राधेश्याम अग्रवाल उर्फ चच्चू |
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भोपाल // रूपेश गुप्ता
भोपाल। उम्र 72 वर्ष, छोटा कद और फूर्ती में युवाओं को भी पीछे छोड़ देने वाले राधेश्याम अग्रवाल उर्फ चच्चू आज शहर में किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। क्योंकि यदि शहर में कोई ऐसा शव बरामद होता है,
जिसकी कोई पहचान अथवा सहारा नहीं होता, तो सूचना मिलते ही वह मौके पर पहुंचते है और अपने ही खर्चे से उसके कफन-दफन का पूरा इंतजाम कर देते हैं। दरअसल 15 साल पहले एक ट्रेन हादसे में बाल-बाल बचने के बाद उनके भीतर लावारिश शवों का सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार करने का जज्बा पैदा हुआ, जिसे वे आज तक बखूबी से निभा रहे हैं और अब तक साढ़े 5 हजार से ज्यादा लावारिश शवों का क्रियाकर्म करा चुके हैं।
शायद ही दूसरा कोई दिन गुजरता हो, जब श्री अग्रवाल के पास किसी लावारिश शव मिलने की सूचना न आती हो। इस तरह की सूचना मिलते ही वे अपने तमाम जरूरी काम छोड़कर मौके पर पहुंचते हैं और उक्त शव के कफन-दफन का पूरा इंतजाम कर देते हैं। समाजसेवा की इस अनूठी भावना के पीछे श्री अग्रवाल बताते हैं, कि वर्ष 2004 में वे किसी कार्य से नागपुर गये थे, उस दौरान वे एक ट्रेन हादसे का शिकार होते बाल-बाल बच गये लेकिन इस दौरान मौके पर मौजूद किसी अंजान व्यक्ति ने टिप्पणी की थी, ’बच गये, वरना लावारिश की तरह मरते व अंतिम संस्कार करने वाला भी कोई नहीं मिलता ’। उस अंजान व्यक्ति की इस बात ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया और मैंने तभी से इस दिशा में कार्य करने का संकल्प ले लिया।
पुलिस के पास नहीं कोई फण्ड़
श्री अग्रवाल बताते हैं, कि संकल्प लेने के बाद भोपाल आने पर उन्होंने यहां लावारिश लाशों के अंतिम संस्कार की जानकारी ली तो चैंाकाने वाली बात निकल कर सामने आयी। इसके अनुसार पुलिस को विभिन्न स्थानों पर मिलने वाले लावारिश शवों के कफन-दफन के लिए कोई फण्ड़ नहीं मिलता है और न ही उनके पास कोई व्यवस्था है। इतना ही नहीं ऐसी कोई संस्था भी शहर में नहीं है, जो इस काम में पुलिस का हाथ बंटाती हो। लिहाजा पुलिस अपने क्षेत्र के कारोबारियों से चंदा कर इन शवों का अंतिम संस्कार करवाती है।
परिचितों ने मजा़क तक उड़ाया
श्री अग्रवाल बताते हैं, कि लावारिश शवों के अंतिम संस्कार प्रक्रिया से अवगत होने के बाद मेरा संकल्प इस दिशा में काम करने के लिए और मजबूत हो गया। मैंने इससे अपने परिचितों को अवगत कराया और उनसे इस कार्य में मदद की अपेक्षा की। चूंकि यह संवेदनशील से जुड़ा काम था, इसलिए मेरा उद्देश्य जानने के बाद यह लोग सामने तो संवेदना जताते, लेकिन मेरे पीठ फेरते ही मज़ाक उड़ाने से भी नहीं चूकते। दूसरों की बात ही क्यों की जाए, शुरूआत में तो मेरे अपनों (परिजनों) के गले भी मेरी बात नहीं बैठी, लेकिन मैं अपने संकल्प पर कायम रहा। कई तरह की दिक्कतों के बीच इस मकसद को पूरा करने में जुटा रहा।
अब तक साढ़े 5 हजार शवों का कराया अंतिम संस्कार
श्री अग्रवाल बताते हैं, कि संकल्प पूरा करने के लिए उन्होंने तमाम दिक्कतों का सामना किया और उन्हें धीरे-धीरे सफलता मिलने लगी। चूंकि उनके इस कार्य में कई लोग सहयोग देने के लिए आगे आने लगे। आज स्थिति यह है, कि न सिर्फ भोपाल शहर और मध्यप्रदेश, बल्कि राजस्थान के कई समाजसेवी भी इस कार्य में सहयोग कर रहे हैं और आज उन्हें इस बात पर फक्र महसूस होता है, कि लोगों के सहयोग से 1 अप्रैल 2005 से 31 दिसम्बर 2018 तक 5 हजार , 628 शवों का सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार किया जा चुका हैै। श्री अग्रवाल को उनके सेवा कार्य के लिए दुष्यंत संग्रहालय के विट्ठलभाई पटेल समाजसेवा सम्मान और प्रदेष सरकार के उच्चश्रेणी संस्था सम्मान के अलावा कई अन्य सम्मान भी मिल चुके हैं।
भेल से लिया था वी.आर.एस.
15 जनवरी 1947 को जन्में श्री अग्रवाल भेल में नौकरी कर अपने परिवार का जीविकोपार्जन करते थे, लेकिन किन्ही अपरिहार्य कारणों के चलते वर्ष 2000 में उन्होंने नौकरी से स्वैच्छिक सेवा निवृति ले ली थी, इसके बाद उन्होंने अल्पकालीन पत्रकारिता भी की। लेकिन वर्ष 2005 से अपने को पूरी तरह समाजसेवा के लिए समर्पित कर दिया। वर्तमान में वे जनसंवेदना नामक संस्था के बैनर तले इस कार्य को अंजाम दे रहे हैं।
भोजन खराब होने से भी बचाते हैं
यदि आपके परिवार में कोई धार्मिक अथवा सामाजिक कार्यक्रमों, जिसमें आपने भोजन का प्रबंध किया है और तमाम आमंत्रितों द्वारा भोजन ग्रहण करने के बाद भी भोजन बच जाता है, तो उसके खराब होकर फेंकने से बचाने के लिए भी श्री अग्रवाल ने सेवाकार्य चला रखा है। इसके तहत ऐसे लोग उनसे संपर्क करते हैं तो वे उसी वक्त बचे हुए भोजन को लेकर तमाम झुग्गी-बस्तियों में पहुंचते हैं और उसे जरूरतमंदों में वितरित करवा देते हैं।
साभार- देशबन्धु
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