अवधेश पुरोहित // Toc News
भोपाल । शिवराज मंत्रीमण्डल के चुनावी प्रबंधकों को झाबुआ के बाद अब आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र शहडोल में भी हार का एहसास मतदान के पूर्व ही होने लगा है और उनके चहेते शुभचिंतकों और खुशमदी लोगों द्वारा अब यह प्रचारित किया जा रहा है कि यदि शहडोल उपचुनाव में यदि विजयश्री मिली तो उसका श्रेय शिवराज को जाएगा और यदि हारे तो सारा दोष नरेन्द्र मोदी द्वारा आठ नवम्बर की रात्रि से किए गए नोटबंदी पर ढोलने की तैयारी कर रहे हैं। दरअसल यह चुनाव कई पेचीदगियों से भरा है और इसमें जहां स्वयं भाजपा के प्रत्याशी भी ज्ञानसिंह भी नहीं चाहते हैं कि वह मंत्री पद छोड़ सांसद बनें?
इस तरह की चर्चा उनके करीबीयों के द्वारा की जा रही है तो वहीं स्वर्गीय दलपत सिंह परस्ते के प्रभाव को भी भाजपा का भारी भरकम चुनावी मैनेजमेंट के महारथी भी कुछ कम नहीं कर पा रहे हैं यही नहीं इस चुनाव के पूर्व भाजपा की कई मायनों में हथियार डालने जैसा काम दिखाई दे रहा है चुनाव के ठीक पूर्व शहडोल संसदीय क्षेत्र के आदिवासी मतदाताओं को शिवराज मंत्रीमण्डल के सदस्य जो स्वयं आदिवासी हैं ने यह बयान देकर कि जो नमक वह खा रहे हैं वह शिवराज सरकार का है और नमक चुकाने वालों के बारे में क्या कहा जाता है?
धुर्वे का यह बयान आदिवासियों को शिवराज सरकार के द्वारा बांटे जा रहे एक रुपए किलो नमक का कर्ज चुकाने की बात की ओर इशारा करता है, हालांकि इस बयान के बाद आदिवासियों में नमक को लेकर तमाम आक्रोष पनप रहा है और पढ़े लिखे आदिवासी यह कहते नजर आ रहे हैं कि कोई हराम में तो शिवराज सरकार हमें नमक नहीं खिला रही है जो नमक हम खा रहे हैं उसका सरकार द्वारा निर्धारित राशि भी अदा करते हैं, यही नहीं यह आदिवासी नवयुवक ओमप्रकाश धुर्वे पर यह सवाल भी उठा रहे हंै कि जिस शिवराज सरकार के नमक का कर्ज चुकाने की बात ओमप्रकाश धुर्वे कह रहे हैं
वह स्वयं प्रदेश के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री हैं जरा वह इस बात का तो खुलासा कर दें कि बीपीएल कार्ड पर दिये जाने वाले हितग्राहियों को शिवराज सरकार द्वारा नमक की की तो बात छोडि़ए कितना एक रुपये किलो गेहूं और चावल सही ढंग से वितरित किया जाता है और जो हितग्राहियों को मिलता है तो उसमें कितनी मिट्टी और कितने कंकर होते हैं, जरा इसकी भी जांच करा लें? तो उन्हें पता चल जाएगा कि ना तो शिवराज सरकार द्वारा दिये गये नमक का सही से वितरण किया जा रहा है और ना ही जिस एक रुपये किलो गेहूं और दो रुपए किलो चावल बीपीएल कार्डधारकों को मुहैया कराने का जो सरकार ढिंढोरा पीटती है वह भी ठीक से नहीं मिलता और करीब ७५ प्रतिशत बीपीएल धारकों को मिलने वाला खाद्यान्न कालाबाजारी की भेंट चढ़ जाता है।
