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पिछले
16 महीनों से देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने का दावा करने वाले अन्ना
हजारे ने अचानक आंदोलन समाप्ति की घोषणा कर दी. इससे देश के कई हजार लोगों
के दिल टूटे. कुछ बुद्धिजीवी अपनी समस्त बौद्धिक शक्ति का उपयोग कर इस
विषय पर अनुसंधान कर रहे हैं कि अन्ना हजारे ने आखिर किन परिस्थितियों से
विवश हो कर अपना आंदोलन अचानक समाप्त कर दिया और टीम भंग कर दी. लाखों
लोगों ने अन्ना और उनकी टीम को अपना मसीहा मान लिया था. इंडिया अगेंस्ट
करप्शन से लोगों ने यह मान लिया था कि देश से करप्शन की जल्दी ही
फेयरवेल पार्टी होने वाली है. राष्ट्र को भ्रष्टाचार के दलदल से निकालने
का दावा करने वाले इन स्वयंभू जन लोकपालों ने भ्रष्टाचार उन्मूलन हेतु
अपने प्राणों की आहुति देने का वचन दिया था किंतु कुछ ही दिनों में इनका
साहस जवाब दे गया. भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता के लिये यह गहरा आघात है.
भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकने का दावा करने वाले इन तथा कथित मसीहाओं
के पहले एक और मसीहा प्रगट हुये थे, बाबा रामदेव, जिन्होंने देश की जनता
को इस रहस्य से अवगत कराया कि देश का 500 लाख करोड़ का काला धन विदेशों
में जमा है, वे इस काले धन को स्वदेश वापस ला कर रहेंगे और जब इतना पैसा आ
जायगा तो जनता को अगले 10 सालों तक कोई टैक्स नहीं देना पड़ेगा. बाबा ने
जनता को ऐसा सपना दिखाया था जो आज तक किसी बड़े से बड़े राजनेता ने नहीं
दिखाया था. लाखों लोग बाबा के समर्थन में खड़े हो गये. उनके काला धन
विरोधी ज्ञापन पर लगभग 1 करोड़ लोगों ने हस्ताक्षर किये थे. बाबा ने
उत्साह में आ कर घोषणा कर दी कि वे काला धन वापस लाने हेतु अपने प्राणों
की बाजी लगा देंगे और दिल्ली के रामलीला मैदान में आमरण अनशन पर बैठ गये
किंतु मृत्यु को अंगीकार करना तो बहुत दूर की बात है, पुलिस के घुसते ही
मैदान से भाग खड़े हुये, जान बचाने के लिये महिला के वेश में भागे. अब काला
धन के विरुद्ध यदा-कदा हल्का फुल्का बयान दे देते हैं, मात्र औपचारिकता
निभाने के लिये. बाबा रामदेव तथा अन्ना हजारे ने जनता को खूब सब्ज बाग
दिखाये, जनता ने भी उनसे बड़ी आशायें बांध लीं. बाबा रामदेव जहां भी जाते,
उनके समर्थन में जन-सैलाब उमड़ पड़ता. अन्ना हजारे के समर्थन में हजारों
लोगों ने देश भर में रैलियां और मार्च निकाले. दिल्ली जैसे महानगर में
जहां की व्यस्ततम जीवन शैली में लोग अपने परिवार को भी ठीक से समय नहीं
दे पाते, हजारों लोग अपना समर्थन देने के लिये जंतर मंतर पर एकत्र हुये और
मौसम की परवाह किये बगैर डटे रहे किंतु अन्ना ने अचानक आंदोलन ही समाप्त
कर दिया. जनता अपने आपको ठगा हुआ महसूस कर रही है. बाबा रामदेव तथा अन्ना
हजारे देश की भोली भाली जनता के ऐसे ब्वायफ्रेंड साबित हुये जो सीधी सादी
लड़कियों को अपनी लच्छेदार बातों से प्रेम जाल में फांस कर उनका आर्थिक,
मानसिक तथा दैहिक शोषण करते हैं, फिर धीरे से रफूचक्कर हो जाते हैं,
लड़कियां अपने भाग्य को कोसती हुई रोती रह जाती हैं.
