Friday, November 18, 2016

सोम डिस्टलरी के संबंध में याचिका की रिपोर्ट पर क्रियान्वयन प्रतिवेदन को लेकर चर्चाओं का दौर गर्म

सोम डिस्टलरी के लिए चित्र परिणाम

अवधेश पुरोहित @ Toc News

भोपाल ।  मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम और लंका के राजा रावण के बीच हुए युद्ध में श्रीराम के द्वारा रावण का अंत करने के बाद रावण की पत्नी मंदोदरी के यह वाक्य भले ही आज विचित्र लगते हों कि जिस भगवान राम से विमुख होकर आज तुम्हारे कुल में कोई दाह संस्कार करने वाला भी नहीं बचा, लेकिन भाजपा के नेताओं ने यह तय कर रखा है कि वह भगवान राम के नाम पर सत्ता में काबिज होने के बाद उनसे विमुख होते रहेंगे और उन्हें टेंट में विराजते देखते रहेंगे लेकिन उन्हीं भगवान राम का लाभ उठाने में वह पीछे नहीं रहेंगे
तभी तो भगवान राम के द्वारा बनी भाजपा की सरकार की यह स्थिति है कि भले ही भगवान राम आज तंबू में विराजमान हों लेकिन भाजपा का वह कार्यकर्ता जिसके पास इस सरकार में काबिज होने के पहले टूटी साइकिल तक नहीं थी आज वह आलीशान भवनों और लग्जरी वाहनों में फर्राटे लेते जनता पर धुअंा उड़ाते नजर आ रहे हैं
यह सब खेल कुछ यूँ ही नहीं चला इसके पीछे राज्य की जनता का यह कहना है कि वर्षों पूर्व तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के शासनकाल के दौरान फरवरी-मार्च, १९९७ सत्र में प्रस्तुत याचिका क्रमांक-२६४४(बेतवा नदी में प्रदूषण संबंधी) पर याचिका समिति का तीसवाँ प्रतिवेदन (भाग-२) (दिनांक १ मई, १९९८ को विधानसभा में प्रस्तुत) हालांकि इस याचिका समिति की रिपोर्ट को  लोकतंत्र के मंदिर विधानसभा के पटल पर प्रस्तुत हुए लगभग १७ वर्ष बीत चुके हैं  
लेकिन जिस दिग्विजय सिंह के शासनकाल में इसी सोम डिस्टलरी के द्वारा बेतवा नदी में प्रदूषण संबंधी मामले को लेकर भाजपा के कुछ नेताओं सहित विदिशा की जनता और तत्कालीन सांसद शिवराज सिंह चौहान के द्वारा रायसेन जिले के जिस गांव सेहतगंज में यह सोम डिस्टलरी स्थापित है वहाँ से इसी डिस्टलरी के द्वारा प्रदूषित किये जाने वाली बेतवा के प्रदूषित पानी की एक बाल्टी पानी लेकर सेहतगंज से राजधानी में स्थित प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के कार्यालय तक पदयात्रा तक की गई थी और वहाँ मौजूद एक ईई का मुंह काला कर अपना विरोध दर्ज किया गया था  
लेकिन आज जब वह सत्ता में हैं तो एक मई १९९८ को विधानसभा के पटल में रखी गई सोम डिस्टलरी के द्वारा बेतवा में प्रदूषण संबंधी याचिका समिति के निष्कर्ष और अनुशंसाओं पर कोई कार्यवाही नहीं की गई और आज भी यह विधानसभा और संंबंधित विभागों में पड़ी धूल खा रही है। जिस सोम डिस्टलरी के द्वारा बेतवा को प्रदूषण करने के मामले में विधानसभा की याचिका समिति ने अपना ३०र्वा प्रतिवेदन (भाग-२) में यह कहा गया था कि निश्चित ही प्रबंधकों पर वैधानिक कार्यवाही समय-समय पर न कर प्रदूषण निवारण मण्डल एवं आबकारी विभाग के अधिकारियों ने कम्पनी को लाभ ही पहुंचाया है, अधिकारियों का यह कृत्य क्षम्य नहीं है 
तो वहीं इसी रिपोर्ट में समिति ने प्रदूषण निवारण के शीर्ष स्तर से निचले स्तर तक की जो भूमिका है वह निश्चित ही दुर्भाग्यजनक और उसकी उदासीनता दर्शाती है, सामिति ने अपनी रिपोर्ट और अनुशंसाओं में राज्य के प्रदूषण निवारण मण्डल के अध्यक्ष जैसे जिम्मेदार व्यक्ति जब समिति के समक्ष प्रोसीक्यूशन की कार्यवाही संबंधी बात कहकर जायें और उसका पालन नहीं करें तो निचले अमले से उसकी उम्मीद नहीं की जा सकती है। 