जहाँ तक ओमप्रकाश धुर्वे द्वारा दिये गये शिवराज सरकार के नमक का कर्ज चुकाने वाले बयान को भी लोग पूर्व सांसद स्वर्गीय दलपत सिंह परस्ते जिनके निधन के कारण इस उपचुनाव की स्थिति बनी है और उनकी पुत्री हिमाद्री सिंह जो इस उपचुनाव में कांग्रेस की प्रत्याशी के रूप में चुनावी समर में उतरी हुई हैं उनके द्वारा भी मुख्यमंत्री को लिखे गये एक पत्र में जिन-जिन बातों का खुलासा किया गया उसका असर भी क्षेत्रीय मतदाताओं पर होता नजर आ रहा है और लोग हिमाद्री के पक्ष में दिखाई दे रहे हैं,
कुल मिलाकर झाबुआ संसदीय उपचुनाव की तरह लगता है कि शहडोल लोकसभा उपचुनाव में भी भाजपा का हार का सामना करना पड़ सकता है और इसका एहसास भी मुख्यमंत्री से लेकर उनके चुनावी प्रबंधकों को होने लगा है तभी तो उनके चहेते लोगों द्वारा यह प्रचारित किया जा रहा है कि यदि यह चुनाव हारेंगे तो उसका मुख्य कारण होगा मोदी सरकार द्वारा पाँच सौ और एक हजार रुपये के नोटों पर पाबंदी लगाने के कारण लोगों में भाजपा के प्रति आक्रोश पनपने की शुरुआत होगी। हालांकि नोटबंदी को लेकर लोगों में जो आक्रोश है उसकी एक झलक पिछले दिनों इसी संसदीय क्षेत्र में लाइन में खड़े नोट बदलने के लिए लोगों के समक्ष जब भाजपा के कार्यकर्ता मोदी जिंदाबाद के नारे लगाते दिखे तो इन लाइन में खड़े लोगों का आक्रोश इस तरह से बढ़ा कि उन्होंने उन मोदी के समर्थन में नारेबाजी करने वाले लोगों की धुनाई कर दी,
इससे यह साफ जाहिर है कि इस चुनाव में जहाँ भाजपा मोदी द्वारा की गई नोटबंदी के कारण ठीक से शिवराज के चुनावी प्रबंधक ठीक से चुनावी प्रबंध में असफल साबित हो रहे हैं हालांकि आज शाम से यहाँ चुनावी शोरगुल थम जाएगा और अब घर-घर जाकर मतदाताओं को प्रलोभन देने का जोर शुरू हो जाएगा हालांकि भाजपा द्वारा झाबुआ में किस तरह से ठेठ आदिवासियों को प्रलोभन देने का दौर चला था भाजपा के लाभ प्रलोभन में ठेठ आदिवासी संसदीय क्षेत्र जहाँ उसके संसदीय इतिहास का पहला उपचुनाव सम्पनन हुआ था,
उस झाबुआ-रतलाम संसदीय क्षेत्र में पूरी सरकार और प्रदेश के भाजपा के दिग्गजों के साथ-साथ कई तरह के संगठनों के नाम पर भाजपा को विजयश्री दिलाने की भरपूर कोशिश की गई थी लेकिन आखिरकर उन ठेठ ओदिवासियों पर ना तो इस सरकार का प्रलोभन चला और न चुनावी प्रबंधन दोनों ही उन ठेठ आदिवासियों के दृढ़ संकल्प के चलते चारों खाने चित्त भाजपाई गिरे दिखाई लिये और आखिरकार झाबुआ में कांग्रेस के प्रत्याशी कांतिलाल भूरिया ने अपनी संसदीय क्षेत्र पर पुन: परचम फहरा दिया, लगता है ऐसा ही कुछ शहडोल संसदीय क्षेत्र में होता नजर आ रहा है,
तभी तो सरकार क ा सुर में सुर मिलाने वाली मीडिया भी अब यह कहती नजर आ रही है कि यदि शहडोल में भाजपा जीती तो शिवराज और हारे तो नोटबंदी को दोष दिया जाएगा? ठीक इसी तरह की भाषा भाजपाईयों के मुखाग्रबिन्दु से भी सुनाई देने लगी है, इससे यह साफ जाहिर होता है कि भाजपा ने १९ नवम्बर को होने वाले शहडोल उपचुनाव के पूर्व ही अपने चुनावी प्रबंधन की असफलत स्वीकार कर हथियार डाल दिये हैं।
