Toc News
भोपाल। देश के विभिन्न राज्यों में हुई भ्रष्टाचार के खिलाफ
कार्रवाई के मामले में मप्र दूसरे नंबर पर है। महाराष्ट्र
पहले नंबर पर बना हुआ है। यहां 2015 में 1279 मामलों
में कार्रवाई की गई जबकि मप्र में 634 मामलों में
ही कार्रवाई की जा सकी। यह लोकायुक्त जैसी संस्थाओं को संतोष/नया सबक/ चुनौती/ और उत्साहवर्धन जैसे कई प्रसंग एक साथ लाने वाला क्षण है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने 2015 की रिपोर्ट जारी की है।
इस सूची में 1279 मामलों के साथ महाराष्ट्र टॉप
पर है जबकि 634 मामलों के साथ मप्र दूसरे नंबर पर। नंबर
1 और नंबर 2 के बीच का अंतर काफी बड़ा है। मप्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ काम कर रहीं सरकारी ऐजेन्सियों को इसे एक चुनौती के रूप में लेना होगा।
चार्जशीट के मामले में ढुलमुल सरकार रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2015 के 634 मामलों और वर्ष 2014 के पेडिंग 465 यानी कुल 1099 मामलों में से 439 मामलों में ही पुलिस
चार्जशीट पेश कर पाई। साल 2015 के अंत तक 340 मामले लंबित थे। भ्रष्टाचार से जुड़े 26 मामलों में 44 करोड़ 24 लाख रुपए जब्त हुए, जो कि देश में सबसे ज्यादा राशि थी।
भ्रष्टाचारियों को शरण देने के मामले में सरकार नंबर 1 भले ही प्राप्त शिकायतों पर कार्रवाई करने में लोकायुक्त ठीक ठाक स्थिति में हो परंतु भ्रष्ट अफसरों को संरक्षण देने के मामले में शिवराज सरकार नंबर 1 की पोजीशन पर है। शिवराज सरकार ने 320 मामलों में अभियोजन की अनुमति
लटका रखी है जबकि सभी मामलों में
अफसरों के खिलाफ गंभीर भ्रष्टाचार के मामले
जांच में प्रमाणित पाए गए हैं। अब तो कई मामले ऐसे
भी सामने आ रहे हैं, जिसमें दिग्गज अफसरों के
खिलाफ आई शिकायत पर जांच से शुरू हुई परंतु साल भर से
पूरी ही नहीं हुई।
भोपाल। देश के विभिन्न राज्यों में हुई भ्रष्टाचार के खिलाफ
कार्रवाई के मामले में मप्र दूसरे नंबर पर है। महाराष्ट्र
पहले नंबर पर बना हुआ है। यहां 2015 में 1279 मामलों
में कार्रवाई की गई जबकि मप्र में 634 मामलों में
ही कार्रवाई की जा सकी। यह लोकायुक्त जैसी संस्थाओं को संतोष/नया सबक/ चुनौती/ और उत्साहवर्धन जैसे कई प्रसंग एक साथ लाने वाला क्षण है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने 2015 की रिपोर्ट जारी की है।
इस सूची में 1279 मामलों के साथ महाराष्ट्र टॉप
पर है जबकि 634 मामलों के साथ मप्र दूसरे नंबर पर। नंबर
1 और नंबर 2 के बीच का अंतर काफी बड़ा है। मप्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ काम कर रहीं सरकारी ऐजेन्सियों को इसे एक चुनौती के रूप में लेना होगा।
चार्जशीट के मामले में ढुलमुल सरकार रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2015 के 634 मामलों और वर्ष 2014 के पेडिंग 465 यानी कुल 1099 मामलों में से 439 मामलों में ही पुलिस
चार्जशीट पेश कर पाई। साल 2015 के अंत तक 340 मामले लंबित थे। भ्रष्टाचार से जुड़े 26 मामलों में 44 करोड़ 24 लाख रुपए जब्त हुए, जो कि देश में सबसे ज्यादा राशि थी।
भ्रष्टाचारियों को शरण देने के मामले में सरकार नंबर 1 भले ही प्राप्त शिकायतों पर कार्रवाई करने में लोकायुक्त ठीक ठाक स्थिति में हो परंतु भ्रष्ट अफसरों को संरक्षण देने के मामले में शिवराज सरकार नंबर 1 की पोजीशन पर है। शिवराज सरकार ने 320 मामलों में अभियोजन की अनुमति
लटका रखी है जबकि सभी मामलों में
अफसरों के खिलाफ गंभीर भ्रष्टाचार के मामले
जांच में प्रमाणित पाए गए हैं। अब तो कई मामले ऐसे
भी सामने आ रहे हैं, जिसमें दिग्गज अफसरों के
खिलाफ आई शिकायत पर जांच से शुरू हुई परंतु साल भर से
पूरी ही नहीं हुई।
No comments:
Post a Comment