इस तरह से समिति ने मण्डल के अध्यक्ष और उसके निचले स्तर तक के कर्मचारियों पर कई तरह के सवाल खड़े किये थे और साथ ही समिति ने तो यहाँ तक कहा था कि आबकारी विभाग का अमला वहाँ उत्पादन पर निगरानी हेतु पदस्थ है लेकिन उसकी निष्ठा जनता एवं राज्य शासन के प्रति है, ऐसा नहीं लगा जनता के साथ उसने विश्वासघात किया ही है, राजकोष को हानि भी  पहुँचाई, समिति ने अपनी रिपोर्ट में वास्तविक उत्पादन के तथ्य और स्थापित क्षमता के विरुद्ध आसवानी प्रबंधकों द्वारा दर्शाया जा रहा उत्पादन इसका प्रमाण है, समय-समय पर आसवानी से अवैध शराब परिवहन करते हुए वाहनां का पकड़ा जाना भी इस बात का प्रमाण है कि ए कार वैध स्थापित क्षमता के उपयोग के बाद की गतिविधियाँ हैं जिसके कई प्रकरण विधानसभा में भी चर्चित हुए, जिला अध्यक्ष रायसेन ने आबकारी अमले पर भी पर्याप्त निगरानी ना रखने की चूक की है। १७ वर्ष पूर्व लोकतंत्र के मंदिर विधानस भा के पटल पर रखे गये इस प्रतिवेदन में जहाँ राज्य के प्रदूषण मण्डल के अध्यक्ष से लेकर निचले स्तर के कर्मचारियों की कार्यप्रणाली पर तो कई तरह के सवाल खड़े किये हैं तो वहीं राज्य के आबकारी अमले और कलेक्टर रायसेन द्वारा आबकारी अमले पर पर्याप्त निगरानी न रखने की चूक को लेकर तमाम सवाल खड़े किए हैं। 
तो वहीं इस सोम डिस्टलरी के प्रदूषण निवारण मण्डल द्वारा प्रतिमाह जल नमूने एकत्रित किये जाने पर भी तमाम सवाल उठाते हुए यह कहा था कि निगरानी और जाँच के मायने क्या हैं ? निश्चित ही यह फाइलों की पेट भराई से अधिक कुछ नहीं और जनता के साथ धोखा है, पर्याप्त मामलों के बावजूद भी फैक्ट्री प्रबंधन को प्रासीक्ूयट कर कार्यवाही न करना ही इसका जीता-जागता उदाहरण है। १७ वर्ष पूर्व लोकतंत्र के मंदिर विधानसभा के पटल पर रखी गई सोम डिस्टलरी के द्वारा बेतवा नदी में प्रदूषण संबंधी इस याचिका पर याचिका समिति के ३०वाँ प्रतिवेदन (भाग-२) में यह तक भी कहा गया था कि जनहित एवं जनस्वास्थ्य की दृष्टि से सोम डिस्टलरी का चालू रहना उचित नहीं है, अत: राज्य शासन सेहतगंज स्थित सोम डिस्टलरी को वर्तमान स्थल पर चालू रखने पर तुरंत रोक लगाये साथ ही   समिति ने अपने निष्कर्ष में यह भी कहा था कि राज्य शासन आसवानी को अनुमति जारी रखना चाहे तो अत्यंत वैकल्पिक सुरक्षित स्थान पर उसे स्थापित कराये। 
अधिकतम तीन माह में फैक्ट्री के स्थानान्तरण की कार्यवाही प्रारंभ हो और एक वर्ष में समाप्त हो जाये यदि समिति ने अपनी अनुशंसा और निष्कर्ष में यह भी लिखा था कि यदि फैक्ट्री प्रबंधन इसे मान्य नहीं करे तो उसका आसवनी  लायसेंस निरस्त कर दिया जाये क्योंकि किसी भी व्यक्ति को चाहे वह कितना ही धनवान या राजनीतिक रूप से प्रभावशाली क्यों न हो इस बात की छूट नहीं दी जा सकती कि वह पूरे समाज के जीवन के साथ खुलेआम खिलवाड़ करे। समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा था कि आसवानी तभी प्रारंभ हो जब प्रबंधन प्रदूषण निवारण के समस्त मापदण्डों की पूर्ति करने की स्थिति में हो और पर्याप्त क्षमता के उपकरण न केवल स्थापित करे वरन उनका प्रभावकारी संचालन भी सुनिश्चित कर लिया जाये।
यही नहीं समिति ने अपनी अनुशंसा में सोम डिस्टलरी के मामले में यह कहा था कि फैक्ट्री मालिकों द्वारा की गई अनियमितताओं जनजीवन से किये गये खिलवाड़ हेतु कम्पनी के विरुद्ध अभियोजन (प्रासिक्यूशन) की कार्यवाही अवश्य की जाये, उत्पादन कम दर्शाकर राज्य कोष को हानि पहुंचाई गई उसका समुचित आंकलन कर उसकी वसूली भी फैक्ट्री प्रबंधन से की जाये शासन सोम डिस्टलरी सहित अन्य आसवनी को इतनी ही क्षमता की इकाई स्थापित करने की अनुमति प्रदान करने पर विचार करे जितना उत्पादन कागजों पर दिखती है। मजे की बात यह है कि याचिका समिति की इस रिपोर्ट को प्रस्तुत हुए आज १७ वर्ष हो चुके हैं लेकिन लोकतंत्र के इस मंदिर मध्यप्रदेश विधानसभा (दशम) में प्रस्तुत किये गये इस याचिका समिति का ३०वाँ प्रतिवेदन (भाग-२) पर आजतक राज्य शासन द्वारा ना तो ऐसा लगता है कि कोई कार्यवाही की गई और न ही विधानसभा में प्रस्तुत होने वाली याचिका समिति की रिपोर्टों के नियम अनुसार सोम डिस्टलरी के इस प्रतिवेदन पर राज्य शासन के द्वारा न तो आज तक कोई क्रियान्वयन प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया इसको लेकर तरह-तरह की चर्चाएं व्याप्त हैं तो वहीं लोग यह कहते हुए नजर आ रहे हैं