इसीलिये बुजुर्ग लोग
लड़कियों को ब्वाय फ्रेंड के चक्कर से दूर रहने की सलाह देते हैं
क्योंकि ब्वाय फ्रेंड धोखा देने के लिये ही होता है. उसकी बातें अफीम की
तरह होती हैं जो थोड़ी देर के लिये सारे दुख दर्द भुला कर मीठी नींद में
सुला देती हैं किंतु जब नशा उतरता है तो दर्द दोगुना हो कर उभरता है.
ब्वाय फ्रेंड का साथ क्षणिक सुख देता है जिसकी अंतिम परिणिति विश्वासघात
तथा अंतहीन दुख के रूप में होती है. पति थोड़ी धौंस बताता है, कभी
प्रताडि़त भी करता है, ब्वाय फ्रेंड के मुकाबले कम प्यार दिखाता है, कभी
बेवकूफ भी बनाता है किंतु पत्नी की सुरक्षा तथा संरक्षा (रोटी, कपड़ा,
मकान, सौंदर्य प्रसाधन, चिकित्सा आदि) का आजीवन दायित्व निभाता है. देश
में शासन कर रहे राजनेता कुछ इसी प्रकार के पतियों की श्रेणी में आते हैं.
कुछ ज्यादा भ्रष्ट हैं, कुछ कम, तो कुछ ईमानदार भी हैं. यह भी कठोर
सत्य है कि इतने भ्रष्टाचार और घोटालों के बावजूद देश उत्तरोत्तर
प्रगति कर रहा है. साइंस, टेक्नोलाजी, डिफेंस, आईटी, हर क्षेत्र में
विश्व की महाशक्तियां भी भारत का लोहा मानती हैं. यह बात अवश्य है कि यदि
भ्रष्टाचार नहीं होता तथा लोग राष्ट्र के प्रति उतने ही समर्पित होते
जितने जापान, अमेरिका, रूस, ब्रिटेन आदि में हैं तो हम भी महाशक्तियों की
कतार में खड़े होते.
बात
चल रही थी भोली भाली जनता के ब्वाय फ्रेंड्स के रूप में उभरे बाबा रामदेव
तथा अन्ना हजारे की दगाबाजी की. तो, अभी तो जनता ने केवल इतना ही देखा है
कि बाबा रामदेव ने 500 लाख करोड़ के काले धन तथा 10 सालों तक टैक्स फ्री
लाइफ का दिवा स्वप्न दिखाया फिर गायब हो गये. अन्ना हजारे ने देश को
भ्रष्टाचार मुक्त करने का दावा किया फिर अचानक आंदोलन समाप्ति की घोषणा
कर दी और अपनी टीम भी भंग कर दी. जब जनता को यह पता लगेगा कि इन दोनों तथा
कथित अवतारों ने डेढ़ साल तक जनता को जो टीवी सीरियल दिखाया उसकी पटकथा के
लेखक, निर्माता तथा प्रायोजक राजनेता ही थे, तो जनता को कितना सदमा
पहुंचेगा. प्रस्तुत है एक विश्लेषण जिससे यह अनुमान लगाने में आसानी
होगी कि इस सीरियल के लेखक, निर्माता तथा प्रायोजक कौन कौन थे. लगभग डेढ़
वर्ष पहले जब पेट्रोलियम तथा खाद्य पदार्थों की मंहगाई सुरसा का तरह बढ़
रही थी तब बाबा रामदेव अचानक योग की कोचिंग छोड़ काला धन की मशाल ले कर
खड़े हो गये. हर तरफ 500 लाख करोड़ के काले धन का ऐसा हौवा खड़ा किया कि
लोग पेट्रोल और खाने पीने की चीजों की मंहगाई को भूल कर बाबा रामदेव की
मोनो-एक्टिंग देखने लगे जिसमें उन्हें आनंद आने लगा. इसी आनंदमय माहौल
में 5 राज्यों के विधान सभी चुनाव संपन्न हो गये. मंहगाई इन चुनावों में
मुद्दा ही नहीं बन पाई जबकि खाद्य पदार्थों की मंहगाई एकमात्र ऐसा मुद्दा
है जो सरकार बदलने की क्षमता रखता है. इतिहास गवाह है कि केवल प्याज महंगा
हो जाने से सरकारें बदल गईं परंतु बाबा जी के आशीर्वाद से मंहगाई का
