नरसिंहपुर जिले के चिकित्सा विभाग में लाखों का घोटाला
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जिला ब्यूरो चीफ, जिला नरसिंहपुर // अरुण श्रीवास्तव : 91316 56179
नरसिंहपुर. जिले का चिकित्सा विभाग में लाखों का दबाई घोटाला सामने आने के बाद चिकित्सा विभाग से जुड़े अन्य घोटालेबाजों एवं कमीशनखोरों में भी सनसनी मची हुई है, सोमवार को कलेक्टर के आदेश पर प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा की गई जाँच में लाखों रुपए की दबाइयाँ गायब होने का मामला सामने आया है, जिसका आंकड़ा 5 लाख से 50 लाख तक हो सकता है, जिसमे से लगभग 10,000 से 35000 रुपये कीमत तक के इंजेक्शन एवं अन्य कीमती दबाएं भी गायब हुई हैं.
कुछ दबाइयाँ स्टोरकीपर के घर से बरामद हुई हैं, विस्तृत आंकड़े मिलना अभी बाकी है, लेकिन यह जाँच मात्र एक शुरुआत है, जिला चिकित्सालय में चल रहे गोरखधंधे भृष्टाचारियों के लिए किसी धन कुबेर से कम नही हैं, क्योंकि जरूरी तो नही है कि ऐंसा पहली बार हुआ हो इसके पहले भी यदि कुछ वर्षों के रिकॉर्ड खंगाले जाएं तो एक बहुत बड़ा सकैम सामने आ सकता है,और यह बात भी जनता के सामने आनी चाहिए कि,यह दबाइयाँ चोरी करके किन मेडिकल स्टोर को और कब से बेची जा रही हैं।
बीते दिनों मीडिया द्वारा यह बात सामने लाई गई थी कि पीलिया बुखार की दबाइयाँ जिला चिकित्सालय में उपलब्ध नही हैं, एवं सभी डॉक्टर बाहर की दबाइयाँ लिख रहे हैं, इस संबंध में जब कलेक्टर महोदय ने सीएमएचओ से पूछताछ की तो उनका कहना था कि पीलिया बीमारी की दबाइयों का भरपूर स्टॉक अस्पताल में मौजूद है, यदि उसी वक्त चिकित्सालय के स्टोर रूम की जाँच कर ली गई होती तो यह सच उसी समय सामने आ गया होता,क्योंकि यदि दबाइयाँ चिकित्सालय में उपलब्ध होतीं तो फिर डॉक्टर बाहर की दबाइयाँ क्यों लिख रहे थे, कुछ चिन्हित मेडिकल स्टोर्स एवं डॉक्टरों का यह संबंध भी मरीजों की जान एवं जेब पर भारी पड़ रहा है।
सोनोग्राफी एवं सीटीसकैंन में कमीशनखोरी
जिला चिकित्सालय नरसिंहपुर की सोनोग्राफी मशीन में आम तौर ओर नंबर लगाने में एवं रिपोर्ट प्राप्त करने में लगभग एक सप्ताह का वक्त लग जाता है,क्योंकि जिला चिकित्सालय में मात्र एक ही सोनोग्राफी मशीन है,वहीं दूसरी ओर प्रायवेट सोनोग्राफी सेंटरों में 1000 से 2000 रु लेकर मात्र एक घंटे में रिपोर्ट दे दी जाती है,जिला चिकित्सालय में सस्ते इलाज की आस लेकर आने बाला गरीब व्यक्ति सोनोग्राफी के लिए प्रायवेट संस्थानों के पास लुटने को मजबूर है,और यदि मरीजों की माने तो सीटीसकैंन के लिए जिला चिकित्सालय में दलाल लगाए गए हैं,किस डॉक्टर का किस सीटीसकैंन सेंटर में कमीशन है,बाकायदा दलाल मरीजों को लेकर जाता है,लेकिन जिला चिकित्सालय जहाँ बिल्डिंग बनाए जाने एवं रिपेयरिंग इत्यादि के लिए करोड़ों का बजट है,वहाँ सोनोग्राफी एवं सीटीसकैंन मशीन के लिए बजट नही है।
बहरहाल इस कार्यवाही से जहाँ कलेक्टर समेत अन्य प्रशासनिक अमले की तारीफ हो रही है वहीं अभी इस मामले में किसी जिम्मेदार अधिकारी की जिम्मेदारी तय नही हो पाई है,क्योंकि इतना बड़ा झोल किसी निचले स्तर के कर्मचारी के बस की बात नही है,बगैर अधिकारी की मिलीभगत के यह संभव नही था,अधिकांश देखा गया है कि जब भी कोई घोटाला या गड़बड़ी सामने आती है तो जिम्मेदारी तय किये बिना ही किसी छोटे कर्मचारी पर गाज गिरा दी जाती है,अब देखना यह है कि क्या इस मामले में भी ऐंसा ही होगा,या फिर असली घोटालेबाज तक यह प्रशासनिक जाँच पहुँच पाएगी
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