इस तरह की हथियार डालने की स्थिति से यह साफ जाहिर होता है कि इस उपचुनाव में मोदी के नोटबंदी का असर दिखाई दे रहा है इसको लेकर राजनीतिक हलकों में यह चर्चा का दौर भी चल निकला की मोदी की नोटबंदी के कारण भाजपा शहडोल लोकसभा और नेपानगर विधानसभा उपचुनाव में भाजपा के चुनावी प्रबंधक अपनी रणनीति को यहाँ अपनाने में असफल नजर आए।
तो वहीं यह भी चर्चा जोरों पर है कि जैसा कि भाजपा सरकार के दौरान प्रदेश में हुए हर उपचुनाव के दौरान जहाँ उपचुनाव होने हैं उसके आस पास नोटों की जो भारी भरकम खेप वाहनों से पुलिस द्वारा जप्त किये जाने की घटनायें उजागर होती थीं, यह सिलसिला भी मोदी द्वारा नोटबंदी के कारण इन होनेवाले उपचुनाव के दौरान नजर नहीं आया, हाँ बुरहानपुर के आसपास जरूर वाहनों में नोट जब्त होने की घटना सुर्खियों में रही।
शहडोल संसदीय क्षेत्र में और उसके आसपास इस तरह की घटनाएं न घटने के बारे में भी लोग यह कहते नजर आ रहे हैं कि शायद इसकी वजह यह हो सकती है कि इस उपुचाव में जिनको प्रबंधन के के लिये शिवराज ने लगाये हैं वह प्रबंधन में माहिर हैं लेकिन उसके बाद भी इस तरह की चर्चाएं चलना कि जीते तो शिव का राज और हारे तो नोटबंदी? यानि शहडोल संसदीय क्षेत्र मोदी के पाले में जाता है तो उसकी हार की भी ठीकरा शिव के गणों द्वारा मोदी पर फोडऩे की तैयारी चुनाव परिणाम आने के पूर्व ही की जाने लगी है इसको लेकर राजनीतिक क्षेत्र में तरह-तरह की चर्चाएं व्याप्त हैं।
भोपाल । शिवराज मंत्रीमण्डल के चुनावी प्रबंधकों को झाबुआ के बाद अब आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र शहडोल में भी हार का एहसास मतदान के पूर्व ही होने लगा है और उनके चहेते शुभचिंतकों और खुशमदी लोगों द्वारा अब यह प्रचारित किया जा रहा है कि यदि शहडोल उपचुनाव में यदि विजयश्री मिली तो उसका श्रेय शिवराज को जाएगा और यदि हारे तो सारा दोष नरेन्द्र मोदी द्वारा आठ नवम्बर की रात्रि से किए गए नोटबंदी पर ढोलने की तैयारी कर रहे हैं। दरअसल यह चुनाव कई पेचीदगियों से भरा है और इसमें जहां स्वयं भाजपा के प्रत्याशी भी ज्ञानसिंह भी नहीं चाहते हैं कि वह मंत्री पद छोड़ सांसद बनें?
इस तरह की चर्चा उनके करीबीयों के द्वारा की जा रही है तो वहीं स्वर्गीय दलपत सिंह परस्ते के प्रभाव को भी भाजपा का भारी भरकम चुनावी मैनेजमेंट के महारथी भी कुछ कम नहीं कर पा रहे हैं यही नहीं इस चुनाव के पूर्व भाजपा की कई मायनों में हथियार डालने जैसा काम दिखाई दे रहा है चुनाव के ठीक पूर्व शहडोल संसदीय क्षेत्र के आदिवासी मतदाताओं को शिवराज मंत्रीमण्डल के सदस्य जो स्वयं आदिवासी हैं ने यह बयान देकर कि जो नमक वह खा रहे हैं वह शिवराज सरकार का है और नमक चुकाने वालों के बारे में क्या कहा जाता है?