मुद्दा नेपथ्य में चला गया. बाबा जी का काम समाप्त हो गया था, अब
उन्हें वापस अपनी कोचिंग संभाल लेनी चाहिये थी किंतु काला धन विरोधी मुहिम
में उमड़े जन सैलाब को देख कर बाबा के मन मे भी राजनेता बनने की
महत्वाकांक्षा उत्पन्न हो गई. संभवत: बाबा ने सोचा होगा कि योग का
कार्यक्रम दिखाने के लिये तो टीवी चैनल वाले पैसे मांगते हैं, नेता बन
जायेंगे तो फ्री में टीवी पर दिखने लगेंगे. बाबा ने राजनीति में कूदने की
घोषणा कर दी. कांग्रेस चाह रही थी कि बाबा अपनी राजनीतिक पार्टी लांच कर
दें और उनकी देखा देखी कुछ हिंदू धर्म गुरु भी अपनी पार्टियां बना कर
राजनीति के मैदान में कूद जायें. चूंकि बाबा रामदेव तथा अन्य हिंदू
धर्माचार्य भगवा वस्त्र पहनते हैं इसलिये उन्हें कट्टर हिंदू वोट ही मिल
सकेंगे जिसका नुकसान भाजपा को होगा क्योंकि भाजपा की वास्तविक शक्ति
कट्टर हिंदू वोट बैंक ही है, यदि इसमें सेंध लग जाती है तो भाजपा धरातल पर आ
जायगी. भाजपा नेताओं ने इस खतरे को भांप लिया.
फौरन भाजपा तथा उसके
अभिभावक आरएसएस के नेताओं ने बाबा रामदेव का समर्थन शुरू कर दिया ताकि यह
लगे कि जितने भी भगवा वस्त्र धारी है सब भाजपा की ही संपत्ति हैं. किंतु
इससे जनता में यह संदेश गया कि बाबा रामदेव भले ही अपने आप को धर्मनिरपेक्ष
तथा नान एलाइंड प्रदर्शित करते हैं किंतु वे वास्तव में भाजपा तथा आरएसएस
के आदमी हैं. इससे बाबा के समर्थकों की संख्या में काफी कमी आ गई. बाबा
ने सोचा चलो खुद किंग नहीं बन सके तो क्या हुआ कम से कम भाजपा में
किंगमेकर की भूमिका में तो रहेंगे. यह देख कर कांग्रेस को डर हो गया कि
अगर बाबा रामदेव ने अपनी पार्टी लांच करने के बजाय भाजपा के पक्ष में अपील
कर दी तो भाजपा को काफी फायदा हो सकता है क्योंकि बाबा के समर्थक भी लाखों
में हैं. उनके काला धन विरोधी ज्ञापन पर 50 लाख से अधिक लोगों ने
हस्ताक्षर किये थे. इन परिस्थितियों में कांग्रेस के पास बाबा की
छीछालेदर करके उन्हें पूर्णत: डिफ्यूज कर देने के अलावा कोई विकल्प नहीं
था. पहले बाबा को समझाइश दी गई कि वे राजनीति से दूर रहें, अपनी योग की
कोचिंग और दवाओं का व्यापार जिसका टर्न ओवर करोड़ों में है, देखें और देश
विदेश में फैली अरबों रुपये की अचल संपत्ति संभालें. लेकिन बाबा नहीं
माने, अनशन पर बैठ गये. आधी रात के बाद पुलिस ने धावा बोला और लोगों को
खदेड़ना शुरू किया. बाबा को डर हो गया कि इसी हुड़दंग में कोई उन्हें
निपटा न दे इसलिये बाबा अपनी जान बचाने के लिये औरतों के कपड़े पहन कर
भागे. फिर भी अनशन नहीं तोड़ा. दिल्ली, यूपी कहीं दो गज जमीन नहीं मिली
तो उस समय भाजपा शासित उत्तराखंड में तंबू गाड़ दिया. कांग्रेस ने पूरी
उपेक्षा बरती.
भाजपा ने कांग्रेस पर दबाव बनाने के प्रयास किये कि वह बाबा
का अनशन तुड़वाने के लिये पहल करे किंतु कांग्रेस ने कोई भाव नहीं दिया.
