-- दूध का धुला प्रशासन पहले कार्यवाही यहां करें --
प्रशासन आंख का अंधा और कान का बहरा समझ पड़ता है, क्योंकि उसका पहले अपराध की और ध्यान नहीं है अरे पहले यह तो तय करो की आखिर खिड़की दरवाजा खोलकर डिलेवरी करवाने वाले कितने दोषी हैं। क्या ये अपराध नही है कि कोई प्रसुता की पूरी प्रक्रिया खुले में करा दें। अरे शासकीय मस्तीमारों अगर कोई खिड़की और दरवाजे खोल कर डिलेवरी करायेगा तो क्या कोई तस्वीरें नहीं खीचेगा, तो कैसे तुम्हारी काली करतूतें उजागर होगी। ''टाइम्स ऑफ क्राइम'' उस वक्त वहां होता तो शायद पूरी सीडी बनाकर उन अधिकारियों और षडय़ंत्रकारियों की उस वक्त ही पोल खोल कर दण्ड का भागी बना देता खैर ''सांच को आंच नही ''देर आये परन्तु दुरूस्त आये'' कहावत को हम सिद्ध करेंगे और लगातार इनकी पोल खोल कर जनता को इनकी अवैध वसूली और भींख से रूबरू करायेंगे।
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शील कुमारी शर्मा ए.एन.एम. ने कराई खिड़की-दरवाजे खोल कर डिलेवरी
पिपरिया, डॉ. सुषमा वर्मा के कुचक्र में उलझी श्रीमती शील कुमार शर्मा ए.एन.एम. सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पिपरिया में पदस्थ हैं। डॉ. सुषमा की अवैध वसूली कार्यक्रम में पूर्ण रूप से भागीदारी निभाने वाली ए.एन.एम. शील शर्मा ने 18.10.2007 की फोटो खीचने वाली घटना पर जो अपने बयान दिये वो इस बात को सिद्ध कर रहे हैं, कि वे डॉ. सुषमा वर्मा के कहने पर शील शर्मा ने पूरी घटना के तय षडय़ंत्र को अंजाम दिया। 27.11.2007 के दिये बयान में शील शर्मा ने ही स्वीकार कर लिया की पिपरिया सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में डॉ. सुषमा की रणनीति को मूर्तरूप देने के लिये यहां पर 18.10.2007 को सुबह 8:30 बजे श्रीमती सविता बाई पत्नि ब्रजेश अहिरवार की डिलेवरी करवा रहीं थी। जिसकी दरवाजे से मीनू स्टॉफनर्स ने फोटो खीची वहीं 12.10.2007 को श्रीमती हेमलता/ हेमराज की डिलेवरी के दौरान श्रीमती मीनू द्वारा प्रसव की खिड़की से फोटो खीची गई। इस फोटो खिचने के दौरान यहां पर पुरूष वार्डवाय रविशंकर, श्रीमती सवित्री बाई, छोटी बाई, इन्द्रा बाई, गुड्डी बाई खड़ी थी। बार-बार पिपरिया सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में फोटो खीची जाती रही। बयानों में हमेशा यह बात दोहराई गई की दरवाजे और खिड़की से प्रसव कराई जा रही प्रसुति की फोटो खीची गई है। वहीं 12.10.2007 की घटना के कथन में वार्डबाय रविशंकर चिचालिया ने भी अपने आप को लेवर रूम के बरामदे में रहने और मीनू सिस्टर द्वारा बरामदे की खिड़की से लेवर रूम के अन्दर की फोटो खीचने की बात स्वीकार की। आखिर ऐसी कैसी डिलेवरी की जा रही थी, जो दरवाजे खिड़की खोलकर की जा रही हो और कोई भी खिड़की दरवाजे से डिलेवरी की तस्वीरें खीच ले। अगर खिड़की से तस्वीरें ली जा सकती हैं, तो यह दोष खिड़की खोलकर डिलेवरी करवाने वाले स्टॉफ का है, कि खुलेआम डिलेवरी क्यों करवाई जा रही थी। अगर ऐसी डिलेवरी जिसकी फोटो खिड़की से ली जा सकती है और इस बात की भनक मीडिया को लग जाती या मीडिया का कोई न्यूज कवर कर फोटो और खबर प्रकाशित कर देता तो पिपरिया खण्ड चिकित्सा आधिकारी की नौकरी चली जाती और डिलेवरी केस को अन्जाम