चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर (बाएं) और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ( फाइल फोटो) |
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भारत के मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा कि लोकपाल विधेयक लंबे सामाजिक संघर्ष के बाद आया था और मौजूदा सरकार चाहे या न चाहे इसे काम करना चाहिए।
उत्कर्ष आनंद
सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान बुधवार (23 नवंबर) को केंद्र सरकार से पूछा कि अगर वो भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना चाहती है और सार्वजनिक जीवन में शुचिता बहाल करना चाहती है तो दो साल से भ्रष्टाचार पर निगरानी रखने वाले लोकपाल की नियुक्ति क्यों नहीं कर रही है। भारत की सर्वोच्च अदालत ने कहा कि वो लोकपाल को ‘बेजान शब्द’ या ‘बेकाम की चीज’ बनकर नहीं रह जाने देगी। भारत के मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर के नेतृत्व वाली खंडपीठ ने कहा कि लोकपाल विधेयक लंबे सामाजिक संघर्ष के बाद आया था और मौजूदा सरकार चाहे या न चाहे इसे काम करना चाहिए। खंडपीठ ने भारत के एटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी से लोकपाल नियुक्त किए जाने के लिए एक निश्चित समय सीमा तय बताने के लिए कहा है। अदालत ने रोहतगी से कहा, “क्या सरकार इसे आपद स्थिति नहीं समझती कि 2014 में लोकपाल विधेयक पारित होने के बावजूद आज तक लोकपाल की नियुक्ति नहीं हुई है? अगर आप कहते हैं कि सरकार व्यवस्था की सफाई को लेकर बहुत चिंतित है तो फिर पिछले दो साल से आप इस पर अमल क्यों नहीं कर पा रहे हैं? हम लोकपाल जैसी संस्था को बेकार नहीं पड़े रहने देंगे।”
चीफ जस्टिस ठाकुर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूण और जस्टिस एल नागेश्वर राव की इस खंडपीठ ने कहा कि सरकार बहाना बना रही है कि लोक सभा में विपक्ष के नेता न होने के कारण लोकपाल का चयन नहीं हो पा रहा है और इसके लिए कानून में बदलाव (विपक्ष के नेता की जगह सबसे बडी विपक्षी पार्टी के नेता) किए जाने तक इंतजार करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने रोहतगी से कहा, “अगर आपका यही तर्क है तो फिर आप अगले ढाई साल तक लोक सभा में विपक्ष का नेता नहीं पाने जा रहे….इसलिए अगर कानून में संशोधन नहीं हुआ है तो क्या ऐसी महत्वपूर्ण संस्था को बेकार पड़े रहने देंगे? हमें ये बात चिंतित कर रही है कि चूंकि लोक सभा में विपक्ष का नेता नहीं है तो आप पूरे लोकपाल उपेक्षित कर देंगे।” लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक 2013 को साल 2014 में अधिसूचित किया गया था। इस विधेयक के तहत लोकपाल का चयन एक कमेटी करेगी जिसके सदस्य भारत के प्रधानमंत्री, लोक सभा अध्यक्ष, लोक सभा में विपक्ष के नेता, भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा नियुक्त सुप्रीम कोर्ट का कोई जज और एक प्रसिद्ध न्यायवादी होंगे।
जनहित याचिका दायर करने वालों की तरफ से अदालत में पेश हुए सीनियर एडवोकेट शांति भूषण और एडवोकेट गोपाल शंकरनारायण ने कोर्ट को बताया कि केंद्र सरकार ने केंद्रीय सतर्कता आयुक्त, सीबीआई चीफ और मुख्य सूचना आयुक्त इत्यादि की नियुक्त से जुड़े कानून में संशोधन करके लोक सभा में विपक्ष के नेता की जगह सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता का नाम मान्य कर दिया है। भूषण और शंकरनारायण ने अदालत से कहा कि कोई भी राजनीतिक दल लोकपाल की नियुक्ति नहीं चाहता इसलिए इससे जुड़े कानून में संशोधन नहीं हो पाएगा जिसकी वजह से भ्रष्टाचार के खिलाफ लंबी लड़ाई कुंठित होकर रह गई है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने एटार्नी जनरल को लताड़ लगाते हुए कहा कि अगर आप चार दूसरी संस्थाओं के लिए कानून में आसानी से बदलाव कर सकते हैं तो इस विधेयक में संशोधन करने में क्या दिक्कत है? सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “….हमारे ख्याल में अगर हम इस प्रक्रिया को तेज करने के लिए कोई आदेश देते हैं तो आपको इसका स्वागत करना चाहिए।”
वहीं एटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने अदालत से कहा कि कानून बनाना संसद का काम है और वो लोकपाल की नियुक्ति की कोई तय समयसीमा बताने की स्थिति में नहीं हैं। इस पर अदालत ने उनसे कहा कि वो सक्षम अधिकारी से इस बारे में निर्देश लेकर अदालत को सात दिसंबर को जवाब दें। आपको बता दें कि समाजसेवी अन्ना हजारे ने लोकपाल विधेयक पारित करवाने के लिए अखिल भारतीय आंदोलन किया था जिसके बाद केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस गठबंधन सरकार ने ये विधेयक पारित किया था।
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