बाबा की जान रामलीला मैदान में तो बच गई थी किंतु अनशन नहीं तोड़ते तो
उत्तराखंड में अवश्य चली जाती इसलिये भाजपा ने धर्म गुरुओं की सहायता से
उनका अनशन तुड़वाया क्योंकि भाजपा सीधे पिक्चर में नहीं आना चाहती थी
ताकि बाबा नान-एलाइंड दिखते रहें. कुछ ही दिनों में बाबा की सेहत ठीक हो
गई. कांग्रेस भी उनकी सेहत की रिमोट मानीटरिंग कर रही थी. उसे मालूम था
कि चोट खाये बाबा फिर दहाड़ने का प्रयास करेंगे इसलिये बाबा तथा उनके
सहयोगियों की कुंडलियां खंगालने के लिये इनकम टैक्स, ईडी, सीबीआई तथा
विदेश मंत्रालय को लगा दिया गया. बाबा की एक सहयोगी राजबाला जो रामलीला
मैदान में घायल हो गई थीं, अस्पताल में इलाज के दौरान चल बसीं. बाबा के
निकटतम सहयोगी बालकृष्ण फर्जी पासपोर्ट मामले में जेल चले गये, बाबा के
दवा व्यापार का करोड़ों का टर्न ओवर तथा देश विदेश में फैली अरबों की अचल
संपत्ति सब उजागर हो गया. यह भी समाचार आया कि पतंजलि योग पीठ ने नेपाल में
700 रुपानिया जमीन रियायती दरों पर खरीदी थी किंतु बाद में उसका अधिकतर
हिस्सा निजी व्यक्तियों तथा बिल्डरों को बेच दिया गया. नेपाल सरकार ने
इस पर जांच बिठा दी.
इन खुलासों के पहले लोग यह समझते थे कि लंगोटी धारी
बाबा को किसी चीज का मोह नहीं है, वो दवायें नो प्राफिट-नो लास के सिद्धांत
पर बेचते हैं, एक बार भोजन करते हैं, चल-अचल संपत्ति में उनकी कोई रुचि
नहीं है, एक छोटी सी कुटिया में संत जीवन व्यतीत करते हैं. इन सारी बातों
से बाबा की छवि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा जो उनका मनोबल तोड़ने के लिये
पर्याप्त था. बाबा ने सरकार के विरुद्ध दहाड़ना बंद कर दिया. कभी कभी
औपचारिकता निभाने के लिये यह अवश्य कह देते हैं कि मेरा आंदोलन समाप्त
नहीं हुआ है, जारी रहेगा. वैसे बाबा के पास शांति से बैठने के अलावा कोई
विकल्प भी नहीं है क्योंकि काला धन केवल एक दल के पास ही नहीं है, जो भी
सत्ता में रहा है, चाहे केंद्र में अथवा राज्यों में, लगभग सभी ने काला
धन बनाया है. बाबा विरोध करें भी तो किसका और कैसे. कांग्रेस ने तो बाबा
को चारों तरफ से घेर कर हालत पतली कर दी है. भाजपा शाशित राज्यों में भी
घोटालों की कमी नहीं है किंतु बाबा भाजपा के विरुद्ध कैसे बोलें उन्होंने
तो उनके प्राण भी बचाये हैं और कुछ हद तक प्रतिष्ठा भी.
