लेकिन हकीकत यह है कि आज भी मध्यप्रदेश जनसम्पर्क विभाग द्वारा जिन पत्रकारों को अधिमान्यता दी गई है उनमें से अधिकांश ना तो श्रमजीवी पत्रकार हैं लेकिन ऐसे कई लोगों को अधिमान्यता दी गई है जिनमें वकील, डॉक्टर भी शामिल हैं।बात यदि अधिमान्यता की करें तो पंचर जोडऩे वाले और आटो चलाने वालों के पास भी जनसम्पर्क की अधिमान्यता है और वह धड़ल्ले से उस अधिमान्यता का दुरुपयोग करते नजर आते हैं। अब ऐसे में सवाल उठता है कि जनसम्पर्क द्वारा बनाई गई अधिमान्यता समिति के सदस्य क्या अपने दायित्वों का सही निर्वहन कर रहे हैं।
- मामला एक ही परिवार के 17 लोगों की अधिमान्यता का
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इन दिनों मुरैना, ग्वालियर व अन्य जगहों से प्रकाशित दैनिक अखबार "हिन्दुस्तान एक्सप्रेस" से जुड़े 17 लोगों को जनसम्पर्क विभाग के द्वारा दी गई अधिमान्यता को लेकर समाचार सुर्खियों में है, लेकिन सवाल यह उठता है कि जिस अखबार के माध्यम से एक समय प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान की धर्मपत्नी श्रीमती साधना सिंह के भाई संजय चौहान की भी मान्यता इसी समाचार पत्र से थी और जिस समाचार पत्र से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साले जुड़े हों, उस अखबार को विज्ञापन और अन्य सुविधाओं के साथ-साथ मनचाही अधिमान्यता न देने का तो जनसंपर्क विभाग के अधिकारियों की हिम्मत नहीं है और ऐसे में उसी अखबार से मध्यप्रदेश खनिज विकास निगम के पूर्व उपाध्यक्ष गोविंद मालू और संघ के नेता अरविंद कोटेकर, भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा के करीबी उदय अग्रवाल की भी अधिमान्यता हो तो प्रदेश के इस तरह की राजनैतिक हस्तियों के समाचार पत्र से जुड़े रहने से यह बात तो साफ हो जाती है कि प्रदेश का कोई भी बड़े से बड़े अधिकारी की कोई जुर्रत हो सकती है कि वह इस समाचार पत्र को कोई दी जाने वाली सुविधा को रोक सके, यही नहीं जहां मुख्यमंत्री के साले इस समाचार पत्र से जुड़े हों और पूर्व सांसद अशोक अर्गल का इस समाचार पत्र के प्रधान संपादक चंद्रप्रकाश शिवहरे से दोस्ताना हो ऐसे में इन हस्तियों के सामाचार पत्र से और उसके प्रधान सम्पादक से जुड़ाव होने के कारण इन दिनों उक्त समाचार पत्र से 17 अधिमान्यताओं को लेकर बवाल मचा हुआ है। इस बवाल के साथ ही कुछ और चर्चाएं इन दिनों लोग चटकारे लेकर करते देखे जा रहे हैं, जहां तक शराब किंग शिवहरे के व्यापारिक ठिकानों पर पड़े छापे के दौरान मिले दस्तावेज और डायरियों को लेकर भी तरह-तरह की चर्चाएं आम हैं, हालांकि इसका खुलासा कुछ दिनों बाद होगा कि इस समूह से किन-किन प्रदेश और देश के राजनेताओं का जुड़ाव है और कौन अधिकारी इस कारोबार में सहभागी हैं, संजय सिंह के इस समाचार पत्र समूह से जुड़ाव होने के कारण चर्चाओं का बाजार गर्म है।
हालांकि इस मामले में जैसा कि जनसम्पर्क के अधिकारी यह दावा कर रहे हैं कि पत्रकारों को अधिमान्यता देने के मामले में जनसम्पर्क विभाग द्वारा बनाई गई अधिमान्यता कमेटी की सिफारिश पर ही पत्रकारों को अधिमान्यता दी जाती है, फिर वह कमेटी चाहे पत्रकारों को जिला स्तर या राज्य स्तर की अधिमान्यता की सिफारिश करे इस कमेटी की सिफारिश के बाद ही जनसम्पर्क विभाग द्वारा पत्रकारों को अधिमान्यता दी जाती है सवाल यह उठता है कि जिस अधिमान्यता कमेटी के सदस्यों द्वारा इस समाचार पत्र के माध्यम से जिन लोगों को अधिमान्यता देने की सिफारिश की गई क्या उन्हें अधिमान्यता के नियमों की जानकारी नहीं है, जबकि जनसम्पर्क विभाग द्वारा होने वाली इस तरह की मीटिंगों के दौरान जो दस्तावेज उन्हें उपलब्ध कराये जाते हैं उनमें अधिमान्यता नियमों की एक कापी भी साथ में लगी होती है, यह उल्लेखनीय है कि जनसम्पर्क विभाग द्वारा उन्हीं पत्रकारों को अधिमान्यता दी जाती है जो श्रमजीवी की श्रेणी में आते हैं, जबकि ना तो जब इस समाचार पत्र से मुख्यमंत्री के साले की अधिमान्यता थी वह ना तो श्रमजीवी थे और ना पत्रकार और आज जिन लोगों की अधिमान्यता को लेकर समाचार सुर्खियों में वह लोग भी श्रमजीवी नहीं हैं, लेकिन कमेटी द्वारा पता नहीं क्यों और किसके दबाव पर या किस कारण ऐसे लोगों को जो जिनका श्रमजीवी से दूर-दूर का वास्ता नहीं, उन्हें अधिमान्यता देने की सिफारिश पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं, भले ही इन दिनों बवाल हिन्दुस्तान एक्सप्रेस के माध्यम से दी गई 17 अधिमान्यताओं को लेकर समाचार सुर्खियों में हो, लेकिन हकीकत यह है कि आज भी मध्यप्रदेश जनसम्पर्क विभाग द्वारा जिन पत्रकारों को अधिमान्यता दी गई है उनमें से अधिकांश ना तो श्रमजीवी पत्रकार हैं लेकिन ऐसे कई लोगों को अधिमान्यता दी गई है जिनमें वकील, डॉक्टर भी शामिल हैं।बात यदि अधिमान्यता की करें तो पंचर जोडऩे वाले और आटो चलाने वालों के पास भी जनसम्पर्क की अधिमान्यता है और वह धड़ल्ले से उस अधिमान्यता का दुरुपयोग करते नजर आते हैं। अब ऐसे में सवाल उठता है कि जनसम्पर्क द्वारा बनाई गई अधिमान्यता समिति के सदस्य क्या अपने दायित्वों का सही निर्वहन कर रहे हैं।
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