कि जिस याचिका समिति के प्रतिवेदन में सोम डिस्टलरी और प्रदूषण निवारण बोर्ड के साथ-साथ सोम डिस्टलरी के संचालकों के संबंध में जिन शब्दों का उपयोग उक्त समिति द्वारा पेश की गई अपनी रिपोर्ट के निष्कर्ष और अनुशंसा में किया गया था और यहाँ तक कहा गया था कि प्रदूषण निवारण मण्डल के अधिकारियों में भी जो जांच मछली मरने के बाद की घटनाओं के बाद करवाई उसमें भी यह तथ्य सामने आए थे लेकिन किन कारणों से प्रासीक्यूशन की कार्यवाही नहीं हो पाई यह तथ्य प्रदूषण निवारण मण्डल के व्यवहार एवं कार्यशैली को शंकाप्रद बनाता है। तथ्य बताते हैं कि आसवनी प्रबंधन निश्चित ही राजनैतिक, प्रशासनिक रूप से सक्षम हैं और मण्डल व जिला प्रशासन उनके सामने आसहाय सिद्ध होता है।


१७ वर्ष पूर्व सोम डिस्टलरी के द्वारा बेतवा प्रदूषण को लेकर जिस तरह से याचिका समिति द्वारा अपने प्रतिवेदन में जिन शब्दों का सोम डिस्टलरी के प्रबंधकों और मालिकों के बारे में जिन शब्दों का उल्लेख किया गया लगता है उन्हीं सबका प्रभाव आज भी इस प्रदेश की राजनीति पर बदस्तूर जारी है, तभी तो इस रिपोर्ट के आने के १७ वर्ष बीत जाने के बाद भी विधानसभा में इस याचिका समिति का ३०वाँ प्रतिवेदन (भाग-२) की सिफारिशों और अनुशंसाओं के संबंध में क्रियान्वयन प्रतिवेदन आज तक विधानसभा के पटल पर न आना सोम डिस्टलरी के प्रबंधकों और शासन को लेकर कई सवाल खड़े करता है साथ ही यह लाख टके का सवाल के जवाब की खोज में लोग लगे हुए हैं कि आखिर वह क्या कारण है कि १७ वर्ष पूर्व विधानसभा के पटल पर किये गये सोम डिस्टलरी के संबंध में किये गये प्रतिवेदन पर सरकार द्वारा क्रियान्वयन प्रतिवेदन आज तक पेश न किये जाने के पीछे शासन की क्या रणनीति है यह वही जानें?

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