अब
आइये सुपर मसीहा बने अन्ना हजारे पर. जब बाबा रामदेव का काला धन विरोधी
आंदोलन भारी भीड़ खींच रहा था तथा बाबा राजनीति की सरिता में कूदने को आतुर
थे, उसी समय अन्ना हजारे की अचानक एंट्री हुई, वे महाराष्ट्र से इंपोर्ट
हो कर आये और सीधे जंतर मंतर पर बैठ गये और भ्रष्टाचार के विरुद्ध
निर्णायक युद्ध की घोषणा कर दी. अन्ना हजारे को उस समय तक दिल्ली तो दूर
महाराष्ट्र में भी ज्यादा लोग नहीं जानते थे किंतु उनके अनशन पर बैठते ही
उनके साथ समर्थको की अच्छी खासी तादाद हो गई. अल्प शिक्षित अन्ना के
अधीन भूतपूर्व वरिष्ठ नौकरशाह, प्रख्यात वकील, न्यायविद, बुद्धिजीवी
लोगों की एक पूरी फौज खड़ी हो गई. सोनिया गांधी जो अच्छे अच्छे धुरंधरों
पर दृष्टिपात नहीं करतीं, अन्न के अनशन पर चिंता व्यक्त करने लगीं तथा
उनसे अनशन तोड़ने की अपील करने लगीं. भारत के विभिन्न शहरों में छोटी
छोटी टीम अन्ना का गठन हो गया, विदेशों तक में अन्ना के समर्थन में जुलूस
निकलने लगे. अन्ना का फोटो टाइम मैग्जीन तक पहुंच गया. निजी टीवी चैनलों
ने अन्ना को इतना धुआंधार कवरेज दिया कि चारों तरफ अन्ना ही अन्ना
दिखाई देने लगे. सरकार ने टीम अन्ना की मांग पर लोकपाल बिल के लिये
ड्राफ्टिंग कमेटी का गठन कर दिया. ड्राफ्टिंग का काम भी शुरू हो गया.
अन्ना का शोर इतना ज्यादा हो गया कि बाबा रामदेव का काले धन का मुद्दा
पाताल में चला गया और बाबा भी आउट आफ स्क्रीन हो गये. उसके बाद अन्ना के
लोकपाल बिल और सरकार द्वारा तैयार किये गये बिल के बीच असमानतायें सामने
आईं और सरकार तथा टीम अन्ना के बीच विवाद बढ़ा. इस विवाद में टीम अन्ना
ने अन्य दलों के नेताओं को भी लपेट लिया. सरकार ने अपना लोकपाल बिल संसद
में पेश कर दिया. टीम अन्ना ने विरोध के स्वर तेज कर दिये और विपक्षी
दलों से मदद मांगी किंतु राजनीतिक दलों ने सरकार का साथ दिया. परिणाम
स्वरूप लोकपाल बिल हमेशा के लिये लटक गया. इस बिल को लटकाने या ठंडे
बस्ते में डालने में सभी राजनीतिक दलों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाईं.
किसी ने बहाना बनाया कि सीबीआई को लोकपाल से बाहर रखा जाय, किसी ने लोकपाल
में भी आरक्षण का पेंच फंसा दिया, किसी ने तृतीय तथा चतुर्थ श्रेणी के
कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने की जिद पकड़ ली, किसी ने कहा
कि न्यायपालिका पर शिकंजा कसना चाहिये तो किसी ने न्यायपालिका तथा सीबीआई
को सरकारी नियंत्रण से मुक्त रखने की वकालत की. किसी ने खुल्लम खुल्ला
विरोध किया तो किसी ने चुपके से. अन्ना हजारे के आंदोलन से सरकार को सबसे
बड़ा फायदा यह हुआ कि सारे देश के सामने यह कलई खुल गई कि भ्रष्टाचार के
पोषण में केवल सरकार/कांग्रेस के ही नेता शामिल नहीं हैं, सभी दलों के नेता
एक ही जैसे हैं. जनता को यह संदेश भली भांति चला गया कि राजनेता सभी एक
जैसे हैं चाहे वे किसी भी दल के हों, भ्रष्टाचार रोकने के उपायों के
विरुद्ध सभी एकजुट हैं. जनता चाहे जिसे चुने परिस्थितियों में परिवर्तन
नहीं आने वाला.
अन्ना
हजारे बाबा रामदेव के एंटीडोट बन कर आये थे किंतु इतना बड़ा कारनामा दिखा
कर गये. सभी राजनीतिक दलों को बेनकाब कर दिया. अब जनता जब वोट डालेगी तो
उसे मंहगाई, काला धन और भ्रष्टाचार के मुद्दों से हट कर सोचना होगा
क्योंकि इन मुद्दों पर तो सभी दल एक जैसे हैं. फिर बचता है, विकास का
मुद्दा किंतु विकास के बड़े बड़े दावे तो सभी पार्टियां कर रही हैं. भले
ही विकास न करें किंतु विकास का चर्चा जोर शोर से करती हैं. इसलिये यह
मुद्दा भी ज्यादा प्रभावी नहीं होगा. अंत में बचता है सांप्रदायिकता/धर्म
निरपेक्षता का मुद्दा जिसमे भाजपा मार खा जाती है क्योंकि उसके अलावा बाकी
सभी दल धर्मनिरपेक्षता का दावा करते हैं. भाजपा चाह कर भी अपने आपको धर्म
निरपेक्ष घोषित नहीं कर सकती क्योंकि जिस दिन ऐसा किया उसी दिन आरएसएस
अपनी बैसाखी हटा लेगा.