देने वाली शील कुमारी शर्मा को बर्खास्त कर दिया जाता। परन्तु यहां पर पूरा का पूरा षडय़ंत्र किया गया था जिसको अंजाम देने के लिए पूरी रणनीति बनाई गई और फर्जी बयान डॉ. सुषमा वर्मा के कहने पर दर्ज कराये गये। दर्ज कराये गये शील शर्मा, रविशंकर चिचालिया, श्रीमति दुजिया बाई आया, श्रीमती जमीला बी, बुधनी आशा कार्यकर्ता, श्रीमती सावित्री बाई आया के बयान स्पष्ट बयां करते हैं कि डिलेवरी रूम में डिलेवरी करवाई जा रही थी और उसके फोटो खिड़की से खीचे जा सकते हैअवैध वसूली बनी लफड़े का कारण पिपरिया सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र हमेशा से डॉ. सुषमा वर्मा की अवैध वसूली से बदनाम रहा है। वहीं ये सभी स्टॉफ वसूली बाजी में नम्बर वन है जो डॉ. सुषमा ठाकुर के पद चिन्हों पर चलता है। अपनी वसूली के चलते अनेकों बार विभाग को लताड़ खानी पड़ी है। पोल जब खुली जब मटकुली क्षेत्र के एक आदिवासी युवक रतनलाल मवासी ने लड़का होने पर पांच सौ रूपये मांगे गये और इंकार करने पर झगड़ा किया गया। वहीं रतनलाल की लगातार बेइज्जती की जाती रही जिस पर रतन ने साढ़े तीन सौ रूपये देकर इन रिश्वतखोरों से पीछा छुड़ाया। इस पर खुब विवाद हुआ और असर इतना रहा की सारा मामला मीडिया की सुर्खिया बटोरता रहा (बाक्स में दैनिक भास्कर की प्रकाशित खबर) जिस पर उक्त समय डॉ. अशोक वर्मा बी.एम.ओ. ने स्वीकार किया था कि 160 रूपये वसूली की गई है। जांच के बाद दोषी पर कार्यवाही की जावेगी जो आज दिनांक तक ठण्डे बस्ते में डली हुई है। अगर कार्यवाही की जाती तो दो चार वसूलीबाज निलम्बित किये जाते और दूध का दूध, पानी का पानी हो जाता। ज्ञात हो कि यहां की प्रशासनिक क्षमता नग्न रही है। जिसका फायदा यहां के डिलेवरी स्टॉफ हमेशा अवैध वसूली में लगा रहा। अवैध वसूली के कारण डॉ. सुषमा वर्मा षडय़ंत्र करना शुरू कर दिया और अपने षडंय़त्र में वसूलीबाज स्टॉफ को अपनी गिरफ्त में ले लिया। खुलेआम डिलेवरी में आपत्ति नहींपिपरिया खण्ड चिकित्सा अधिकारी भी अपनी पेशेन्ट कमाई के आगे, हमेशा स्टॉफ के आगे नसमस्तक रहे उन्होंने कभी यहां का बदइत्जामी की और अपनी कार्यवाही नही की। डॉ. अशोक वर्मा लाल गुड्डे की तरह अपना मुण्ड हिलाते रहे। वहीं पिपरिया मेटनिरी की घूस प्रभारी डॉ. सुषमा वर्मा (ठाकुर) के आगे भीगी बिल्ली बने रहें। डॉ. सुषमा डायन शातिर भी हैडॉ. सुषमा वर्मा एक शातिर किस्म की चालाक महिला है जो अपने स्वार्थ के लिए कभी भी रंग बदल लेती है। जहां शासन के बंगले पर कब्जा जमाये बैठी है। वहीं विभाग के अधिकारियों को भी अपने चुंगल में लपेट रखी है डॉ. सुषमा के काले चिट्ठे और इसकी करतूतों की भारी भरकम लिस्ट है ''टाइम्स ऑफ क्राइम'' एवं बेव चैनल http://www.tocnewsindia.blogspot.com/ के माध्यम से हम इनकी कुछ झलकियां दिखा रहे हैं इस तरह के अनेकों गुणों से गुणवान है ये। कौआ कान ले गयाप्रसुता श्रीमती कविता अहिरवार की मां श्रीमती कमला अहिरवार एवं भाई मुकेश अहिरवार की स्थिति कौआ कान ले गया जैसी है वे षडय़ंत्र की चालों के शिकार हो गये और कौऐ के पीछे दौड़ पड़े अपने कान की और देखने की बुद्धि नहीं रही। आगे भी पढ़े डॉ. सुषमा डायन के कारनामेंच
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