धुर्वे का यह बयान आदिवासियों को शिवराज सरकार के द्वारा बांटे जा रहे एक रुपए किलो नमक का कर्ज चुकाने की बात की ओर इशारा करता है, हालांकि इस बयान के बाद आदिवासियों में नमक को लेकर तमाम आक्रोष पनप रहा है और पढ़े लिखे आदिवासी यह कहते नजर आ रहे हैं कि कोई हराम में तो शिवराज सरकार हमें नमक नहीं खिला रही है जो नमक हम खा रहे हैं उसका सरकार द्वारा निर्धारित राशि भी अदा करते हैं, यही नहीं यह आदिवासी नवयुवक ओमप्रकाश धुर्वे पर यह सवाल भी उठा रहे हंै कि जिस शिवराज सरकार के नमक का कर्ज चुकाने की बात ओमप्रकाश धुर्वे कह रहे हैं
वह स्वयं प्रदेश के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री हैं जरा वह इस बात का तो खुलासा कर दें कि बीपीएल कार्ड पर दिये जाने वाले हितग्राहियों को शिवराज सरकार द्वारा नमक की की तो बात छोडि़ए कितना एक रुपये किलो गेहूं और चावल सही ढंग से वितरित किया जाता है और जो हितग्राहियों को मिलता है तो उसमें कितनी मिट्टी और कितने कंकर होते हैं, जरा इसकी भी जांच करा लें? तो उन्हें पता चल जाएगा कि ना तो शिवराज सरकार द्वारा दिये गये नमक का सही से वितरण किया जा रहा है और ना ही जिस एक रुपये किलो गेहूं और दो रुपए किलो चावल बीपीएल कार्डधारकों को मुहैया कराने का जो सरकार ढिंढोरा पीटती है वह भी ठीक से नहीं मिलता और करीब ७५ प्रतिशत बीपीएल धारकों को मिलने वाला खाद्यान्न कालाबाजारी की भेंट चढ़ जाता है।
जहाँ तक ओमप्रकाश धुर्वे द्वारा दिये गये शिवराज सरकार के नमक का कर्ज चुकाने वाले बयान को भी लोग पूर्व सांसद स्वर्गीय दलपत सिंह परस्ते जिनके निधन के कारण इस उपचुनाव की स्थिति बनी है और उनकी पुत्री हिमाद्री सिंह जो इस उपचुनाव में कांग्रेस की प्रत्याशी के रूप में चुनावी समर में उतरी हुई हैं उनके द्वारा भी मुख्यमंत्री को लिखे गये एक पत्र में जिन-जिन बातों का खुलासा किया गया उसका असर भी क्षेत्रीय मतदाताओं पर होता नजर आ रहा है और लोग हिमाद्री के पक्ष में दिखाई दे रहे हैं,
कुल मिलाकर झाबुआ संसदीय उपचुनाव की तरह लगता है कि शहडोल लोकसभा उपचुनाव में भी भाजपा का हार का सामना करना पड़ सकता है और इसका एहसास भी मुख्यमंत्री से लेकर उनके चुनावी प्रबंधकों को होने लगा है तभी तो उनके चहेते लोगों द्वारा यह प्रचारित किया जा रहा है कि यदि यह चुनाव हारेंगे तो उसका मुख्य कारण होगा मोदी सरकार द्वारा पाँच सौ और एक हजार रुपये के नोटों पर पाबंदी लगाने के कारण लोगों में भाजपा के प्रति आक्रोश पनपने की शुरुआत होगी। हालांकि नोटबंदी को लेकर लोगों में जो आक्रोश है उसकी एक झलक पिछले दिनों इसी संसदीय क्षेत्र में लाइन में खड़े नोट बदलने के लिए लोगों के समक्ष जब भाजपा के कार्यकर्ता मोदी जिंदाबाद के नारे लगाते दिखे तो इन लाइन में खड़े लोगों का आक्रोश इस तरह से बढ़ा कि उन्होंने उन मोदी के समर्थन में नारेबाजी करने वाले लोगों की धुनाई कर दी,