अंत
में, अन्ना हजारे की वास्तविकता का अनुमान इससे भी लगाया जा सकता है कि
उन्हें या उनकी टीम को न तो पुलिस ने छेड़ा, न ही सीबीआई, ईडी या इनकम
टैक्स विभाग ने. प्राइवेट टीवी चैनल जो बगैर मोटी रकम लिये किसी को हाई
लाइट नहीं करते, अन्ना हजारे को कैसे इतना ज्यादा कवरेज दिया. अन्ना के
पास तो भूंजी भांग नहीं है, फिर इतना कवरेज बगैर किसी प्रायोजक या शासकीय
दबाव के संभव ही नहीं है. अब अन्ना हजारे का कार्य समाप्त हो गया है
इसलिये उन्होंने शांति का मार्ग अपना लिया है. न आंदोलन चलायेंगे, न ही
राजनीति करेंगे. किंतु अन्ना ने जिस ढंग से अचानक सन्यास की घोषणा कर दी
उससे जनता को संदेह होने लगा कि हो न हो दाल में कुछ काला है. संभव है
अन्ना के स्क्रीन से गायब होने के पीछे कोई पोलिटिकल गेम हो इसलिये बाबा
रामदेव को फिर एक्टिव कर दिया गया है. अब बाबा रामदेव ने कालाधन तथा
भ्रष्टाचार दोनों से एक साथ लड़ने की घोषणा कर दी है. इस बार सरकार की तरफ
से कोई धमकी भी नहीं मिल रही है और टीवी चैनल बाबा के पीछे ऐसे दौड़ रहे
हैं जैसे कोई महानायक आ गया हो.
स्मरणीय है कि कुछ ही दिनों पहले कांग्रेस
ने बाबा को चुनाव लड़ने की सलाह दी थी तथा यह भी बताया था कि बालकृष्ण
बाबा की काफी पोल पट्टी जानता है इसलिये उसकी जान को खतरा है, उसकी सुरक्षा
बढ़ाई जाये. इसके फौरन बाद बाबा जी ने काला धन के साथ साथ भ्रष्टाचार
मिटाने का भी ठेका ले लिया. शायद बाबा ने बात मान ली क्योंकि अगर नही
मानते तो उनके बारे में बालकृष्ण ऐसे ऐसे खुलासे करता जो स्वयं बाबा को
भी मालूम नहीं होंगे किंतु उनकी जेल यात्रा का मार्ग अवश्य प्रशस्त
करेंगे. अब बाबा पहले अपना आंदोलन चलायेंगे फिर अपनी राजनीतिक पार्टी लांच
कर देंगे, उनकी देखा देखी कुछ और बाबा राजनीति में कूद पड़ेंगे. अगले
लोकसभा चुनावों तक कई भगवा पार्टियां चुनाव मैदान में दिखाई पड़ेंगी और
अच्छी खासी तादाद में हिंदू वोट काटेंगी. नुकसान किसका होगा, केवल भाजपा
का, जो अभी तक धार्मिक आधार पर ही टिकी हुई है किंतु जब भगवा वस्त्र धारी
धर्म गुरु स्वयं राजनीति के मैदान में होंगे तो हिंदू वोट किसे मिलेंगे
उन्हें या भाजपा को. कांग्रेस के लिये यह सबसे सुविधा जनक स्थिति होगी.
कुछ
भी हो डेढ़ वर्ष से चल रहे बाबा रामदेव तथा अन्ना हजारे एपीसोड की पटकथा
जिसने भी लिखी है उसकी बुद्धि की कुशाग्रता अद्वितीय है. अनुमान लगायें यह
पटकथा लेखक कौन हो सकता है, शायद कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह.
मोकर्रम खान, वरिष्ठ पत्रकार/राजनीतिक विश्लेषक
पूर्व निजी सचिव, केंद्रीय शहरी विकास राज्य मंत्री.
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