इससे यह साफ जाहिर है कि इस चुनाव में जहाँ भाजपा मोदी द्वारा की गई नोटबंदी के कारण ठीक से शिवराज के चुनावी प्रबंधक ठीक से चुनावी प्रबंध में असफल साबित हो रहे हैं हालांकि आज शाम से यहाँ चुनावी शोरगुल थम जाएगा और अब घर-घर जाकर मतदाताओं को प्रलोभन देने का जोर शुरू हो जाएगा हालांकि भाजपा द्वारा झाबुआ में किस तरह से ठेठ आदिवासियों को प्रलोभन देने का दौर चला था भाजपा के लाभ प्रलोभन में ठेठ आदिवासी संसदीय क्षेत्र जहाँ उसके संसदीय इतिहास का पहला उपचुनाव सम्पनन हुआ था,
उस झाबुआ-रतलाम संसदीय क्षेत्र में पूरी सरकार और प्रदेश के भाजपा के दिग्गजों के साथ-साथ कई तरह के संगठनों के नाम पर भाजपा को विजयश्री दिलाने की भरपूर कोशिश की गई थी लेकिन आखिरकर उन ठेठ ओदिवासियों पर ना तो इस सरकार का प्रलोभन चला और न चुनावी प्रबंधन दोनों ही उन ठेठ आदिवासियों के दृढ़ संकल्प के चलते चारों खाने चित्त भाजपाई गिरे दिखाई लिये और आखिरकार झाबुआ में कांग्रेस के प्रत्याशी कांतिलाल भूरिया ने अपनी संसदीय क्षेत्र पर पुन: परचम फहरा दिया, लगता है ऐसा ही कुछ शहडोल संसदीय क्षेत्र में होता नजर आ रहा है,
तभी तो सरकार क ा सुर में सुर मिलाने वाली मीडिया भी अब यह कहती नजर आ रही है कि यदि शहडोल में भाजपा जीती तो शिवराज और हारे तो नोटबंदी को दोष दिया जाएगा? ठीक इसी तरह की भाषा भाजपाईयों के मुखाग्रबिन्दु से भी सुनाई देने लगी है, इससे यह साफ जाहिर होता है कि भाजपा ने १९ नवम्बर को होने वाले शहडोल उपचुनाव के पूर्व ही अपने चुनावी प्रबंधन की असफलत स्वीकार कर हथियार डाल दिये हैं।
इस तरह की हथियार डालने की स्थिति से यह साफ जाहिर होता है कि इस उपचुनाव में मोदी के नोटबंदी का असर दिखाई दे रहा है इसको लेकर राजनीतिक हलकों में यह चर्चा का दौर भी चल निकला की मोदी की नोटबंदी के कारण भाजपा शहडोल लोकसभा और नेपानगर विधानसभा उपचुनाव में भाजपा के चुनावी प्रबंधक अपनी रणनीति को यहाँ अपनाने में असफल नजर आए।
तो वहीं यह भी चर्चा जोरों पर है कि जैसा कि भाजपा सरकार के दौरान प्रदेश में हुए हर उपचुनाव के दौरान जहाँ उपचुनाव होने हैं उसके आस पास नोटों की जो भारी भरकम खेप वाहनों से पुलिस द्वारा जप्त किये जाने की घटनायें उजागर होती थीं, यह सिलसिला भी मोदी द्वारा नोटबंदी के कारण इन होनेवाले उपचुनाव के दौरान नजर नहीं आया, हाँ बुरहानपुर के आसपास जरूर वाहनों में नोट जब्त होने की घटना सुर्खियों में रही।
शहडोल संसदीय क्षेत्र में और उसके आसपास इस तरह की घटनाएं न घटने के बारे में भी लोग यह कहते नजर आ रहे हैं कि शायद इसकी वजह यह हो सकती है कि इस उपुचाव में जिनको प्रबंधन के के लिये शिवराज ने लगाये हैं वह प्रबंधन में माहिर हैं लेकिन उसके बाद भी इस तरह की चर्चाएं चलना कि जीते तो शिव का राज और हारे तो नोटबंदी? यानि शहडोल संसदीय क्षेत्र मोदी के पाले में जाता है तो उसकी हार की भी ठीकरा शिव के गणों द्वारा मोदी पर फोडऩे की तैयारी चुनाव परिणाम आने के पूर्व ही की जाने लगी है इसको लेकर राजनीतिक क्षेत्र में तरह-तरह की चर्चाएं व्याप्त हैं।
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